दिल्ली में आजकल बैटरी रिकशा तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं और बहुत सी जगह उन्होंने साइकिल रिकशों की जगह ले ली है. 4 सवारियों को बैठाने और प्रदूषण न फैलाने वाले ये रिकशा आटो रिकशा के मुकाबले ये बेहद सस्ते हैं. सब से बड़ी बात यह है कि ये रिकशा पैडल रिकशा के मुकाबले ज्यादा सभ्य हैं क्योंकि इन में गरमी में पसीने से तर, पतलादुबला रिकशे वाला मोटीमोटी सवारियों को खींचता नजर नहीं आता. लोग इन्हें पसंद कर रहे हैं क्योंकि इन पर चढ़ कर अमानवीय अपराधबोध नहीं होता.

लेकिन पुलिस और अफसरों को इन से बहुत शिकायत है. वे मोटर व्हीकल ऐक्ट का हवाला दे कर करों, लाइसैंसों से मुक्त इन रिकशाओं को कानूनों के दायरे में लाने की कोशिश कर रहे हैं. दिल्ली पुलिस ने बहुत से समाचारपत्रों को मोहरा बनाया है जो निरंतर इन के अवैध होने का रोना रो रहे हैं. बेहद हलके और धीमी गति से चलने वाले बैटरी रिकशा चाहे किसी को मार न सकें पर इन्हें परमिट, लाइसैंस, रोड टैक्स, ड्राइविंग लाइसैंस की चपेट में लाने की मांग की जा रही है.

यह मांग नितांत नाजायज है और केवल रिश्वत वसूली के लिए की जा रही है. देश में ऐसा कौन सा लाइसैंसशुदा काम है जो ढंग से चल रहा है. यहां चाहे फूड व ड्रग लाइसैंस हो, फैक्टरी लाइसैंस या मोटर व्हीकल लाइसैंस हो, इन का मकसद जिम्मेदारी समझाना नहीं, वसूली करना है.

हमारे यहां हर लाइसैंस देने वाले विभाग पर दलालों का कब्जा है जो अधिकारियों के लिए रिश्वत वसूलने का काम भी करते हैं. रिश्वत मिली तो हर काम जायज वरना गलत. लाइसैंस का इस देश में केवल एक मतलब है : लाइसैंस पाने वाले ने रिश्वत का भुगतान कर दिया है और इसे काम करने दें.

लाइसैंस हमारे यहां हाथ में कलेवा या माथे पर तिलक, सिर पर स्कल टोपी या गले में क्रौस की तरह है कि भुगतान हो चुका है, अब जीने दो. 3 पहिए वाले आटो रिकशों, टैंपो आदि पर उन की कीमत के दोगुने की रिश्वत देनी पड़ती है और फिर हर बार हफ्ता देना होता है. तभी आटोरिकशा वाले ज्यादा अकड़ दिखाते हैं. बैटरी रिकशा चूंकि रिश्वतखोरी की चपेट से बचे हैं, इसलिए सस्ते हैं.

वे इज्जतदार काम की इजाजत दे रहे हैं और सब से बड़ी बात यह है कि आम नागरिक को राहत दे रहे हैं. इन्हें कानूनी दायरों से दूर रखना चाहिए पर यह, इस देश में तो संभव नहीं है क्योंकि पुलिस और परिवहन दलालों का तंत्र जनतंत्र पर कई गुना भारी है.

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