Social Satire In Hindi : श्रेया की रसोई में ढक्कन ऐसे हैं कि जैसे वे बंद हो ही नहीं सकते. पति बेचारा हर बार डिब्बा उठाते वक्त कामना करता है, काश आज तो ढक्कन लगा हो.
‘‘ओ फ्फो श्रेया, कुछ काम तो तसल्ली से कर लिया कर, पता नहीं क्यों हर समय जल्दबाजी में रहती हो?’’
श्रेया ने आवाज सुन वहीं से जानना चाहा, ‘‘अब क्या हुआ, शेखर, क्या कर दिया मैं ने?’’
‘‘देखो, यहां आ कर, पता नहीं डिब्बों और बोतलों के ढक्कन ठीक से बंद करने की आदत तुम्हें कब पड़ेगी. अपना काम निकाल कर यों ही ढक्कन ढीला छोड़ देती हो. जैसे ही मैं ने बोतल उठाई, ढक्कन हाथ में रह गया और बोतल नीचे जा गिरी. फर्श पर सारा तेलतेल हो गया,’’ शेखर ने बड़बड़ाते हुए कहा. श्रेया हाबड़-ताबड़ में आई.
‘‘देखो, खुद ही देखो,’’ शेखर बोला.
‘‘शेखर, जब तुम मेरी आदत से वाकिफ हो तो तुम खुद ही ध्यान से उठाया करो.’’
‘‘खूब कहा तुम ने, यह भी मेरी ही गलती है. तुम ने तो वह कहावत चरितार्थ कर दी, ‘मेरी बिल्ली मुझू को म्याऊं.’ इतना सुन श्रेया ने जैसे ही कदम बढ़ाया, उस का पैर तेल पर जा पड़ा और वह धड़ाम से जा गिरी.
‘‘लो, खुद ही फंस गईं, इस को कहते हैं, जल्दबाजी का काम शैतान का. हर समय जल्दी में, हर समय जल्दी में, अब भुगतो.’’
श्रेया से कुछ कहते नहीं बन रहा था. खड़े होने की कोशिश कर बस इतना ही कह पाई, ‘‘सुबह के समय पचास काम होते हैं, शेखर. मैं ‘अकेली जान’ क्या करूं?’’
‘‘तो, ढक्कन न लगाने से ‘‘दो जान’ हो जाती हैं क्या. घर में 2 ही तो बंदे हैं, पता नहीं कौन से पचास काम हैं?’’ शेखर ने श्रेया का हाथ पकड़ कर उठाते हुए कहा.
‘‘तुम भी न, यह तो देखो, मुझे चोट लगी है.’’
शेखर श्रेया को बैड पर लिटाते हुए बोला, ‘‘तभी तो 80 किलो वजन यों ही नहीं उठाया.’’ यह कहने के साथ शेखर हंस दिया और फिर बोला, ‘‘जिस दिन तुम्हारे ढक्कन बंद होने लगेंगे और काम में ठीक से ध्यान देने लगोगी, वजन भी कम होने लगेगा.’’
‘‘जब देखो मेरे वजन को रोते रहेंगे. अरे, अपने आप को तो देखो, कमर 30 से 36 हो गई है. मैं ने आज तक कुछ कहा आप को?’’
‘‘अरे बाबा, मैं तो सिर्फ बता रहा हूं,’’ शेखर श्रेया को ‘वौलनी जैल’ लगाते हुए बोला, ‘‘अब तुम आराम करो, मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाता हूं.’’
सुनो, ऐसी चाय बना कर लाना जिस को पीने से दर्द गायब हो जाए और तनमन झूम जाए,’’ श्रेया प्यार से बोली.
‘‘अच्छा जी, लेकिन एक बात है, हमारे यहां भैंस का दूध आता है, नागिन का नहीं,’’ शेखर ने भी हंसते हुए कहा.
‘‘तुम भी न, मेरी हंसी उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते.’’
‘‘इसी का नाम जिंदगी है, डार्लिंग,’’ कह शेखर हंसते हुए चाय बनाने चला गया.
चाय बनाते-बनाते फोन आ गया. शेखर ने फटाफट एक बर्तन में पानी, दूध, चाय-पत्ती, अदरक सब एक-साथ डाल कर गैस फुल औन कर दी. जैसे ही चीनी का डिब्बा उठाया, ढक्कन हाथ में रह गया और डब्बा नीचे जा गिरा. फर्श पर चीनी-चीनी हो गई.
शेखर गुस्से से नीचे बैठ चीनी समेटने लगा. इस बीच फोन कट चुका था.
चाय रानी उबल-उबल कर जल गई. कुछ जलने की महक से शेखर को चाय का ध्यान आया, देखा, चाय जल चुकी थी.
‘‘ओफ्फो, कैसी मुसीबत है?’’ शेखर झूल्ला गया और श्रेया के पास जा कर बोला, ‘‘ऐसा है चाय तो जल गई, अब तुम चाय खुद ही बना लो. मुझे तुम्हारे ढीले ढक्कनों ने बहुत परेशान कर रखा है. देखो किचन में जा कर जरा. तुम से कुछ कहना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा है. जो मर्जी आए, करो,’’ यह कह कर तकिए से सिर ढांप कर वहीं बैड पर वह लेट गया.
श्रेया शेखर का यह रूप देख सोचने पर मजबूर हो गई. श्रेया उठी, घर के सारे डब्बे और बोतलों के ढक्कन चेक किए, सोचने लगी, शेखर गलत नहीं कहते. मुझू में ही त्रुटि है. श्रेया अपना दर्द भूल गई और चाय बना कर शेखर को उठा कर बोली, ‘‘शेखर, मैं सारे ढक्कन चेक कर आई हूं. अब तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी. उठो, चलो चाय पीते हैं. आज तुम्हारी छुट्टी है, लंच बाहर किसी रैस्टोरैंट में कर लेंगे, चलो मूवी देखने चलते हैं.’’
शेखर ने अपना मूड ठीक किया और कहा, ‘‘मठरी और अचार ले आओ, चाय के साथ खाने में अच्छा लगेगा.’’ श्रेया अचार और मठरी लेने चली गई. देर होती देख शेखर ने आवाज दी, ‘‘अरे क्या हुआ, चाय ठंडी हो रही है.’’ लेकिन श्रेया नहीं आई.
शेखर उठा, जा कर देखता क्या है, अचार फर्श पर गिरा पड़ा है और श्रेया समेटने में लगी हुई है. शेखर पूछ बैठा, ‘‘अब क्या हुआ?’’
‘‘कुछ नहीं, वही ढीला ढक्कन.’’ Social Satire In Hindi :





