IndiGo Controversy : इंडिगो की मोनोपौली सरकार के सामने एक चुनौती बन कर खड़ी है. इसी मोनोपौली और मुनाफे के लालच ने लाखों यात्रियों को एयरपोर्ट्स पर बंधक सा बना कर रख दिया. लोग बुनियादी सहूलियतों सहित खानेपीने तक को तरस गए. बच्चों को दूध नसीब नहीं हुआ. और तो और, महिलाओं को सैनिटरी नैपकिन्स भी नहीं मिले. आखिर क्या था झमेला, जानिए आप भी.

वे दो दोस्त थे. दोनों ही विकट के महत्त्वाकांक्षी, उच्च शिक्षित और आम युवाओं की तरह कुछ कर गुजरने का जज्बा और बहुत सा पैसा कमा लेने का सपना देखने वाले थे. उन्होंने अपनी मेहनत और आइडियाज के दम पर अपने सपने को पूरा भी कर दिखाया. इन में से पहले हैं राहुल भाटिया जिन्होंने अपनी 65 साला जिंदगी के शुरुआती 50 साल आम उच्चमध्यवर्गीय की तरह काटे. अगले दशक की शुरुआत उनके लिए बेहद उम्दा रही क्योंकि उन्होंने उड़ने का और रातोंरात पैसा कमाने का अपना ख्वाब पूरा किया. उन्हें जिस दोस्त या पार्टनर की तलाश थी वह मिल गया था जिस का नाम राकेश गंगवाल था.

राहुल ने कनाडा की वाटरलू यूनिवर्सिटी से पहले इलैक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री ली और फिर बिजनैस मैनेजमैंट की भी डिग्री हासिल करने के बाद 2 साल आईबीएम में नौकरी की. 80 के दशक की शुरुआत में पढ़ाई के बाद उन्हें दिल्ली आ कर अपना टूअर्स और ट्रैवल का पुश्तैनी कारोबार संभालना पड़ा. यह अनुभव बहुत अच्छा नहीं रहा क्योंकि उन के बिजनैस पार्टनर्स ने उन्हें धोखा दिया जिस के चलते उन्हें पुश्तैनी कारोबार से हाथ धोना पड़ा. पर राहुल ने हार नहीं मानी, हिम्मत नहीं हारी और बचेखुचे 15 लाख रुपए से अपनी खुद की कंपनी इंटर ग्लोब नाम से खोल ली जो आईटी, बीपीओ, ट्रैवल ट्रांसपोर्टेशन और हौस्पिटैलिटी सैक्टर्स में काम करती थी. अब यही कंपनी इंडिगो का संचालन करती है.

हालांकि राहुल की इच्छा टीचिंग में जाने की थी लेकिन पिता कपिल भाटिया की गिरती सेहत के चलते उन्हें दिल्ली के सदर बाजार स्थित अपनी ट्रैवल एजेंसी दिल्ली एक्सप्रैस के दफ्तर में बैठना पड़ा. इस से पहले वे भारत में एक टैलीकौम कंपनी शुरू करने की सोचा करते थे लेकिन 2006 में उन्होंने खोल ली एयरलाइंस कंपनी जिस का नाम रखा इंडिगो.

साल 2000 में राहुल की मुलाकात उन्हीं के हमउम्र राकेश गंगवाल से हुई जो मूलतया कोलकाता के एक संपन्न जैन परिवार से थे. राकेश आईआईटी कानपुर के पासआउट थे. इस के बाद उन्होंने पेन्सिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के व्हार्टन स्कूल से एमबीए किया. पढ़ाई के बाद वे अमेरिका की यूनाइटेड एयरलाइंस कंपनी में काम करने लगे थे. कई और कंपनियों में भी अहम पदों पर वे रहे और उस दौरान खासा पैसा व नाम कमाया. इंडिगो की स्थापना के बाद वे अमेरिका में ही बस गए थे. साल 2020 की 400 रईसों की फोर्ब्स लिस्ट में उन्हें 359वीं रैंकिंग मिली थी

एक और एक ग्यारह से बनी इंडिगो

दोनों मिले और कई दिन व रात सिर खपा कर इंडिगो की रूपरेखा तैयार की. दोनों के सिर पर जनून सवार था. दोनों के ही पास एविएशन का खासा अनुभव था जिस के चलते 2005-06 में इंडिगो वजूद में आई और देखते ही देखते आसमान पर छा गई. राकेश के पास ग्लोबल एयरलाइंस का तजरबा था. वे एक बेहतर प्रबंधक भी थे और राहुल के पास एविएशन सेवाओं के साथसाथ गजब की बिजनैस स्किल थी. अपनी ट्रैवल एजेंसी में फ्लाइट के टिकट बुक करतेकरते वे भारतीय ग्राहक की नब्ज समझने लगे थे.

यह वह दौर था जब एकएक कर भारतीय एयरलाइंस दम तोड़ रही थीं या खस्ता हाल में थीं जिन की हालत देख भारत को एयरलाइंस का कब्रिस्तान तक कहा जाने लगा था. इन में प्रमुख थीं किंगफिशर एयरलाइंस, एयर डेक्कन, जेट एयरवेज, स्पाइसजेट, एयर सहारा और गो एयर (गो फर्स्ट). लेकिन उसी दौर में घरेलू यात्रियों की तादाद बढ़ भी रही थी. सो, इन दोनों ने शुरू में मुनाफे के बजाय सर्विस पर ज्यादा फोकस किया.

इंडिगो की उड़ानें दूसरी कंपनियों के मुकाबले सस्ती थीं और वक्त की पाबंदी इस की पहचान बन गई थी. वक्त के साथ यह पहचान इतनी गहराई कि आकाश में इंडिगो के सिवा किसी और एयरलाइंस का दिखना दिखावाभर रह गया था. सब की हालत कच्ची लोई (बच्चों के पिट्ठू जैसे खेल में कमजोर खिलाड़ी) सरीखी हो गई थी.

यह राकेश के ही दिमाग की खूबी कही जाएगी कि उन्होंने शुरुआत में एक ही तरह के हवाई जहाज ए-320 ही खरीदे. इस से मेंटिनैंस, ट्रेनिंग और संचालन खर्च अपेक्षाकृत कम हुए. उड़ानों के वक्त का खास ध्यान रखा गया जिस से 2010 तक इंडिगो देश की शीर्ष एयरलाइंस में शुमार होने लगी. हालांकि 2006 में ही कंपनी ने 100 एयरबस खरीद ली थीं लेकिन 2011 से ले कर 2015 तक अपने सुनहरे काल में इंडिगो ने धड़ाधड़ एयरबसें खरीदीं. इस से हरकोई हैरान रह गया था. उसी साल कंपनी ने अमेरिका की एक कंपनी से एकसाथ 180 एयरबसें खरीद कर दुनियाभर को चौंका दिया था.

साल 2015 में इंडिगो ने शेयर मार्केट में कदम रखा और एक बार फिर देखते ही देखते की तर्ज पर 3,000 करोड़ रुपए जुटा लिए जो भारतीय एविएशन के सब से कामयाब आईपीओ में शामिल था. बेकार के प्रचार और शोरशराबे खासतौर से मीडिया से तयशुदा दूरी बना कर चलने वाली इस जोड़ी ने बिना किसी तरह की बौखलाहट या जोश दिखाए यात्रियों यानी अपने ग्राहकों से नजदीकी बनाए रखी जो किसी भी कारोबार की कामयाबी की कुंजी होती है.

2015 आते-आते इंडिगो भारत की नंबर वन एविएशन कंपनी बन चुकी थी जिस का मुनाफा और ग्राहक ‘दिन दोगुनी रात चौगुनी’ की दर से बढ़ते जा रहे थे. दिसंबर 2025 में उस के बेड़े में 434 हवाई जहाज थे और एक दिन में वे 2,300 उड़ानें भर रहे थे. तब उस के पास 5,456 पायलट और 10,212 क्रू मैंबर्स थे और कर्मचारियों की कुल संख्या 41 हजार से भी ज्यादा थी. इन सब के चलते उस की उड़ानों की तादाद और विश्वसनीयता बढ़ती जा रही थी.

रो दिए लोग

इंडिगो की इस विश्वसनीयता को दिसंबर के पहले दिन से ही जो झटका लगना शुरू हुआ उस ने न केवल एयरपोर्ट्स बल्कि आमजन की जिंदगी और घरों में भी हलचल व हाहाकार मचा दिया. हर कोई इंडिगो को कोस रहा था. सरकार सफाई दे रही थी, कार्रवाई करने के साथ-साथ धौंस भी दे रही थी और इन सब के ऊपर बैठी अदालत सब के कान उमेठ रही थी. इन सब में सब से डीजीसीए यानी डायरैक्टर जनरल औफ सिविल एविएशन नाम की एजेंसी अहम थी जो नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन काम करती है जिस का एक बड़ा काम फ्लाइट्स की सुरक्षा और एविएशन कंपनियों के कामकाज की निगरानी का है. मीडिया इंडिगो की खबरों से सटा पड़ा था. साल के आखिरी महीने में सबसे ज्यादा बोला, लिखा और सुना जाने वाला शब्द था इंडिगो.

भारतीय ही नहीं, अब दुनियाभर की एयरलाइंस समझ चुकी हैं कि ग्राहकों की जरूरतों को वे पूरा कर रही हैं और वे हर देश की रेलवे कंपनी की तरह धौंस से काम करती हैं. भारतीय रेलवे का हाल तो सभी को मालूम है. एसी फर्स्ट क्लास से ले कर जनरल बोगी तक का हर मुसाफिर असल में बेचारा होता है. ट्रेनों के संकरे कौरिडोर, मैले व छोटे बाथरूम, उन की छोटी सीटों की नीति को एयरलाइनों ने अपना लिया है.

एयरलाइनों ने रेल या बसों के टिकटों को ब्लैक में बेचने का पाठ भी पढ़ लिया है और उन्होंने एक ही उड़ान की कुछ सीटों के टिकट कम दाम में बेच कर शेष सीटों के लिए ज्यादा, उस से ज्यादा और बेहद ज्यादा दामों पर टिकट बेच कर खासी कमाई करनी शुरू कर दी, इस में इंडिगो पीछे नहीं रही बल्कि एक कदम आगे रही.

एक्स्ट्रा लगेज के पैसे, विंडो सीट के पैसे, 2 जने साथ बैठ सकें तो एक्स्ट्रा चार्ज, केबिन में सीमित सामान ले जाने की शर्तें, खाने के मनमाने पैसे आदि के नाम पर भी वसूली कर एयरलाइनें हवाई मुसाफिरों की जेबें ढीली करने में लिप्त हैं.

फिर भी ग्राहक संतुष्ट क्योंकि वे अपने को रेल से सफर करने वालों से बेहतर समझते हैं. हवाई यात्रा के लिए एक पूरी वर्णव्यवस्था बना दी गई. तरहतरह के कार्ड दे कर एक ही वर्ण में ऊंचे और नीचे के भेद पैदा कर दिए गए. जैसे वर्णव्यवस्था ने देश का भट्टा बैठा रखा है वैसा ही 2 दिसंबर को हुआ जब एक सरकारी आदेश को न मानने के लिए बोर्ड ने फ्लाइट्स कैंसिल करनी शुरू कर दीं. वे चाहते तो पहले से टिकट बेचना बंद कर सकते थे लेकिन उन्हें सरकार के डीजीसीए और एविएशन मिनिस्टर को सबक सिखाना था.

वे यात्रियों को एयरपोर्टों पर ले आए और फिर फ्लाइट्स कैंसिल करनी शुरू कीं ताकि एक अजब तमाशा खड़ा हो जाए. बोर्ड सफल रहा. डीजीसीए ने आदेश वापस ले लिया. कुछ दिखावे की डांटफटकार लगाई गई पर इंडिगो ने अभी तो साबित कर दिया है कि उसे छुआ तो जनता के साथ वह आतंकवादी सुलूक कर सकती है. जिस सरकार ने हाल ही में इंडिया एयरलाइंस और एयर इंडिया टाटा कंपनी को बेची हो उस की हिम्मत यह कहां कि वह इंडिगो को नैशनलाइज कर दे.

जिस इंडिगो के हवाई जहाजों में देश के आधे से ज्यादा हवाई मुसाफिर सफर कर रहे थे उन की हालत देखने काबिल थी. दरअसल, हुआ क्या, यह किसी को समझ नहीं आ रहा था लेकिन एयरपोर्ट्स पर फंसे लोगों की हालत बंधकों जैसी हो गई थी. लग ऐसा रहा था मानो उन्हें अगवा कर लिया गया हो और ऐसी जगह छोड़ दिया गया हो जहां नाममात्र की भी सहूलियत न हो. लोग भूखेप्यासे घंटों फ्लाइट का इंतजार करते रहे. फ्लाइट नहीं मिली तो कुछ लटका सा मुंह लिए घर वापस लौट गए.

चूंकि फ्लाइट्स रीशैड्यूल की जा रही थीं इसलिए जिन्हें फ्लाइट मिलने की उम्मीद थी. वे कड़कड़ाती सर्दी में एयरपोर्ट पर ही बिना किसी कंबल या लिहाफ के देहातियों की तरह सो गए थे. कई एयरपोर्ट्स का नजारा तो रेलवे स्टेशन और बसअड्डों के मुसफिरखानों सरीखा था. खाना नहीं, पानी नहीं. भूख से कुलबुलाते बच्चों के लिए दूध नहीं. महिलाएं तो सैनिटरी नैपकिन्स तक के लिए तरस गईं.

कुछ युवतियों ने इस के वीडियो भी वायरल किए. बेंगलुरु एयरपोर्ट पर से तो एक पिता को हवाई अड्डे की फार्मेसी से नैपकिन न मिलने पर वीडियो के जरिए अपनी बेटी के लिए सैनिटरी नैपकिन की गुहार लगानी पड़ी थी. वे कहते नजर आ रहे थे, ‘मेरी बेटी को सैनिटरी नैपकिन चाहिए, नीचे से ब्लड गिर रहा है.’ यह बहुत ही शर्मसार कर देने वाला नजारा था.

दिल्ली एयरपोर्ट सहित सभी एयरपोर्ट्स पर सूटकेस और बैग वगैरह बिखरे पड़े थे मानो कोई बड़ी लड़ाई या हादसा हो कर गुजरा हो. हकीकत में स्थिति थी भी ऐसी ही. परेशानी भूख-प्यास की ही नहीं थी बल्कि कई जरूरी और अहम कामों के छूट जाने की भी थी. किसी को परीक्षा में शामिल होने को जाना था तो कोई अपने किसी बीमार सगे वाले से मिल लेना चाहता था या खुद इलाज कराने जाने वाला था. किसी के हाथों में पिता का अस्थि कलश था. एक महिला के पास तो पति का ताबूत था. कईयों की जरूरी मीटिंग्स छूट रही थीं.

हद तो उस वक्त हो गई जब एक वायरल वीडियो में एक दूल्हा यह कहता नजर आया कि मेरी तो शादी होनी थी, मैं अपनी ही शादी में नहीं पहुंच पाया. इसी तरह एक कपल ने अपनी ही शादी के रिसेप्शन में शामिल होने से नहीं पहुंच पाने का रोना रोया. एक वायरल वीडियो में एक युवक यह अपील करता नजर आया कि ‘मैं यहां एयरपोर्ट पर फंसा हूं, कोई मेरे बौस को बता दे वरना वे मुझे नौकरी से निकाल देंगे.’

ऐसी कई परेशानियां लोगों ने झेलीं लेकिन उन की भड़ास ‘इंडिगो हायहाय’ तक सिमट कर रह गई. लोग समझतावादी हो गए हैं या डरपोक हो गए हैं, यह तय कर पाना अब मुश्किल काम नहीं रहा. उन्हें तो हाहाकार मचा देना चाहिए था क्योंकि उन की तकलीफ दूर करने के लिए कोई इंडिगो, कोई सरकार या कोई डीजीसीए के प्रतिनिधि आगे नहीं आ रहे थे. ये सब के सब वातानुकूलित बिल्डिंगों में बैठे मीटिंग-मीटिंग खेल रहे थे और जल्द ही कुछ करने का झठा आश्वासन दे रहे थे.

जल्द ही कोढ़ में खाज वाली कहावत भी चरितार्थ होती दिखी जब यात्रियों ने वैकल्पिक फ्लाइट्स देखनी शुरू कीं. यह देख वे फिर सकते में आ गए कि हवाई उड़ानों के दाम आसमान को छू रहे थे जो टिकट आमतौर पर 4 से 7 हजार रुपए का मिलता है वह 40 से ले कर 80 हजार रुपए तक का हो गया है. अधिकतर यात्रियों ने जब किराया वापसी की कोशिश की तो पता चला कि इंडिगो ने रिफंड का विकल्प ही नहीं छोड़ा है.

तब कहीं जा कर लोगों को ज्ञान प्राप्त हुआ कि वे मुनाफे और मोनोपोली के चक्रव्यूह में फंस कर रह गए हैं जिस की पहली जिम्मेदार इंडिगो एयरलाइंस और दूसरी सरकार है. इस गुनाह के तीसरे गुनाहगार डीजीसीए के बारे में आम लोगों को कोहरा छंट जाने के बाद पता चला जिस की गलती इन दोनों के मुकाबले कमतर नहीं थी, जो बहुत बड़ी मिलीभगत की तरफ भी इशारा कर रही थी.

कौन कितना जिम्मेदार?

2 दिसंबर से मची इस अफरातफरी के पीछे की दास्तां किस्तों में उजागर होनी शुरू हुई. इंडिगो ने रोना रोया कि डीजीसीए द्वारा लागू किए नए नियमों के चलते उस के पास पायलट्स और क्रू मेंबर्स की कमी हो गई थी, इसलिए हड़ताल सरीखे हालात पैदा हुए लेकिन यह दलील निहायत ही बेदम और बचकानी थी. दरअसल, पायलटों को आराम देने की गरज से एफडीटीएल यानी फ्लाइट ड्यूटी टाइम लिमिटेशन के संशोधित नियमों के तहत जो प्रावधान किए गए थे उन के मुताबिक पायलटों को दिए जाने वाले साप्ताहिक आराम का समय 36 से बढ़ा कर 48 घंटे कर दिया गया था. अभी तक पायलट 6 नाइट लैंडिंग करते थे जिन की संख्या घटा कर 2 कर दी गई थी. ऐसे दर्जनभर छोटे-बड़े बदलाव एफडीटीएल ने किए थे.

नतीजा यह हुआ कि नियमित ड्यूटी बजा रहे पायलट इन नए नियमों का पालन करते हुए घर चले गए और इंडिगो के आधे से ज्यादा हवाई जहाज एयरपोर्ट्स पर खड़े रह गए. एक के बाद एक उस की फ्लाइट्स रद्द होनी शुरू हुईं तो 10 दिसंबर तक जो हाय-तोबा मची, अराजकता फैली वह देश सहित पूरी दुनिया ने देखी लेकिन नए नियमों का पालन करने में दिक्कत सिर्फ इंडिगो को ही क्यों हुई, दूसरी एयरलाइंस कंपनियों को क्यों नहीं हुई? इस सवाल का इकलौता जवाब है मोनोपोली.

संशोधित नियम 2 चरणों में लागू किए जाने थे. पहले जुलाई और फिर इस के बाद नवंबर 2025 में लेकिन इंडिगो ने, साफ दिख रहा है, इसके लिए कोई तैयारी नहीं की थी और दिख यह भी रहा है कि ऐसा जानबूझ कर किया गया था.

तैयारी क्यों नहीं की थी जबकि उस के पास मुकम्मल वक्त था क्योंकि नए नियमों का आदेश जनवरी 2024 को ही जारी हो चुका था? जाहिर है, यह सरासर सरकार को चैलेंज था और इसी साल अप्रैल में आए दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश की भी अनदेखी थी जो पायलटों को आराम देने संबंधी एक लंबे मुकदमे के बाद आया था. हैरत की बात यह भी रही कि इस बाबत इंडिगो ने यात्रियों को कोई सूचना देनी भी जरूरी न समझ. यह उस की बादशाहत यानी एकाधिकार की बदमाशी भी थी और मिसाल भी कि हम तो आसमान के राजा हैं, हमारा कोई क्या बिगाड़ लेगा.

और सचमुच इंडिगो का कुछ खास नहीं बिगड़ा और न ही बिगड़ता दिख रहा. मामला अदालत तक गया जहां कार्रवाई तो हुई लेकिन वह उन लाखों यात्रियों के जख्म नहीं भर पाई जो उन्हें एयरपोर्ट्स पर मिले थे. इन घावों का जिक्र 10 दिसंबर को दिल्ली हाईकोर्ट में दायर हुई एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान हुआ जिसे उत्कर्ष शर्मा और अखिल राणा ने दायर किया था.

अदालत ने यात्रियों की परेशानियों को गंभीरता से लेते सख्त रवैया अपनाया. इस कार्रवाई में अदालत का गुस्सा सरकार पर ज्यादा फूटा. चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और तुषार राव गेडेला की बेंच ने सरकार को कटघरे में खड़ा करते वही सवाल पूछा जो लाखों यात्री और करोड़ों लोगों के दिलो-दिमाग में 2 दिसंबर से कौंध रहा था कि आखिर हालात इतने बिगड़ने कैसे दिए कि देशभर के एयरपोर्ट्स पर लाखों यात्री फंस गए. इस से केवल यात्रियों को ही परेशानी नहीं हुई बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी खासा नुकसान पहुंचा.

हाईकोर्ट ने यह सवाल भी उठाया कि जब इंडिगो की फ्लाइट्स कैंसिल हुईं तब दूसरी एयरलाइंस ने टिकट के दाम 5 हजार से बढ़ा कर 30 से 35 हजार रुपए कैसे कर दिए. सरकार ने इस पर क्या किया, अगर यह संकट था तो दूसरी एयरलाइंस को इस का फायदा उठाने की इजाजत कैसे दी गई?

साफ दिख रहा है कि दोषी सरकार भी बराबरी से है जो परेशानी के वक्त मूक दर्शक बनी एयरपोर्ट्स पर होता दुखदायी तमाशा देखती रही मानो कोई देवता अपने भक्तों के सब्र का इम्तिहान ले रहा हो. जाहिर यह भी हुआ कि उस का कोई नियंत्रण किसी एविएशन कंपनी पर नहीं है. लोग मरेंलुटें, तरह-तरह की परेशानियाँ और तनाव झेलें या त्राहि-त्राहि करें, महिलाएं सेनेटरी नैपकिन जैसी जरूरी चीज को, दुधमुंहे बच्चे दूध को तरस जाएं, सरकार को इन सब से कोई सरोकार नहीं.

सरकार सिर्फ बयानबाजी करती है, बाकी न्याय तो अदालतों में ही होता है जिस की अपनी सीमाएं हैं वरना होना तो यह चाहिए था कि राहुल भाटिया को एक मुजरिम की तरह अदालत में पेश होने को मजबूर किया जाता तब उसे एहसास होता कि परेशानी होती क्या है. सरकार की तरह वह भी माफी मांगते लकीर पीटता रहा. अकड़, ठसक और गरूर की यह हद कि माफी भी खुद उस ने अपने मुंह से नहीं मांगी, इस के लिए उस ने इंडिगो के सीईओ पीटर एल्बर्स को आगे कर दिया.

चोर की दाढ़ी में तिनका वाली कहावत की तर्ज पर न तो इंडिगो की पैरवी कर रहे वकील संदीप सेठी के पास कोई जवाब था और न ही सरकार का पक्ष रख रहे एएसजी चेतन शर्मा सिवा रिरियाने के कुछ कह पाए. इन दोनों के पास दलीलों के नाम पर वे सूचनाएं भर थीं जो मीडिया के जरिए जनता की अदालत तक पहुंच चुकी थीं. मसलन यह कि सरकार ने इंडिगो को कारण बताओ नोटिस दे दिया है और यह संकट कई नियमों के उल्लंघन के कारण पैदा हुआ वगैरह-वगैरह.

संदीप सेठी के पास तो देने के लिए सूचनाएं भी नहीं थीं. वे बेहद बचकाने तरीके से रहम की गुहार लगाते नजर आए, मसलन यह कि हम 19 साल से संचालन कर रहे हैं. पहली बार ऐसी स्थिति बनी. सो, इंडिगो के खिलाफ कोई फैसला नहीं आना चाहिए. यह संकट अनपेक्षित वजहों के चलते पैदा हुआ. 10 साल से हम दक्षिण एशिया में भी सर्वश्रेष्ठ एयरलाइन हैं.

यह कुछ-कुछ ऐसा ही तर्क था कि चूंकि हम ने जिंदगी का बड़ा हिस्सा शराफत से जिया है इसलिए हमें एकाध गुनाह करने की छूट दी जाए. उम्मीद के मुताबिक, अदालत ने इन बचकानी दलीलों से कोई इत्तफाक न रखते हुए इंडिगो को निर्देश दिए कि वह पीड़ित यात्रियों को तुरंत मुआवजा देना शुरू करे जो केवल उड़ान रद्द होने के कारण नहीं बल्कि यात्रियों की असुविधा के एवज में भी होना चाहिए.

11 दिसंबर को इंडिगो ने दानवीरता दिखाते ऐलान कर दिया कि वह पीड़ित यात्रियों को 10 हजार रुपए की कीमत के वाउचर यानी कूपन देगी जिन्हें एक साल तक इंडिगो की किसी भी फ्लाइट में इस्तेमाल किया जा सकता है. हालांकि, ये कूपन डीजीसीए के पैमानों के तहत अनिवार्य मुआवजे के अलावा होंगे, अनिवार्य मुआवजा यानी 24 घंटे के भीतर फ्लाइट रद्द होने पर इंडिगो यात्रियों को 3 से ले कर 10 हजार रुपए तक की राशि देगी.

बनिए-बक्कालों की तरह पेश आ रही इंडिगो ने यहां भी पैसा बचाया क्योंकि कूपनों का फायदा बमुश्किल 25 फीसदी यात्री ही उठा पाएंगे. ये कूपन भी जोमैटो और स्वीगी के डिस्काउंट कूपनों की तरह हैं जो 3, 4 और 5 दिसंबर तक के पीड़ित यात्रियों के लिए ही हैं. उस में भी टर्म्स एंड कंडीशंस लागू होने की तर्ज पर कई शर्तें छिपी हैं जिन में से प्रमुख हैं कूपन राशि ब्लॉक टाइम पर निर्भर रहेगी. यानी, अब भी इंडिगो की फ्लाइट्स में सफर करना मजबूरी हो जाएगी क्योंकि ये कूपन किसी और को ट्रांसफर नहीं किए जा सकते और ये टैक्स फ्री भी नहीं हैं.

बनियाई किस्म की धूर्तता भी इस में यह रही कि इंडिगो ने यह नहीं बताया कि इस के हकदार कौन लोग होंगे. साथ ही, उन यात्रियों को क्या दिया जाएगा जिन्होंने मजबूरी में दूसरी एयरलाइंस के भारी-भरकम कीमत के टिकट खरीद कर यात्रा की. फिर मानसिक, शारीरिक और दीगर परेशानियों की तो बात करना ही बेकार है.

खुले तौर पर इस खेल में डीजीसीए और सरकार भी शामिल नजर आते हैं जिन्होंने इस भ्रामक पेशकश पर चुप्पी साधे रखी. अब अदालत का रुख ही तय करेगा कि क्या आम लोगों के कष्ट की कीमत ऊंट के मुंह में जीरे की सी ही रहेगी.

जब सभी इन कूपनों का इस्तेमाल करने जाएंगे तो उस दिन इंडिगो की उड़ान का दाम क्या होगा, यह उस समय तक पता नहीं चल सकता जब टिकट की बुकिंग शुरू न की जाए. कोई भी एयरपोर्ट तक जाने का खर्च, होटल का खर्च वैसे ही तो नहीं उठाएगा.

यह भी संभव है कि उस समय इंडिगो की वेबसाइट कह दे कि इस फ्लाइट पर कूपन मान्य नहीं है, कोई और दिन, कोई और शहर चुन लें. सो, यह कूपन रोती आंखों में और ज्यादा आंसू भी ला सकता है.

अब क्या होगा?

जांच चल रही है, रिपोर्ट जब आएगी तब आएगी. इंडिगो का कुछ खास बिगड़ेगा, ऐसा लग नहीं रहा क्योंकि उस ने 13 वर्षों में यात्रियों से खरबों रुपए कमाए हैं. उस की मौजूदा नैटवर्थ 2 लाख 28 हजार करोड़ रुपए है. इस में से दो-चार फीसदी चला भी जाए तो उस की आर्थिक सेहत पर फर्क पड़ने वाला नहीं. यह तो कभी वह किराया बढ़ा कर वसूल लेगी और पूरे यकीन से कहा जा सकता है कि तब भी कोई कुछ नहीं बोलेगा क्योंकि लोग जल्द ही भूल जाने की बीमारी से ग्रस्त हो चुके हैं.

इस संकट के बाद एविएशन इंडस्ट्री से जुड़े लोगों को राकेश गंगवाल की याद बेवजह नहीं आई जो राहुल भाटिया से नीतिगत मतभेदों के चलते न केवल नाता तोड़ चुके हैं बल्कि मई 2025 तक अपने 37 फीसदी शेयर बेच कर कोई 30,000 करोड़ रुपए ले चुके थे. उन का इंडिगो से नाता टूट चुका था लेकिन इस से पहले 2019 में उन्होंने इंडिगो के कुप्रबंधन और मनमानी को ले कर सेबी को लिखी एक चिट्ठी में लिखा था, ‘इंडिगो अपने सिद्धांतों और मूल्यों से भटक चुकी है.

‘एक पान की दुकान इस से बेहतर तरीके से मामलों को सुलझ सकती है. राहुल भाटिया का इंडिगो पर असामान्य नियंत्रण हो चुका है और अगर तुरंत ऐक्शन नहीं लिए गए तो नतीजे दुर्भाग्यपूर्ण होंगे.’ और अब लाखों लोगों के साथ दुर्भाग्य से ऐसा हुआ भी.

अमेरिका में बैठे राकेश को मुमकिन है 20 साल पहले के वे दिन याद आ रहे हों जब उन्होंने इंडिगो की नींव रखते कंपनी में मिलिट्री सा अनुशासन प्राथमिकता में रखा था. इस अनुशासन और प्रबंधन के चिथड़े अगर उड़े तो उस में राहुल की मुनाफा कमाऊ मानसिकता थी जिसके चलते उन्होंने वक्त पर पायलटों की संख्या नहीं बढ़ाई और अरबों रुपए बचा लिए.

एक पायलट की सैलरी ट्रेनिंग के दौरान एक से दो लाख रुपए और सीनियरिटी के मुताबिक 15 लाख रुपए तक होती है. इंडिगो ने पायलट क्यों नहीं बढ़ाए, यह सवाल न कभी सरकार ने पूछा और न ही उस सहित कभी डीजीसीए ने नवंबर के पहले जानने की कोशिश की. उलटे, इंडिगो को 26 फरवरी तक की छूट नए नियमों में दे दी. इसे मिलीभगत नहीं तो और क्या कहा जाए. IndiGo Controversy :

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