Relationship Issues : रिलेशनशिप के बारे में जहां औरतें औरत से और मर्द मर्द से प्यार करते हों हमारे समाज में कोई जगह नहीं. समाज ऐसे रिश्तों को बर्दास्त ही नहीं करता. समलैंगिक रिश्तों का मज़ाक उड़ाने वाली ढेरों फिल्में बनी लेकिन ऐसे रिश्तों की जटिललताओं को समझने और इन मुद्दों पर खुल कर बात करने वाली फिल्में बौलीवुड में बहुत ही कम बनी हैं.

दो दिलों के बीच तीसरे की घुसपैठ कोई नई बात नहीं है. साहित्य और सिनेमा के लिए यह मुद्दा सब से रोमांचक रहा है. दिल टूटने वाले गाने, बेवफाई के तराने, तीसरे के लिए ठुकराए जाने का गम, किसी तीसरे के आने से आंसुओं से भरे नग्मे और वापस लौट के आने की फरियादें. तीसरे के आने के वियोग पर पूरी म्यूजिक इंडस्ट्री ख़डी हुई है. गायक लेखक और अदाकार पैदा हुए. इसी वियोग को भुनाने के लिए कभी बौलीवुड का पूरा बिजनेस चला करता था लेकिन अब समय थोड़ा बदल गया है. लड़कियां पहले से ताकतवर हुई हैं. अब अगर उस के रिलेशनशिप के बीच कोई तीसरा आ भी जाता है तो वह वियोग में तड़पती नहीं बल्कि ऐसे रिश्ते को खुद से ठुकरा कर आगे बढ़ जाती है और खुद किसी नये रिश्ते में चली जाती है. ऐसे में लड़के भी अब जुदाई के गीत नहीं गाते, दिल चीर कर प्रेमिका का नाम नहीं लिखते, खून से खत नहीं लिखते और रात रात भर जग कर माशूका की याद में शराब नहीं पीते बल्कि गुलाब का फूल ले कर अगले इश्क का इंतजार करते हैं.

शादीशुदा लोगों के बीच अगर तीसरा आ जाए तो भी अब पहले जैसा गम नहीं होता इसलिए तलाक के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. यह पहले से बेहतर स्थिति है. तलाक के बढ़ते ट्रेंड का सब से ज्यादा फायदा औरतों को ही है. औरतें सक्षम हुई हैं तो वह पति की ज़्यादती सहने को तैयार नहीं हैं. तलाक के बढ़ते मामलों में एक सब से बड़ी वजह दोनों के बीच तीसरे की घुसपैठ ही है. शादीशुदा औरत का एकस्ट्रा मेरिटल अफेयर मर्द बर्दाश्त नहीं कर पाते तो औरतें भी अब पहले की तरह अबला नारी नहीं रह गई हैं जब पति घर में दूसरी ले आता था और औरत कुछ नहीं बोल पाती थी. अब पति के एकस्ट्रा मेरिटल को भी औरतें बर्दाश्त नहीं कर पाती और मामला तलाक तक पहुंच जाता है. पत्नी के पुरुष दोस्तों को पति बर्दाश्त नहीं करता तो पति की महिला मित्र, पत्नी के लिए हमेशा संभावित सौतन ही ही होती हैं. कई बार मामला थोड़ा पेचीदा भी हो जाता है जब यह तीसरा या तीसरी क्या है, यही समझ नहीं आए.

श्वेता गुप्ता अपने पति के साथ लखनऊ के आलमबाग में रहती थी. श्वेता के पति राकेश गुप्ता की मार्किट में हार्डवेयर की शौप थी. शादी को अभी दो साल ही हुए थे दोनों के कोई बच्चा नहीं हुआ था. श्वेता अपनी पढ़ाई पूरी करना चाहती थी. एक दिन श्वेता के घर उस की सहेली पूनम आ गई. पूनम को लखनऊ के एक पैरा मेडिकल इंस्टिट्यूट से 6 महीना का कोर्स करना था इसलिए वो लखनऊ आ गई. उस ने श्वेता से सम्पर्क किया ताकि वह पीजी ढूंढने में उस की मदद कर सके. श्वेता ने अपने पति राकेश से बात की और पूनम को अपने घर में ही रहने की जगह दे दी.

दोनों स्कूल के वक़्त की सहेलियां थी इसलिए राकेश को भी इस बात में कोई बुराई नहीं नजर आई. कुछ महीने बीते. राकेश को अपने और श्वेता के बीच दूरियां बढ़ती हुई नजर आईं. श्वेता और पूनम सिर्फ दोस्त नहीं थी दोनों के बीच दोस्ती से ज्यादा भी कुछ था. राकेश को यह सब अच्छा नहीं लगा तो वह पूनम को पीजी में भेजनें की बात करता तो उस की पत्नी श्वेता इस बात पर नाराज हो जाती. एक रात राकेश को श्वेता और पूनम के रिश्ते की असलियत पता चल गई. दोनों सिर्फ सहेलियां नहीं थी बल्कि एक दूसरे की जान थी. राकेश के लिए यह बेहद चौंकाने वाली बात थी. दो औरतें कैसे एक दूसरे के साथ इंटिमेट हो सकती हैं? राकेश को तो यह बात सोच कर ही घिन आती थी.

राकेश ने श्वेता से सख़्ती से कह दिया की अब पूनम इस घर में नहीं रह सकती. राकेश के गुस्से को देखते हुए श्वेता ने पूनम को घर से विदा कर दिया और कुछ दिनों बाद खुद भी लखनऊ से गायब हो गई. राकेश ने थाने में अपनी बीबी की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाई और एफ आई आर में पूनम का भी नाम दर्ज करवाया. पुलिस ने पूनम के इंस्टिट्यूट में पता किया तो वह भी गायब थी. कुछ दिनों बाद राकेश के वाट्सअप पर वीडियो आया की श्वेता और पूनम ने चार दोस्तों के साथ हिंदू विवाह का मंडप किसी के घर बना कर, एक कुंड में आग जला कर और एक दोस्त को पंडित की वेशभूषा पहना कर शादी कर ली और दोनों अब ख़ुश हैं.

राकेश के लिए यह सदमे से कम नहीं था. उस के लिए सब से बड़ी हैरानी की बात यह थी कि वह इतने दिन एक लेस्बियन औरत के साथ रह रहा था.

किसी भी जेंडर के दो लोग अपनी मर्जी से साथ रह सकते हैं. ऐसे मामलों में पुलिस और क़ानून भी कुछ नहीं कर सकते.

तबस्सुम के घर उस के पति का दोस्त फैजान अकसर आता जाता. फैजान पड़ोस में ही रहता था और तबस्सुम के हजबैंड के साथ एयरपोर्ट पर नाइट शिफ्ट में काम करता था. तबस्सुम ब्यूटी पार्लर चलाती थी. उस के पति शादाब दिन में जब भी घर में रहते तो फैजान भी घर आ जाता. दोनों दोस्त शाम तक घर में रहते. सिलसिला कई महीनो तक यूँही चलता रहा. तबस्सुम को फैजान का घर पर रहना बिलकुल पसंद नहीं था लेकिन अपने पति का सब से करीबी दोस्त होने की वजह से वह फैजान को बर्दाश्त करती थी. फैजान की ड्यूटी दिन की हो गई तो अब वह रात को घर पर रहने लगा. तबस्सुम थोड़ी हैरान थी कि उस का पति उसे कैसे अपने दोस्त के साथ अकेले छोड़ कर चला जाता है. ज्यादा हैरानी यह थी फैजान हमेशा अदब से पेश आता और एक दो बार तबुस्सम ने फ्लर्टिंग करने की कोशिश की तो वह कन्नी काट गया. वह इस बात से बेहद खुश थी लेकिन उस की यह ख़ुशी ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई. एक रात फैजान घर आया तो तबस्सुम को मालूम चला की फैजान ने भी अपनी ड्यूटी दिन की करवा ली है. फैजान ने शादाब को घर का ऊपर वाला कमरा रहने को दे दिया. अब रात को खाना खाने के बाद फैजान अपने दोस्त के पास चला जाता और देर रात तक वहीं पड़ा रहता. तबस्सुम को शक हुआ तो एक रात उस ने चुपके से फैजान और शाहिद के बीच के रिश्ते की गहराई को अपनी आंखों से देख लिया. नीचे आ कर उस ने उल्टियां की और अगली सुबह ही अपने मायके के लिए निकल गई. तबस्सुम किसी से बता भी नहीं पा रही थी की उस के पति का किसी मर्द से जिस्मानी संबंध है. आखिरकार उस ने अपने पति से तलाक ले लिया.

इस तरह के रिलेशनशिप के बारे में जहां औरतें औरत से और मर्द मर्द से प्यार करते हों हमारे समाज में कोई जगह नहीं. समाज ऐसे रिश्तों को बर्दास्त ही नहीं करता. समलैंगिक रिश्तों का मज़ाक उडाने वाली ढेरों फिल्में बनी लेकिन ऐसे रिश्तों की जटिललताओं को समझने और इन मुद्दों पर खुल कर बात करने वाली फ़िल्में बौलीवुड में बहुत ही कम बनी हैं.

ऐसे ही रिश्तों पर मनोज बाजपेयी की सब से चर्चित फिल्म अलीगढ़ है. जिस में वे एक गे प्रोफैसर का किरदार निभाते हैं. यह फिल्म अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर श्रीनिवास रामचंद्र सिरास की सच्ची कहानी पर आधारित है. श्रीनिवास को उन की सैक्शुअल ओरिएंटेशन की वजह से नौकरी से निकाल दिया गया था.

प्रोफैसर सिरास (मनोज बाजपेयी) एक शांत और विद्वान व्यक्ति हैं, जो अपनी निजी जिंदगी में समलैंगिक रिश्ते में होते हैं. एक स्टिंग औपरेशन के बाद उन की प्राइवेसी उजागर हो जाती है, जिस से उन्हें सामाजिक और संस्थागत उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. राजकुमार राव एक पत्रकार की भूमिका में हैं जो प्रोफैसर सिराज की कहानी को उजागर करने की कोशिश करते हैं.

मनोज बाजपेयी को इस रोल के लिए खूब सराहना मिली. उन्होंने प्रोफैसर की नरमी, अकेलापन और मजबूती को इतनी बारीकी से निभाया कि फिल्म को नेशनल अवार्ड मिला. ये फिल्म समलैंगिकता पर एक संवेदनशील नजरिया पेश करती है.

समलैंगिक औरतों को लेस्बियन और ऐसे पुरुषों को गे कहा जाता है. सदियों से समलैंगिकता को बुराई माना जाता रहा. कई देशों में समलैंगिकता का पता चलने पर लोगों को मार दिया जाता था लेकिन आधुनिक मनोविज्ञान, विज्ञान और मानवाधिकारों के दृष्टिकोण से इसे स्वाभाविक और सामान्य माना जाता है. यह एक व्यक्ति की यौनाचार स्थिति (सैक्सुअल ओरियंटेशन) का हिस्सा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन और दुनियाभर के मनोवैज्ञानिक संगठन इस कंडीशन को सामान्य स्थिति मानते हैं. यही वजह है की दुनिया के ज्यादातर देशों में समलैंगिकता गैरकानूनी नहीं है पर इसे सामाजिक तौर पर स्वीकृति नहीं मिली है.

भारत में सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में धारा 377 को निरस्त कर समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से हटा दिया. यह कानूनी स्वीकृति की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ लेकिन समाज में आज भी ऐसे रिश्तों के लिए कोई जगह नहीं है हालांकि नई जेनरेशन के बीच समलैंगिकता को ले कर स्वीकृति धीरेधीरे बढ़ रही है. यूरोप अमेरिका में कैथोलिक चर्चों के पादरियों में यह बुरी तरह से फैला हुआ है क्योंकि वे शादी प्रेम या चर्च के नियमों के कारण सैक्स नहीं कर सकते.

समलैंगिकता एक सामान्य स्थिति है लेकिन यह स्थिति जनसंख्या अनुपात में बेहद कम लोगों में होती है. विभिन्न वैश्विक सर्वेक्षणों के आधार पर, विश्व स्तर पर समलैंगिक (गे/लेस्बियन) लोगों का प्रतिशत लगभग 2-4% है. यदि LGBTQ+ (लेस्बियन, गे, बाइसेक्शुअल, ट्रांसजेंडर आदि) को शामिल करें तो यह 5-9% तक हो सकता है.

सामाजिक धारणाएं, धर्म और परम्पराएं हमेशा बहुसंख्यक का समर्थन करती हैं और अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव करती हैं लेकिन कंस्टीटूशन सभी नागरिकों को बराबरी का दर्जा देता है इसलिए नागरिकों की उन्नति के लिए कंस्टीटूशन का मजबूत होना बेहद जरुरी है. किसी के सेक्सुअल बिहेवियर या सैक्सुअल इंट्रेस्ट के आधार पर उससे भेदभाव या नफरत करना जायज नहीं है. कोई किसी भी जेंडर, नस्ल, जाती या धर्म से हो हर व्यक्ति को सम्मान और स्वतंत्रता का अधिकार मिलना चाहिए. समलैंगिक अपने सामान्य व्यवहार में दूसरों की तरह के ही दिखते हैं और समाज को उनसे कोई परेशानी नहीं होती पर पंडित पादरी चिढ़ते हैं क्योंकि इन संबंधों से उन की रोजी रोटी मारी जाती है. खुद करते हों तो ठीक है पर भक्त करें तो उन का बस चले तो फांसी पर चढ़ा दें. Relationship Issues :

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