Changing Shoe Fashion : जूतों का बाजार बदल चुका है. कभी यह जरूरत और आराम के लिए पहने जाते थे अब यह फैशन ब्रांड के रूप में प्रयोग किए जा रहे हैं. पहले यह लेदर और कैनवास के बनते थे. लेदर में ब्लैक और ब्राउन दो कलर होते थे. कैनवास में सफेद कलर के होते थे. अब लेदर और कैनवास दोनों में तमाम तरह की वैरायटी आ गई हैं.
हमारे समाज में इंसान की परख उस के जूते से की जाती है. जूते बता देते हैं कि उस को पहनने वाला कैसा है. जो लोग इस को जानते हैं वह मौके के अनुसार ही जूते पहन कर जाते हैं. अगर पार्टी समारोह में जा रहे हैं तो लेदर या फोम लेदर के शूज पहन कर जाते हैं. अगर मॉर्निंग वॉक पर जा रहे हैं तो कैनवास शूज पहन सकते हैं. पैंट शर्ट पर एक किस्म के जूते पहन सकते हैं तो कुर्ता पजामा पर नागरा जूते पहने जाते हैं.
महिलाएं जींस पर कैनवास के जूते पहन सकती हैं पर साड़ी और सलवार सूट पर वह सैंडल पहनती हैं. यह अमीरी और गरीबी दोनों को दिखाते हैं. अगर जूते सही तरह से पॉलिश और साफ सुथरे पहने होते हैं तो यह अनुशासन को दिखाते हैं.
जूतों का बाजार बदल चुका है. कभी यह जरूरत और आराम के लिए पहने जाते थे अब यह फैशन ब्रांड के रूप में प्रयोग किए जा रहे हैं. पहले यह लेदर और कैनवास के बनते थे. लेदर में ब्लैक और ब्राउन दो कलर होते थे. कैनवास में सफेद कलर के होते थे. अब लेदर और कैनवास दोनों में तमाम तरह की वैरायटी आ गई हैं. अब ड्रेस से मैचिंग शूज पहने जाने लगे हैं. जिस वजह से एक आदमी कई तरह के शूज अपने पास रखता है. पुरूषों से अधिक कीमत महिलाओं के फुटवियर की होने लगी है.
जूतों की खोज पैरों को नुकीली और खुरदरी चीजों से बचाने के लिए लगभग 7,000-8,000 ईसा पूर्व में हुई थी. इस के लिए पैरों को पेड़ों की छाल, पत्तियों और जानवरों की खाल का प्रयोग किया जाता था. अमेरिका सहित दुनिया के कई हिस्सों में गुफाओं और पत्थरों में इन की पहचान पाई गई हैं.
समय के साथ जूते बनाने के लिए जानवरों की खाल का प्रयोग किया जाने लगा. इस में भैंस, भालू, हिरण जैसे तमाम जानवरों की खाल प्रमुख होती थी. प्राचीन भारत में लकड़ी के खड़ाऊ पहने जाते थे. अब भी कुछ लोग इस को पहनते हैं.
मौर्य और गुप्त काल में सैनिकों और राजाओं के लिए चमड़े के जूते बनने लगे थे. जूतों का प्रयोग फैशन और रुतबे के रूप में मुगल काल में शुरू हुआ. 1658-1659 में मुगल शहजादा सुलेमान शिकोह जब भारत आए तो अपने साथ आधुनिक जूते ले कर आए, जिन को ‘सलीमशाही जूते’ कहा जाता था.
17वीं सदी में जूता बनाने के लिए सिलाई तकनीक का विकास हुआ. जिस के बाद जूतों के निर्माण में क्रांति आ गई. 1856 में लाइमन ब्लैक ने जूता सिलाई मशीन का आविष्कार किया और 1864 तक इसे और बेहतर बनाया गया, जिस से जूतों का बड़े पैमाने पर उत्पादन संभव हो सका.
यूएस रबर कंपनी ने 1892 में रबर सोल वाले कैनवास के जूते तैयार किए. 1917 में ‘केड्स’ कैनवास स्नीकर्स तैयार किए गए. लेदर और कैनवास के जूते एक साथ चलन में आए. उस दौर में यह मंहगे थे और आम लोगों की पहुंच से दूर हो गए थे.
भारत में जूतों को बनाने का काम फैक्ट्री से ले कर आम करीगर तक फैल गया. जूतों को तैयार करने वाले कारीगर को मोची कहा जाने लगा. यह काम एक खास जाति और वर्ग के लोग करने लगे. नागरा जूतों भारत में बहुत पहना जाता था. इन को महिला और पुरुष दोनों पहनते थे. महिलाओं के जूतों को जूती कहा जाता था. इन का डिजाइन पुरुषों से अलग होता था.
आरामदायक और फैशनेबल की डिमांड :
भारत में तैयार लेदर के जूते विदेशों में खूब पसंद किए जाते हैं. अब लेदर की जगह पर कैनवास और फोम लेदर ने अपनी जगह बना ली है. फोम लेदर कंपनी में आर्टिफिशियल तरह से बनाया जाता है. इस की सबसे बड़ी वजह यह कि कैनवास और फोम लेदर से बने जूते किफायती और आरामदायक तो होते ही है. इस के अलग अलग तरह के डिजाइन भी बनाए जा सकते हैं.
महिलाओं की हील से ले कर पुरुषों के जूतों तक स्नीकर्स ने 70 प्रतिशत बाजार पर कब्जा जमा लिया है. भारत में कानपुर और आगरा के फुटवियर उत्पादन के सबसे बड़े केंद्र हैं. यूरोपीय देशों और अमेरिका में इन की जबरदस्त पकड़ बनाई है.
आगरा की 6000 से अधिक छोटीबड़ी इकाइयों से 70 से अधिक देशों में जूतों का 5,000 करोड़ रुपए का सालाना निर्यात होता है. यहां 65 प्रतिशत से अधिक देश के घरेलू बाजार में आपूर्ति और 18 हजार करोड़ रुपए का स्थानीय स्तर पर कारोबार है.
जूते अब ड्रेस सेंस व ड्रेस कोड के साथ प्रयोग हो रहे हैं. जूतों के रंग और डिजाइन बदल रहे हैं. लोगों को अब फैशन के साथ ही आराम चाहिए. कभी काले और ब्राउन रंग को पसंद किया जाता था. अब हल्के रंग सर्वाधिक पसंद किए जाते हैं. अब ग्राहकों की मांग के अनुसार शेड, डिजाइन तैयार कराए जा रहे हैं.
सामान्य रंग जैसे ब्लैक या ब्राउन फुटवियर के अलावा सर्दियों में प्राकृतिक रंगों के शेड ट्रेंड में रहते हैं, जबकि गर्मियों में पेस्टल कलर को खूब पसंद किए जाते हैं. यूरोपीय देशों में वहां के मौसम के अनुसार बूट की मांग रहती है, तो अन्य देशों में स्नीकर्स का प्रचलन बढ़ रहा है.
महिलाओं में पार्टी वियर स्नीकर्स की मांग बढ़ी है. इस को देखते हुए स्नीकर्स पर एंब्रॉयडरी और मेटल बटन का काम ज्यादा कराया जा रहा है. जितनी ज्यादा कलाकारी होगी, उसी अनुसार कीमत तय होती है. लखनऊ में चिकनकारी और चांदी के तारों से भी इन को तैयार किया जाता है. अब लोगों के काम करने के घंटे बढ़े हैं. जिस से वे भारी और बोझिल जूते या सैंडल पहनना पसंद नहीं करते, इसलिए स्पोर्ट्स शूज इंडस्ट्री की ग्रोथ भी तेजी से बढ़ी है.
आने वाले दिनों में स्मार्ट जूता तैयार हो रहा है. जो एआई से चलेगा. इस में कदमों की आहट से लोगों को पहचान लिया जाएगा. साथ ही स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने वालों को जूते यह भी अपडेट देंगे कि कितना कदम चले.
भारत में फुटवियर का बाजार तेजी से बढ़ रहा है, यहां सब से ज्यादा बिकने वाले जूते ऐसे होते हैं जो गुणवत्ता, आराम और कीमत में संतुलन प्रदान करते हैं. भारत में सबसे अधिक पसंद किए जाने वाले ब्रांड में बाटा, नाइकी, एडीडास, प्यूमा, रीबॉक सबसे प्रमुख है. हर वर्ग के लोगों के पास इन के जूते मिल जाते हैं.
डायबिटीज जैसे पेशेंट्स को डाक्टर लेदर के जूते पहनने से मना करते हैं. यह पैरों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इन लोगों को कैनवास या फिर फौम लेदर के शूज पहनने के लिए कहा जाता है. इस तरह से शूज का बाजार बदल चुका है. अब यह जरूरत के साथ ही साथ आराम और फैशन को दिखाने का जरिया बन गया है. साधारण तौर पर 500 से कैनवास और 800 में फोम लेदर के शूज मिलने शुरू हो जाते हैं. प्योर लेदर के शूज 3 हजार से ऊपर के मिलने लगे हैं. महंगे किस्म के कैनवास 8 से 10 हजार तब मिलते हैं. इन की कीमत ब्रांड के अनुसार भी होती है. भारत में 100 से अधिक ब्रांड के शूज मिलते हैं.
चाइनीज रबर सोल आने के बाद इन की लाइफ बढ़ गई है. अलग अलग खेलों में अलग किस्म के शूज पहने जाते हैं. इन की कीमत बहुत अधिक होती है. सेना और पुलिस के लिए भी अलग किस्म के जूते तैयार किए जाते हैं. यह देखने में हल्के पर मजबूत होते हैं. मौसम के अनुसार इन का प्रयोग होता है.
सेना में बर्फ पर रहने वालों के जूते अलग होते हैं. यह इस तरह से तैयार किए जाते हैं जो अंदर से पैर को गर्म रखते हैं. इन के सोल में भी खास ध्यान रखा जाता है जिस से यह फिसल न सके.
जंगल में जाते समय बूट किस्म वाले जूते पहने जाते हैं जिस से रेंगने वाले जानवर और कीड़े पैर को नुकसान न पहुंचा सके. जूते हिफाजत और फैशन दोनों को स्टेटस सिंबल बन चुके हैं. जिस की वजह से ही इस का बाजार तेजी से बढ़ता जा रहा है. आज बिना शूज के इंसान की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. Changing Shoe Fashion :





