Pollution Crisis India:
लेखक: दीपिका शर्मा
दिल्ली में नए पुराने वादों के साथ सरकार आती है और चली भी जाती है लेकिन राजधानी का हाल वहीं रहता है।दिल्ली की हवा एक बार फिर ज़हर बन चुकी है। सुबह-शाम धुंध की मोटी चादर के बीच सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। आंखों में जलन, गले में खराश और सीने की जकड़न से लोग परेशान हैं। डॉक्टरों के मुताबिक, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और हृदय रोग के मरीजों की स्थिति और बिगड़ रही है। ऐसे समय में जब राजधानी दम तोड़ रही है, विपक्षी दलों ने सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं।
विपक्ष का कहना है कि सरकार केवल बयानबाज़ी कर रही है, लेकिन प्रदूषण पर काबू पाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं। हर साल नवंबर-दिसंबर आते ही वही “आपातकालीन योजनाएँ” लागू करने की बातें की जाती हैं, लेकिन परिणाम शून्य रहते हैं। न तो सड़क की धूल कम हुई, न ही वाहनों के धुएं पर अंकुश लगा। निर्माण स्थलों पर उड़ती धूल और कूड़े के ढेर से उठता धुआं अब आम बात हो गई है।
सरकार ने भले ही हवा साफ करने के लिए कई योजनाओं की घोषणा की हो, लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि न तो सार्वजनिक परिवहन में सुधार हुआ, न ही प्रदूषण फैलाने वाले स्रोतों पर कड़ी कार्रवाई की गई। विपक्ष का यह भी कहना है कि प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए, अगर खर्च किए गए तो लगातार बढ़ते प्रदूषण पर अंकुश क्यों नहीं लगा। न तो हवा साफ हुई है और न ही आम जनता को राहत मिली है।
यह समय आरोप-प्रत्यारोप से आगे बढ़ने का है। दिल्ली को साफ हवा देने के लिए सभी राजनीतिक दलों को मिलकर काम करना होगा। सरकार को विपक्ष दलों की बातों पर गौर करना चाहिए जब तक नीति और नियत दोनों साफ नहीं होंगी, तब तक दिल्ली की हवा यूं ही दम घोंटती रहेगी। Pollution Crisis India.





