Thama Movie Review in Hindi: थामा – फिल्म ‘थामा’ हौरर तो नहीं है, हौरर कौमेडी जरूर है. यह फिल्म वैंपायर (खून चूसने वाले राक्षस) पर है. निर्देशक दिनेश विजन की यह 5वीं हौरर कौमेडी फिल्म है.
‘थामा’ से पहले भी बीटल्स पर कई फिल्में बन चुकी हैं. 1986 में ‘बेताल पच्चीसी’ पर आधारित शांतिलाल सोनी की फिल्म ‘विक्रम बेताल’ आई थी. उस फिल्म में शब्बीर कुमार द्वारा गाया गया गाना ‘तेरा बदन तेरा यौवन…’ भी था जिस का संगीत नदीम-श्रवण ने दिया था. इस से पहले आदित्य सरपोतदार ने ‘मुंज्या’ बनाई. फिल्म ‘थामा’ मैडोक फिल्म्स की ‘स्त्री,’ ‘स्त्री 2’, ‘भेडि़या’ और ‘मुंज्या’ के बाद 5वीं फिल्म है.
‘थामा’ में कहानी का अभाव दिखता है. फिल्म का नायक थामा ताकतवर और बेतालों का नायक है लेकिन फिल्म बेतालों की दुनिया में नहीं जाती, जो एक अच्छी बात है. इसीलिए फिल्म में हौरर कम है, मगर कौमेडी भी तो दमदार नहीं है.
फिल्म की कहानी राजा विक्रमादित्य और बेताल की पुरानी कहानियों से प्रेरित है. इस तरह की कहानियां हम बचपन में ‘चंदा मामा’ पत्रिका में पढ़ा करते थे लेकिन इस कहानी को निर्देशक ने अपने अंदाज में पेश किया है. निर्देशक ने फिल्म में 3-4 स्पैशल अपीयरैंस भी दिखाए हैं. शक्ति शालिनी को कैमियो की भूमिका में दिखाया गया है तो वरुण धवन को भेडि़या के कैमियो में.
फिल्म की कहानी पत्रकार आलोक (आयुष्मान खुराना) के इर्दगिर्द घूमती है. वह अपने दोस्तों के साथ ट्रैकिंग पर जा रहा है. अचानक भालू उस पर हमला कर देता है और तड़ाका (रश्मिका मंदाना) उस की जान बचाती है. इस के बाद वह वैंपायरों की दुनिया में फंस जाता है.
फिल्म की शुरुआत 323 बीसी से होती है. जंगल में वह ऐसे इलाकों में घुस जाता है जहां इंसानों का प्रवेश वर्जित है. कुछ ऐसा होता है कि आलोक भी उन्हीं बेतालों की तरह बन जाता है और बेतालों का बादशाह शैतान थामा (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) आजाद हो जाता है. फिर भेडि़या भी आ जाता है और उसे भी ताकत हासिल करनी है. कुल मिला कर ‘स्त्री’, ‘भेडि़या’ और ‘मुंज्या’ का कनैक्शन इस में मिलता है. निर्देशक ने बखूबी इस कनैक्शन को बनाए रखा है.
‘थामा’ की यह कहानी कमजोर है लेकिन निर्देशन बढि़या है. नवाजुद्दीन सिद्दीकी को थोड़ा मौका और दिया जा सकता था. फिल्म का फर्स्ट हाफ टाइट नहीं है. बेतालों की जंग ज्यादा होती तो कमाल हो जाता. मध्यांतर के बाद फिल्म रफ्तार पकड़ती है. रहस्य, रोमांच की दुनिया दिलचस्प लगने लगती है. बेताल और भेडि़ए का फाइट सीन बढि़या बन पड़ा है. क्लाइमैक्स तो और भी बढि़या है.
फिल्म में बस एक कमी है, कई दृश्यों में दोहराव है. फिल्म के वीएफएक्स, सिनेमेटोग्राफी और संगीत अच्छे हैं. आयुष्मान खुराना और रश्मिका मंदाना के अभिनय की तारीफ करनी होगी. नवाजुद्दीन सिद्दीकी का किरदार अनोखा और अच्छा है. फिल्म में कई कौमिक पंचलाइंस हैं, सस्पैंस भी है जो दर्शकों को बांधे रखता है. कुछ भी कह लीजिए, यह फिल्म ‘स्त्री’ और ‘भेडि़या’ के स्तर की नहीं बन पाई है. Thama Movie Review in Hindi.





