Indian Society, सीतापुर, उत्तर प्रदेश – फंदे से लटका शव, दहेज हत्या का आरोप

सीतापुर जिले के पिसावां थाना क्षेत्र के सैदापुर गांव में एक विवाहिता 23 वर्षीय सरस्वती का शव कमरे में फंदे से लटका पाया गया. मृतका की शादी 5 महीने पहले मुनेश्वर उर्फ़ गोलू के साथ हुई थी. मायके वालों ने आरोप लगाया कि उन्होंने अपनी हैसियत के अनुसार दहेज दिया था पर ससुराल वालों ने बाइक और सोने की चेन की अतिरिक्त मांग की, मांग पूरी न होने पर उन की बेटी के साथ प्रताड़ना की गई और हत्या करने के बाद शव को फांसी पर लटका दिया गया. (हिंदुस्तान/12 अक्तूबर 2025)

दिल्ली – ससुर की अग्रिम जमानत याचिका खारिज, दहेज हत्या आरोप

दिल्ली हाईकोर्ट ने 20 वर्षीय बहू की दहेज के लिए हत्या के आरोप में ससुर सुनील कुमार सिंह की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी. कोर्ट ने कहा कि यह एक दुर्भाग्यपूर्ण मामला है, जिस में एक युवती दहेज की लालच की शिकार हुई है. पीड़िता सोनम ने मरने से पहले बयान दिया था कि उसे जबरन एसिड पिलाया गया था. (आजतक/9 अक्तूबर 2025)

मुंबई – दहेज-प्रताड़ना के मामले बढ़े

मुंबई में इस वर्ष पहले 10 महीनों में महिला विरुद्ध शारीरिक एवं मानसिक छेड़छाड़ / दहेज प्रताड़ना के 300 से अधिक मुकदमे दर्ज किए गए. (महाराष्ट्र टाइम्स)

लखनऊ – महिला ने दहेज-प्रताड़ना की शिकायत दर्ज कराई

लखनऊ की एक महिला ने अपने पति और ससुराल वालों पर दहेज की मांग, शारीरिक हिंसा, और हस्तक्षेप जैसे आरोप लगाए हैं. उस ने दावा किया कि जब उस ने विरोध किया तो उसे परिवार ने छोड़ दिया. (द टाइम्स औफ इंडिया)

लखनऊ/सरोजनीनगर – विवाहिता ने दहेज उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कराई – पति समेत 7 ससुरालियों पर 40 लाख रुपए और कार मांगने का आरोप

सरोजनीनगर की अवध विहार कालोनी निवासी आयशा खातून का प्रेम विवाह जैद खान से 30 जनवरी 2023 को हुआ था. शादी के बाद जैद के परिजनों ने उन्हें अपने घर में रखने से इनकार कर दिया, जिस के बाद आयशा और जैद मायके में रहने लगे. कुछ महीने पहले जैद परिजनों ने जैद पर दबाव बनाया कि वह आयशा और अपनी 10 माह की बेटी अनायजा को छोड़ दे, या फिर ससुराल वालों को 40 लाख रुपए और एक कार दे. आयशा द्वारा इस मांग का विरोध करने पर जैद ने कई बार उस के साथ मारपीट की. 21 मई 2025 को जैद उसे और बेटी को पीट कर घर में छोड़ कर चला गया. (दैनिक भास्कर/13 अक्तूबर 2025)

कर्नाटक / बेलगावी – पत्नी की हत्या, शव छिपाया गया

कर्नाटक के बेलगावी जिले में एक व्यक्ति आकाश कंबर ने अपनी 20 वर्षीय पत्नी साक्षी कंबर की हत्या कर उस का शरीर पलंग के नीचे छुपाया और भाग गया. इस घटना का खुलासा तब हुआ जब तीन दिन बाद आरोपी की मां को बिस्तर के नीचे बहू का शव मिला. पुलिस आरोपी की तलाश कर रही है. लड़की के परिवार का कहना है कि यह दहेज प्रताड़ना से जुड़ा मामला है. (एनडीटीवी)

ये मात्र 7 दिनों की चंद ख़बरें हैं जो बताने के लिए काफी हैं कि लालची पति और क्रूर ससुरालियों के हाथों मासूम लड़कियां किस तरह मारीपीटी जा रही हैं, जलील की जा रही हैं और गाजर मूली की तरह काटी जा रही हैं. 2024 में नैशनल कमीशन फोर वीमेन के पास दहेज प्रताड़ना के 25473 मामले और दहेज हत्या के 292 मामले आए थे. अदालतों में दहेज हत्या के करीब 70 हजार मामले चल रहे हैं. जिन में अभी तक कोई फैसला नहीं हुआ है. महिलाओं के साथ शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न के इन मामलों में न सिर्फ दहेज की मांग शामिल है, बल्कि महिलाओं को शारीरिक और मानसिक रूप से बुरी तरह परेशान किया गया और कइयों की हत्या कर दी गई.

दहेज लेने और देने के खिलाफ देश में सैकड़ों कानून बने, आंदोलन हुए, पोस्टर लगे, नारे गूंजे – लेकिन दहेज का दानव कभी मरा ही नहीं. वह अनेक रूप धर कर औरत को खा रहा है. कभी दहेज खुले पैसों यानी कैश में मांगा जाता है, तो कभी “तोहफे” के नाम पर, कभी कार और मकान की मांग में, तो कभी लड़की के “स्टेटस” की अपेक्षा में. हर साल सैकड़ों बेटियां इस दानव के पेट में समा जाती हैं – कभी जला कर, कभी फांसी पर चढ़ा कर, तो कभी समाज की चुप्पी में दम तोड़ कर.

यह दानव मरेगा नहीं क्योंकि यह हमारे सोचने के ढंग में बैठा है, हमारे धार और हमारे रिवाजों में छिपा है, और हमारे “सम्मान” की झूठी परिभाषा में पल रहा है. जब तक लड़की को “बोझ” और दहेज को “सामाजिक प्रतिष्ठा” माना जाएगा, तब तक यह दानव हर पीढ़ी में पुनर्जन्म लेता रहेगा.

नंदिनी की शादी को 13 साल हो चुके हैं. वह शादी से पहले से नौकरी में है. शादी से पहले उस की सैलरी पर सिर्फ उस का हक था. वह अपनी मर्जी से जैसा चाहती थी वैसा खर्च करती थी. उस के मातापिता या भाई उस से कभी नहीं पूछते थे कि वह अपनी सैलरी का क्या करती है. उसे अच्छी किताबें पढ़ने, अच्छी फिल्में देखने, नईनई जगहें घूमने और अच्छे कपड़े पहनने का शौक था तो उस की सैलरी का अधिकांश हिस्सा इस पर खर्च हो जाता था और बचे हुए पैसे वह बैंक में डाल देती थी. कभी उन पैसों से मां के लिए साड़ी या पापा और भाई के लिए कोई गिफ्ट ले आती थी. मगर शादी के बाद उस की सैलरी पर उस के पति राहुल ने पूरा कब्जा कर लिया. बेहतर भविष्य बनाने के सपने तानतान कर उस ने बचत के नाम पर नंदिनी के अपने तमाम सपने मार दिए. वह अपनी मर्जी से एक पिन तक नहीं खरीद सकती थी. राहुल कहता, ‘जो चाहिए मुझ से बोलो. मैं ला कर दूंगा.’

13 साल से नंदिनी अपनी पूरी सैलरी राहुल के हाथ पर रखने के लिए मजबूर है. इन 13 सालों में वह करीब 80 लाख रुपए कमा कर राहुल को दे चुकी है. उस की सैलरी से उस की सास ने सोने के टौप्स खरीदे. राहुल ने नया कंप्यूटर लिया. घर में नया फ्रिज और नया टीवी आया. राहुल की नई कार की किश्तें उस की सैलरी से भरी गईं. हाल ही में उस ने नई बाइक उस के पैसे से खरीदी. नंदिनी से कहा गया है कि अब तुम इस घर की हो तो तुम्हारी कमाई पर इस घर का हक है. वैसे भी शादी में तुम्हारे घर वालों ने दिया ही क्या? हम ने भी शराफत में कुछ नहीं मांगा. तीज त्योहार पर भी तुम्हारे वहां से कुछ नहीं आता. ऐसे ताने मारते समय राहुल और उस के घर वाले यह भूल जाते हैं कि उस के मांबाप ने उन्हें चलता फिरता रोबोट-कम-एटीएम दिया है, जो हर महीने न सिर्फ हजारों रुपए देता है, बल्कि घर बाहर के सारे काम भी करता है.

उस की अपनी मां की भी यही राय है कि अब तुम उस घर की हो तो वहां की रवायत के अनुसार चलो. दामादजी कुछ गलत नहीं कह रहे हैं. मैं ने भी शादी के बाद अपने पति और सासससुर की सुनी, तभी घर बना रहा. स्पष्ट है कि मां नहीं चाहती कि नंदिनी लड़भिड़ कर मायके आए. उन्होंने इशारों में यह संकेत दे दिया कि इस घर के दरवाजे तुम्हारे लिए बंद हैं. मेहमान के तौर पर दोएक दिन के लिए आना चाहो तो अपने पति की आज्ञा ले कर आओ.

आज नंदिनी का जीवन एक बंधुवा मजदूर के जीवन के सामान है. शादी के नाम पर उस के पैरों में गुलामी की जंजीर डाल दी गई है. नंदिनी सुबह औफिस जाने से पहले घर का पूरा काम करती है. सुबह सब के लिए नाश्ता बनाना, बच्चे को तैयार कर स्कूल भेजना, दोपहर तक का खाना बनाना, रसोई साफ करना, कपड़े धोने के अलावा अनेकों काम हैं जो वह औफिस जाने से पहले निपटाती है. दिन भर औफिस में खटती है और औफिस से घर पहुंच कर फिर रसोई में घुस जाती है. उस के घर लौटने पर कोई उस को एक ग्लास पानी तक के लिए नहीं पूछता. उलटे वही सब के लिए जल्दीजल्दी चाय नाश्ता बनाती है. इस सब के बावजूद उस को आज भी दहेज का ताना मारा जाता है. राहुल अपने रिश्तेदारों के सामने यह कहने से नहीं चूकता कि हम तो अपनी शराफत में मारे गए. हम ने मुंह नहीं खोला तो दहेज में एक धेला नहीं मिला. अब बेटे की शादी में कसर पूरी करूंगा.

नंदिनी की कहानी उन तमाम महिलाओं की कहानी है जो नौकरीपेशा होने के बावजूद, हर महीने एक मोटी रकम ससुरालियों के मुंह में ठूंसने के बावजूद दहेज के तानों के तीर खा रही हैं. जो महिलाएं नौकरीपेशा नहीं हैं उन का जीवन तो और ज्यादा नारकीय है. वे सिर्फ ताने ही नहीं, मारपीट और गालीगलौच का भी सामना कर रही हैं. जो औरतें अपने प्रति हो रही क्रूरता के खिलाफ जरा भी बोलती हैं उन को या तो घर से बाहर निकल दिया जाता है या उन की हत्या कर दी जाती है.

औरत चाहे पढ़ीलिखी हो, या अनपढ़, नौकरीपेशा हो या गृहणी, दहेज के तानों और प्रताड़ना का शिकार है. कुछ हर दिन इस क्रूरता का सामना कर रही हैं तो कुछ मौके बेमौके. औरत के पास निकल भागने के रास्ते नहीं हैं. उन के पास जीवन को अपने मुताबिक जीने का विकल्प ही नहीं है. तनाव और हिंसा से बचने के लिए वे तलाक भी नहीं ले पातीं क्योंकि तलाक की प्रक्रिया आसान नहीं है. जो ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं हैं वे तो इस बारे में सोच भी नहीं पातीं हैं. पढ़ीलिखी औरतें भी कोर्ट-कानून की पेंचीदगियों से डरती हैं.

भारत में औरत के लिए तलाक लेना आज भी कानूनी रूप से संभव तो है, लेकिन सामाजिक, आर्थिक और मानसिक रूप से बेहद कठिन प्रक्रिया बनी हुई है. यह कठिनाई सिर्फ अदालतों या कानून तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज, परिवार और परंपराओं में गहराई तक जमी मानसिकताओं से भी जुड़ी है.

सामाजिक कलंक

तलाकशुदा औरत को समाज अब भी ‘अधूरी’ या ‘गलत’ मानने की प्रवृत्ति रखता है. रिश्तेदारों, पड़ोसियों और यहां तक कि अपने परिवार से भी उसे ताने सुनने पड़ते हैं.

आर्थिक निर्भरता

ज्यादातर महिलाएं आज भी आर्थिक रूप से पति या ससुराल पर निर्भर हैं. तलाक के बाद नौकरी, घर या आर्थिक सुरक्षा न होना उन्हें फैसला लेने से रोकता है.

लंबी और जटिल कानूनी प्रक्रिया

भारतीय न्याय प्रणाली में तलाक के मामलों को निपटाने में वर्षों लग जाते हैं. लगातार पेशियां, वकीलों की लम्बीचौड़ी फीस और मानसिक थकान औरत को झकझोर देती है.

कानूनी असमानताएं

हालांकि कानून समानता की बात करता है, लेकिन वास्तविकता में पुरुषों के पास अधिक आर्थिक ताकत और कानूनी साधन होते हैं, जिस से महिला को न्याय पाने में मुश्किल आती है.

परिवार का दबाव

मातापिता और रिश्तेदार अकसर कहते हैं, ‘थोड़ा समझौता कर लो, घर मत टूटने दो. कहां जाओगी? कोई पूछेगा नहीं’. यह भावनात्मक दबाव महिला की आजादी और आत्मसम्मान को कुचल देता है.

बच्चों की जिम्मेदारी

तलाक के बाद बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी अकसर मां पर ही आ जाती है. कोर्ट में कस्टडी की लड़ाई और आर्थिक बोझ और बढ़ जाता है. अकेले बच्चा पालना, उस को पढानालिखाना आसान नहीं है. इस के लिए पैसा चाहिए.

समाज का घटिया नजरिया

तलाकशुदा औरत के प्रति समाज का नजरिया ठीक नहीं है. समाज ऐसी औरत की इज्जत नहीं करता. उसे ऐसी नजर से देखता है मानो सारा दोष उसी का हो. कभीकभी तो उस को बदचलन ठहरा दिया जाता है. उस के अपने मांबाप उसे वापस अपने घर में नहीं रखना चाहते. मांबाप न रहें तो भाई भाभी को तो वह फूटी आंख नहीं सुहाती. कहीं अकेले कमरा ले कर रहने लगे तो पूरा महल्ला उसे अपनी प्रौपर्टी समझने लगता है.

इस देश में तलाक की प्रक्रिया आसान हो जाए तो औरतों की आज़ादी और आत्मसम्मान बचा रहे. वह दहेज-दानव का शिकार होने से भी बच जाएं. भारत में करोड़ों महिलाएं असंतोषजनक और अपमानजनक वैवाहिक जीवन जीने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि तलाक की प्रक्रिया लंबी, जटिल और सामाजिक रूप से कलंकित मानी जाती है. परिणामस्वरूप औरतें जीवन भर हिंसा और मानसिक प्रताड़ना झेलती रहती हैं. अगर कानून उन्हें जल्दी और सम्मानजनक तरीके से अलग होने का अधिकार दे, तो वे दहेज के दानव और उत्पीड़न के चक्र से मुक्त हो सकती हैं. स्त्री की असली स्वतंत्रता तभी संभव है, जब उस के पास “न” कहने और अपने जीवन की दिशा स्वयं तय करने का अधिकार भी समान रूप से सुरक्षित हो. Indian Society

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