Wastewater Management: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 40 किलोमीटर दूर रामदासपुर गांव में जल जीवन मिशन के तहत बनने वाली पानी की टंकी नंदौली गांव में पिछले 5 साल से बन ही रही है. बिना पानी की टंकी बने ही बोरिंग से पानी पाइप के द्वारा घरो तक पहुंचा दिया गया है. नलों में लगी टोटियां अच्छी क्वालिटी की नहीं है. जिस से पानी बहता रहता है. कई जगह पर पानी का पाइप टूटाफूटा है जहां से पानी लीक करता रहता है.

गांव में कई परिवारों की शिकायत है कि उन के घरों तक पानी नहीं पंहुचा है. जिन घरों में नल लगे हैं वहां टोटी की क्वालिटी अच्छी न होने के कारण या नल में टोटी न लगे होने के कारण पानी बहता रहता है. जो पानी की बरबादी के अलावा रास्ते में कीचड़ और जल भराव की परेशानियों को बढ़ावा दे रहा है. जल जीवन मिशन के तहत पानी तो घरों तक पहुंच रहा है पर पानी के निकास का बेहतर साधन नहीं होने से परेशानियां बढ़ रही हैं.

ज्यादातर दलित परिवारों के रहने वाली जगह पर दिक्कतें हैं. यह मसला किसी एक गांव का नहीं है. हर गांव में नल के जरीए घरों तक पहुंचने वाला पानी परेशानी का कारण बन रहा है. यह सरकार की योजना में खामी की तरह से है. यह खामी पहले शौचालय बनाते समय भी सामने आई थी. शौचालय तो बना दिए गए पर सीवर सिस्टम नहीं दिया गया. जब शौचालय वाले गढ्ढे भर जाएंगे तो इन की सफाई बड़ी समस्या होगी. इन को साफ करने के लिए दलित जाति के लोगों को गढ्ढे में जान जोखिम में डाल कर उतरना होगा.

हमारे देश में सीवर साफ करने के लिए अभी भी टैक्नोलौजी और स्किल का प्रयोग नहीं किया जाता. जिस वजह से गड्ढों में जहरीली गैस का शिकार वह आदमी हो जाता है जो गढ्ढे की सफाई करने उस के भीतर घुसता है. पूरे देश में इस तरह की तमाम घटनाएं घट चुकी हैं. मैनुअल स्कैवेजिंग यानी हाथ के द्वारा मानव मल, सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई को 1993 से गैरकानूनी माना जाता है. 2013 से इस पर सख्ती से अमल किया जा रहा है. इस के बाद भी यह काम हो रहा है.

राष्ट्रीय सफाई आयोग के अनुसार 2017 से 2022 के दौरान 1268 लोगों की जान इस में जा चुकी है. 116 मौतें सीवर सफाई की वजह से हुई. इंटरनैशनल लेबर और्गेनाइजेशन के अनुसार सीवर सफाई के काम में अभी भी 1.2 मिलियन लोग शामिल हैं. अब नल का पानी इस को और भी खतरनाक बनाएगा. नल का पानी जमा होगा तो कई मच्छरों से फैलने वाली बीमारियां पैदा होंगी. जिन में मलेरिया, डेंगू और फाइलेरिया सब से प्रमुख है.

क्या है हर घर नल योजना ?

अगस्त 2019 में भारत सरकार ने राज्यों के साथ साझेदारी कर के जल जीवन मिशन योजना तैयार की. इस योजना के तहत 2024 तक प्रत्येक ग्रामीण परिवार को नल से जल आपूर्ति करने का लक्ष्य रखा गया था. 2025 तक अभी यह योजना पूरी तरह से तैयार नहीं हुई है. जल राज्य का विषय है. इसलिए घरों तक नल से जल पहुंचाने हेतु पाइप जलापूर्ति योजनाओं की योजना बनाने और उन्हें लागू करने की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश की है. भारत सरकार तकनीकी और वित्तीय सहायता प्रदान कर के राज्यों के प्रयासों में सहयोग करती है.

इस के तहत देश के 19.42 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से 12.65 करोड़ परिवारों को नल जल आपूर्ति का प्रावधान किया गया है. प्रति व्यक्ति प्रति दिन 55 लीटर पानी खर्च का औसत रख कर इस योजना को तैयार किया गया है. इस के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर पानी की टंकी बनाई गई है. इस को चलाने के लिए सोलर सिस्टम रखा गया है. यहां गांव के ही कर्मचारी को डयूटी दी गई है. जिस को 7 हजार रुपया प्रतिमाह का मानदेय दिया जाता है. पानी की टंकी से हर घर तक पाइप लाइन बिछाई गई है. हर घर में एक नल दिया जा रहा है. इस में नल बंद करने वाली एक टोटी लगी होती है.

पानी की टंकी की गुणवत्ता का हाल यह है कि उत्तर प्रदेश में जून 2025 में कानपुर, लखीमपुर, सीतापुर और कासगंज में करोड़ों की लागत से बनीं कई टंकियां ढह गईं. जिस से निर्माण की गुणवत्ता और भ्रष्टाचार पर सवाल उठ रहे हैं. कासगंज जून 2025 मे 14 करोड़ की एक पानी की टंकी ढह गई. अधिकारियों ने इस के गिरने का कारण सामग्री की निम्न गुणवत्ता बताया. सीतापुर में मई 2025 में जल जीवन मिशन के तहत बनी 5.31 करोड़ की एक टंकी कुछ ही महीनों के बाद गिर गई. लखीमपुर में अप्रैल 2025 में, 3 करोड़ की एक पानी की टंकी परीक्षण के दौरान ढह गई.

इन घटनाओं ने ‘जल जीवन मिशन’ जैसी सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में भ्रष्टाचार और खराब गुणवत्ता वाली निर्माण सामग्री के उपयोग को उजागर किया है. संसदीय समिति की रिपोर्ट के अनुसार जल जीवन मिशन के तहत स्वीकृत फंड का 30 फीसदी ही 2024-25 तक खर्च हो पाया है. इसलिए इस मिशन को 2028 तक बढा दिया गया है. फरवरी 2025 तक जल जीवन मिशन के तहत 15.44 करोड़ से अधिक ग्रामीण घरों में नल का पानी कनेक्शन पंहुचा दिया गया है. पहले यह लक्ष्य 3.23 करोड़ परिवारों तक सीमित था.

गांवों में नहीं है बेहतर पानी का निकास:
हर घर नल योजना के तहत घरों तक पानी तो पंहुच गया है लेकिन अब सब से बड़ा सवाल यह कि पानी का निकास कैसे होगा ? पहले गावों में घर इस तरह से बनते थे कि बरसात का पानी निकल कर नालों के जरिए तालाब में चला जाता था. घरों में पानी इतना प्रयोग ही नहीं होता था कि वह घर के बाहर निकल कर जमा हो सके. अब नलों के जरीए ज्यादा पानी आ रहा है तो जल भराव की समस्या खड़ी होगी. सरकार को हर जल योजना बनाते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए था कि पानी का निकास कैसे होगा ?

बड़े शहरों के अनुभव को देखें तो पता चलता है कि बरसात के दिनों में जल निकासी अच्छी न होने के कारण लोगों के घरों में पानी भर गया था. जब शहरों का यह हाल है तो गांवों में पानी निकासी की व्यवस्था को समझ जाना चाहिए वह कैसी होगी ? यह समस्या दलित बस्तियों में अधिक होगी. गांव में भी अब अमीर लोगों के घर पक्के बन गए हैं. वहां बिजली, पानी की सुविधा है. जिस से पानी का प्रयोग बढ गया है. यह जल भराव का भी बडा कारण बन गया है. गांव में पंचायत विभाग की तरफ से गलियों में खंडजा लगाया गया है. साथ में नालियां बनी है. इन को कही ऐसी जगह से जोड़ा नहीं गया है जिस से पानी सही से निकल सके.

जिस तरह से हर घर नल योजना में पानी निकासी की व्यवस्था का ध्यान नहीं रखा गया उस तरह से घरों में शौचालय बनाते समय सीवर सिस्टम नहीं बनाया गया. शौचालय के नीचे गढ्ढा बनाया गया है. जो कुछ सालों में भर जाता है. सवाल उठता है कि जब यह गढ्ढा भर जाएगा तो इस की सफाई कैसे होगी ? शहरों में जो शौचालय बने हैं वह सीवर सिस्टम से जुड़े हैं. कोई भी शौचालय तभी सफल होगा जब वह सीवर सिस्टम से जुड़ सके. गांव में जो दलित बस्तियां हैं वहां तक जाने का सही रास्ता नहीं होता है. जिस की वजह से कोई सीवर साफ करने वाली मशीन वहां तक पंहुच नहीं पाती है.

चाहे हर घर नल योजना हो या गांव में घर घर शौचालय बनाने का काम, इन योजनाओं को बनाते समय इस बात पर विचार ही नहीं किया गया कि इन की सफाई कैसे होगी. गांव में सरकार ने सफाई कर्मचारी नौकरी पर रखे हैं. इन की संख्या बेहद कम है. जिस की वजह से यह बेमतलब है. ऐसे में शौचालय और नाली की सफाई करने वाले लोगों को इस काम से जोड़े रखने का प्रयास है. जिस की वजह से इस काम में लगे लोग अब भी वहीं काम करेंगे. मशीनों से काम जल्दी और सुविधापूवर्क हो जाता है पर इन की संख्या कम है. यह महंगी पड़ती है. ऐसे में आदमियों के द्वारा गढ्ढों की सफाई सस्ती पड़ती है. यह पूरी जाति व्यवस्था को बनाए रहने का प्रयास है.

विदेशों में सीवर और गढ्ढों की सफाई का काम मशीनों के द्वारा होता है. जिस से नाली गड्ढे और सीवर सभी कुछ साफ होते हैं. हमारे देश में सफाई करने वाले इन लोगों के लिये साधारण सुरक्षा के उपाए भी नहीं किए जाते हैं. जिस की वजह से सीवर सफाई में लोगों के मरने की घटनाए होती है. कई बार सरकार दिखावे के लिए मरने वालों के घर वालों को पैसे दे कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेती है. अगर सीवर, गड्ढे, नाली की सफाई मशीनों से हो तो किसी को इस काम में उतरने की जरूरत ही नहीं होगी. जाति की व्यवस्था पूरी तरह से खत्म हो जाएगी. Wastewater Management

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