Sports And Politics: कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को आतंकवादियों द्वारा 26 सैलानियों की बर्बर हत्या किए जाने को ले कर पाकिस्तान के साथ अब क्रिकेट मैच खेलने पर विवाद खड़ा करना कोरी छिछली राजनीति है. पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाडि़यों को आतंकवादी घटना के लिए जिम्मेदार ठहराना धर्मों ने बचपन से सिखाया है, जब कहा जाता है कि अगर बारिश नहीं हुई तो किसी के पाप का दंश है या कोई रेल दुर्घटना हुई तो कहा जाता है कि किसी पूजा में कमी है.

किसी एक घटना के लिए, जिस में खुद दोषी हों या प्रकृति का कहर हो, दूर के किसी जने को दोषी ठहराना ऐसी सोच है जिस का न कोई सिर है न पैर. अपने को खुश करने के लिए बिना लक्ष्य और तर्क के जम कर इस बहानेबाजी को इस्तेमाल किया जाता है.

दुबई में आयोजित एशिया कप क्रिकेट टूर्नामैंट में भारत ने पाकिस्तान को हराया पर जीत के बावजूद भारतीय खिलाडि़यों का पाकिस्तानी खिलाडि़यों के साथ, औपचारिकता के लिए ही सही, हाथ न मिलाना वैसा ही था जैसा 1936 के बर्लिन ओलिंपिक में हिटलर का काले ऐथलीट जेसी ओवेन्स के साथ खड़े न होना था जो अमेरिकी टीम में था.

इन भारतीय खिलाडि़यों से ज्यादा समझदार तो जयपुर के नीरज उधवानी का परिवार है जिस की 22 अप्रैल को हत्या कर दी गई थी. उस के परिवार ने कहा है कि पहलगाम की घटना और क्रिकेट मैच दोनों अलग विषय हैं और दोनों को जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए. इस परिवार ने घर का सदस्य खोया जिस की नईनई शादी हुई थी और उस का दर्द आमजन समझ नहीं सकता.

दुबई में इस मैच को खेलने से पहले देशभर में लंबी बहस चली थी कि जिन्होंने हमारे साथ गद्दारी की उन के साथ खेल खेला जाए या नहीं. भारत ने 22 अप्रैल की घटना में अपनी सुरक्षा की कमी को छिपाने के लिए पूरे पाकिस्तान को बिना किसी दलील के मुजरिम ठहरा दिया.

हमारे यहां कितने ही घरों में असामयिक मौत होने पर किसी नई बहू या नए बच्चे को दोषी ठहराना आम है. यूरोप में प्लेग, हैजा, टायफायड जैसी बीमारियों के लिए डायनों को जिम्मेदार दशकों तक माना गया और चर्च के पादरियों के कहने पर सैकड़ों औरतों को हर साल चौराहों पर जिंदा जला दिया जाता था.

दरअसल, जब से धर्म पैदा हुए हैं और कुछ लोग उन के मालिक बन बैठे हैं जिन्होंने खुद को ईश्वर का एजेंट बता रखा है, तब से हर मुसीबत के लिए ईश्वर या धर्मगुरु पर पड़ने वाले दोष को किसी और पर मढ़ने की चाल चली जा रही है. ईश्वर के एजेंट हमेंशा विश्वास दिलाते रहते हैं कि उन्हें पैसा देते रहो, पूजा करने उन के मंदिर, मठ, मसजिद, चर्च में आते रहो, कष्ट भगाने के लिए वे ईश्वर से कहते रहेंगे, उस की अराधना करते रहेंगे.

अब कुछ बुरी घटनाएं तो घटेंगी ही. जब ऐसी घटनाएं घटती हैं तो उन्हें सहज स्वीकारना अंधभक्तों को पसंद नहीं आता, ऐसे में ये एजेंट किसी और को जिम्मेदार ठहरा देते हैं. यह जना अपनों में से एक कमजोर हो सकता है, दूसरे धर्म का हो सकता है, दूसरे राज्य का हो सकता है या दूसरे रंग का हो सकता है.

एजेंटों के ऐसा करने से धर्मों को लाभ होता है क्योंकि वे आफत में कमाई करते हैं. वे अपने भक्तों को एक विषम स्थिति के बदले दूसरी विषम स्थितियों में डाल देते हैं और फिर बिचौलिए बन कर खूब मजा करते हैं. दुबई में भारतीय टीम को यही करने को कहा गया था ताकि सरकार की कमी छिपाई जा सके. Sports And Politics

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...