Hindi Kahani, लेखक – डा. किसलय पंचोली

मैं अनुमान लगा रही हूं कि इस बार जन्मदिन पर अनुराग मुझे क्या गिफ्ट देगा, शायद गोल्ड के इयरिंग. यूनिट की पिछली कपल पार्टी में जब मैं मिसेज नाइक की इयरिंग की भूरिभूरि प्रशंसा करते नहीं थक रही थी तब उस की आंखों में उन्हें खरीदने की ललक सोने से भी ज्यादा चमक रही थी पर ऐसी ही फीलिंग खूबसूरत हैदराबादी मोती-नैकलेस के साथ भी मैं ने पढ़ी थी.

मुझे याद है, मैं एक मेले में मोतियों के स्टौल पर ठिठक गई थी. उस ने कहा था, ‘सारिका, ये मोती रियल होंगे या नहीं, आई डाउट?’ और हम आगे बढ़ गए थे. हो सकता है वह इस बार मैसूर सिल्क की साड़ी खरीद लाए. अनुराग को मुझे सिल्क साड़ी में देखना बहुत ही पसंद जो है. मैं ने साड़ी लपेटी कि वह दीवाना सा हो जाता है. संभव है वह मेरे लिए फैंटास्टिक पश्चिमी परिधान गिफ्ट में देना पसंद करे. उसे पता है कि मुझे वैस्टर्न कपड़े कितने भाते हैं.

कुल जमा बात यह बन रही है कि संभावित भेंट का हर खयाल मुझ में ढेर सारी पुलक भर रहा है, खूब रोमांचित कर रहा है. और क्यों न करे, शादी के बाद मुझे पति मेजर अनुराग से हमेशा खास उपहार जो मिलते रहे हैं. तभी घंटी बजी.

‘‘तुम आ गए. व्हाट अ प्लेजैन्ट सरप्राइज’ कह मैं अनुराग से लिपट गई.’’

‘‘कैसे न आता, आज तुम्हारा जन्मदिन है.’’

उस ने मुझे प्रगाढ़ आलिंगन में भर लिया. आलिंगन, जिस में एकदूसरे के प्रति सकारात्मक भावनाएं, ऊर्जाएं तरंगित हो उठीं. हम तरंगों की सवारी पर निकल पड़े. ऐसी सवारी, जब समय स्वयं ठिठक कर प्यार की जादूगरी निहारता है. लगता है हम दो जन हैं ही नहीं, एकमेव हो चुके हैं. सुख और संतुष्टि के अदृश्य रेशमी बंधन हमें सहला रहे हैं. पूरी दुनिया में हम सब से खूबसूरत हैं.

तरंगों के मद्धिम पड़ने पर कुछ समय बाद उस ने कहा, ‘‘सारिका, आंखें

बंद करो.’’

मैं ने कुछ बंद कीं, कुछकुछ खुली रखीं.

‘‘आई से नो चीटिंग, पूरी बंद करो.’’

मैं ने समीप की टेबल पर पड़े स्कार्फ से आंखों पर पट्टी बांधी और कुरसी पर स्थिर बैठ गई.

‘‘ओके बाबा. लो, पूरी बंद कर लीं.’’

मेरी बंद आंखों के सामने तन चुके गहरे भूरे चिदाकाश के परदे पर रहरह कर गोल्ड इयरिंग, हैदराबादी नैकलेस, सिल्क साड़ी, पश्चिमी परिधान दिपदिप कर चमकने लगे. एकदूसरे से बारबार प्रतिस्पर्धा सी करते, प्रकाश की गति से आनेजाने लगे.

गोल्ड इयरिंग की एक में एक फंसते छल्लों की डिजाइन हो या  हैदराबादी नैकलेस की तीन लड़ों के मोतियों का क्रमश: घटता साइज या सिल्क साड़ी का सुआपंखी रंग या हाफशोल्डर वाला क्रीम कलर का पश्चिमी परिधान, मेरी कल्पना उन की डिटेलिंग का काम पूरे मनोयोग से करने लगी.

अनुराग ने बहुत प्यारभरे स्पर्श से मेरे दोनों हाथ थामे और गिफ्ट बौक्स के ऊपर रखते हुए कहा, ‘‘बूझो, इस बार तुम्हारा बर्थडे गिफ्ट क्या है?’’

मैं उपहार बौक्स के चिकने रैपर पर ऊपर से नीचे उंगलियां फेरती गई. अगल से बगल घुमाती गई. अच्छा, काफी बड़ा है. क्या हो सकता है? मेरी झिलमिलाती ज्वैलरी और सिल्की या साटनी कपड़ों की संभावित गिफ्ट्स की पैकिंग इतनी बड़ी तो हो ही नहीं सकती. हूं, कहीं फुटवियर के डब्बे तो नहीं? यस, मेरे मुंह से एक बार निकला था, ‘जूतेचप्पल पुराने हो गए हैं.’

‘क्या पता नया लैपटौप हो?’? हां, मैं ने यह भी कहा था, ‘मेरा लैपटौप बारबार हैंग हो जाता है.’ उहूं, छोटा माइक्रोवेव ओवन भी हो सकता है. मुझे कड़ाही में पैनकेक बनाने की खटखट करते देख अनुराग ने कहा था, ‘अपन जल्दी ही माइक्रोवेव ओवन ले लेंगे. काफी भारी है गिफ्ट, कहीं किताबें तो नहीं मैं ने जियोग्राफी में पीजी करने की इच्छा भी जताई थी.

आकार और वजन से जितने कयास लग सकते थे, मैं ने सब लगा लिए. हर बार अनुराग हंसता गया और ‘न’ कहता गया. फिर मेरा सब्र जवाब देने लगा. मैं आंख की पट्टी खोल उसे दूर फेंकते हुए बोली, ‘‘बस, बहुत हुआ. मेरा बर्थडे है. तुम ने मुझे गिफ्ट दिया है. मैं ओपन कर रही हूं.’’ और मैं ने आननफानन गिफ्ट बौक्स का चिकना रैपर फाड़ फेंका. अलबत्ता मैं हमेशा इत्मीनान से उस पर चिपके सेलोटेप निकालती हूं ताकि रैपर का रीयूज किया जा सके और फिर बौक्स भी खोल डाला.

ओह, गिफ्ट बौक्स क्या खुला मानो समय तेजी से पीछे दौड़ पड़ा. मेरा बचपन फिर से जी उठा. स्मृतियां सैल्फी लेने को आतुर हो उठीं. जैसे खुशी और आंसू  दोस्त बन बैठे. पलभर में मैं कहां से कहां पहुंच गई.

 

वह एक ठीकठाक बड़ा सा हौल था, जिस के दरवाजे के बाहर जूतेचप्पलों का अव्यवस्थित ढेर लगा था. बड़ीबड़ी खिड़कियां थीं, जिन में ग्रिल नहीं लगी थी. नीला आसमान और हरा नीम मजे से हौल का जायजा ले रहे थे. अंदर चार कतारों में मेहरून पर दो पीले पट्टों वाली टाटपट्टियां बिछी थीं.

बहुत से सांवले और काले आदमी नंगे पैर खड़ेखड़े बातें कर रहे थे. बातचीत का खासा शोर था क्योंकि सभी का सुर ऊंची तरफ ही था. ज्यादातर लोगों के सिर पर टोपी या पगड़ी थी और बदन पर सफेद या मटमैले सफेद कुरतेपाजामे या धोती. कई पान या गुटका चबा रहे थे या मुंह में भरे हुए थे.

 

मेरे सिवा वहां कोई स्त्री थी ही नहीं सिवा जामुनी रंग और पतली लाल किनारे की लौंग वाली धोती बांधे, नाक के दोनों तरफ बड़ेबड़े कांटे पहने, दोनों हाथों से झाड़ू की मूठ पकड़े कोने में उकड़ूं बैठी सफाईकर्मी बुढि़या के.

लोग मेरे मामाजी के पास आआ कर हाथ जोड़ रहे थे, गर्मजोशी से मिल रहे थे. हर कोई आतेजाते मेरे भी पैर छू रहा था क्योंकि मैं वहां सब की भानजी थी.

हुआ यह था कि मैं मां के साथ नानी के घर आई थी. गुमसुम सी एक तरफ अकेली बैठी थी. मामा ने कहा था, ‘चल बिट्टो, तुझे घुमा लाऊं.’ और वे मुझे अपने साथ यहां ले आए थे. इस बड़े से हौल में. दरअसल, मेरे ये दाढ़ी वाले बड़े मामाजी जिन सेठ करोड़ीमल के यहां मुनीम थे, उन्होंने परिचितों और स्टाफ के लिए पुत्रप्राप्ति पर भोज रखा था. मामा उन के दाहिने हाथ सरीखे थे.

‘सरु, आ यहां बैठ,’ मामा ने मेरे सिर पर प्यार से हाथ फेरा. कुछ ही देर में हमारे सहित सभी लोग महरून टाटपट्टियों पर बैठ गए.

‘तू ने कभी पंगत खाई है?’ मामा ने मुझ से प्रश्न किया.

‘पंगत? पंगत क्या कोई मिठाई होती है?’ मैं ने मासूमियत से पूछा था. जिसे सुन मामा ठठा के हंस पड़े थे और अगलबगल में बैठे लोगों को मेरा जवाबी प्रश्न सुना रहे थे. वे सब भी हंस रहे थे. ‘बताओ बच्ची को पता ही नहीं कि पंगत क्या होती है. होहो, क्या जमाना आ गया है.’

तभी हमारे सामने पन्नियों की पैकिंग से जल्दी से निकालनिकाल कर बेहद चमचमाती थालियां, कटोरियां, गिलास और चम्मच फटाफट रख दिए गए. मैं देख रही थी पन्नियों को कहीं भी बेतरतीबी से फेंका जा रहा था, जो मुझे अजीब लग रहा था. वह बुढि़या उन्हें गुडीमुडी कर बटोर रही थी.

हमारे सामने रखे गए बरतनों की अनोखी चमक ने मुझे चमत्कृत कर दिया और उन से परावर्तित होते बिंबों ने जैसे मेरा मन मोह लिया. खिड़की से आते प्रकाश के नीचे रखी थाली पर पड़ने से कभीकभी चमचमा उठते चमकीले खिंचते गोलाकारी बिंब, कमरे की दीवारों और छत पर जगमग, छोटामोटा तिलिस्म सा रच रहे थे. मैं उन्हें भौचक सी देखती रह गई.

 

मुझे लगा चांद मानो थाली बन गया

हो और वह भी इतनी बार. मैं

थालियों से अभिभूत थी और अचंभित भी. ‘क्या ये कांच की हैं?’ सोचते हुए मैं थाली को बारबार उठाउठा कर, घुमाघुमा कर उलटनेपुलटने लगी. फिर झुकझुक कर उस में अपना चेहरा निहारने लगी. मुझे यह बहुत अच्छा लगा था.

बहुत से युवा लड़के धड़ाधड़ डोंगों और धामों में पूरी, सब्जी, लौंजी, रायता, मिठाई, परोसने आते तो मैं उन से कहती, ‘बीच में मत डालो’. मैं चाहती थी कि मैं प्रिय चांद थाली में अपना चेहरा और देर तक देखती रह सकूं. पहली क्लास में पढ़ने वाली मुझ आठ साल की बच्ची के लिए कितने अनमोल खुशी के पल थे वे.

फिर सब लोगों ने संस्कृत में मंत्रोच्चार किया और एकसाथ खाना शुरू हुआ. मामाजी थाली में से चुग्गा भर खाना बाहर की तरफ रखते और भोजन को विशेष भाव से देखते हुए मुझे बता रहे थे, ‘ये जो हम यों आलथीपालथी बना कर पंक्तियों में जमीन पर नीचे बैठ कर भोजन कर रहे हैं न, इसे ही पंगत कहते हैं, बिटिया’.

पर मैं पंगत से ज्यादा चमचमाती थाली की दीवानी हो चुकी थी. मुझे लग रहा था, खाने का इतना अच्छा स्वाद इस चमकीली थाली के कारण ही आ रहा है. मैं ने उस दिन खूब छक कर भोजन किया था. न सिर्फ थाली, कटोरियों को भी उंगलियों से चाटचाट कर साफ कर दिया था. मेरा मन कर रहा था मामाजी से कहूं ‘अपन ये थाली घर ले चलें?’

‘‘क्या हुआ सारिका, कहां खो गई? क्या गिफ्ट पसंद नहीं आया?’’ मेरे हाथ में कस कर पकड़े हुए गिफ्ट में मिले स्टेनलैस स्टील के डिनर सैट की ‘चांदथाली’ को छुड़ाते हुए अनुराग ने पूछा.

‘‘नहीं, मुझे गिफ्ट बहुतबहुत पसंद आया है, अनुराग. यह अब तक का द बैस्ट गिफ्ट है. सब से कीमती और अनोखा गिफ्ट. कहते हैं, समय कभी लौट कर नहीं आता पर तुम तो मेरे लिए ऐसा गिफ्ट लाए हो जिस में स्वयं समय ही पैक है. कोई लौटा दे मेरे बीते हुए दिन, सचमुच तुम ने मुझे बीते हुए दिन की सौगात लौटाई है ‘वो बचपन की कश्ती वो बारिश का पानी’ की तरह. वो ‘पंगत का भोजन वो चमचमाती चांद-थाली’ दे दी है.

‘‘आह, अद्भुत और कभी न भूलने वाला है यह गिफ्ट,’’ कह मैं उस से फिर लिपट गई.

खुशी की तरंगों की फिर हुई सवारी. मेरे मन के चिदाकाश से एकएक कर सभी अनुमानित गिफ्ट विदा हो गए. गोल्ड इयरिंग के छल्ले गायब हो गए. हैदराबादी नैकलेस की तीन लड़ों के मोती बिखर कर तिरोहित हो गए. सिल्क साड़ी का सुआपंखी रंग धुंधला गया. पश्चिमी परिधान तो ध्यान ही नहीं आया. रह गई तो बस बचपने में विशुद्ध, खालिस चमचमाहट वाली ‘चांद-थाली’ में खाई पंगत की याद.

 

‘मेरा बच्चा’ के भाव से अभिभूत लेकिनकाश कि मैं पहले जानती

एक लड़की का उस की जिद के चलते उस का अबौर्शन किया गया था. हाउस सर्जन ने पूछा कि कल जिस का एमटीपी किया था, वह ठीक है, क्या उस को डिस्चार्ज कर दें तो मैडम ने कहा, ‘कर दो लेकिन जाने से पहले उसे उस की वीडियो दिखा देना. लैपटौप और सीडी ले जाना, कहना, जाने से पहले देख ले.’

हाउस सर्जन नर्स के साथ उस के कमरे में गई. वह खूब खुश थी, कह रही थी कि वह बिलकुल फिट है, बिंदास नहा कर नाश्ता कर चुकी है और अगर छुट्टी कर दें तो वह सीधा अपने औफिस चली जाए. उस ने बड़ी खुशी से लैपटौप और अपनी एमटीपी की पैनड्राइव ली और देखने लगी.

लैपटौप के रंगीन स्क्रीन पर नन्हे शिशु का चित्र उभरा. कई एंगल से उसे दिखाया गया. पलकें ढकीं, बंद आंखें, हिलतेडुलते हाथपांव, जैसे शिशु अंगड़ाई ले रहा हो. लड़की ‘मेरा बच्चा’ का भाव महसूस कर अभिभूत हो गई. उसे याद आया जब उस ने पहली बार उस की हलचल महसूस की थी. उस की इच्छा हो गई थी उंगली से उस के प्यारे होंठों को छुए. तभी नीचे से औजार आता दिखा. वह चौंक कर आगे झुक गई. देखती रही कैसे औजार के छूते ही बच्चा अपना हाथपांव हटा लेता था, कैसे एक बार तो उस ने उसे अपनी मुट्ठी में ही पकड़ लिया और फिर जो दिखा उस को देख उस की आंखें फटी रह गईं, मुंह सूख गया. वह सिर पकड़ कर रोने लगी. काश, वह पहले जानती.     -डा. श्रीगोपाल काबरा Hindi Kahani

 

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