Child Health: प्रिया 8 साल बाद रागिनी से मिल रही थी. दोनों बचपन की सहेलियां हैं. शादी के बाद ऐसे दूरदूर शहरों में चली गईं कि सालों एकदूसरे की शक्ल नहीं देख पातीं. प्रिया को एक काम से रागिनी के शहर आना हुआ तो वह सीधी उस की ससुराल पहुंच गई. रागिनी के भरेपूरे परिवार में सास, ससुर, देवर, ननद सभी हैं. सब बड़े प्यार से रहते हैं, यह देख कर प्रिया को अच्छा लगा. रागिनी का बेटा अब 6 साल का हो गया है. उस की चुलबुली बातें बताते हुए रागिनी खुद बच्ची जैसी हुई जा रही थी.
अचानक प्रिया की नजर रागिनी के पलंग के दाईं तरफ पड़ी एक टेबल पर गई, जिस पर कई प्रकार के सिरप, दवाएं और टौनिक्स रखे हुए थे. उन्हें देख कर प्रिया पूछ बैठी, ‘जीजाजी का स्वास्थ्य ठीक तो है न?’ रागिनी उस की नजर भांप कर बोली, ‘अरे, वह बिलकुल स्वस्थ हैं. ये टौनिक्स और सिरप तो प्रियांशु के हैं.’ प्रियांशु रागिनी के 6 साल के बेटे का नाम है.
‘प्रियांशु को क्या हुआ, कोई सीरियस बीमारी है क्या?’
‘अरे, मेरा बेटा बिलकुल स्वस्थ है. ये दवाएं तो उस की भूख बढ़ाने, कद बढ़ाने और इम्युनिटी बढ़ाने के लिए हैं.’
‘किसी डाक्टर ने बताई हैं?’ प्रिया ने उन टौनिक्स की शीशियों को गौर से देखते हुए हैरानी से पूछा.
‘नहीं, हमारे कैमिस्ट अंकल हैं न जिन की हमारे घर के नीचे ही दुकान है, उन्होंने दी हैं. इन टौनिक्स से प्रियांशु को काफी फायदा है,’ रागिनी ने उत्साहित होते हुए बताया.
‘तू पागल है क्या? इतने छोटे बच्चे को इतनी सारी टौनिक्स पिला रही है, वह भी किसी डाक्टर से पूछे बगैर. क्या तू उस को पौष्टिक भोजन नहीं दे पा रही है?’
‘खानापीना तो ठीक ही है, जूस और दूध भी बराबर पीता है पर मु झे उस की हाइट कम लगती है. कैमिस्ट अंकल ने बोला कि इस की हड्डियों की मजबूती के लिए ये सिरप जरूरी हैं. उन्होंने इम्युनिटी बूस्टर भी दिया और प्रियांशु को भूख खुल कर लगे, इस के लिए भी टौनिक दिया है.’
रागिनी की बातें सुन कर प्रिया ने अपना सिर पकड़ लिया.
आजकल अधिकतर मांएं अपने बच्चों की अच्छी ग्रोथ के लिए उन्हें अनावश्यक रूप से टौनिक्स पिलाने लगती हैं. बिना सोचेसम झे और बिना किसी डाक्टरी परामर्श के अधिकतर माताएं बच्चों की अच्छी ग्रोथ, भूख बढ़ाने या ताकत बढ़ाने के लिए उन्हें टौनिक्स देना शुरू कर देती हैं. इस प्रवृत्ति के पीछे कई कारण हैं. सब से पहला कारण है वे विज्ञापन जो दिनरात हमारे कानों में बजते हैं. जिन में सच कम जबकि झूठ भरभर के होता है. विज्ञापनों का प्रभाव हमारे मनमस्तिष्क पर सीधा पड़ता है.
टीवी, सोशल मीडिया पर दिखाए जा रहे टौनिक्स के विज्ञापन मातापिता को भ्रमित कर देते हैं और वे बिना डाक्टर से पूछे कैमिस्ट से टौनिक ला कर अपने बच्चों को पिलाना शुरू कर देते हैं.
इस के अलावा कई मातापिता दूसरों की देखादेखी यह काम करने लगते हैं. पड़ोस के बच्चे को उस की मां अमुक टौनिक देती है तो हमारे बच्चे को भी देना चाहिए. जैसी सोच उन पर हावी रहती है. अधिकांश मांबाप इस गलतफहमी का शिकार हैं कि टौनिक से बच्चा तेज, लंबा और मजबूत बनेगा और उस की भूख बढ़ेगी. जबकि, ऐसा नहीं है. टौनिक्स बच्चे की प्राकृतिक भूख को दबा सकता है.
बहुत से टौनिक्स डाक्टर की सलाह बिना उपभोग किए जाते हैं और टीवी या प्रिंट माध्यमों से होने वाले इन के प्रचार में अकसर अतिशयोक्ति वर्णन होता है. रामदेव अश्वगंधा चूर्ण से बच्चों की हाइट बढ़ाने का दावा करते हैं और इस के लिए उन का उत्पाद मार्केट में है. इस के अलावा हाईट अप, जीनियस हाईट अप, हाई टौप, हाईट डिटौक्स जैसे अनेक टौनिक्स जो बच्चों की लंबाई बढ़ाने का शतप्रतिशत दावा करते हैं, बाजार में छाए हुए हैं और लोग डाक्टर से पूछे बिना किसी करीबी की सलाह पर या कैमिस्ट की राय ले कर इन्हें खरीद लेते हैं और बच्चों को देना शुरू कर देते हैं.
बच्चों को टौनिक की आदत लगना ठीक नहीं होता क्योंकि इस से उन का शरीर प्राकृतिक रूप से पोषण को ग्रहण करने की क्षमता खो सकता है. बच्चों के टौनिक्स से भरा बाजार सही मानो में ‘टौक्सिक’ हो सकता है, न सिर्फ संख्या में बल्कि गुणवत्ता और सुरक्षा के लिहाज से भी. बच्चे पौष्टिक खानेपीने से जितना पोषण प्राप्त कर सकते हैं, वह पोषण एक चम्मच टौनिक से नहीं मिल सकता. केला, दूध, मेवे (पिस्ता/बादाम), देसी घी, बेसन के लड्डू जैसे पारंपरिक उपाय प्रभावी व सुरक्षित हैं.
बच्चा अगर संतुलित आहार ले रहा है तो उसे टौनिक्स की जरूरत ही नहीं है. बच्चों को रोजाना हरी सब्जियां, फल, दालें, दूध, अंडा, घी और अनाज देना आवश्यक है. इन से आयरन, कैल्शियम, विटामिन सी और प्रोटीन उसे नैचुरली मिलेंगे. घर का बना पौष्टिक खाना जैसे खिचड़ी, चटनी, ड्राई फ्रूट लड्डू, मूंगफली, गुड़, दही आदि टौनिक से बेहतर काम करते हैं.
संतुलित आहार, समय पर नींद, पानी व स्वस्थ दिनचर्या बच्चों को स्वस्थ रखने में मुख्य भूमिका निभाते हैं. रोजाना सुबह 20-30 मिनट धूप में खेलना विटामिन डी के लिए जरूरी है. यदि कोई टौनिक लेना आवश्यक ही हो तो पैथोलौजी, सरकारी, स्वीकृत, फार्मास्यूटिकल मानदंडों के अनुसार रजिस्टर्ड और डाक्टर की सलाह के अनुसार और एक निश्चित समय तक ही देनी चाहिए. बच्चे के शरीर में किसी चीज की कमी होने पर अगर डाक्टर कोई टौनिक लिखे तो कोर्स पूरा कर के उसे बंद कर दें. लंबे समय तक टौनिक न दें. टौनिक को मिठाई जैसा पेश न करें.
बच्चों को यह न लगे कि टौनिक कोई ‘ट्रीट’ है. कई बार टौनिक्स की मिठास बच्चों को भा जाती है और वे उसे लेते रहने की जिद करते हैं.
टीवी विज्ञापनों के प्रभाव में आ कर कभी भी हैल्थ से जुड़ी दवाओं, टौनिक्स, कौस्मेटिक आदि का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, क्योंकि विज्ञापन तो बनाए ही जाते हैं आप को बेवकूफ बना कर आप की जेब से पैसे निकालने के लिए.
टौनिक उत्पादों की भरमार
भारत में बच्चों के टौनिक्स की स्थिति पर अगर नजर डालें तो हम देखेंगे कि भारत में बेबी/चाइल्ड केयर उत्पादों का मार्केट 2024 में लगभग 4.4 बिलियन यूएसडी था और 2033 तक इस के 10.6 बिलियन यूएसडी तक बढ़ने की उम्मीद है, जिस में 9.3 फीसदी वार्षिक वृद्धि अनुमानित है. 4.4 बिलियन यूएसडी का मतलब है 4.4 अरब अमेरिकी डौलर यानी लगभग 36,500 करोड़ रुपए जो 2033 तक बढ़ कर 88 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा हो जाएगा. इन में कैल्शियम, विटामिन, आयरन आदि के टौनिक्स के साथ विभिन्न प्रकार के डाइजैस्टिव, स्लीप, इम्यूनिटी, ग्रोथ बढ़ाने वाले टौनिक्स भी शामिल हैं.
ट्रेड इंडिया पर दर्ज सौ से ज्यादा ब्रैंड्स तो होम्योपैथिक और यूनानी टौनिक्स के मौजूद हैं, जैसे एफ्लैट्स बेबीट्स, ग्रुप बेबी टौनिक, न्यू शमा ममता बेबी टौनिक, अल्फाअल्फा टौनिक, बेबी क्योर टौनिक आदिआदि. इन तमाम टौनिक्स की कीमत 30 से 450 रुपए के बीच है और इन की क्वांटिटी 30 से 200 मिलीलिटर तक होती है.
ये टौनिक्स बच्चों को लगातार देना उन की सेहत से खिलवाड़ तो है ही, चिंता के कुछ दूसरे कारण भी हैं जो उन को खतरनाक बीमारियों की ओर धकेलते हैं. दरअसल, ये तमाम टौनिक्स जिन प्लास्टिक की बोतलों या कंटेनरों में आते हैं उन में फेथलेट्स पाए गए हैं, जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं. फेथलेट्स एस्टर यौगिकों का एक परिवार है. वे आमतौर पर शौर्ट चेन अल्कोहल अणुओं और फेथलिक एसिड से प्राप्त होते हैं जो 50 से अधिक वर्षों से प्लास्टिक निर्माण में उपयोग किए जाते हैं. ये मुख्य रूप से पोलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) प्लास्टिक में प्लास्टिसाइजर के रूप में उपयोग किए जाते हैं जो प्लास्टिक को नरम और अधिक लचीला बनाने का एक तरीका है.
अधिकांश टौनिक्स जिन प्लास्टिक की बोतलों में आती हैं वे नरम प्लास्टिक की ही बनी होती हैं. इस खतरनाक तत्त्व के अलावा हाल ही में हुई कुछ जांचों में सेहत से जुड़े कुछ उत्पादों में डाइएथिलीन ग्लाइकोल जैसे खतरनाक द्रवों के मिलावट की खबरें भी सामने आई हैं, जैसे नौरिस और फोर्ट्स द्वारा बनाए गए सिरप्स में.
डाक्टर की मानें तो बच्चों को अनावश्यक रूप से टौनिक्स देना उन की सेहत के साथ खिलवाड़ करना है. इस से बच्चों को टौनिक की आदत लग सकती है. बिना जरूरत टौनिक देने से उन के लिवर पर असर पड़ सकता है. कुछ टौनिक्स में शुगर या कैमिकल की मात्रा बहुत अधिक होती है, जो हानिकारक हो सकते हैं. इसलिए टौनिक्स के बजाय प्राकृतिक विकल्प ही अपनाने चाहिए. Child Health