Gurgaon Floods : देश के महानगर कहलाए जाने वाले शहर बारिश में डूब गए. हाईटैक सिटी गुरुग्राम कई किलोमीटर जाम में फंसी रही. स्मार्ट सिटी का अब कोई नामलेवा नहीं है. आखिरकार केंद्र से ले कर राज्य सरकारें बेहतर शहर क्यों नहीं बना पा रही हैं जहां सीवेज और ड्रेनेज सिस्टम दुरुस्त हों?
इस साल देश में बारिश औसत से कुछ ज्यादा हो रही है. लगातार वर्षा के कारण उत्तर भारत में त्राहिमाम स्थिति है. लगभग सौ से ज्यादा जिले बाढ़ की चपेट में हैं. भूस्खलन और प्रलयकारी बाढ़ ने जम्मू कश्मीर की कमर तोड़ दी है. 1988 के बाद पंजाब बाढ़ की सब से भीषण मार झेल रहा है. हिमाचल प्रदेश में जनजीवन ठप्प है. राजस्थान, मध्य प्रदेश, ओडिसा और झारखंड बाढ़ से प्रभावित हैं. हरियाणा से आ रहे पानी ने दिल्ली को डुबो दिया है.
जम्मू कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल, दिल्ली से ले कर पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और दक्षिण भारत के अनेक राज्य भीषण बाढ़ का सामना कर रहे हैं. लगभग पूरे देश में जनजीवन अस्त व्यस्त है. जगहजगह सड़कों और घरों में पानी भरा हुआ है. शहरों से पानी निकलने के मार्ग बंद हैं. बीमारियों का ख़तरा बढ़ रहा है और मोदी सरकार ‘मोदी की मां को गाली’ के प्रकरण में उलझी हुई है. जिन मीडिया चैनलों की प्राथमिकता इस वक्त देश की दयनीय हालत दिखाने की होनी चाहिए, खड़ी फसलों के बाढ़ में बह जाने से बर्बाद हुए किसानों की दुर्दशा सामने लाने की होनी चाहिए, लैंड स्लाइड और बाढ़ की विभीषिका में जान गंवाने वालों और ढहती दीवारों के साये में सिर छुपाने की मजबूरी सरकार को दिखाने की होनी चाहिए, वे तमाम गोदी मीडिया चैनल ‘मोदी विलाप’ सुनाने में व्यस्त हैं.
दिल्ली लगातार बारिश और यमुना नदी के उफान से जूझ रही है. बारिश ने सामान्य जनजीवन को अस्तव्यस्त कर दिया है. सब से गंभीर स्थिति यमुना नदी के नजदीकी क्षेत्रों की है, जहां पानी का स्तर खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है और निचले इलाके पूरी तरह डूब गए हैं. दिल्ली की कई सड़कें जलमग्न हैं. घरों में पानी भर जाने से यमुना के निचले इलाके से लोगों का लगातार पलायन हो रहा है. उन की सम्पत्तियां, खाने पीने का सामान सब नष्ट हो चुका है. खाली हाथ और सूनी निगाह से सरकार की ओर देख रहे हैं कि कहीं से कोई मदद आ जाए.
हजारों परिवार अपने घर छोड़ कर सुरक्षित जगहों की तलाश में भटक रहे हैं. बाढ़ग्रस्त इलाकों में खानेपीने की वस्तुओं और दवाइयों की भारी कमी है. अब की मानसून में स्कूली बच्चों और दिहाड़ी मजदूरों का जीवन सब से अधिक प्रभावित हुआ है. बिजली और पानी की आपूर्ति भी अनेक इलाकों में बाधित हो गई, जिस के चलते उद्योगों और व्यापार पर बुरा असर पड़ा. कई कारखाने बंद हो गए हैं और मजदूर सुबह शाम फांके कर रहे हैं. उन के घरों में चूल्हे बुझे हुए हैं. मजनू का टीला, यमुना बाजार, कश्मीरी गेट, लोहे का पुल और आईटीओ के आसपास के इलाके सब से ज्यादा प्रभावित हुए हैं. जहां पानी भर जाने से यातायात तक ठप हो गया. कई वाहन सड़कों पर फंस गए.
जब हायतौबा मची तब दिल्ली सरकार और प्रशासन की नींद टूटी और उन्होंने प्रभावित क्षेत्रों से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर जाने की चेतावनी जारी की. दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता दौरे पर निकलीं और फोटो सेशन करा के मुख्यमंत्री आवास में वापस लौट आईं. उन के निर्देशों के बावजूद न बाढ़ग्रस्त परिवारों के लिए पर्याप्त राहत शिविर बने, न भोजन, पानी और दवाओं की आपूर्ति हुई.
कुल मिला कर, दिल्ली में बारिश और यमुना की बाढ़ ने यह साबित कर दिया है कि राजधानी जैसी बड़ी नगरी भी प्राकृतिक आपदाओं से अछूती नहीं है. बेहतर सीवेज सिस्टम, ठोस शहरी नियोजन और समय रहते उठाए गए कदम ही भविष्य में ऐसी तबाही से बचाव कर सकते हैं, यदि सरकार की इच्छाशक्ति हो तब.
बीते कई सालों से दिल्ली में सीवेज सिस्टम सुधारने की बातें बस सुनी भर जा रही हैं मगर जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं हुआ है. बारिशों से पहले नगर निगम कुछ वीआईपी स्थानों पर नालियां साफ करवाता नजर आता है. मगर जब तक पूरे शहर का सीवेज सिस्टम दुरुस्त न हो बारिश का पानी यूं ही तबाही मचाता रहेगा.
मौसम विश्लेषकों द्वारा लगातार बारिश बढ़ने की संभावना जताने और हर साल भू स्खलन, बारिश, बाढ़ जैसी प्रकृति आपदाओं में वृद्धि के बावजूद किसी भी राज्य सरकार के कान पर जूं नहीं रेंग रही है. जिस समय देश के नेताओं के लिए सब से बड़ा मुद्दा प्राकृतिक आपदा, भीषण वर्षा, जल निकासी का होना चाहिए था, उस समय तमाम नेता बिहार चुनाव, वोट चोरी, विपक्षियों को गालीगलौच, मीडिया मंचों पर नफरती बयानबाजियों में मशगूल हैं.
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बारिश का पानी शहर की सड़कों से निकालने में प्रशासन फेल है. पूरे शहर से वह नालियां गायब हो चुकी हैं जिन के जरिये बारिश का पानी गंदे नाले से होता हुआ गोमती नदी में जा मिलता था. बेतुके निर्माण कार्यों ने इन नालियों को ब्लौक कर दिया है. कहीं कहीं नालियों को पात कर उन पर इमारतें खड़ी हो गई हैं. नतीजा पूरा ड्रेनेज और सीवेज सिस्टम तबाह हो गया है.
लखनऊ, जो उत्तर प्रदेश की राजधानी और ‘नवाबों का शहर’ कहलाता है, हर साल बारिश के मौसम में जलभराव की समस्या से जूझता है. इस वर्ष भी स्थिति अलग नहीं है. थोड़ी सी तेज बारिश ने शहर की सड़कों को तालाब और नालियों को नदियों में बदल दिया है. इस साल बारिश के पानी ने लखनऊ में आलमबाग, चारबाग, हजरतगंज, इंदिरा नगर, राजाजीपुरम जैसे कई क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित किया. मुख्य मार्गों पर घंटों ट्रैफिक जाम की स्थिति रही. स्कूल जाने वाले बच्चे, दफ्तरों के कर्मचारी और मरीजों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा.
कई इलाकों में घरों और दुकानों में पानी घुस जाने से लोगों की संपत्ति को भी नुकसान हुआ. प्रशासन द्वारा बारबार आश्वासन दिए जाने के बावजूद जल निकासी व्यवस्था की हालत जस की तस बनी हुई है. लखनऊ नगर निगम और विकास प्राधिकरण ने दावा किया था कि शहर के नाले और नालियां समय पर साफ कर दी गई हैं. लेकिन बारिश ने उन के दावों की पोल खोल दी. जगहजगह जाम, कूड़े से पटी नालियां, टूटेफूटे और सिल्ट से जमे नाले और अव्यवस्थित सीवेज सिस्टम ने साफ़ कर दिया कि तैयारी केवल कागजों पर थी. मुख्यमंत्री योगी बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों का हवाई दौरा करते हैं मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात. ऐसे हवाई दौरे वे हर साल करते हैं. आगे भी करते रहेंगे. उन का मनोरंजन चलता रहेगा.
शहरी नियोजन विशेषज्ञों का मानना है कि लखनऊ की पुरानी ड्रेनेज प्रणाली आज की आबादी और निर्माण का दबाव झेलने में सक्षम नहीं है. अतिक्रमण और अवैज्ञानिक निर्माण ने प्राकृतिक नालों का रास्ता रोक दिया है, जिस से पानी ठहरने लगा है. लखनऊ के लोगों का कहना है कि सरकार और नगर निगम हर साल करोड़ों का बजट खर्च करते हैं, लेकिन नतीजा शून्य ही निकलता है. सारा बजट किसकी जेब में जाता है, कहने की जरूरत नहीं है. बरसात आते ही निचले इलाकों में रहने वालों का जीवन नरक बन जाता है. अंदाज लगा सकते हैं कि जब राजधानी में ही ऐसी हालत है तो उत्तर प्रदेश की बाकी शहरों और कस्बों का क्या हाल होगा?
लखनऊ की यह स्थिति बताती है कि केवल स्मार्ट सिटी का टैग लगाने से कोई शहर स्मार्ट नहीं बनता. जब तक प्रशासनिक इच्छाशक्ति और जमीन पर वास्तविक काम नहीं होंगे, तब तक हर साल बारिश राजधानी की साख को कीचड़ में डुबोती रहेगी.
दिल्ली से सटे गुड़गांव जिसे देश का सबसे मौडर्न शहर माना जाता है, जिसे ‘द मिलेनियम सिटी’ के नाम से पुकारा जाता है, 2 सितंबर को हुई मात्र 2 घंटे की बारिश में यहां के हाईवे पर 20 किलोमीटर लंबा जाम लग गया. लोग पांचपांच घंटे तक इस जाम में फंसे रहे. ऐसा नजारा शायद ही दुनिया के किसी देश में देखने को मिले. एक ऐसा शहर जहां लोग लाखोंकरोड़ की कोठियों में रहते हैं मगर घर से बाहर नहीं निकल सकते, क्योंकि सड़कें पानी से ऐसी लबालब हैं कि उस में कारें डूब जाएं.
गुड़गांव में पांच इंजन की सरकार है. म्युनिसिपैलिटी बीजेपी के कंट्रोल में है. मेयर बीजेपी का है. सारे एमएलए, एमपी बीजेपी के हैं. चीफ मिनिस्टर बीजेपी का है. प्राइम मिनिस्टर बीजेपी के हैं, कहने का तात्पर्य यह कि पिछले 10 सालों से टौप टू बौटम सब कुछ बीजेपी के कंट्रोल में है मगर गुड़गांव में विकास के नाम पर क्या हुआ, जनता का जीवन सुगम, सुरक्षित बनाने के लिए सरकार ने क्या किया, यह दो घंटे की बारिश में साफ़ हो जाता है. डबल ट्रिपल इंजन सरकारों ने सिर्फ शहरों और सड़कों के नाम बदलने का काम किया है और कुछ नहीं.
भगवा पार्टी की सरकार सिर्फ उन कार्यों को करती दिखती है जो कार्य अखबारों की सुर्ख़ियों में जगह पाएं. बीजेपी सिर्फ चमकदार प्रोजैक्ट की राजनीति में मशगूल है. वह सड़क, मेट्रो, एक्सप्रेसवे, फ्लाईओवर और एयरपोर्ट जैसे ‘दिखने वाले’ प्रोजैक्ट्स पर ज्यादा जोर देती है, क्योंकि इनका सीधा राजनीतिक लाभ मिलता है. सीवेज और ड्रेनेज पर किया गया खर्च जनता को उतना नज़र नहीं आता, इसलिए यह प्राथमिकता सूची में पीछे चला जाता है. फिर सीवेज नेटवर्क को ठीक करने के लिए बहुत बड़े निवेश की जरूरत होती है. केंद्र और राज्य से आए पैसे सही इस्तेमाल न हो कर भ्रष्टाचार और अधूरे प्रोजैक्ट्स में फंसे हुए हैं.
आज भी देश के ज्यादातर शहरों की सीवेज योजनाएं ब्रिटिश काल या 1960-70 के नक्शों पर आधारित हैं. आबादी कई गुना बढ़ चुकी है, लेकिन सिस्टम को उसी अनुपात में अपग्रेड नहीं किया गया. इस में राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है. यह मुद्दा चुनाव में बड़ा एजेंडा भी नहीं बन पाता है. बिजली, सड़क, पानी या जाति-धर्म की राजनीति पर तो खूब बहस होती है, लेकिन ‘सीवेज-ड्रेनेज सिस्टम सुधारो’ जैसी मांग शायद ही किसी पार्टी के घोषणापत्र में मिलती है. जब तक सीवेज और ड्रेनेज को स्वास्थ्य और पर्यावरण संकट से जोड़ कर चुनावी मुद्दा नहीं बनाया जाएगा, सरकारें केवल टेम्पररी पंपिंग, सफाई और नाले चौड़े करने जैसे कामों से ही जनता को बहलाती रहेंगी और हर साल देश की जनता मानसून का लुत्फ़ उठाने की बजाए जानमाल का भारी नुकसान उठाती रहेगी. Gurgaon Floods