Romantic Story In Hindi : व्यक्ति बढ़ती उम्र की दहलीज पर क्यों न खड़ा हो लेकिन मन में दबी प्यार की कसक, एहसास को हरदम महसूस करता है. मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही था.

फौज से रिटायर हो कर गांव आया तो मैं शरीर से स्वस्थ था. लेकिन मेरे हिस्से में आया बाऊजी का मकान जो जर्जर हो चुका था. उसे ठीक करवाने में 2 महीने लग गए. शुरू के 2 महीने मैं घर में ही व्यस्त रहा. मिस्त्री, मजदूरों से काम करवाना आसान न था. थोड़ा सा इधरउधर हो जाओ तो काम बंद हो जाता था.
2 महीने बाद जब मैं गांव में अपने खेतों के लिए निकला तो कई जानपहचान वाले पूछने लगे, ‘‘कब आए? ’’
2 महीने बताने पर वे हैरान होते. आज दिखाई दिए. मैं कहता, ‘‘मकान ठीक करवा रहा था.’’
मैं अपने खेतों की ओर निकल गया. फसल लहलहा रही थी. मैं यादों में खो गया.
तब मेरी उम्र शायद 16 साल की थी. भरपूर जवानी थी. हमारे खेतों के साथ वेदो के बापू के खेत थे. वेदो भी अपने बापू के साथ आ जाती थी. सुंदर और सजीली, दमकता गोरा रंग था. उस के बाएं गाल पर छोटा सा काला तिल था जो उस की सुंदरता को और बढ़ा देता था. बस थोड़ा सा मुंह टेढ़ा था. ध्यान से देखने पर पता चलता था. उस की उम्र भी मेरे जितनी थी.

मेरे साथ खेला करती थी. खेलतेखेलते उस के शरीर को छू लेना बहुत अच्छा लगता था. शायद उसे भी अच्छा लगता हो. वह कुछ नहीं बोलती थी, केवल मुसकराती रहती थी. जाने वे मस्तीभरे दिन कहां चले गए? आज भी उन्हें याद करता हूं तो रोमांचित हो उठता हूं.

मैं फौज में चला गया और वह मदीनपुर गांव में ब्याह दी गई. फिर वह मुझे कभी नहीं मिली. मैं आज भी उन दिनों की याद कर के सिहर उठता हूं. उस का शरीर बहुत गठीला था. हम दोनों पर हमेशा मस्ती छाई रहती थी.

मैं अपने खेत में खड़ा अब भी रोमांचित हो रहा था कि साथ के खेत में काम कर रहे वेदो के बापूजी ने आवाज दी, ‘‘फौजी साहब, कब छुट्टी पर आए और कब वापस जाना है? ’’
मैं ने कहा, ‘‘बापूजी, मैं पैंशन पर आ गया हूं. अब मुझे वापस नहीं जाना है. यहीं रह कर खेतों में काम करूंगा. ’’
‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है. खेतों की संभाल चंगी हो जाएगी. वैसे, गिरधारी बहुत अच्छा काम करता है.’’
‘‘जी बापूजी.’’
बातोंबातों में मैं ने वेदो के बारे में पूछा. उन्होंने कहा, ‘‘ठीक ही होगी. उसे आए तो जमाना गुजर गया.’’
‘‘आप भी देखने नहीं गए?’’
‘‘गया था, एकदो बार देखने, फिर सोचा, लड़की है, उस के घर बारबार जाना ठीक नहीं है.’’
फिर वे जाने कहां खो गए थे. मैं समझ गया कि सबकुछ ठीक नहीं है. मैं ने कहा, ‘‘मदीनपुर में मेरी मौसी रहती है. मैं उस से मिलने जाऊंगा तो वेदो से मिलूंगा.’’
‘‘ठीक है, मिल लेना.’’
फिर वे अपने खेतों में काम करने लगे थे. मैं अपने दूसरे खेतों में चला आया. आसमान की ओर देखा तो बादल घिर आए थे. शायद बरसात आए. खेतों में ‘चैना’ यानी चावल लगे थे. बरसात की जरूरत भी थी, विशेषकर उन खेतों के लिए जिन के पास ट्यूबवैल नहीं थे.

मौसम सुहाना हो रहा था. खेत में बनाई झौंपड़ी तक पहुंचतेपहुंचते बारिश तेज हो गई थी. मैं भीग गया था. उस दिन भी ऐसी ही बारिश थी. वेदो बापूजी को रोटी दे कर मेरे पास झौंपड़ी में आ गई थी. पूरी तरह भीगी हुई थी. भीगने से उस का सारा शरीर निखर गया था. मैं उसे देखता ही रह गया था. मेरे ऐसा देखने पर वह शर्म से छुईमुई हो गई थी. बोली कुछ नहीं थी, केवल अपने शरीर को ढकती रही थी. उस दृश्य को याद कर के आज भी उस पर प्यार आ रहा था. प्यार के ऐसे लम्हे जीवन में फिर कभी नहीं मिले.

बारिश अपना जोर मार कर थम चुकी थी. दूर खेत में गिरधारी बारिश में भी काम करता रहा था. मैं उस के पास गया, पूछा, ‘‘क्या हो रहा है, गिरधारी?’’
‘‘चावल के खेत से घास निकाल रहा हूं.’’
‘‘और मजदूर मंगवा लेने थे.’’
‘‘बोला था, लेकिन बारिश के कारण नहीं आए. अब आ जाएंगे तो काम जल्दी हो जाएगा. तुसीं आराम करोजी. मैं सब कर लूंगा.’’
मैं घर आ गया. चंपा ने खाना बना रखा था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘खाने में क्या बनाया है?’’
‘‘मक्की की रोटी और सरसों दा साग.’’
‘‘वाह, मजा आएगा. मक्की की रोटी का नाम सुन के भूख तेज हो गई है.’’
उस ने एक बड़ी मक्की की रोटी पर ही सरसों का साग डाल कर ऊपर काफी सारा मक्खन डाल दिया. गांवों में मक्की की रोटी को साग के साथ ऐसे ही खाते हैं. थाली नहीं लेते, चाहे, जमाना बदल गया है. खाने में कुछ नहीं बदला. दाल, चावल, महानी हाथ से ‘फुर्रे’ मार कर खाते हैं. खाते समय मुंह से ‘फुर्र’ की आवाज आनी चाहिए. जिस ने बनाया है उसे पता चलता है कि दाल, चावल, महानी स्वादिष्ठ बने हैं.
मक्की की रोटी बड़ी थी, साग भी बहुत स्वादिष्ठ बना था. एक रोटी में ही पेट भर गया था पर नीयत नहीं भरी थी. मैं ने चंपा से कहा, ‘‘सुबह ‘शाहवेले’ यानी नाश्ते में भी मक्की की रोटी
बना देना.’’
वह मुसकराई और किचन संभाल कर अपने घर चली गई.

मैं फिर अपने खयालों में खो गया. वेदो मेरे साथ स्कूल जाती थी, सिर्फ पढ़ाई की बातें होती थीं. पढ़ने में होशियार थी पर न जाने क्यों उसे मैट्रिक से आगे नहीं पढ़ाया गया. पूछा तो बापूजी ने कहा, ‘‘आगे पढ़ कर क्या करेगी? घर का चूल्हाचौका ही तो संभालना है? उस की शादी कर
देनी है.’’
जाने क्यों लड़कियों को न पढ़ाने की मानसिकता आज भी गांवों में है. एक दिन मेरे पास आई और कहने लगी, ‘देखो, मेरे सुंदर कपड़े.’
भोलेपन से वह मुसकराई थी. मैं ने कहा, ‘तेरी शादी हो रही है?’

उस ने ‘हां’ में सिर हिलाया और भाग गई थी. वह बहुत खुश थी. शादी के बाद हाथ की लकीरें बदल जाती हैं. कच्ची उम्र में, जिसे शादी का कुछ पता ही नहीं है, उस का जीवन कैसे होगा? मन में उठे इस प्रश्न का उत्तर आज भी नहीं पाता हूं. गांव में बहुत कम लड़कियां पढ़ पाती हैं.
सुबह उठा. अपने लिए चाय बनाई और सैर के लिए निकल गया. हमारी सैर की जगह हमारे खेत होते हैं. मैं घर के पास अपने खेत में गया तो वहां गरमी में उगाई जाने वाली सब्जियां लगी हुई थीं. चंपा वहां से सब्जियां तोड़ रही थी. अच्छा लगा. हम घर की ताजी सब्जियां खाते हैं. शहरों में ये दूरदूर तक नहीं मिलतीं.
चंपा ने पूछा, ‘‘यहां घीए बहुत लगे हैं और तुसी घीया खाते नहीं.’’
मैं ने कहा, ‘‘घीया नहीं खाता हूं, इस के कोफ्ते बना कर सब्जी बना लो,
खा लूंगा.’’
‘‘ठीक है जी, आज बनाती हूं.’’
‘‘पता है न, कैसे बनाते हैं?’’
‘‘हां जी.’’

मैं अपने आमों के बाग की ओर बढ़ गया. हमारे न जाने किन बुजुर्गों ने यह बाग लगाया था. मुझे बाऊजी की बात याद आ गई थी. ‘चोला’ छोड़ने से पहले उन्होंने कहा था, ‘ये खेतखलियान हमारे बुजुर्गों की धरोहर हैं. उन की जान इन में बसती है. इन्हें संभाल कर रखना. उन्होंने गरमीसर्दी, बरसात और आपदा में इन की संभाल की थी.’
मैं ने अपने किसी खेत और बाग को नहीं बेचा था. मेरे दोनों बेटे आते हैं और एंजौए कर के अपने काम पर चले
जाते हैं. मेरे बाद, मुझे नहीं लगता,
मेरी आगामी पीढ़ी इन खेतों को
संभाल पाएगी.
मेरी पत्नी संसार छोड़ गई थी. चंपा मेरे लिए खाना और घर के काम करती थी. बाल विधवा थी. उस की मां केवल उस के लिए मकान छोड़ गई थी. मैं उसे बचपन से जानता था, इसलिए उसे रख लिया. घर के मैंबर की तरह रहती थी. खाना मेरे यहां खा लेती थी.
चंपा ने जीवनभर गरीबी देखी थी. हमारे घर की उतरन से वह अपने शरीर को ढकती थी. शादी 7-8 वर्ष की उम्र में ही कर दी गई थी. उस का ‘गौना’ होना था, लेकिन उस से पहले ही उस के आदमी की मौत हो गई थी. आदमी का सुख उसे कभी नहीं मिला. गरीबी इतनी थी कि रोटी, कपड़े के भी लाले थे. दूसरी शादी करना तो दूर की बात थी और कौन करता? मैं ने फौज में रहते उसे घर के काम के लिए रख लिया था. उसी पैसे से वह अपनी जरूरत की चीजें लेती थी. गांव में उसे किसी ने सहारा नहीं दिया था. हालांकि, उस के ताऊचाचा गांव में थे. ऐसे दुख नारी के हिस्से ही क्यों हैं? इस प्रश्न का उत्तर दूरदूर तक नहीं पाता हूं.
मैं नाश्ता कर के खेतों में चला आया. बारिश हुई थी लेकिन अभी भी खेतों को पानी देने की जरूरत थी. मैं वहां पहुंचा तो गिरधारी ने ट्यूबवैल चला रखा था. चावल के खेतों में पानी खड़ा रहना चाहिए, तभी फसल चंगी होती है. आमों के बाग में गया. वहां भी खूब आम लगे थे, तरहतरह के शानदार आम थे. सफेदा आम, तोता आम, मालदा आम और लंगड़ा आम. सभी आम बहुत मीठे थे. मंडी में जा कर गिरधारी हाथोंहाथ बेच आता था. अच्छेखासे पैसे हो जाते थे. रखवाली के लिए अच्छे मजदूर रखने पड़ेंगे. गिरधारी को बोलूंगा, वह सब कर लेगा.

मैं ने घर आ कर फोन पर अपनी मौसी से बात की. वह बहुत खुश हुई, पूछा, ‘‘पुत्तर, छुट्टी कब आया और मेरे पास कब आ रहा है, वापस कब जा रहा है?’’
‘‘मौसीजी, मैं पैंशन पर आ गया हूं. अब वापस नहीं जाना है. यहीं रह कर खेतों को देखूंगा.’’
‘‘यह तो अच्छी बात है. मेरे पास कब आ रहा है?’’
‘‘सोचता हूं, कल आ कर मिल जाऊं. फिर बिजी हो जाऊंगा.’’
‘‘आजा, पुत्तर.’’
‘‘मौसाजी कैसे हैं? ’’
‘‘ठीक ने, उन्हें क्या होया है, हट्टेकट्टे ने,’’ उन की बात सुन मैं
हंस दिया.
मैं कल जब मौसी के घर पहुंचा तो मेरा बहुत जोरदार स्वागत किया गया. मौसाजी भी घर पर थे. बड़े प्यार से मिले. मैं घर की सब्जियां ले गया था. हालांकि मौसी के घर में भी किसी चीज की कमी नहीं थी. सब्जियां, फल घर के ही जाते थे.
मेरे लिए चूल्हे पर काढ़नी में कढ़ी बनाई थी, साथ में बासमती के चावल थे. बासमती चावल ऐसे कि बने तो चार घर खुशबू जाए. खाना खाने के बाद मैं ने वेदो के बारे में पूछा.

मौसी बहुत देर जवाब नहीं दे पाई. मुंह दूसरी तरफ कर लिया था. शायद वह रो रही थी. फिर कहा, ‘‘पुत्तर, यह रिश्ता मैं ने ही करवाया था. आई थी तो सारे गांव में दुहाई मच गई थी कि लड़की बहुत सोहनी है. बेचारी रुल गई.’’
‘‘मौसी, क्यों?’’ मेरे शब्दों में भी टीस थी, दुख था.
‘‘वही, कमीने खयालात. सास बड़ी लड़ाकी थी. ओ मरी तो वेदो को चैन आया. अब सब ठीक ए. मैं बुलांदी हां. तू पछान नहीं पाएगा.’’
वेदो आई तो सच में मैं उसे पहचान नहीं पाया. हट्टीकट्टी वेदो सूख कर कांटा हो गई थी. दुख से मेरा गला भर आया, पूछा, ‘‘कैसी है, वेदो? यह सब कैसे, क्या हो गया?’’
वह कुछ नहीं बोली थी. बहुत देर मौसी के गले लग कर रोती रही थी. उस की सीमा का बांध टूट गया था. मौसी ने कहा, ‘‘रो ले, पुत्तर, जी भरके रो ले, फेर तैनू रोन दा मौका नहीं मिलेगा. दिल हलका हो जाएगा.’’
मौसी प्यार से उस की पीठ पर हाथ फेरती रही थी. रोतेरोते उस की हिचकी बंध गई थी. मैं ने फिर पूछा तो उस ने कहा, ‘‘सब कर्मा दा खेल है. घर जा कर बापूजी नू कुछ न दसना. वे मर जाएंगे.’’
मैं ने हामी भरी. औरत चाहे कितनी भी बूढ़ी हो जाए वह मर कर भी दुख का सनेहा अपने मायके नहीं भेजती. कर्मों का खेल समझ कर सहती रहती है. वह इस मानसिकता से जीवनभर उबर नहीं पाती, क्यों? बस इस प्रश्न का उत्तर नहीं पाता हूं.
घर जाने लगी तो मैं ने कहा, ‘‘कभी बापूजी को मिलने आ जाओ.’’
‘‘आवांगी. थोड़ी सेहत ठीक हो जाए तो आवांगी. बापूजी नू मिले बहुत देर हो गई ए. वैसे कैसे ने?’’
‘‘ठीक ने, उम्र दे हिसाब नाल कमजोर हो गए ने.’’
मैं वेदो को उन की उदासी के बारे न बता सका. उन की पीड़ा को नहीं बता सका. नहीं बता सका कि तुम्हारे बारे में पूछने पर दुख से बहुत देर आसमान की ओर देखते रहे थे, केवल इतना कहा, ‘‘तू आएगी तो उन्हें तसल्ली हो जाएगी.’’

वह कुछ नहीं बोली थी. ‘हां’ में सिर हिला कर चली गई थी. मैं घर लौट आया. दूसरे दिन खेतों में गया तो वेदो के बापूजी धीरेधीरे चल कर मेरे पास आ गए. वे प्रश्नचिह्न बने हुए थे कि उन की वेदो कैसी है. मैं ने उन के चेहरे पर आए दुख को बहुत गहरे से महसूस किया और कहा, ‘‘वेदो ठीक ए. थोड़ी कमजोर है. ओ तुहानू मिलन आएगी.’’
‘‘अच्छा.’’ उन के चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई, ‘‘मेरी लाड़ली आएगी.’’
‘‘हां, बापूजी.’’
‘‘कमजोर तो ओस वेले वी सी जब उस की सास मरी थी. मैं उस के सारे रीतिरिवाज कर आया था.’’

अपनी लाड़ली को याद कर के उन की आंखें भर आई थीं. भीगी आंखों से ही वे अपने खेतों में काम करने बढ़े, कहा, ‘‘आएगी तो मैं ने उसे एक हफ्ते में ही ठीक कर देना है, फौजी साहब, देख लेना. ’’

मैं इस सोच में डूब गया कि ये रिवाज किस ने बनाए हैं कि लड़की की ससुराल में कोई बुजुर्ग मर जाए तो रस्मपगड़ी के नाम पर सारा खर्चा लड़की के मायके वाले उठाएं? पहला बच्चा होना हो तो लड़की को मायके भेज दो. ये रिवाज आज भी मुंहबाए खड़े हैं. आज भी दृढ़ता से इन्हें निभाया जाता है, क्यों? बस इन प्रश्नों के उत्तर नहीं मिलते, मिल जाते तो शायद समाधान भी मिल जाते.

2 हफ्ते बाद वेदो आई तो अपने बापूजी को खेतों में काम करते देख कर वहीं रुक गई. सामान सड़क पर ही रख कर बापूजी के पास आ गई. दोनों ने एकदूसरे को देखा और गले लग कर खूब रोए. आसमान की ओर देखा तो वह भी आंसू टपका रहा था. उन के मिलन से वह भी अपना मन हलका कर रहा था.

बहुत देर रोने के बाद वेदो के बापू ने कहा, ‘‘पुत्तर, तू आ गई ऐ है न. मैं जी जाऊंगा. तै नू मैं इक हफ्ते में ठीक कर देना है. कुछ दिन रहेगी न?’’
‘‘हां बापूजी, मैं इक महीने वास्ते आई हां.’’
बापूजी ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘चंगा, अब घर जा. कुछ नईं करना. आराम करना, सामान मजदूर लै आनगे.’’

मैं फिर सोच में डूब गया. ये सारे दुख नारी के हिस्से में क्यों हैं? वह औफिस में काम करती है तो उसे अपने पति की चिंता रहती है, ‘हाय, वे थकटूट के औफिस से आएंगे, इन्हें कुछ खाने को मिला होगा या नहीं. इन्हें बनाना भी तो नहीं आता. सास ने मेरे बच्चे को दूध दिया होगा या नहीं? सास, बीमारी का बहाना बना कर बिस्तर पर पसरी होगी. बच्चा रोरो कर हैरान हो रहा होगा. ऐसी चिंताओं से वह स्वयं को हलाल कर रही होती है. चाहे उस के बच्चे का और पति का खूब खयाल रखा जा रहा हो.

नारी चाहे बूढ़ी हो जाए वह अपना कर्तव्य निभाने में कभी पीछे नहीं हटती. वह बीमार होते सारे काम कर जाती है पर इस सोच का क्या किया जाए जो उसे चिंतामुक्त नहीं होने देती? समांतर रेखाएं कभी नहीं मिलतीं. सासबहू, ननदभाभी ऐसी रेखाएं हैं जो जीवनभर एकदूसरे की विरोधी रहती हैं वेदो की सास जैसी लड़ाकी औरतें तो बहुओं का जीना मुहाल कर देती हैं. वेदो का इस तरह सूख कर कांटा हो जाना इसी का परिणाम है. नारी नारी की दुश्मन होती है, यह भी सत्य है.

मैं जाने कब तक सोच में डूबा रहता, चंपा ने नाश्ता रखा तो मैं होश में आया. एक महीने बाद वेदो अपनी ससुराल गई तो वह बचपन की तरह बहुत प्यारी लग रही थी. मैं ने उस से कहा, ‘‘ऐसी ही बनी रहना.’’ वह मुसकराई और चली गई. वह मुझे जवानी के प्यार के लम्हों का एहसास दे गई.  Romantic Story In Hindi 

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