Narendra Modi : दिल्ली हाई कोर्ट ने 25 अगस्त 2025 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्नातक डिग्री से संबंधित जानकारी सार्वजनिक करने के केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) के आदेश को रद्द कर दिया. कोर्ट ने कहा कि शैक्षणिक डिग्री जैसी व्यक्तिगत जानकारी को (बिना जनहित आधार के) सार्वजनिक नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने इस के लिए आरटीआई एक्ट 2023 की धारा 8(1)(जे) का हवाला दिया.

मामले की शुरुआत हुई 2016 में जब सीआईसी ने 1978 में बीए पास करने वाले छात्रों के रिकौर्ड के जांच की अनुमति दी थी जिस में पीएम मोदी भी शामिल थे. सीआईसी को दिल्ली यूनिवर्सिटी ने कोर्ट में घसीटा और हाईकोर्ट ने यूनिवर्सिटी के पक्ष में फैसला सुनाया, यह कहते हुए कि निजता का अधिकार प्राथमिकता रखता है और निजता पूर्ण जानकारी को ‘अजनबियों’ के लिए खुलासा नहीं किया जा सकता.

इतना ही नहीं गुजरात हाई कोर्ट ने 2023 में पीएम मोदी की एमए डिग्री की जानकारी मांगने पर अरविंद केजरीवाल पर 25,000 रुपए का जुर्माना लगाया था और सीआईसी के आदेश को खारिज कर दिया था, जिस में डिग्री सार्वजनिक करने को कहा गया था.

हैरानी की बात तो यह है कि प्रधानमंत्री की डिग्री को जिस डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 के जरिए दिखाने से रोका गया, वह अभी तक लागू ही नहीं हुआ है. अदालत ने प्रधानमंत्री की डिग्री को सार्वजनिक करने से इनकार करते हुए डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन (डीपीडीपी) एक्ट, 2023 का हवाला दिया वह कानून जो अभी तक अधिसूचित भी नहीं हुआ है. सोचिए, जो कानून लागू भी नहीं है, उस की परछाई भी इतनी ताकतवर हो गई कि पारदर्शिता की मांग दबा दी गई.

यह फैसला साफ चेतावनी है कि डीपीडीपी एक्ट आरटीआई की रीढ़ तोड़ने के लिए तैयार बैठा है. धारा 44(3) सीधे आरटीआई एक्ट की धारा 8(1)(जे) पर हमला करती है और ‘सभी व्यक्तिगत जानकारी’ को जनता की नज़रों से छिपा देती है. इस का मतलब है कि कोई भी सत्ताधारी अपने हर निजी तथ्य को निजी जानकारी कह कर बच निकल सकता है.

गजब का लोकतंत्र चल रहा है जहां देश के प्रधानमंत्री की डिग्री जानने का हक देश के नागरिकों को नहीं है.  Narendra Modi 

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