New Education Bill : अन्ना आंदोलन से सत्ता में आई आम आदमी पार्टी के पास अपनी कोई विचारधारा नहीं थी इसलिए आप ने भ्रष्टाचार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों को आधार बनाया और लगातार 2024 तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज रहे लेकिन 2024 के विधानसभा चुनावों में आप की सत्ता चली गई. दिल्ली में 28 वर्षों के बाद बीजेपी सत्ता में आई है.
दिल्ली की जनता आम राज्यों से थोड़ी अलग है. बीजेपी शाषित दूसरे राज्यों में जहां बीजेपी के लिए शिक्षा जैसे मुद्दे गैरजरुरी होते हैं वहीं दिल्ली में बीजेपी शिक्षा पर नीतियां बना रही है. इस की वजह है. आप सरकार में शिक्षा मंत्री रहते हुए मनीष सिसोदिया ने दिल्ली में शिक्षा व्यवस्था और सरकारी स्कूलों में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए. मनीष सिसोदिया ने प्राइवेट स्कूलों में फीस वृद्धि को नियंत्रित करने के लिए सख्त दिशानिर्देश जारी किए. अनधिकृत फीस वृद्धि के खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए एक समिति का गठन किया और कई स्कूलों पर अनियमितताओं के लिए कार्रवाई की.
दिल्ली की बीजेपी सरकार की मजबूरी है कि वह दिल्ली में शिक्षा पर बात करे और शिक्षा से संबंधित कुछ ऐसी नीतियां बनाए जिस से पिछली आप सरकार के प्रयासों को टक्कर दिया जा सके.
दिल्ली की बीजेपी सरकार के शिक्षा मंत्री अशीष सूद ने सोमवार को विधानसभा में दिल्ली स्कूल शिक्षा (शुल्क निर्धारण एवं विनियमन में पारदर्शिता) विधेयक, 2025 पेश किया. इस बिल के मुताबिक, निजी स्कूल 3 वर्ष में एक बार ही फीस बढ़ा सकेंगे. इस नए विधेयक में फीस तय करने में स्कूल प्रबंधन के साथसाथ अभिभावकों की भी अहम भूमिका होगी.
दिल्ली स्कूल एजुकेशन (ट्रांसपेरेंसी इन फिक्सेशन एंड रेगुलेशन औफ फीस) बिल, 2025 के क्लोज 5 के मुताबिक किसी भी प्राइवेट स्कूल को फीस बढ़ाने के लिए स्कूल लेवल की 11 सदस्यों की समिति की मंजूरी लेनी होगी जिस में 5 अभिभावक होंगे, 1 चेयरमैन होगा जिसे स्कूल मैनेजमेंट तय करेगा, इन के अलावा इस कमेटी में प्रिंसिपल होगी, 3 टीचर होगी और 1 औब्जर्वर होगा.
इस में स्कूल प्रबंधन के अलावा शिक्षक और अभिभावक भी शामिल होंगे. अभिभावकों का चयन चुनाव के जरिए किया जाएगा.
स्कूल स्तर पर फैसला न होने पर मामला जिला स्तरीय समिति के पास जाएगा. इस में शामिल अधिकारियों, स्कूल, अभिभावकों की रजामंदी से फीस तय होगी.
जिला स्तर पर भी अगर फीस बढ़ोतरी को ले कर फैसला नहीं हो पाता है तो फिर राज्य स्तरीय समिति इस पर अंतिम फैसला करेगी.
इस बिल का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि 15 फीसदी अभिभावकों की सहमति के बाद ही फीस बढ़ोतरी की शिकायत पर कार्रवाई होगी.
● 03 साल में सिर्फ एक बार फीस बढ़ोतरी कर सकेंगे स्कूल
● 50 हजार रुपए प्रति छात्र मुआवजा देना होगा, फीस के नाम पर अपमानित या नाम काटने पर
फीस बढ़ोतरी को ले कर स्कूल यदि सरकार का आदेश नहीं मानते हैं तो उन पर एक लाख से 10 लाख रुपए तक जुर्माना लगेगा. दोबारा गलती करने पर यह जुर्माना दोगुना हो जाएगा. नियमों का बारबार उल्लंघन करने पर स्कूल की मान्यता रद्द की जा सकती है या सरकार उस स्कूल का नियंत्रण भी ले सकती है.
प्राइवेट स्कूलों को ले कर आम आदमी में पहले से ही बहुत सी धारणाएं बैठी हुई हैं. प्राइवेट स्कूल लूटते हैं. मोटी फीस वसूलते हैं और कई बच्चोँ को फीस समय पर न देने की वजह से स्कूल से निकाल देते हैं. कुछ प्राइवेट स्कूलों का रवैया ऐसा होता भी है जिस से लोगों की यह धारणा मजबूत होती है लेकिन प्राइवेट स्कूलों की भी अपनी मजबूरियां होती हैं. प्राइवेट स्कूल सिर्फ समाज सेवा के लिए नहीं होते. इन्हें मैनेजमेंट से ले कर स्कूल के स्टाफ और दूसरे खर्चे भी पूरे करने होते हैं और मुनाफा भी बनाना होता है. इस के लिए इन स्कूलों को फीस में थोड़ी बहुत बढ़ोतरी करनी पड़ती है. इस में गलत कुछ नहीं है लेकिन ज्यादा मुनाफे के चक्कर में फीस में लगातार बढ़ोतरी करते जाना उचित नहीं है. इस से अभिभावकों की परेशानियां बढ़ती हैं. इसी समस्या पर नियंत्रण के लिए यह बिल जरुरी हो जाता है लेकिन इस बिल से प्राइवेट स्कूलों की मनमानी रुकेगी इस बात की गारंटी नहीं है.
अभिभावकों को खुश करने के लिए सरकारें इन निजी स्कूलों को लेकर जब तब तुगलकी फरमान जारी करती रहती है. सरकार को यदि सच में अभिभावकों की चिंता है तो वह सरकारी स्कूलों पर ध्यान क्यों नहीं देती? प्राइवेट स्कूलों की फीस बढ़ोतरी में पूरा मामला डिमांड और सप्लाई का है. हर अभिभावक अपने बच्चे को प्राइवेट स्कूल में ही पढ़ाना चाहता है. इस से प्राइवेट स्कूलों पर बोझ बढ़ता है और वो इस समस्या से निपटने के लिए फीस बढ़ोतरी का रास्ता अपनाते हैं.
सवाल यह है कि अभिभावकों को अपने बच्चों के लिए प्राइवेट स्कूल ही क्यों चाहिए? लोगों का मानना होता है कि सरकारी स्कूलों की हालत खस्ता है. वहां पढ़ाई नहीं होती लेकिन सरकारी स्कूलों की इस बदहाली को सुधारने की जिम्मेदारी किस की है? पिछली सरकार ने सरकारी स्कूलों की गुड़वत्ता को सुधारने के लिए काफ़ी प्रयास किए थे लेकिन बीजेपी सरकार के सत्ता में आते ही वो सारे प्रयास ठंडे बसते में चले गए क्योंकि बीजेपी के लिए शिक्षा कभी जरूरी मुद्दा नहीं रहा. इसी बीजेपी सरकार ने यूपी में 5 हजार सरकारी स्कूलों को बंद कर दिया. प्राइवेट स्कूलों में फीस वृद्धि को रोकने के लिए लाया गया बिल केवल जनता को खुश करने का एक प्रयास ही है.
इस बिल के अनुसार प्राइवेट स्कूलों की मनमानी फीस बढ़ोतरी को रोकने के लिए स्कूल लेवल की 11 सदस्यों की समिति की मंजूरी लेने की जरूरत होगी. इस कमेटी में 5 अभिभावक भी होंगे 1 चेयरमैन होगा जिसे स्कूल मैनेजमेंट तय करेगा, इन के अलावा इस कमेटी में प्रिंसिपल होगी, 3 टीचर होगी और 1 औब्जर्वर होगा.
बिल का यह मसौदा देखने में क्रांतिकारी लग सकता है लेकिन यह कौन तय करेगा की स्कूल लेवल की यह कमेटी पूरी तरह निष्पक्षता से फैसला करेगी? जब विधायक और सांसद बेचे खरीदे जा सकते हैं तो स्कूल के इन सदस्यों की ईमानदारी की गारंटी कौन तय करेगा? New Education Bill