Hindi Satire : मूंछें अब मर्द की नहीं, घर की प्रौपर्टी बन चुकी हैं. इन पर ताव देने से पहले, बीवी के भाव जान लेना जरूरी है वरना कहीं ऐसा न हो कि मूंछों के चक्कर में आप का खाना, बरतन और बिस्तर-तीनों ड्राइंगरूम के सोफे पर चले जाएं.

कुछ सालों पहले एक वाक्य बहुत ही चर्चित हुआ था कि मूंछें हों तो नत्थूलाल जैसी. भई, कसम से हम ने तो आज तक न नत्थूलालजी को देखा न उन की मूंछों को. लेकिन आज हम जिन मूंछों की कथा आप को सुनाने जा रहे हैं, कसम से आप को बहुत ही आनंद आने वाला है.

आज हम किस्सा सुना रहे हैं अपने पड़ोसी शर्माजी की मूंछों का जो हम ने कड़कड़ाती ठंड में अपनी बालकनी में चाय पीते हुए सुना. अब क्या करें हमारी बालकनी व उन के बैडरूम की दीवारें लगी हुई हैं. सो, जब भी जोर से बातचीत होती है, हमारे कानों में, चाहे न चाहे, पड़ ही जाती है.

औफिस से आ कर जैसे ही हमें अपने पड़ोसी शर्माजी के घर से ऊंची आवाजें सुनाई दीं, हमारे दोनों कान एकदम से खड़े हो गए. अरे, ऐसा भला क्या हो गया जो शर्माइन इतने ऊंचे स्वर में शर्माजी को डांट रही हैं. फ्लैट में रहने का और कोई सुख हो न हो, एक बहुत बड़ा सुख यह है कि पड़ोस के घर की आवाजें चाहेअनचाहे सुनाई पड़ ही जाती हैं. वह क्या है कि दो ही स्थितियों में इंसान का स्वर ऊंचा हो जाता है- मौका गुस्से का हो या खुशी का. आवाजों की उठापटक से तो लग रहा है कि मौका गुस्से का ही है. हमारे खुराफाती दिमाग में विचारों की उछलकूद चलने लगी कि आखिर माजरा क्या है जो मिसेज शर्मा इतने गुस्से में जोरजोर से बोल रही हैं.

हम अपना चाय का कप ले कर जैसे ही बालकनी की तरफ जाने लगे, हमारी मिसेज ने टोका, ‘‘पगला गए हैं क्या जो इतनी ठंड में बालकनी में चाय पीने जा रहे हैं.’’ अब हम उन को कैसे समझाएं कि चाय की चुस्की के साथ यदि पड़ोसी की चटपटी खबर कानों में पड़ जाए तो चाय बिना चीनी के ही मीठी लगने लगती है, ऐसे में क्या सर्दी क्या गरमी.

लेकिन श्रीमतीजी से यह खुलासा भी नहीं कर सकते थे कि हम तो पड़ोस के शर्माजी के घर से आती ऊंची आवाजों का जायजा लेने को बालकनी में जा रहे हैं क्योंकि यदि उन्हें सच्चाई बताएं तो तुरंत कहेंगी कि छिछि, ऐसी ओछी हरकत करते शर्म नहीं आती आप को परंतु इस समय इन बातों में समय बरबाद न कर हम शर्माजी के बैडरूम की तरफ कान लगा कर चाय पीने लगे.

अधिक कुछ तो पल्ले नहीं पड़ा, परंतु मिसेज शर्मा बारबार मूंछ शब्द का प्रयोग कर रही थीं- ‘अरे, तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मूंछ मुंड़वाने की. यू नो ये मूंछें तो मर्दों की आनबानशान होती हैं. यही मूंछें तो मर्दानगी की निशानी हैं. बिना मूंछ का आदमी भी कोई आदमी होता है.’ अनायास ही हमारा हाथ अपने चेहरे की तरफ चला गया, अरे, हमारी तो मूंछें हैं ही नहीं तो क्या हम आदमी नहीं हैं. फिर सोचा, मिसेज शर्मा कोई लाटगर्वनर थोड़े ही हैं जो यह तय करेंगी कि कौन आदमी कहलाने लायक है और कौन नहीं.

परंतु बात तो शर्माजी की मूंछों की हो रही थी, काफी देर कान लगा कर बस इतना सुनने में आया कि शर्माजी आज औफिस से आते समय अपनी मूंछें मुंड़वा आए थे. अब इस को शर्माजी के मन का वहम कहें या प्रमोशन न होने का दुख, क्योंकि आज औफिस में प्रमोशन की जो लिस्ट डिक्लेयर हुई थी, वे सब के सब बिना मूंछों वाले थे. सो, शर्माजी के दिमाग में आया कि कहीं ये मुई मूंछें ही तो उन के प्रमोशन में बाधा नहीं डाल रहीं.

उधर मिसेज शर्मा के आंसुओं की गंगाजमुना बहती जा रही थी. ‘अब तुम मेरे पापा के सामने क्या मुंह ले कर जाओगे. तुम्हारी इन्हीं मूंछों पर फिदा हो कर तो पापा ने मेरा हाथ तुम्हारे हाथ में दिया था. मुंछमुंडा लोगों से तो पापा को बहुत चिढ़ है. पता नहीं तुम्हें देख कर कैसे रिऐक्ट करेंगे. पापा का गुस्सा तो तुम जानते ही हो, बातबात पर बंदूक तान लेते हैं, फौजी जो रह चुके हैं. कहीं तुम्हारे साथ भी यही सुलूक…’

अब शर्माजी बेचारे पसोपेश में हैं कि अपने प्रमोशन को अधिक तवज्जुह दें या ससुरजी के गुस्से को.

मुई मूंछें हुईं न जी का जंजाल. वैसे, देखा जाए तो मूंछों का इतिहास उतना ही पुराना है जितना इंसान के जन्म का. जितनी तरह के इंसान उतनी तरह की मूंछें हैं. किसी की नुकीली हैं तो किसी की कंटीली. किसी की तलवारकट हैं तो किसी की राजसी. किसी की तितली छाप हैं तो किसी की झबरीले कुत्ते की पूंछ जैसी. किसी की छोटी हैं तो किसी की लंबी.

आजकल तो देशविदेश में मूंछों की अजीबोगरीब प्रतियोगिताएं भी होने लगी हैं. वर्ष 2021 में जरमनी में मूंछ प्रतियोगिता का आयोजन हुआ. उस में भाग लेने नीदरलैंड, इटली, स्विट्जरलैंड, आस्ट्रिया तक के लोग पहुंचे थे. उस प्रतियोगिता में जिन लोगों ने भाग लिया था उन का अपनी मूंछों के साथ प्रयोग काबिलेतारीफ था. बाकायदा सात जजों के पैनल ने इस का फैसला कर के दो लोगों को विजयी घोषित किया था. लोगों ने अपनी मूंछों के साथ अजीबोगरीब डिजाइन बनाए थे.

मूंछों के संदर्भ में याद आया कि हमारी दादी के चचिया ससुर की मूंछें तो पूरे 10 फुट लंबी थीं. सो, वे दोनों तरफ इन की चोटी बना कर, फिर इस का जूड़ा बना कर रखते थे. जब भी किसी शादीब्याह में जाना होता तो सब के आकर्षण का केंद्र तो बनते ही, साथ ही, अपनी मूंछों की खूब आवभगत करवाते.

मूंछें तो हमारे ससुरजी की भी खूब लंबी थीं. वे भी अपनी मूंछों का बहुत खयाल रखते, उन पर तेल चुपड़ कर हर रोज उन की कंघी करते. जब दूध पीते तो पूरी की पूरी दूध की मलाई उन की मूंछों में लग जाती. इतना ही नहीं, जब कुल्ला करते तो उन की मूंछें कथकली की तरह डांस करती प्रतीत होतीं.

विसर, इतिहास गवाह है कि बिना मूंछों का आज तक कोई राजा नहीं हुआ. अकबर अपनी मूंछों के कारण ही महान कहलाया. महाराणा प्रताप भी घास की रोटी खाते थे लेकिन अपनी मूंछों पर कभी आंच नहीं आने दी.

मूंछों पर मुहावरे भी क्या खूब बने हैं- मूंछों पर ताव देना, मूंछ का बाल बांका न होने देना, मूंछ मुंड़वाना व मूंछ नीची न होने देना आदिआदि.

आजकल कुछ सर्वे भी हुए हैं कि मूंछ वाले मर्दों को औरतें पसंद नहीं करतीं. सर्वे के पीछे किस का हाथ है, कौन जाने. लेकिन इतना तो तय है कि मूंछें होती हैं बहुत महत्त्वपूर्ण. कौन जाने भविष्य में कोई ऐसा कानून बन जाए कि मूंछें रखना जरूरी हो.

वैसे, इन्हीं मूंछों से कई लोगों को बड़ेबडे कारनामे करते भी देखा है. एक सज्जन तो अपनी लंबी मूंछों से ट्रक खींच कर लोगों का मनोरंजन करते हैं और एक दूसरे सज्जन अपनी मूंछों से तरहतरह के डांस कर के दिखाते हैं. तो हुईं न मूंछें महत्त्वपूर्ण.

मुद्दा यह है कि मूंछें तो आप की अपनी अमानत हैं, आप जैसे चाहें उन का उपयोग करें. फिर है भी तो ये घर की खेती. जब मन करे मूंछें बढ़ा लो, जब मन करे कटवा लो. लेकिन ऐसा करने से पहले अपनी श्रीमतीजी की परमिशन जरूर ले लीजिए. यदि वे आप के मूंछ मुंड़वाने से रूठ कर मायके चली गईं तो कहीं लेने के देने न पड़ जाएं.

लेखिका : माधुरी

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