Social Media : भारतीयों का सोशल मीडिया पर स्पैम टाइम काफी बढ़ गया है. इस का इलाज तो है कि डिजिटल डिटौक्स कर लिया जाए मगर इस से भी खतरनाक है इन्हीं युवाओं में धार्मिक यात्राओं का बढ़ता चलन. यह न सिर्फ समय व पैसा बरबाद कर रहा है बल्कि दिमाग को कुंद भी कर रहा है.

भारत में 491 मिलियन यानी 49 करोड़ से अधिक लोग सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं. शहर ही नहीं, गांव के लोग भी इस में सक्रिय भूमिका अदा कर रहे हैं. सोशल मीडिया में सब से ज्यादा प्रयोग फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब का किया जाता है. राजनीतिक लोग ट्विटर, जो अब एक्स के नाम से जाना जाता है, का उपयोग करते हैं. 68 फीसदी पुरुष और 32 फीसदी महिलाएं इस का प्रयोग करती हैं.

हर भारतीय के हिसाब से देखा जाए तो वह प्रतिदिन 2 घंटा 26 मिनट सोशल मीडिया पर गुजारता है. युवा लड़केलड़कियां सब से ज्यादा इस का प्रयोग कर रहे हैं. सोशल मीडिया के बढ़ते प्रयोग को कम करने के लिए अलगअलग तरह के प्रयास भी तेज हो गए हैं.

आजकल एक नया ट्रैंड चला है कि सोशल मीडिया से दूरी कैसे बनाई जाए. इस के लिए डिजिटल डिटौक्स अपनाने पर जोर दिया जा रहा है. चर्चा इस बात की हो रही है कि सोशल मीडिया लोगों का समय खराब कर रहा है. इस वजह से देश का युवावर्ग और बाकी लोग देश की प्रगति में हिस्सेदारी नहीं निभा पा रहे. सोशल मीडिया पर कौन कितना समय बिता रहा है, इस बात की गणना करने के लिए मोबाइल ऐप्स आ गए हैं. ये मोबाइल में डाउनलोड किए जा सकते हैं. इस के बाद मोबाइल यह बता देगा कि हम स्क्रीन पर कितना समय बिता रहे हैं.

ऐप यह भी बताता है कि हमें मोबाइल पर कितना समय बिताना चाहिए. इस में सिक्योरिटी का भी फीचर होता है. अगर उस को मोबाइल पर ऐक्टिव कर दिया जाए तो दी गई समयसीमा के बाद ऐप मोबाइल पर सोशल मीडिया अकाउंट को बंद कर देता है. अब इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि सप्ताह में कम से कम 48 घंटे सोशल मीडिया से दूर रहा जाए. इस को ही डिजिटल डिटौक्स कहा जाता है. मनोविज्ञानी सेहत के लिए इस को बेहद जरूरी बता रहे हैं.

डिजिटल डिटौक्स के लिए कई मोबाइलों में ऐप को डाउनलोड करने की भी जरूरत नहीं होती. उन में ये फीचर्स इनबिल्ट होते हैं. अगर मोबाइल यह बताता है कि स्क्रीन पर समय अधिक बिता रहे हैं तो वह यह सु?ाव देता है कि अधिक से अधिक कितना समय सोशल मीडिया पर या मोबाइल पर दे सकते हैं. मनोविज्ञानी भी कहते हैं कि सोशल मीडिया पर ज्यादा समय देने से कितना नुकसान होने लगा है.

क्या होता है डिजिटल डिटौक्स

डिजिटल डिटौक्स का मतलब कुछ समय के लिए स्मार्टफोन, कंप्यूटर और सोशल मीडिया से दूरी बनाए रखना होता है जिस से कि आप अपनी स्क्रीन की लत से छुटकारा पा सकें और वास्तविक दुनिया से जुड़ सकें. इस के कई लाभ बताए जाते हैं. डिजिटल डिटौक्स से तनाव और चिंता कम हो सकती है. स्क्रीन से दूर रहने से अच्छी नींद आने लगती है. ब्लू स्क्रीन अच्छी नींद में बाधा डालती है.

डिजिटल डिटौक्स का एक लाभ यह भी बताया जाता है कि इस से ऐक्सरसाइज के लिए अधिक समय निकाल सकते हैं, जिस से शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर हो सकता है. डिजिटल डिटौक्स से रिलेशन को मजबूत करने के लिए आपस में बातचीत करने का समय निकाला जा सकता है. इस से आपस में बातचीत कर सकते हैं. किताबें पढ़ सकते हैं, जो समाज से जोड़ने का काम करती हैं व विचारों को मजबूत करती हैं, साथ ही, तर्कशक्ति का विस्तार करती हैं. बचे हुए समय में अपने अंदर स्किल का विकास कर सकते हैं.

जानकार लोग राय देते हैं कि सप्ताह में एक से दो दिन डिजिटल डिटौक्स करें. इस से लाभ होगा. यह बात सच है कि सोशल मीडिया में लोग अपना बहुत सारा समय गुजार रहे हैं. ऐसे में उस से दूरी बेहद जरूरी हो गई है.

सोशल मीडिया से भी अधिक घातक तीर्थयात्राएं हो गई हैं जिन में लाखों युवा अपना समय नष्ट कर रहे हैं. जैसे सोशल मीडिया से दूरी के लिए डिजिटल डिटौक्स जरूरी है वैसे ही तीर्थयात्राओं से युवाओं को दूर रखने की जरूरत है. तीर्थयात्राओं के चलते युवाओं में स्किल डैवलपमैंट नहीं हो पा रहा. वे केवल कांवड़ यात्राओं तक सीमित हुए जा रहे हैं. सरकार भी जनता के टैक्स का पैसा तीर्थयात्राओं की व्यवस्था पर खर्च कर रही है जोकि गलत है.

तीर्थयात्राओं से कैसे बचेंगे

डिजिटल डिटौक्स के जरिए सोशल मीडिया से तो बच जाएंगे लेकिन तीर्थयात्राओं में समय बरबाद करने से कैसे बचेंगे? लोग मानते हैं कि तीर्थयात्राएं करने से पुण्य मिलता है, जिस से भविष्य निखरता है. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि पौराणिक कथाओं में यह सम?ाया जाता रहा है कि ‘अजगर करें न चाकरी, पंच्छी करे न काम, दास मलूका कह गए सब के दाता राम’. इस के कारण जब सोशल मीडिया का दौर नहीं था तब भी लोग खाली समय पास करने के लिए चौपालों पर हुक्का गुड़गुड़ाते समय पास करते रहते थे. इस के अलावा तीर्थयात्राएं करने चले जाते थे.

कईकई माह की तीर्थयात्राएं लोग करते थे. यह दौर आज भी चल रहा है. सोशल मीडिया पर अपना समय बरबाद न करने के लिए डिजिटल डिटौक्स तो हम करने की वकालत करने लगे हैं लेकिन जो समय तीर्थयात्राओं पर खर्च हो रहा है उस का क्या होगा? तीर्थयात्राओं पर केवल अपनी ही जेब का पैसा खर्च नहीं होता बल्कि देश और समाज का वह पैसा भी खर्च होता है जो टैक्स के रूप में सरकार को दिया जाता है. टैक्स लेते समय सरकार यह दावा करती है कि इस पैसे से वह देशप्रदेश और शहर का विकास करेगी. असल में सरकार इस पैसे से जनता को तीर्थयात्राएं भी कराती है. उस के लिए सड़कें और मंदिर बनवाती है. अगर कोई दुर्घटना हो जाए तो उस का मुआवजा भी देती है. इस के बदले वह जनता से वोट लेती है.

कितनी खर्चीली हैं यात्राएं

दिल्ली में बुजुर्गों को तीर्थयात्रा करवाने के लिए दिल्ली सरकार की मुख्यमंत्री तीर्थयात्रा योजना लागू है जिस का लाभ हर साल हजारों लोग ले रहे हैं. चारधाम, वैष्णो देवी, अयोध्या, प्रयागराज, अजमेर शरीफ जैसे कई तीर्थस्थलों की यात्रा कराई जाती हैं. मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना का लाभ अब तक 87,000 से ज्यादा लोग उठा चुके हैं. 2019 से शुरू हुई इस योजना में अब तक 90 से ज्यादा यात्राएं कराई जा चुकी हैं. हर विधानसभा से साल में 1,100 लोग इस योजना का लाभ उठा सकते हैं. पूरी दिल्ली से हर साल 77,000 लोग सरकार के खर्च पर प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों पर जा सकते हैं.

उत्तराखंड में गढ़वाल मंडल विकास निगम (जीएमवीएन) की ओर से जारी टूर पैकेज के अनुसार चारधाम की यात्रा के लिए प्रति यात्री 22 से 55 हजार रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं. इस टूर पैकेज में हरिद्वार, ऋषिकेश और देहरादून से चारधाम की यात्रा के लिए टिकट औनलाइन बुक कराए जाते हैं. जीएमवीएन की ओर से चारधाम यात्रा में यात्रियों के खानेपीने व रहने के भी इंतजाम किए जाते हैं. जीएमवीएन ने नौन एसी बस, टैंपो ट्रैवलर, एसी इनोवा और नौन एसी कैब से चारधाम के लिए 14 टूर पैकेज जारी किए हैं. इन पैकेज में चारधामों के अलावा केदारनाथ और बद्रीनाथ की अलग से भी यात्रा कर सकते हैं. 6 से 11 दिनों के भीतर यह यात्रा पूरी होती है.

नौन एसी बस से चारधाम यात्रा करने पर 22 से 38 हजार रुपए तक खर्च करने होंगे जबकि एसी इनोवा से यात्रा करने में 35 से 55 हजार रुपए तक यात्राखर्च बैठेगा. चारधाम के लिए यात्रा मई, जून, सितंबर और अक्तूबर तक होती है.

10 दिनों की यात्रा में प्रति वयस्क 35,040 रुपए, प्रति बच्चा 33,540 रुपए और प्रति वृद्ध 32,790 रुपए खर्च करने पड़ते हैं. एसी इनोवा से चारधाम यात्रा करने में 54 हजार रुपए से अधिक खर्च होगा. दूसरी यात्राओं पर भी इसी तरह से खर्च करना होता है.

इसी तरह से कैलाश मानसरोवर यात्रा में औसतन खर्च 1 लाख 75 हजार से ले कर 2 लाख 83 हजार रुपए तक होता है. कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए सरकार की ओर से सब्सिडी भी मिलती है.

50-50 के 5 जत्थे उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे की तरफ से और 50-50 के 10 जत्थे सिक्किम के नाथुला दर्रे से रवाना होते हैं. उत्तराखंड के रूट से जाने के लिए पहले 5,000 रुपए जमा कराने होते हैं. लिस्ट में नाम आते ही 51,000 रुपए जमा कराने होते हैं. मैडिकल खर्च के लिए 8,000 रुपए देने पड़ते हैं.

चाइनीज वीजा के लिए 2,400 रुपए अलग से चुकाने होते हैं. साथ ही, 4,000 रुपए अलग खर्चों के लिए होते हैं. तिब्बत प्रशासन को 1,200 डौलर देने होंगे. सिक्किम वाला रूट उत्तराखंड की तुलना में ज्यादा महंगा होता है. 5,000 रुपए एडवांस के अलावा आप को 35,000 रुपए और देने होते हैं. इस के बाद 20,000 रुपए की दिल्ली-बागडोगरा के बीच रिटर्न फ्लाइट के देने पड़ते हैं. यहां भी 8,000 रुपए मैडिकल, 2,400 रुपए चाइनीज वीजा के लिए खर्च होते हैं. 4,000 रुपए अन्य खर्चों के लिए लिए जाते हैं. तिब्बत प्रशासन को इस रूट के लिए 2,400 डौलर यानी 2 लाख रुपए से ज्यादा देने होते हैं.

मिलता है सरकारी प्रोत्साहन

कुछ राज्य सरकारें कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए सब्सिडी देती हैं. उत्तर प्रदेश सरकार एक लाख की सब्सिडी देती है. हरियाणा सरकार 50,000 रुपए की सब्सिडी देती है. इसी तरह से उत्तराखंड सरकार 30,000 रुपए की सब्सिडी देती है. यानी सरकारें जो पैसा विकास के लिए टैक्स के रूप जनता से लेती हैं उसे इस तरह से धार्मिक यात्राओं पर खर्च करती हैं जिस के लिए वे जनता से कोई अनुमति नहीं लेती हैं. इस तरह की धार्मिक यात्राओं में युवा अपना समय और पैसा दोनों बरबाद करते हैं.

इसी तरह की कावंड़ यात्रा भी है. इस के लिए उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की कुछ सड़कों को बंद कर दिया जाता है. इस से जनता को बेहद नुकसान होता है. दिल्ली सरकार ने कांवडि़यों के लिए 10 लाख रुपए देने का ऐलान किया है. दिल्ली की 200 से ज्यादा कांवड़ सेवा समितियों को 50 हजार से 10 लाख रुपए अनुदान दिया जाएगा. मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि वे चाहती हैं कि कांवडि़यों को दिल्ली में एक पत्थर तक न चुभे. दिल्ली में कांवड़ियों की 180 समितियां रजिस्टर्ड हैं. मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने कहा कि 50 फीसदी पैसा पहले और बाकी पैसा खर्चे का ब्योरा आ जाने के बाद दिया जाएगा.

उत्तर प्रदेश सरकार भी कांवड़ यात्रा के लिए अलग इंतजाम करती है. कांवडि़यों के ऊपर हैलिकौप्टर से फूल बरसाए जाते हैं. इस का खर्च करोड़ों में आता है. उत्तराखंड की सरकार कांवड़ यात्रा पर

10 करोड़ रुपए खर्च कर रही है. कांवड़ यात्रा में हजारों युवा हिस्सा ले कर अपना समय बरबाद करते हैं. सोशल मीडिया पर केवल लोग अपना पैसा बरबाद करते हैं लेकिन तीर्थयात्राओं पर अपना समय और पैसे के साथ ही साथ वे जनता का पैसा भी बरबाद करते हैं जो टैक्स के रूप में सरकार वसूल करती है.

सोशल मीडिया की लत को डिजिटल डिटौक्स के जरिए सुधारा जा सकता है लेकिन पौराणिक कथाओं में तीर्थयात्रा के महत्त्व को जिस तरह से बता कर जनता को गुमराह किया जाता है उस की लत को कैसे छुड़ाएंगे, यह सोचने वाली बात है.

जब तक इस में सुधार नहीं होगा, युवाओं की ताकत केवल जयकारा लगाने तक सीमित रह जाएगी. वे कोई रचनात्मक काम नहीं कर पाएंगे. युवा आज इजराइल जैसे देशों में नौकरी करने इसलिए जाते हैं क्योंकि अपने देश में उन को नौकरी नहीं मिलती है. पिछले दिनों अमेरिका ने जिस तरह से भारत के लोगों के हाथपैर बांध कर भेजा वह राष्ट्रीय शर्म जैसा था. इस की वजह यह है कि युवाओं में स्किल डैवलपमैंट नहीं हो रहा है.

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