Modern Mother : अस्पताल में, चाय पर डाक्टरों में ममता पर चर्चा चल रही थी. मुंबई की आधुनिक मां की ममता को एक विकृत बच्चे को जन्म देना गवारा न था. जांच करवाई थी, बच्चे में कुछ विकृति थी. डाक्टर ने गर्भपात से मना कर दिया. कारण, गर्भ 20 सप्ताह पार कर चुका था, मान्य कानूनी सीमा पार.
महिला ने उच्च न्यायालय में गुहार लगाई कि उसे एक विकृत बच्चे को जन्म देने और उस की परवरिश करने को बाध्य नहीं किया जा सकता, सो, गर्भ नष्ट करवाने की अनुमति दी जाए. मीडिया और महिला संगठनों की सहानभूति जागरूक मां के लिए थी.
न्यायालय के समक्ष सीमा से इतर प्रश्न था कि क्या विकृति ऐसी है कि जन्मा बच्चा सामान्य जीवन नहीं जी पाएगा और जीवित रहने के लिए भी उसे सदा किसी पर निर्भर रहना पड़ेगा? सो, वरिष्ठ चिकित्सकों से परीक्षण करवाया गया. बच्चे को हार्ट ब्लौक नामक हृदय की ऐसी विकृति थी जिस से हृदय गति सामान्य नहीं थी और जन्मोपरांत उसे पेसमेकर लगा कर ठीक करना होगा. उस के बाद बच्चा सामान्य जीवन जी सकेगा, पेसमेकर के साथ.
न्यायालय ने अर्जी नामंजूर कर दी. प्रश्न उठाया गया कि उस चिकित्सा का भार कौन वहन करेगा? मांबाप पर यह अनुचित भार था. न्यायालय से रिलीफ नहीं मिला. प्रकृति ने खुद मदद की, बच्चे की अस्पताल में ही गर्भ में मृत्यु हो गई.
दूसरी ओर उस गरीब मां की ममता जिस की प्यारी बच्ची के जन्म के समय से ही पेशाब की थैली बाहर खुली थी, पेशाब सतत बाहर बहता रहता. सरकारी अस्पताल के डाक्टर ने कहा, ‘बच्ची थोड़ी बड़ी हो जाए तभी कुछ करना संभव होगा.’
मां क्या करे, कैसे पाले इस बच्ची को? बहता पेशाब, गंध, पट्टी, रूई बांध कर रखा. बड़ी हुई. प्यारी, सुंदर, चंचल. बड़ा औपरेशन बताया गया, पर खर्चे की सामर्थ्य नहीं. स्कूल जाने लगी. पढऩे में अच्छी. शरीर से उठती हलकी सी गंध पर गांव के स्कूल में किसी ने ध्यान नहीं दिया. जब मासिकधर्म शुरू हुआ तो मांबाप को चिंता हुई. रुपयों का प्रबंध किया. औपरेशन के लिए सरकारी अस्पताल में ही आए. औपरेशन हुआ, गुरदे से पेशाब लाने वाली दोनों नलियों को थैली से काट कर बड़ी आंत में खोल दिया गया. पेशाब की थैली को हटा कर छेद बमुश्किल बंद कर दिया.
सरकारी अस्पताल के डाक्टरों के लिए इस तरह के मामले चैलेंज होते हैं. अब किशोरी नौर्मल थी. बस, हर कुछ घंटे बाद उसे टट्टी के रास्ते पेशाब करना होता था.
मां की ममता पूछने आई, ‘क्या विवाह कर दें?’ ‘हां, लेकिन लडक़े को सबकुछ बताने के बाद,’ डाक्टरों ने कहा. एक पांव से पोलियोग्रस्त शिक्षित युवक को ले कर उसी डाक्टर के पास आए. सब बताया, समझाया. विवाह हुआ. आशंकाभरे गर्भ, प्रसव. दो सुंदर स्वस्थ बच्चियों की मां बनी.
गर्व के साथ 6 और 4 साल की बच्चियों को ले कर दोनों उसी चिकित्सक के पास आए थे मां के बारबार होते संक्रमण से दोनों गुरदे क्षतिग्रस्त हो चुके थे उन्हीं के लिए परामर्श करने. न उस लडक़ी को अफसोस था, न पति को. बूढ़ी मां भी साथ थी, खुश थी कि बेटी नहीं रही तो क्या, नातिनें तो होंगी.