Behavior Changes : मेरी उम्र 33 साल है और मैं इन दिनों काफी अजीब महसूस कर रहा हूं. सोचने पर लगता है कि अच्छा बनना तो अच्छी बात है पर दिक्कत यह है कि अच्छे बनने में मुझे ही दिक्कत होने लगी है. मैं किसी को किसी काम के लिए मना नहीं कर पा रहा हूं. मैं हर किसी को खुश करने की कोशिश करता हूं लेकिन बदले में अकसर मैं ही थक जाता हूं.
जवाब : अगर आप हर वक्त दूसरों को खुश करने की कोशिश में खुद को नजरअंदाज कर रहे हैं तो हां, शायद आप ‘पीपल प्लेजर’ बनने लगे हैं. यह एक आदत है जो धीरेधीरे आप की मानसिक शांति छीन लेती है.
दूसरों की मदद करना अच्छी बात है, लेकिन अपनी सीमाओं को पहचानना भी उतना ही जरूरी है. कभीकभी हम ऐसी चीजों के लिए भी हां कह देते हैं जो हमारी क्षमताओं में नहीं होतीं और जब हम उन कामों को ले लेते हैं तो पूरा करने की जिम्मेदारी हमें एक बोझ लगने लगती है जो मानसिक तनाव पैदा करती है.
‘न’ कहना एक कला है. यह आप को खुद को सम्मान देने में मदद करता है. हर किसी को खुश करना न तो मुमकिन है और न ही यह आप की जिम्मेदारी है. हर कोई हर काम नहीं कर सकता है.
धीरेधीरे खुद को ट्रेन कीजिए, हर बार तुरंत ‘हां’ मत कहिए. थोड़ा रुक कर सोचिए, अपना आकलन कीजिए, समझिए कि आप के पास उस काम को करने के लिए पर्याप्त समय या क्षमता है या क्या आप सच में वह काम करना चाहते हैं? अगर नहीं, तो विनम्रता से मना करना सीखिए. मना करना गलत धारणा पैदा नहीं करता है. आप गिल्ट में भी मत जाइए. आप मना करने का अपना कारण स्पष्ट कीजिए फिर देखिए कि आप खुद को कितना फ्री महसूस करते हैं.
खुद की भावनाओं को प्राथमिकता दीजिए. आप तभी दूसरों के लिए कुछ अच्छा कर पाएंगे, जब पहले अपने लिए खड़े होंगे.
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