अचानक अखबार में छपे एक समाचार पर नजर पड़ी. खबर कुछ यों थी :

‘छंटनी के बाद नौकरी से निकाले गए कुछ सौफ्टवेयर इंजीनियर्स रात के समय लूट करते हुए पकड़े गए. जब पुलिस ने तहकीकात की तो पता चला कि नौकरी के दौरान जरूरत से ज्यादा ऋण लेने के कारण ईएमआई यानी मासिक किस्त चुकाने के लिए इन लोगों ने वारदात को अंजाम दिया.’

दरअसल, लोगों में अनावश्यक खरीदारी को ले कर रुझान बढ़ा है. जिस के चलते अन्य लोगों की देखादेखी घर में सामान का जमावड़ा लगा देते हैं. ऐसा क्यों होता है कि जब लोग बाजार में जाते हैं तो दिखाई दे रही हर वस्तु उन के लिए जरूरी लगने लगती है? इस के पीछे कौन सी मानसिकता काम करती है?

मशहूर लेखक डेल कारनेगी कहते हैं कि आदमी के अंदर बड़ा बनने की लालसा जन्मजात होती है. उन्होंने यह भी कहा है कि लालसा बहुत गहराई से आती है. और इसी का फायदा बाजार भी उठा रहा है.

एक मध्यवर्गीय परिवार में घर की अलमारी में कपड़ों का अंबार लगा रहता है. ऐसे भी कपड़े मिल जाएंगे जिन्हें साल में एक बार भी पहनने का मौका नहीं आया हो.

महिलाओं की बात तो पूछिए मत. वे अपने को महत्त्वपूर्ण दिखाने के लिए क्या कुछ नहीं करतीं. इस आलेख का उद्देश्य किसी के व्यक्तिगत शौक पर कटाक्ष करना नहीं है बल्कि यह बताना है कि खरीदारी करने से पहले अच्छे से विचार कर लें कि क्या वाकई आप को उस चीज की जरूरत है या किसी मित्र व रिश्तेदार को देख कर खरीद रहे हैं या फिर उन्हें नीचा दिखाने के लिए तो ऐसा नहीं कर रहे हैं. इस बात का भी ध्यान रखें कि इस खरीदारी से घर का बजट तो नहीं गड़बड़ाएगा जिस की कीमत परिवार को कष्ट उठा कर चुकानी पड़े. यदि जवाब ईमानदारी से आप के परिवार के पक्ष में जाता है तो आगे बढ़ें वरना रुक जाएं.

ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो महीने दो महीने में टैलीविजन, मोबाइल और गाड़ी बदलते हैं पर एक निश्चित आमदनी वाले को तो यह समझना ही पड़ेगा कि वह अपने बजट को न बिगाड़े. त्योहारों के समय तो कंपनियों द्वारा बड़ेबड़े इश्तिहार दे कर ग्राहकों को लुभाने की कोशिश की जाती है. इस चक्कर में पड़ कर कई लोग लंबी किस्तों के चक्कर में भी पड़ जाते हैं. यह आप को तय करना है कि इस झमेले में पड़ना है या नहीं. किसी भी किस्त के लंबे समय तक भुगतान का अंतिम कष्ट सिर्फ आप को ही सहन करना है.

घर के मुखिया को सारी बातें सोच कर निर्णय लेना चाहिए. हर दिन नएनए इलैक्ट्रौनिक उपकरण खरीदने से पहले अपनी जरूरत का विवेकपूर्ण विश्लेषण करें. बजट के साथ लयताल बैठ रही है या नहीं, सुनिश्चित करें फिर खरीदें. खरीदार की कमजोरी व्यवसायी अच्छी तरह से जानता है. धंधे में वह अपना मुनाफा नहीं छोड़ता. कुछ लोगों को घर में जब तक कोई नई वस्तु या इलैक्ट्रौनिक आइटम न आ जाए, संतुष्टि नहीं होती और बाद में वे किस्त भरने और कर्ज चुकाने में परेशान रहते हैं.

एक और महत्त्वपूर्ण बात यह है कि मध्यवर्ग के लोगों में भीड़ को देख कर चलने की आदत होती है. भीड़ की चाल भेड़चाल की तरह होती है, कोई बौद्धिक लक्ष्य उन के सामने नहीं होता. कुछ लोग इस खुशफहमी में रहते हैं कि उन के पास दूसरों से बेहतर कोई सामान होगा तो वे समाज में विशिष्ट कहलाएंगे. नतीजतन, हर समय वे इसी उधेड़बुन में लगे रहते हैं कि क्या करने से वे खास दिखने लगेंगे. आज तक उन्हें यह सम?ा नहीं आया कि दुनिया की नजर बहुत पैनी है. विशेष आदमी और सामान्य आदमी में भेद आसानी से कर लेती है. मेरे एक सहकर्मी थे, हमेशा कहते थे कि खाते में 10 हजार रुपए बने रहने का सुख बड़ा होता है न कि 10 हजार रुपए का मोबाइल लो और 100-50 का बैलेंस रखो. अनावश्यक खरीदारी के बजाय बुरे वक्त के लिए पैसा बचाना  ही समझदारी है ताकि भविष्य में किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े.

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