Recycle : किचन और घर से निकलने वाले वेस्ट यानि कचरा को उपयोगी बनाने के लिए जो प्रयास घर और सरकार दोनों के ही द्वारा किए जा रहे हैं वह हवा हवाई दावे साबित हो रहे हैं.

आज के दौर में अखबार और पत्रिकाओं से अधिक सोशल मीडिया पर दिखाई जाने वाली एक मिनट वाली रील का बड़ा क्रेज है. जिस में ऐसेऐसे टिप्स दिए जाते हैं जिस में मिनटों का काम सेकेंडों में हो जाता है. मुहावरों की भाषा में कहें तो हाथ पर सरसों उगाने का काम होता है. इस में जिस तरह के टिप्स दिए जातें हैं वह कई प्रकार के होते हैं. आज बात करेंगे किचन के कचरे का. रील में जिस तरह से इस को दिखाया जाता है वह कितना सही है और कितना गलत ?

सोशल मीडिया की रील में किचन के कचरे के बाद उस के कंपोस्ट खाद बनने से ले कर घरों में लगी सब्जी और पौधों में डालने से ले कर उन में फल फूल आने की यह रील बहुत अच्छी लगती है. इस को देख कर कई लोग इस को करने का काम करते हैं. कुछ ही दिनों में उन को यह पता चल जाता है कि यह काम उतना सरल नहीं होता जितना रील में दिखाया जाता है. जीरो वेस्ट की सच्चाई क्या है ? यह कितना व्यवहारिक है ?

क्या है जीरो वेस्ट ?

जीरो वेस्ट का अर्थ है कचरे को कम से कम करना. इस के लिए रीसाइकल करना और उस को कंपोस्ट खाद में बदलना सब से उपयोगी होता है. किचन से निकलने वाले सब्जी के छिलके और बचे हुए खराब खाने का प्रयोग सब से ज्यादा होता है. इस के अलावा आजकल चाय का प्रयोग घरों में बहुत होता है. बची हुई चाय की पत्ती को फेंकने से अच्छा होता है कि उस का उपयोग कर लिया जाए.

किचन जीरो वेस्ट का अर्थ है अपनी रसोई में भोजन और अन्य वस्तुओं की बरबादी को कम से कम करना, या पूरी तरह से खत्म करना. इस का मतलब है कि खाने के बचे हुए हिस्से, पैकेजिंग और अन्य कचरे का पुनः उपयोग, कंपोस्ट या रीसाइकिल करना होता है. इस के लिए जरूरी है कि भोजन की बरबादी को कम करें. खरीदारी केवल उतनी ही करें जितनी आप को जरूरत हो. बचे हुए खाने को दोबारा इस्तेमाल करें. भोजन को उचित रूप से स्टोर करें ताकि वह खराब न हो. खाने के बचे हुए हिस्सों को कंपोस्ट करें.

घर के अलावा सरकारों ने भी कचरा प्रबंधन का काम शुरू किया है. शहर से ले कर गांव तक यह काम हो रहा है. यह बात और है कि यह बातें हवा हवाई ज्यादा हैं. अधिकतर बड़े शहरों में हर घर में दो तरह के कचरे के डिब्बे रखे जाने लगे हैं. पहला नीले रंग के डिब्बे का उपयोग सूखे कचरे जैसे प्लास्टिक, कागज, धातु आदि के लिए होता है. दूसरे हरे रंग के डिब्बे का प्रयोग गीले कचरे जैसे फल सब्जी के छिलके, बचा हुआ खाना आदि के लिए होता है.

शहरों में कचरा उठाने वाली गाड़ी आती है. इस के अलावा सफाई कर्मचारी ठेले ले कर आते हैं. अब घर में तो कचरा दो रंग वाले डिब्बे में रखा जाता है. जैसे यह कचरा कचरा रखने वाली गाड़ी में पहुंचता है यह एक में ही हो जाता है. इस का एक बड़ा कारण है कि कभी सूखा कचरा ज्यादा हो जाता है तो कभी गीला. ऐेसे में अतिरिक्त कचरा उसी में भर दिया जाता है जिस में कचरा रखने की जगह होती है.

सरकार दावा करती है कि कचरा प्रबंधन करने वाली मशीन इस का रीसाइकिल कर के उपयोगी पदार्थ बना लेगी. अपार्टमेंट और कालोनी में रहने वालों को कचरा उठाने के एवज में एक तय रकम हर माह देनी होती है. इस के बाद भी शहरों में कचरा जगहजगह दिखता है. इसी तरह से गांवों में कचरा से खाद बनाने के लिए सरकार पंचायत के माध्यम से एक जगह बना रही है. जिस की लगात करीब 5 लाख आ रही है. टीनशेड के नीचे गांव के किनारे एक तरह का खाद बनाने का काम किया जा रहा है.

जिन गांवों में यह बन गया है वहां कभी कचरा न जाता है और न खाद बनती है. केवल उत्तर प्रदेश में 57 हजार 691 ग्राम पंचायते हैं. यहां हर गांव में 2-2 सफाई कर्मचारी हैं. नाली और खंडजा है. लेकिन इन में सफाई नहीं होती. पानी की निकासी सही नहीं है. गांव वालों ने अपने घर के आगे नाली रोक ली है. महीने में दो चार बार सफाई कर्मचारी आता है इधरउधर हाथपांव चला कर चला जाता है. पहले गांव में हर घर के पीछे एक कूड़ा भरने का गढ्ढा होता था जिस को घूर कहते थे. उस समय न पानी भरता था न रास्ते में गंदगी रहती थी. गलियां कच्ची होती थी तो धूल होती थी. जीरो वेस्ट में अब वापस घरों में खाद बनाने के प्रयोग शहरों में किए जा रहे हैं.

अस्पतालों में कचरा प्रबंधन

अस्पतालों में कचरा प्रबंधन के लिए लाल और पीले रंग के डिब्बे भी इस्तेमाल किए जाते हैं. लाल डिब्बा रंग के डिब्बे में खतरनाक कचरा और पीले रंग के डिब्बे में संक्रमणकारी कचरा रखा जाता है. हर अस्पताल में एक कचरा प्रबंधन रजिस्टर बना होता है. इस में यह लिखा जाता है किस दिन नगर निगम का कौन सा कर्मचारी आया, कितना कचरा किस रंग के डिब्बे में दिया गया. इस में नगर निगम कर्मचारी को भी अपने हस्ताक्षर करने होते हैं. अगर कभी नगर निगम अचानक जांच करता है और उस को रजिस्टर सही से पूरा भरा नहीं मिलता तो अस्पताल पर फाइन लगाया जाता है. अगर गलती बारबार हो तो नगर निगम अस्पताल का लाइसैंस रद्द करने की कार्रवाई भी कर सकता है.

कई निजी अस्पताल भी मैडिकल वेस्ट को निस्तारित नहीं करते हैं. दवाईयां, इंजेक्शन जैसी हानिकारक चीजों को जला देते हैं. कुछ दिन पहले इब्राहीमपुर वार्ड में निरीक्षण के दौरान खाद्य एवं सफाई निरीक्षक आकांक्षा गोस्वामी ने पाया कि एक अस्पताल का मैडिकल कचरा जलाया जा रहा है. यहां मैडिकल कचरा को अलगअलग रखने की भी कोई व्यवस्था नहीं थी. सफाई निरीक्षक ने अस्पताल संचालक पर एक हजार रुपये का जुर्माना लगाया.

पीजीआइ रोड पर गंदगी फैलाने वाले होटल कॉसमोस पर 5000 रुपए का जुर्माना लगाया गया. इस इलाके में कूड़ा प्रबंधन का काम देख रही मेसर्स ईको कंपनी की तरफ से कूड़ा न लेने की शिकायत की गई. कूड़ा प्रबंधन की निगरानी नगर निगम करता है. हवा हवाई व्यवस्था का उदाहरण यह है कि नगर निगम अस्पताल, होटल और घरों से एकत्र कूडे का खुद सही निस्तारण नहीं करता है. चाहे कितना भी कूडा अलगअलग एकत्र किया जाए पर शहर के बाहर वह एक ही जगह कूड़े के ढेर में बदल जाता है.

ऐसे में जीरो वेस्ट की धारणा धरी की धरी रह जाती है. जीरो वेस्ट एक अवधारणा है जो कचरे के प्रबंधन को एक ऐसा तरीका है जो सभी संसाधनों का संरक्षण करें और कचरे को न जलाएं या दफनाएं. इस का लक्ष्य कचरे को कम करना, फिर रीसाइकल करना, और फिर पुन उपयोग करना होता है. सरकार बहुत सारे प्रयासों और दावों के बाद भी इस काम को नहीं कर पा रही है. पंचायत से ले कर नगर निगम तक सब का हाल एक जैसा ही है.

जीरो वेस्ट में करें योगदान

आम लोग जीरो वेस्ट में कैसे योगदान दे सकते हैं ? किसी इस तरह की वस्तु को न खरीदें तो रिसाइकिल न हो सकती हो. कुछ को आप दोबारा सावधानी पूर्वक इस्तेमाल कर सकते हैं. जैसे कि प्लास्टिक की बोतलों को पानी की बोतल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है. आप प्लास्टिक, कागज, और धातु जैसी वस्तुओं को रीसाइकल कर सकते हैं ताकि उन्हें नए उत्पादों में फिर से इस्तेमाल किया जा सके. कम्पोस्ट खाद के रूप में भोजन और बागवानी के कचरे को खाद में बदल सकते हैं. जो पौधों के लिए एक प्राकृतिक खाद है.

जीरो वेस्ट पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है. यह कचरे की मात्रा को कम करता है, जो प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक संसाधनों के क्षरण में योगदान करता है. यह कचरे से होने वाले खर्च को कम करता है और संसाधनों को बचाने में मदद करता है. इस से जीवन पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.

रसोई के वेस्ट से खाद कैसे बनाएं?

रसोई के वेस्ट को खाद के रूप में बदलने का काम कैसे करें ? सब से पुराना तरीका है कि जमीन की मिट्टी खोद कर उस में कचरा दबा दीजिए. गोबर आदि मिल जाय तो उसे भी उस खचरें में शामिल कर दें. मिट्टी में नमी होगी और अच्छी धूप मिलेगी तो जल्दी खाद बन जाएगी. जीवित केंचुआ भी उस मिट्टी में डाल सकें तो और अचछा होता है. हर घर में आज के समय में कच्ची जमीन बची नहीं है. ऐसे में यह काम किसी गमले या प्लास्टिक के डिब्बे में कर सकते हैं. इस को समयसमय पर मिलाते भी रहें. इस से अच्छी खाद तैयार हो जाती है.

आजकल लोग घरों में पेड़ पौधे लगाना पसंद करते हैं. अब इन पौधों के लिए यदि घर पर ही खाद तैयार हो जाए तो अपने आसपास सफाई भी रख सकेंगे और कहीं न कहीं अपने पर्यावरण को भी साफ और बचा कर भी रख पाएंगे. असल में जीरो वेस्ट तभी सफल होगा जब इस तरह की मशीनें बने जो घर में किचन वेस्ट को सही कर सकें. जिस तरह से कपड़े और बरतन धोने की मशीनें बनी हैं उसी तरह से वेस्ट को ठीक से नया रूप दिया जा सके. तभी जीरो वेस्ट का सपना साकार हो सकेगा. बिना इस के सारा मामला हवा हवाई रहेगा.

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