Constitution : कांग्रेस के लिए सेक्युलरिज्म का मतलब कुछ और है तो बीजेपी अपने तरीके से सेक्युलरिज्म की व्याख्या करती है. राजनीति के पक्षविपक्ष के खेल में आम जनता सेक्युलरिज्म को ले कर हमेशा भ्रमित ही रहता है. क्या है सेक्युलरिज्म की वास्तविकता? क्या यह भारत जैसे देश के लिए जरूरी है?
जब भी “सेक्युलरिज्म” की बात होती है कुछ लोगों के कान खड़े हो जाते हैं. तमाम राजनैतिक दल सेक्युलरिज्म शब्द को अपने हिसाब से परिभाषित करते हैं. दिनरात चलते टेलीविजन डिबेट्स ने तो सेक्युलरिज्म शब्द की गरिमा को लगभग नष्ट ही कर दिया है. यही कारण है कि कुछ लोग सेक्युलर होने को सिक्कुलर होना कहने लगे हैं. हिंदू धर्मगुरुओं को तो सेक्युलरिज्म से नफरत है ही सत्ताधारी दल की विचारधारा में भी सेक्युलरिज्म के लिए कोई जगह नहीं है.
सेक्युलरिज्म का विरोध कौन करता है?
बीजेपी के कई नेता कान्स्टिट्यूशन के प्रियम्बल में लिखे गए “सेक्युलर” शब्द को हटाने की बात करते हैं. पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने कान्स्टिट्यूशन के प्रियम्बल से “सेक्युलर” शब्द को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दी. याचिका में कहा गया “1976 में 42वें संशोधन के जरिए संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द जोड़ा गया और इस बदलाव पर संसद में कभी बहस नहीं हुई इस वजह से “सेक्युलर” शब्द को संविधान की प्रस्तावना से हटा देना चाहिए.”
सुप्रीम कोर्ट में 20 अक्टूबर 2024 को कान्स्टिट्यूशन के प्रियम्बल से ‘सेक्युलर’ शब्द हटाने की मांग वाली इस याचिका पर सुनवाई के दौरान जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा “इस अदालत ने कई फैसलों में माना है कि सेक्युलरिज्म हमेशा से संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा रही है. अगर संविधान में समानता और बंधुत्व शब्द का इस्तेमाल किया गया है तो यह स्पष्ट संकेत है कि सेक्युलरिज्म संविधान की मुख्य विशेषता है.”
2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से ही सेक्युलर होने पर या सेक्युलरिज्म शब्द पर गहरी आपत्तियां दर्ज की जाती रही हैं. इस का कारण यह है कि बीजेपी हिंदुत्व की राजनीति करती है. बीजेपी इस देश के 80 फीसदी लोगों को हिंदू मानती है और इस बड़ी आबादी को वोटबैंक के रूप में हथियाने की कोशिश करती है.
इस के लिए हर वह हथकंडा अपनाती है जिस से 80 प्रतिशत हिंदुओं को बाकी के धर्मों से अलग किया जा सके. यही वजह है कि सेक्युलरिज्म शब्द बीजेपी की राजनीति में फिट नहीं बैठ पाता इसलिए बीजेपी सेक्युलर शब्द को गाली की तरह इस्तेमाल करती है और समयसमय पर कान्स्टिट्यूशन के प्रियम्बल से ही इस शब्द को हटाने का प्रोपगंडा करती नजर आती है.
कान्स्टिट्यूशन में सेक्युलरिज्म की अहमियत
कान्स्टिट्यूशन के प्रियम्बल में लिखा है “हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उस के समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्पित हो कर इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.”
दुनिया के किसी भी धार्मिक ग्रंथ में इतने उत्कृष्ट विचार देखने को नहीं मिलेंगे. भारतीय संविधान की प्रस्तावना में लिखी यह कुछ लाइनें दुनिया के सारे पवित्र ग्रंथों से कहीं ज्यादा पवित्र हैं. यह किताब भारत के समस्त नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्रदान करने के साथ विचार अभिव्यक्ति धर्म और उपासना की स्वतंत्रता भी देती है.
जहां तमाम धर्मों के धर्मग्रंथ सिर्फ अपने कुछ खास लोगों को ही इंसान मानते हैं वहीं भारत का कान्स्टिट्यूशन न्याय की कसौटी पर भारत के तमाम इंसानों को बराबर मानता है और व्यक्ति की गरिमा को महत्व देता है.
भारत का कान्स्टिट्यूशन, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता बढ़ाने की बात करता है.
अलगअलग पंथ, मत, विचारधारा, धर्म, परंपराओं और मान्यताओं के होते हुए भारत के समस्त नागरिकों के बीच बंधुता कैसे कायम हो? और नागरिकों के बीच बंधुता नहीं होगी तो राष्ट्र की एकता कैसे कायम रह सकती है? कान्स्टिट्यूशन में इस के लिए ही “सेक्युलर” शब्द का प्रयोग किया गया है.
यह सच है कि 42वें संविधान संशोधन के बाद भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द जोड़ा गया, लेकिन संविधान में कई ऐसे अनुच्छेद मौजूद हैं जो कान्स्टिट्यूशन के बनने के समय से मौजूद हैं जिन के आधार पर भारत को एक सेक्युलर देश कहा जाता है.
संविधान में भारत का कोई धर्म घोषित नहीं किया गया है और न ही किसी खास धर्म का समर्थन किया गया है. संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार भारत में सभी व्यक्ति कानून की दृष्टि से समान होगें और धर्म, जाति अथवा लिंग के आधार पर उन के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा.
अनुच्छेद 15 के अनुसार धर्म, जाति, नस्ल, लिंग और जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव पर पाबंदी लगाई गई है. अनुच्छेद 16 में सार्वजनिक रोजगार के क्षेत्र में सब को एक समान अवसर प्रदान करने की बात की गई है.
इस के साथ भारतीय संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता का मूल अधिकार भी प्रदान किया गया है. अनुच्छेद 25 में प्रत्येक व्यक्ति को अपने धार्मिक विश्वास और सिद्धांतों का प्रसार करने का अधिकार दिया गया है.
अनुच्छेद 26 धार्मिक संस्थाओं की स्थापना का अधिकार देता है. अनुच्छेद 27 के अनुसार नागरिकों को किसी विशिष्ट धर्म या धार्मिक संस्था की स्थापना या पोषण के बदले में कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. अनुच्छेद 28 के द्वारा सरकारी शिक्षण संस्थाओं में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दिए जाने का प्रावधान किया गया है. संविधान के अनुच्छेद 30 में अल्पसंख्यक समुदायों को अपने शैक्षणिक संस्थान खोलने एवं उन का प्रशासन करने का अधिकार दिया गया है.
सेक्युलरिज्म को समझना क्यों जरूरी है?
अकसर लोग सेक्युलरिज्म का हिंदी अर्थ “धर्मनिरपेक्षता” से करते हैं और इसे धार्मिक आजादी का मामला समझ लेते हैं. यहीं से प्रोपगैंडा शुरू हो जाता है. ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि इस शब्द का कोई सटीक हिंदी पर्यावाची शब्द है ही नहीं. सेक्युलरिज्म का हिंदी अनुवाद करना ही हो तो यह धर्मनिरपेक्षता की बजाए पंथनिरपेक्षता के ज्यादा करीब होगा.
दोनों में बुनियादी अंतर है. आप इस बात को इस तरह समझ सकते हैं कि धार्मिक स्वतंत्रता की अपेक्षा पंथवाद या इज्म की स्वतंत्रा ज्यादा महत्वपूर्ण होती है. एक ही धर्म में अनेकों पंथ विचारधाराएं या इज्म मौजूद हो सकते हैं इसलिए धर्म की स्वतंत्रता से पहले पंथ की स्वतंत्रा ज्यादा महत्व रखती है.
मान लीजिए एक संयुक्त परिवार है जिस में बहुत सारे लोग रहते हैं लेकिन धर्म को ले कर सब की राय एक जैसी नहीं है. कोई प्रतिदिन पूजा करता है. कोई साल में एकाध बार ही मंदिर जाता है. किसी को मांस पसंद है. कोई शाकाहारी है. किसी को रंगों से प्यार है तो किसी को रंगों से एलर्जी है. कोई पुराने गाने पसंद करता है. किसी को नए गाने अच्छे लगते हैं. ऐसे परिवार को एक डैमोक्रेटिक परिवार तभी माना जाएगा जब यहां सभी को अपने तरीके से जीने की आजादी हासिल होगी.
इसी को सही मायने में एक सेक्युलर परिवार कहा जा सकता है. यहां समस्या तब आएगी जब परिवार का मुखिया धर्म को परिवार पर थोपने लगे या परिवार के कुछ खास सदस्यों को दूसरों से ज्यादा तरजीह देने लगे या किसी के इज्म को बढ़ावा देते हुए किसी की विचारधारा के खिलाफ खड़ा हो जाए.
ऐसे में यह परिवार अपने सेक्युलर होने की पहचान तो खोएगा ही साथ ही यह अपनी डैमोक्रेसी को भी खो देगा क्योंकि सेक्युलरिज्म किसी भी लोकतंत्र की रीढ़ की हड्डी होती है.
सेक्युलरिज्म यह कोई मामूली शब्द भर नहीं है बल्कि अपनेआप में संपूर्ण दर्शन है. सेक्युलरिज्म वह दर्शन है जो धर्म के नाम पर करोड़ों लोगों की मौत के बाद शांति सौहार्द प्रेम सहिष्णुता और परस्पर सहयोग के रूप में आस्तित्व में आया.
सोलहवीं सदी तक पूरा यूरोप कैथोलिक चर्च के द्वारा कंट्रोल होता था. चर्च इतना ताकतवर हो चुका था कि कोई भी राजा सीधे तौर चर्च के खिलाफ जाने की हिम्मत नहीं जुटा पाता था. 1522 में मार्टिन लूथर के नेतृत्व में चर्च के खिलाफ आंदोलन शुरू हुआ.
मार्टिन का यह आंदोलन राजा हेनरी के समर्थन के बाद इतना ताकतवर हुआ कि चर्च के खिलाफ पूरे यूरोप में बगावत शुरू हो गई और अगले 200 वर्षों तक यह लगातार जारी रहा. इस में सब से ज्यादा तबाही 1618 से 1648 के बीच हुई जिसे “थर्टी इयर्स वौर” भी कहा जाता है. 30 साल लंबी इस लड़ाई में तकरीबन 80 लाख ईसाई आपस में लड़लड़ कर खत्म हो गए. इस बीच यूरोप में कोई तरक्की नहीं हुई.
धर्म की इस लड़ाई में ज्ञानविज्ञान प्रगति और मानवता के लिए कोई जगह बची ही नहीं थी. आखिरकार जब लड़लड़ कर पूरा यूरोप तबाह हो गया तब लोगों को सूझी की धर्म और सत्ता का गठजोड़ सिर्फ और सिर्फ बरबादी ही दे सकता है इसलिए दोनों का सैपरेशन जरूरी है यहीं से “सैपरेशन औफ रिलीजन फ्रौम स्टेट” के विचार का उदय हुआ.
30 जनवरी 1648 को फ्रांस, डेनमार्क और स्वीडन और रोमन कैथोलिक स्टेट के तमाम छोटीबड़ी रियासतों के बीच एक समझौता हुआ जिसे “ट्रीटी औफ वेस्ट फेलिया” कहते हैं. इस समझौते के अनुसार यूरोपियन महाद्वीप के तमाम देशों ने यह तय किया कि धर्म का रिलीजन से कोई संबंध नहीं होगा.
यहीं से सेक्युलर स्टेट का कान्सेप्ट दुनिया को मिला. जिसपर चलते हुए जल्द ही यूरोप में पुनर्जागरण या “एनलाइटमेंट” का दौर शुरू हुआ. इस की बदौलत ही यूरोप साइंस ह्यूमैनिटी फिलौसफी और राजनीति का सब से ताकतवर केंद्र बन पाया और दुनिया ने वह सब कुछ हासिल किया जिसे आज हम ह्यूमैनिटी डैमोक्रेसी साइंस और टैक्नोलौजी कहते हैं.
बर्मिंघम के जार्ज जेकब हालीयाक ने सन् 1846 में सेक्युलरिज्म शब्द को परिभाषित करते हुए लिखा था, “सत्ता द्वारा आस्तिकता नास्तिकता धर्म और धर्मग्रंथों में उलझे बगैर मनुष्य के शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक एवं बौद्धिक स्वभाव को मानवता के उच्चतम बिंदु तक विकसित करने के लिए स्थापित किया गया न्याय ज्ञान और सेवा का दर्शन ही सेक्युलरिज्म है.”
आज पूरी दुनिया के लगभग सभी देश जार्ज जेकब के इसी सेक्युलर मूल्यों पर चलते हैं.
यूरोप, अमेरिका, कनाडा, रशिया, आस्ट्रेलिया, अफ्रीका जैसे तमाम देशों ने सेक्युलरिज्म को अपने देश और समाज का अभिन्न हिस्सा बनाया है क्योंकि उन्हें मालूम है कि एक बेहतर सामाजिक व्यवस्था की कल्पना सेक्युलरिज्म के बिना अधूरी है.
सेक्युलरिज्म डैमोक्रेसी की रीढ़ की हड्डी है इस के बिना लोकतंत्र का वजूद ही नहीं. यही कारण है कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश के वे कट्टर लोग भी पश्चिम की ओर भागते हैं जो अपने देश में सेक्युलरिज्म को दिनरात कोसते हैं.
पाकिस्तान और बांग्लादेश के जो मुल्लामौलवी उलेमा दिनरात सेक्युलर लिबरल लोगों को गालियां बकते हैं वही लोग पश्चिम के सेक्युलरिज्म की बदौलत वहां बड़ीबड़ी मसजिदें खड़ी कर रहे हैं. इसी सेक्युलरिज्म की बदौलत ही भारतीय उपमहाद्वीप से हर साल हजारों परिवार पश्चिम में जा कर बस जाते हैं और वहां का हिस्सा हो जाते हैं.
पिछले 20 सालों में केवल यूरोप के अंदर भारत के 300 से ज्यादा धार्मिक संस्थानों ने अपने कार्यालय खोले हैं. 135 से ज्यादा इस्कौन टेम्पल, 300 से ज्यादा मसजिदें और 167 मदरसे यह सब इसलिए नहीं की वे दूसरे धर्म से प्रभावित होते हैं बल्कि इसी सेक्युलरिज्म की बदौलत ही इसलाम और हिंदुत्व जैसे धर्म अपने धार्मिक प्रोपगैंडों को वहां स्थापित कर पा रहे हैं.
सेक्युलरिज्म का दूसरा पहलू भी है जिस की वजह से सेक्युलरिज्म आज पूरी दुनिया में अपनी उपयोगिता खोता जा रहा है. जबतक सेक्युलरिज्म पंथनिरपेक्षता का पर्यायवाची बना रहता है यह लोकतंत्र और मानवता के लिए सब से उपयोगी दर्शन होता है लेकिन जैसे ही यह अपना वास्तविक मूल्य पंथनिरपेक्षता को छोड़ कर धर्मनिरपेक्ष हो जाता है समस्याएं खड़ी होनी शुरू हो जाती हैं क्योंकि तब यह पंथवाद या इज्म की आजादी के बजाए सीधे तौर पर धार्मिक आजादी देना शुरू कर देता है.
यूरोप का सेक्युलरिज्म जैसे ही धार्मिक आजादी की ओर गया इस का नाजायज फायदा उठाते हुए इसलाम ने वहां अपनी जड़ें कायम करनी शुरू कर दीं. इस का नुकसान यह हुआ कि इसलाम के रिएक्शन में दूसरे सोए हुए धार्मिक गिरोहों को भी मौका मिल गया और वे भी सेक्युलरिज्म के नाम पर मिली आजादी से उदंडता की ओर निकल पड़े हैं.
सेक्युलरिज्म लोकतंत्र और मानवता के लिए एक उत्कृष्ट दर्शन तभी है जब यह पंथनिरपेक्ष बना रहे लेकिन सेक्युलरिज्म जब धर्मनिरपेक्षता का पर्यायवाची हो जाता है तब यह खुद में एक समस्या बन जाता है.
सेक्युलरिज्म के बारे में मीडिया और राजनीति द्वारा गढ़ी गई तमाम गलतफहमियों को दिमाग से निकाल कर फेंक दीजिए क्योंकि सेक्युलरिज्म के बिना कोई भी लोकतंत्र बचेगा ही नहीं. हमें पंथनिरपेक्षता के रूप में सेक्युलरिज्म को बचाने की दिशा में काम करना चाहिए ताकि लोकतंत्र जिंदा रह सके.
सेक्युलरिज्म से जनता का कितना फायदा?
सेक्युलरिज्म का मतलब यह भी है कि देश की सरकार जनता से लिया गया टैक्स का पैसा अपने द्वारा समर्थित धर्म पर खर्च नहीं करेगी और न ही अपने धर्म को सुविधा देने के लिए कोई कानून बनाएगी लेकिन सेक्युलरिज्म का इस्तेमाल सभी राजनैतिक दल और सत्ताधारी पार्टी अपने अनुरूप करते आए हैं.
कांग्रेस ने सेक्युलरिज्म के नाम पर मुसलिम तुष्टिकरण की नीति अपनाई. शाहबानो जैसे कई मामलों में कांग्रेस की तुष्टिकरण की नीति साफ दिखाई देती है जब कांग्रेस ने मुसलमानों को खुश करने के लिए कानून बनाने का सहारा लिया. 2014 के बाद बीजेपी सत्ता में आई और उस ने कांग्रेस से उलट बहुसंख्यक हिंदुओं के तुष्टिकरण की नीति अपनाई. हिंदू तुष्टिकरण की इसी नीति के तहत बीजेपी सरकार तीन तलाक और राममंदिर जैसे मुद्दों को खड़ा करती रही है.
2025 की शुरुआत महाकुंभ के विशाल आयोजन से हुआ जिस में उत्तर प्रदेश सरकर ने लगभग 7,000 करोड़ रुपए से ज्यादा का बजट आवंटित किया. 2018 तक हज सब्सिडी के नाम पर मुसलमानों को हर साल करोड़ों रुपयों की सब्सिडी दी जाती रही. दिल्ली और हरियाणा जैसे राज्यों में “मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा” जैसी योजनाएं हैं जिस में 60 साल से ऊपर के लोगों को सरकारी रुपयों से तीर्थ यात्रा करवाई जाती है. जिस देश पर 2 लाख करोड़ का विदेशी कर्ज हो वहां धर्म के नाम पर इतनी फिजूलखर्ची किसी भी रूप में जायज नहीं.
जिस देश में 80 प्रतिशत जनता 5 किलो राशन पर गुजारा करती हो वहां जनता के टैक्स के पैसों से धर्म को भरपूर पोषण दिया जाए यह देश का दुर्भाग्य ही है साथ ही यह भारत के सेक्युलरिज्म की सब से बड़ी खामी भी है.
भारतीय कान्स्टिट्यूशन के प्रियम्बल के अनुसार भारत एक पंथनिरपेक्ष यानी सेक्युलर देश हैं लेकिन भारतीय सेक्युलरिज्म पश्चिमी देशों के सेक्युलरिज्म से अलग है. पश्चिमी देशों का सेक्युलरिज्म धर्म और सत्ता को पूरी तरह अलग रखता है. वहीं भारत में यह सभी धर्मों का सम्मान करने की वकालत करता है.
अब सरकार को अगर धर्म का सम्मान ही करना है तो वह कैसे करे? यह सरकारी सम्मान धार्मिक आयोजनों पर जनता के टैक्स का पैसा लुटाकर ही संभव है.
तिरुपति बालाजी जैसे सैंकड़ों मंदिरों में हर साल अरबों रुपए दान के रूप में इकट्ठा होते हैं जिन का उपयोग जनता के हितों में कम और मंदिरों के ट्रस्ट के कामों में ज्यादा होता है. ऐसे मंदिरों के कलैक्शन में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता. यह धन जनता का ही होता है लेकिन जनता के हितों में इस्तेमाल नहीं होता. कुछ मंदिरों ने धर्मशाला और अस्पताल जैसी व्यवस्थाएं उपलब्ध करवाई हैं लेकिन यह सब सिर्फ दिखावे के लिए होता है.
भारत को छोड़ कर किसी भी सेक्युलर देश में किसी भी धर्म को इतनी छूट नहीं दी जाती की वह अपनी मनमानी कर सके. वहां सार्वजनिक जगहों पर कब्जा कर कोई भी धार्मिक स्थल नहीं बनाया जा सकता लेकिन भारत में हर सड़क, फुटपाथ, पार्क और गलीमहल्ले में सरकारी जमीनों को कब्जा कर छोटेबड़े धर्मस्थल बनाए गए हैं. यह भी सेक्युलरिज्म के नाम पर धर्मों का सम्मान करने की नीति का दुष्परिणाम ही है.
धर्म के नाम पर लाखों संस्थाएं काम कर रहीं है और ये धार्मिक संस्थाएं सेक्युलरिज्म की सरकारी नीतियों का फायदा उठा कर करोड़ों रुपयों का अनुदान प्राप्त करती हैं. अगर सरकार सेक्युलरिज्म की वास्तविक नीतियों पर चलने लगे और किसी भी धर्म को बढ़ावा देने की राजनीति न करे तो यह देश बहुत सी समस्याओं से मुक्त हो जाएगा लेकिन ऐसा होने पर सत्ताधारी पार्टी के लाखों समर्थक अगली सुबह कंगाल हो जाएंगे.
विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण के 2023 के आंकड़ों के अनुसार भारत की लगभग 74% आबादी स्वस्थ आहार नहीं ले पाती और 39% आबादी को तो भूखे पेट सोना पड़ता है.
वैश्विक भुखमरी सूचकांक (ग्लोबल हैंगर इंडेक्स) 2023 के अनुसार 2023 में भारत का वैश्विक भुखमरी स्कोर 28.7 रहा. जो सेवेरिटी औफ हंगर स्केल के अनुसार गंभीर स्थिति है. भारत के 35.5% बच्चे स्टंटिंग से पीड़ित हैं. 19.3% बच्चे वेस्टिंग से पीड़ित हैं. 32.1% बच्चे कम वजन के हैं. 57% बच्चे विटामिन A की कमी से पीड़ित हैं.
75% बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं. भारत की 18.7% महिलाएं कुपोषण से पीड़ित हैं. 57% महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं. भारत की लगभग 14.37% आबादी कुपोषित है. भारत में लगभग 30% लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन व्यतीत करते हैं. वैश्विक भूख सूचकांक (ग्लोबल हंगर इंडेक्स) 2022 में भारत 107वें स्थान पर था, जो भारत की गंभीर स्थिति को दर्शाता है.
अगर सरकारें सेक्युलरिज्म के नाम पर धार्मिक तुष्टिकरण की राजनीति से ऊपर उठ कर काम करें तो इस देश का कायाकल्प होते देर नहीं लगेगी. जनता के टैक्स के पैसों का धर्म के नाम पर नाजायज उपयोग नहीं होगा और धर्म के नाम पर नफरत की घिनौनी राजनीति भी समाप्त हो जाएगी.