Fitness Centers : जिस संस्कृति की रक्षा का ढोल दिनरात सनातनी पीटा करते हैं वह दरअसल में निकम्मों आलसियों और मुफ्तखोरों से भरी पड़ी थी. अब यह फिर जोर पकड़ रही है तो चिंता होना स्वाभाविक बात है. अच्छा स्वास्थ बेकार की कवायद से बचा सकता है जो इन दिनों जिम और फिटनेस सेंटर्स में उपलब्ध है.

अव्वल तो सदियों से करते आ रहे हैं लेकिन बीते 11 सालों से धर्म और संस्कृति की चिंता करने वालों की तादाद कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है. संस्कृति के रक्षक दुबलाए जा रहे हैं. उन के पास सिवाय संस्कृति की रक्षा के कोई और काम नहीं है. वे इतने चिंतित और व्यस्त हैं कि अपनी सेहत का ख्याल ही नहीं रख पा रहे हैं. सुबह उठ कर कुल्ला, दातून, ब्रश और शौच वगैरह बाद में करते हैं. पहले संस्कृति की रक्षा के लिए स्मार्टफोन हाथ में ले कर संस्कृति रक्षक पोस्टें इधर से उधर किया करते हैं.

ये लोग सही मानों में परंपरावादी हैं. क्योंकि इन के ग्रांड पूर्वज भी यही किया करते थे. वे किसी जंगल में बनी अपनी कुटिया में बैठ कर तपस्या करते थे और इतनी यानी सालोंसाल सदियों तक करते थे कि इंद्र का सिंहासन भी डोलने लगता था. उन की भौंहे जमीन तक बढ़ जाती थीं, बालों के झुतरे में पक्षी अपना घोंसला बना लेते थे. लेकिन इस के बाद भी इन्हें खानेपीने की कमी नहीं थी.

तब भी संस्कृति के ग्राहक इन्हें घी, दूध, मक्खन, फल, अनाज वगैरह पहुंचा देते थे. जिस से इन की तपस्या में कोई विध्न बाधा न आए. यही निठल्लापन आज भी दूसरे तरीकों से फलफूल रहा है.

तप बड़े आराम का काम है इस की सब से बड़ी खासियत है कि इस में मेहनत नहीं करनी पड़ती. मुफ्त का खाना भक्त यानी संस्कृति के ग्राहक दे जाते हैं. क्योंकि इस का घोषित मकसद इश्वर को खोजते रहना होता था यह और बात है कि वह इन्हें तो क्या आज तक किसी को नहीं मिला क्योंकि उस का कोई अस्तित्व है ही नहीं. पौराणिक साहित्य किस्मकिस्म के तपस्वियों से भरा पड़ा है. इन्हें सम्मान से ऋषिमुनि कहा जाता है.

आज के दौर के कुकुरमुत्ते से उग आए उच्च और मध्यमवर्गीय ऋषिमुनि जंगलों में नहीं जाते वे घर पर बैठ कर ही तपस्या करते हैं. तपस्या यानी संस्कृति की रक्षा में अनवरत सोशल मीडिया पर बने रहना.

इस चक्कर में वे वक्त पर खा और पी नहीं पा रहे, ढंग से सो नहीं पा रहे क्योंकि बिस्तर पर जाते ही इन्हें संस्कृति के नष्टभ्रष्ट हो जाने का खौफ सताने लगता है. सामान्य स्वास्थ नियमों का भी पालन न करने वाले महानुभावों की चिंता जिम वालों को है.

ये जिम कैसे इन संस्कृति के सैनिकों की रक्षा करते हैं. आइए देखें कि भोपाल के तथास्तु हैल्थ सेंटर की मुखिया अंकिता प्रधान क्या बताती हैं.

– मसल्स को मजबूत करने और मेटाबौलिज्म बढ़ाने के लिए स्ट्रेंथ ट्रेनिंग ट्रेंड में है.
– योग अभी भी लोगों का पीछा नहीं छोड़ रहा है अब इस का इस्तेमाल लचीलापन बढ़ाने और हार्मोनल बेलेंस के लिए भी किया जाने लगा है.
– बेलेंस और फंक्शनल ट्रेनिंग, बेलेंस और पोश्चर सुधारने के लिए इस्तेमाल की जा रही है.
– कार्डियो वर्क आउट मसलन जुम्बा, वाकिंग और डांस आदि चलन में हैं.
– आजकल की बहुत कामन प्रौब्लम जोड़ों, घुटनों और कमर दर्द के लिए फिजियोथेरैपी आधारित एक्सरसाइज भी ट्रेंड में हैं.

बकौल अंकिता इन सब का मकसद सिर्फ फिट दिखना नहीं बल्कि खुद को लंबे समय तक स्वस्थ और एक्टिव रखना भी है. ग्रुप क्लासेस जैसे जुम्बा मेट, पिलेट्स और वैलनेस बौक्स भी कम्प्लीट हैल्थ और वेलनेस सिस्टम में शामिल हैं. फिटनेस सेंटर पीसीओडी, मेनौपाज, डाईबिटीज और थायराइड जैसी बीमारियों को भी मैनेज करने टिप्स देते हैं और व्यायाम भी करवाते हैं.

सेहत में हर रोज नया कुछ न कुछ हो रहा है जो बताता है कि लोग जागरूक हो रहे हैं और तगड़ा पैसा भी खर्च कर रहे हैं. डाइट और ड्रैस पर भी लोगों खासतौर से महिलाओं का खासा ध्यान है.

जो लोग जिम जा रहे हैं उन के लिए सेहत ही धर्म और संस्कृति है. जिस की अहमियत का उन्हें एहसास है इसलिए वे पौराणिक संस्कृति के रक्षक भक्तों की जमात में शामिल नहीं होते क्योंकि उस से शारीरिक व मानसिक तनाव ज्यादा होते हैं.

हासिल कुछ नहीं होता सिवाय कुंठाओं और अवसाद के आलसियों निक्क्मों और अलालों वाली संस्कृति का हिस्सा बनने से बेहतर है कि फिटनैस और जिम कल्चर का पार्ट बन कर स्वस्थ रहते जिंदगी गुजर की जाए.

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