Social Media : सोशल मीडिया और टीवी चैनलों पर भारतपाक टकराव की खबरों को इस तरह से दोहराया गया जैसे पौराणिक कथाओं में एक ही बात को बारबार दोहराया जाता है और लोग उसे सच मान लेते हैं.

भारत और पाकिस्तान के बीच टकराव के समय सोशल मीडिया और टीवी चैनलों ने जिस तरह से माहौल का खतरनाक बनाया वह अद्भुत था. सोशल मीडिया पर सतही ज्ञान साफसाफ दिख रहा था. जिन को युद्व की परिभाषा, कूटनीति, अंतरराष्ट्रीय कानून, दो देशों के बीच संबंध उन के आपसी समझौतों का नहीं पता वह सोशल मीडिया पर इस तरह से बोल रहे थे जैसे यह उन के लिए मूलीगाजार खरीदने जैसा काम हो. जिस ने कभी घर के बाहर मोहल्ले की लड़ाई नहीं देखी, गोली नहीं चलाई वह न्यूक्लियर वार पर ऐसे ज्ञान दे रहा हो जैसे परमाणु बम उस की जेब में पड़ा हो.

टीवी चैनल इस तरह से युद्व की कमेंट्री कर रहे थे जैसे युद्ध न हो कर वह आईपीएल मैच हो. देश में पहली बार सोशल मीडिया के जमाने में भारतपाक के बीच टकराव टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर दिख रहा था. टीवी चैनलों ने भारतीय सेना को पाकिस्तान में घुसा दिखा दिया. नेवी का कराची बंदरगाह पर हमला दिखा दिया.

पाकिस्तान सेना के प्रमुख जनरल आसिम मुनीर को हटाने और नया सेना प्रमुख शमशाद मिर्जा को बनवा दिया. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को ले कर खबरें देने लगे. ऐसा लगा जैसे रात में ही पाकिस्तान में तख्तापलट हो जाएगा.

पहलगाम में आतंकी हमले के भारत ने पाकिस्तान में आतंकी हमलावरों और उन के ठिकानों को खत्म करने की बात कही थी. भारत ने पाकिस्तान को भारत में मिलाने, पाकिस्तान से युद्व करने जैसी कोई बात नहीं कही थी. सोशल मीडिया और टीवी चैनलों ने ऐसा नैरेटिव बना दिया जैसे भारत व पाकिस्तान का युद्व खतम हुआ हो.

इस की तुलना 1971 के युद्व से की जाने लगी और पूछा जाने लगा कि पाकिस्तान के चार टुकड़े क्यों नहीं किए गए? सवाल यह भी उठने लगा कि सीजफायर क्यों हुआ? अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ले कर तमाम सवाल होने लगे. यह लोग इस को अभिव्यक्ति की आजादी से जोड़ देते हैं.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

1987 अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार देता है. यह बोलने, सुनने और राजनीतिक, कलात्मक और सामाजिक जीवन में भाग लेने का अधिकार है. इस में ‘जानने का अधिकार’ भी शामिल है. जब आप अपने विचार औनलाइन या औफलाइन देते हैं तो आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे होते हैं. जब आप अपनी सरकार की उस के वादों पर खरा न उतरने के लिए आलोचना करते हैं, तो आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे होते हैं.

जब आप धार्मिक, राजनीतिक, सामाजिक या सांस्कृतिक प्रथाओं पर प्रश्न उठाते हैं या बहस करते हैं, तो आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे होते हैं. जब आप किसी शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में भाग लेते हैं या उस का आयोजन करते हैं, तो आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे होते हैं.

जब आप कोई कलाकृति बनाते हैं तो आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे होते हैं. जब आप किसी समाचार लेख पर टिप्पणी करते हैं चाहे आप उस का समर्थन कर रहे हों या उस की आलोचना कर रहे हों. तो आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अपने अधिकार का प्रयोग कर रहे होते हैं.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता राजनीतिक असहमति, विविध सांस्कृतिक अभिव्यक्ति, रचनात्मकता और नवाचार के साथसाथ आत्मअभिव्यक्ति के माध्यम से व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए मौलिक है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संवाद को सक्षम बनाती है, समझ का निर्माण करती है और सार्वजनिक ज्ञान को बढ़ाती है.

जब हम विचारों और सूचनाओं का स्वतंत्र रूप से आदानप्रदान कर सकते हैं, तो हमारा ज्ञान बढ़ता है, जिस से हमारे समुदायों और समाजों को लाभ होता है. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमें अपनी सरकारों से सवाल पूछने में भी सक्षम बनाती है, जो उन्हें जवाबदेह बनाए रखने में मदद करती है.

सवाल पूछना और बहस करना स्वस्थ है. इस से बेहतर नीतियां और अधिक स्थिर समाज बनते हैं. यहां यह भी समझना जरूरी है कि सवाल किस तरह से पूछे जाएं? मखौल उड़ाते हुए और अपमानजनक, शब्द, विचार और फोटो या वीडियो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं का उल्लघंन करते हैं.

सोशल मीडिया ने बदल दिया माहौल

पहले जब चौराहों पर चर्चा होती थी तब इन का दायरा 8-10 लोग होते थे. चर्चा आपस में होती थी दोनों पक्ष एकदूसरे से तर्क कर लेते थे. बात एक सीमित दायरे में रहती थी. समाचार पत्रों में जो लेख प्रकाशित होते थे उन के साथ भी लोग सहमत और असहमत होते रहते थे. इस के लिए वह संपादक के नाम पत्र में इस बात का जिक्र करते थे. वह अपने तर्क देते थे जिन को समाचार पत्रों में प्रकाशित भी किया जाता था. तर्क लिख कर देने होते थे तो तर्क देने वाला किताबों से पढ़ कर तर्क जुटा लेता था.

सोशल मीडिया पर चर्चा एक पक्षीय होती है. सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाला जरूरी नहीं कि अपनी सफाई दे या जो उस की पोस्ट के विपरीत जो बातें हैं उन के जवाब दे. सोशल मीडिया पर तर्क की जगह कुर्तक ज्यादा होते हैं. कई बार ऐसे लोग तर्क देने लगते हैं जिन को उस विषय में पता ही नहीं होता है. ताजा उदाहरण भारत व पाकिस्तान टकराव के समय देखने को मिला.

कई ऐसे फोटो और वीडियों दोनो ही पक्षों ने बना कर पोस्ट और फारवर्ड किए जो बेहद आपत्तिजनक हैं. सूचनाएं बेहद भ्रामक हैं. यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं का उल्लघंन है.

इन में सोशल मीडिया से भी बड़ी भूमिका टीवी चैनलों की रही है. अर्नब गोस्वामी ने रिपब्लिक भारत पर कहा ‘अमेरिका कौन होता है सीजफायर कराने वाला?’ वह अपने अलगअलग कार्यक्रमों में इस तरह की बातें करते रहे जिन का कोई जमीनी आधार नहीं है.

सीजफायर पर बात करते अर्नब गोस्वामी ने कहा कि ‘पाकिस्तान और अमेरिका ने एक प्रेम कहानी मिल कर लिखी है. जिस में चीन कह रहा कि मोहब्बत उस से और कहानी अमेरिका से’. यह बात केवल रिपब्लिक भारत की बात नहीं है.

दूसरे चैनलों ने भी इसी तरह की रिपोर्ट पेश की गई. जिस का कोई आधार नहीं था. इन में श्वेता सिंह, चित्रा त्रिपाठी और रूबिका लियाकत जैसे कई एंकरों ने 7 मई की रात जिस तरह से पाकिस्तान के बारें में खबरें दी उन की सुबह कोई खबर नहीं थी.

कई खबरें तो चैनलों से हट गई. खबरों में कुछ होता था और उन के थंबनेल पर कुछ और लिखा होता था. इस तरह से दर्शक पूरी तरह से भ्रमित थे. उन को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करें?

टीवी के एंकर जिस तरह से एक तरफ से दूसरी तरफ कूदकूद कर बता रहे थे उसे देख कर यह नहीं लग रहा था कि कोई युद्ध की रिपोर्ट दिखाई दे रही. उस को देख कर लग रहा था जैसे आईपीएल क्रिकेट मैच या फिर चुनावी मतगणना चल रही थी.

टीवी चैनलों पर होड़ लगी थी कि कौन कितनी बड़ी झूठ फेंक सकता है. किसी ने कराची बंदरगाह उड़वा दिया तो किसी ने इस्लामाबाद कब्जा करा दिया.

कुछ चैनलों ने पाकिस्तान के सेना प्रमुख आसिफ मुनीर को हटवा शमशाद अहमद को सेना प्रमुख बना दिया. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ का तख्ता पलट करा दिया.

कुछ चैनलों ने इस बात को फैलाने का काम भी किया जैसे आसिफ मुनीर को पकड़ लिया गया है और उस को भारत लाया जा रहा है. उस पूरी रात ऐसा माहौल पूरे देश में बना दिया जैसे सुबह भारत व पाकिस्तान में अपना झंडा फहरा देगा. इस तरह की रिपोर्टिंग दोनों ही तरफ से हुई. हिंदू जैसे अखबार ने एक गलत खबर अपने डिजिटल एडीशन में पोस्ट की बाद में उस को हटाया और माफी मांग ली.

खराब हुआ माहौल

टीवी, सोशल मीडिया और डिजिटल मीडिया ने पूरे देश का महौल खराब कर दिया. देश को लगा जैसे भारत व पाकिस्तान युद्ध हो रहा है. 1971 की तरह भारत व पाकिस्तान के कम से कम 2 टुकड़े ब्लूचिस्तान और पीओके तो कर ही देगा. इन खबरों की वजह से देश की जनता को भी यह उम्मीद जग गई. वह यह भूल ही गए कि यह युद्व नहीं है. यह भारत की आतंकियों के खिलाफ जंग थी. जिस का पाकिस्तान की सेना से कोई मतलब नहीं था. यह सारे हमले मिसाइल के जरिए हो रहे थे. सेनाएं आमनेसामने नहीं थी.

8 मई को जब देश ने देखा कि सोशल मीडिया और टीवी चैनलों ने देश में युद्ध सा माहौल बना दिया तो भारत सरकार की तरफ से इस की एक गाइडलाइन जारी हुई. जिस के तहत कहा गया कि कोई भी टीवी चैनल अपनी खबरों को दिखाते समय युद्व का सायरन नहीं बजाएगा.

युद्ध के वीडिया बिना सच्चाई जाने नहीं दिखाएगा. इस तरह से खबरें न दिखाई जाएं जिस से देश का माहौल खराब हो. इस के बाद भी जनता यह मान चुकी थी कि भारत व पाकिस्तान युद्ध हो रहा है. इन खबरों का असर यह हुआ कि जब दोनों देशों के बीच हमले रोकने के बात हुई तो जनता को बेहद निराशा हुई.

जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक दिन पहले तक हीरो थे उन को लोग बुराभला कहने लगे. इन की शिकायत एक थी कि बिना पाकिस्तान के टुकड़े किए युद्व विराम क्यों हुआ? युद्व विराम की घोषणा अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने क्यों की? इस की सफाई देने के लिए 2 बार सेना ने प्रेस कान्फ्रैंस की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपना संदेश भी दिया.

इस के बाद भी जनता के सवाल कायम है कि सीजफायर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कहने पर क्यों किया? यही नहीं जनता ने यह खोज निकाला है कि गौतम अडानी को लाभ दिलाने के लिए नरेंद्र मोदी ने युद्व को बीच में रोक दिया.

यह हालात बनाने में सोशल मीडिया के सतही ज्ञान और टीवी चैनलों की गैर जिम्मेदारी भरी रिपोर्टिंग रही है. इस ने जनता के मन पर इतना गहरा असर डाला कि लोग उसे ही सही मानने लगे हैं. जिस तरह से पौराणिक कथाओं में बारबार एक ही बात दोहराई जाती है जिस को लोग सच मान लेते हैं उसी तरह से टीवी चैनलों और सोशल मीडिया की खबरों को सच मान लिया गया.

अब सवाल मोदी और ट्रंप की दोस्ती पर उठ रहे हैं. यह कहा जा रहा है कि ट्रंप ने मोदी को धोखा दिया है. डिप्लोमेसी को न समझने वाले लोग भी डिप्लोमेसी की बात बता रहे हैं.

हमारा समाज पौराणिक काल से तर्क की जगह सुनीसुनाई बातों पर यकीन करने वाला रहा है. रामायण में धोबी की कही सुनी बात पर राजा राम ने अपनी पत्नी सीता का घर से निकाल कर जंगलों में भेज दिया. आज भी सच से ज्यादा तेज अफवाहें फैलती हैं. कहीं आदमी पत्थर का बन जाता है तो कहीं मूर्तियां दूध पीने लगती हैं.

सोशल मीडिया के जमाने में इस तरह की अफवाहें खूब फैल रही हैं. टीवी चैनल कभी स्वर्ग में सीढ़ी लगा रहे हैं तो कभी 2 हजार के नोट में चिप लगा रहे हैं. युद्ध काल में इस तरह की खबरें न केवल भ्रम फैलाती हैं बल्कि सेना के मनोबल पर भी असर डालती हैं.

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