Hindu : नेपाल की जनता राजशाही की वापसी के लिए आंदोलन कर रही है. राजशाही के जरिए हिंदूराष्ट्र की वापसी का रास्ता तैयार हो रहा है. जिस से कर्मकांड राज का सरकार चला सके ऐसा नेपाल में ही नहीं हो रहा अमेरिका जैसे दूसरे देश भी धार्मिक राज्य के हिमायती हैं.
राज लोकतंत्र का हो या राजशाही का कुछ समय के बाद जनता उस में बदलाव चाहती ही है. उसे लगता है कि अच्छे भविष्य के लिए यह बदलाव जरूरी है. राज बदलने से जनता की परेशानियां हल नहीं होतीं ऐसे में एक समय तक इंतजार करने के बाद वह वापस उसी को बदलने के लिए तैयार हो जाती है जिसे वह कुछ समय पहले बहुत बेहतर मान कर लाई थी. ताजा उदाहरण बंग्लादेश का है.
बंग्लादेश में रातोरात वहां की प्रधानमंत्री षेख हसीना को देश छोड कर भागना पडा. इसके बाद जिस तरह से आंदोलन करने वालों ने उनके कपडो की नुमाइश की वह बेहद शर्मनाक था. भीड का गुस्सा इसी तरह का होता है. उनके अंदर अपनी सोचने की क्षमता नहीं होती है. षेख हसीना के बाद मोहम्मद यूनुस बंग्लादेश के प्रधानमंत्री बने. कुछ माह में ही देश की जनता का मोह भंग हो गया.
भारत में भी ऐसा पहले होता रहा है. प्रधानमंत्री के रूप में इंदिरा गांधी को सब से सफल माना जाता है. इमरजैंसी के बाद उन की लोकप्रियता घट गई. उन की पार्टी 1977 में बुरी तरह से चुनाव हारी. इस के 3 साल बाद ही जनता ने वापस 1980 में उन को चुनाव जितवा दिया. नेपाल भारत का पडोसी देश की नहीं ‘मित्र राष्ट्र’ भी है. नेपाल जाने के लिए किसी भी तरह के वीजा या पासपोर्ट की जरूरत नहीं होती है.
कैसे पलटा नेपाल में राजशाही का दौर
नेपाल में हिंदू राजशाही का दौर लगभग 240 साल तक चला. हिंसक संघर्ष के बाद 2008 में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम हुई. नेपाल में 1996 में माओवादियों के नेतृत्व में गृहयुद्ध शुरू हुआ. इस के कुछ ही साल बाद 2001 में राजमहल में तत्कालीन राजा बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह और उन के पूरे परिवार की हत्या कर दी गई. इस हत्याकांड के बाद ज्ञानेंद्र शाह नेपाल के महाराज घोषित किए गए. उन की ताजपोशी के वक्त नेपाल में माओवादी हिंसा फैल चुकी थी.
2005 में ज्ञानेंद्र शाह ने संविधान निलंबित कर संसद को भंग कर दिया. इस के बाद लोकतंत्र समर्थक भी माओवादियों के साथ मिल गए देश में राजशाही के विरुद्ध बड़े प्रदर्शन होने लगे. आखिकार नेपाल में राजशाही ढह गई. देश में 1996 से 2006 तक चले गृहयुद्ध में 16 हजार से ज्यादा लोगों की जान गई. 2008 में नेपाल की संसद ने देश में 240 साल से हुकूमत कर रही हिंदू राजशाही को भंग कर दिया.
17 साल में 14 सरकारों के बाद भी बढी अस्थिरता
नेपाल लोकतंत्र की राह पर तो चल पड़ा, लेकिन राजनीतिक स्थिरता नहीं बन पाई. 2008 से 2025 के बीच नेपाल 14 सरकारें देख चुका है. इन में भी 3 मौकों पर पुष्प कमल दहल प्रधानमंत्री बने और 4 अवसरों पर केपी शर्मा ओली. 17 साल के लोकतांत्रिक इतिहास में 14 सरकारें बता रही है कि उन के लिए नेपाल में राज करना बेहद कठिन कार्य है. फरवरी 2025 में आए करप्शन परसेप्शन इंडेक्स में नेपाल 180 देशों की लिस्ट में 107 वें नंबर पर था. ट्रांसपेरेंसी इंटरनैशनल ने इस इंडेक्स में नेपाल को 100 में से 34 अंक दिए. नेपाल की जनता महंगाई और अस्थिरता से परेशान हैं अब उसे इस से बाहर निकालने का रास्ता नहीं दिख रहा है.
ऐसे में 17 साल बाद नेपाल में एक बार फिर राजशाही की मांग गूंजने लगी है. नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का राजधानी काठमांडू में जोरदार स्वागत हुआ. राजशाही का समर्थन करने वाले हजारों लोग स्वागत के लिए एयरपोर्ट के गेट पर मौजूद थे. उन के हाथ में नेपाल के झंडे थे. वह नारे लगा रहे थे कि ‘महाराज लौटो, देश बचाओ’.
77 साल के ज्ञानेंद्र शाह अब तक नेपाल की राजनीति के बारे में बोलने से बचते रहे हैं, लेकिन हाल के समय में वह अपने समर्थकों के साथ सार्वजनिक रूप से कई बार नजर आए हैं. इसी साल फरवरी में राष्ट्रीय लोकतंत्र दिवस की वर्षगांठ के मौके पर पूर्व राजा ने एक बयान जारी कर कहा है, “अब समय आ चुका है, अगर हम अपने देश और अपनी राष्ट्रीय एकता को बचाना चाहते हैं, तो मैं सभी देशवासियों से नेपाल की समृद्धि और प्रगति के वास्ते हमारा समर्थन करने की अपील करता हूं.”
राजशाही नहीं कर्मकांड राज की वापसी
असल में नेपाल की जनता राजशाही नहीं चाहती है वह वापस हिंदू कर्मकांड की वापसी चाहती है. दक्षिणपंथ पूरी दुनिया में हावी होता दिख रहा है. भारत में संघ परिवार और भाजपा शुरू से नेपाली राजतंत्र तथा हिंदूराष्ट्र की समर्थक रही है. भारत में भाजपा के लगातार सत्ता में रहने पर नेपाल में भी ये ताकतें अपना प्रभाव बढ़ा रही हैं. नेपाल की तराई में नेपाल के इतिहास में पहली बार हिंदूमुसलिम दंगे हुए जिन को रोकने के लिए कर्फ्यू तक लगाना पड़ा था. संघ परिवार से जुड़ी हिंदूवादी ताकतें पूरी कोशिश कर रही थीं कि नेपाल में एक धर्मनिरपेक्ष संविधान न लागू हो तथा वह हिंदूराष्ट्र बना रहे.
उत्तराखंड राज्य की सरकार के मुख्यमंत्री भगतसिंह कोश्यारी ने अपनी नेपाल यात्रा के दौरान यहां तक कह दिया था कि ‘नेपाल में भारी पैमाने पर भारतीय हिंदू तीर्थयात्रा के लिए जाते हैं. अगर नेपाल हिंदूराष्ट्र नहीं रहा तो इस पर बुरा असर पड़ेगा’.
धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र से नेपाल के वापस हिंदू राष्ट्र बनने की राह आसान नहीं है. 2006 में नेपाल की राजधानी काठमांडू की सड़कों पर पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र शाह का नाम उन को हटाने के लिए गूंज रहा था, अब 2025 में भी ये नाम उनको वापस लाने के लिए गूंज रहा है.
नेपाल के लोगों की मांग सिर्फ राजशाही की वापसी की नहीं, बल्कि देश को वापस हिंदू राष्ट्र घोषित करने की भी हो रही है. नेपाल में फैली इसी अव्यवस्था को मुद्दा बना कर राजशाही समर्थक फिर से राजशाही और हिंदू राष्ट्र के समर्थन में प्रदर्शन कर रहे हैं. नेपाल में जो व्यवस्था है, उसे ले कर कहीं न कहीं गहरी निराशा है. भ्रष्टाचार है, अव्यवस्था है, जिस तरह से सरकार को काम करना चाहिए था, वह नहीं हो पाया है. नेपाल में मंत्रियों की अधिक संख्या के बाद भी भ्रष्टाचार खत्म नहीं हो पाया. लोग मानते हैं कि इस से बेहतर तो राजशाही का दौर था.
राजशाही के लिए जो पार्टियां आंदोलन कर रही हैं, वह इस बात को समझ रही हैं कि हिंदू राष्ट्र के लिए समर्थन ज्यादा है. लोग हिंदू राष्ट्र नहीं कर्मकांड राज की वापसी चाहते हैं. वह भारत को देख रहे हैं. जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ज्यादातर समय कर्मकांडों में गुजरता है. चाहे कुंभ में डुबकी लगाना हो, अयोध्या, काशी और उज्जैन में मंदिर दर्शन करना हो. नेपाल भी इसी तरह का बदलाव चाहता है.
नेपाल ही नहीं अमेरिका में भी यह बदलाव हो रहा है. इस को प्रोजैक्ट 2025 का नाम दिया गया है. यह अमेरिका की दक्षिणपंथी विचारधारा को दिखाता है. प्रोजैक्ट 2025 को बनाने में 100 से अधिक रूढ़िवादी संगठनों ने योगदान दिया है. प्रोजैक्ट 2025 में न्याय विभाग जैसी स्वतंत्र एजेंसियों को सीधे राष्ट्रपति के नियंत्रण में रखा है. इस से निर्णय लेने की प्रक्रिया सरल हो जाएगी तथा राष्ट्रपति को कई क्षेत्रों में नीतियों को सीधे लागू करने की सुविधा मिल जाएगी. एलन मस्क की भूमिका भी इस में प्रमुख है. राष्ट्रपति ट्रम्प को सलाह देने वाली एक बाहरी टीम भी है.
प्रोजैक्ट 2025 में गर्भपात का उल्लेख सब से विवादास्पद माना जाता है. इस में पूरे देश में गर्भपात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की बात नहीं कही गई है. प्रोजैक्ट 2025 में पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध लगाने तथा वयस्क सामग्री तक पहुंच की अनुमति देने वाली कंपनियों को बंद करने का सुझाव दिया गया है. डैमोक्रेट्स इस का विरोध कर रहे हैं.
एक तरह से देखें तो रुढ़िवादी सोच और विचारधारा नेपाल ही नहीं अमेरिका जैसे दूसरे देशों में भी फैली हुई है. यह लोकतंत्र के लिए खतरा है. ट्रंप ने दूसरी बार राष्ट्रपति बनने के बाद तमाम ऐसे फैसले किए हैं जो पूरी दुनिया को पंसद नहीं आ रहे. उन की आलोचना हो रही है. अब नेपाल में राजशाही की वापसी के लिए हो रहे आंदोलन से क्या हासिल होगा यह देखने वाली बात है. राजशाही की वापसी किसी भी तरह से देश के हित में नहीं है क्योंकि यह राजशाही हिंदू कर्मकांड की वापसी हो रही है.