Uttar Pradesh : सरकारी संस्थाएं चाहे वह विकास प्राधिकरण, अस्पताल, स्कूल और रेल या बस की सुविधा देने वाले हों इन का उद्देश्य जनता को प्राइवेट सेक्टर से कम कीमत में सुविधा देना होता है. लखनऊ विकास प्राधिकरण प्राइवेट बिल्डरों से भी अधिक मुनाफाखोरी और भ्रष्टाचार वाली संस्था बन गई है.
लखनऊ विकास प्राधिकरण के गोमतीनगर स्थित मुख्यालय में जेई और बिल्डर के बीच पैसे को ले कर हुए विवाद का वीडियो वायरल होने के बाद विकास प्राधिकरण के उपाध्यक्ष प्रथमेश कुमार ने भ्रष्टाचार के खिलाफ दागदार अवर अभियंता रवि प्रकाश यादव के खिलाफ बड़ी कार्रवाई करते हुए जेई के खिलाफ कार्रवाई के लिए शासन को रिपोर्ट भेज दी थी. मामले का संज्ञान लेते हुए 24 घंटे के भीतर नगर विकास के प्रमुख सचिव पी. गुरुप्रसाद ने जेई को निलंबित कर दिया.
प्रवर्तन जोन-7 में तैनात अवर अभियंता रवि प्रकाश पर सआदतगंज के रामनगर में हो रहे एक व्यावसायिक निर्माण में बिल्डर से घूस लेने का आरोप लगा था. शासन में पुनरीक्षण वाद योजित होने के बावजूद अवर अभियंता ने गलत तरीके से ध्वस्तीकरण की कार्यवाही के लिए फाइल चला दी थी. बिल्डर व उस के सहयोगियों ने एलडीए कार्यालय में आ कर अवर अभियंता से घूस की रकम का तगादा किया था.
वायरल वीडियो का संज्ञान लेते हुए एलडीए उपाध्यक्ष प्रथमेश कुमार ने कठोर कदम उठाते हुए अवर अभियंता को निलंबित करने को ले कर शासन को संस्तुति भेजी थी. जिस के क्रम में नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव पी. गुरुप्रसाद ने आरोपी जेई को निलंबित कर दिया.
अजय प्रताप वर्मा मूलरूप से उन्नाव के अजगैन का रहने वाला है. अजय व इस के चार साथियों के खिलाफ एलडीए के तत्कालीन उप सचिव माधवेश कुमार ने वर्ष 2022 में केस दर्ज कराया था. 2022 में अजय कनिष्ठ लिपिक था. तत्कालीन उप सचिव के पास सेल्स एग्रीमैंट आया था. एग्रीमैंट त्रिवेणी नगर के आदर्श पुरम निवासी शिवानी रस्तोगी का नाम पर था. इस में लिखा था कि शिवानी ने गोमतीनगर योजना के तहत एक जमीन एलडीए से खरीदी है. जांच में पता चला कि एग्रीमैंट फर्जी दस्तावेजों के आधार पर तैयार किया गया था.
जमीन बेचने में गवाह भानु प्रताप शर्मा और अभिनव सिंह से पूछताछ में सामने आया कि ठगी में अजय भी शामिल है. आरोपी ने फर्जी दस्तावेज बना कर एलडीए की वेबसाइट पर जमीन का विवरण अपलोड किया था. इस पर आरोपी को निलंबित कर दिया गया था. अजय को जेल भेजा गया.
एलडीए के योजना सहायकों से ले कर संपत्ति अधिकारियों तक के जाली हस्ताक्षर बना 20 करोड़ के 13 भूखंड बेचने के आरोपी रजिस्ट्री सेल के बाबू पवन कुमार को लोहिया पार्क के पास से गिरफ्तार कर लिया गया. इस से पहले गोमतीनगर थाने में उस के खिलाफ तीन केस दर्ज कराए गए थे. पूछताछ के बाद पवन को कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया गया. 9 लोगों ने उस के खिलाफ गोमतीनगर थाने में तहरीर दी.
पुलिस जांच में एलडीए के संपत्ति अधिकारियों के नाम इस्तेमाल कर 13 भूखंडों की रजिस्ट्री कराने के प्रकरण जानकारी में आए थे. इन रजिस्ट्री पर अधिकारियों, योजना सहायक, अनुभाग अधिकारी के हस्ताक्षर जाली मिले. मामले का खुलासा होने पर उस समय के एलडीए वीसी अक्षय त्रिपाठी ने आरोपी बाबू पवन कुमार को निलंबित कर दिया था.
एलडीए ने गोमतीनगर थाने में तहरीर दी थी. गोमतीनगर थाने में पुलिस ने कूटचित दस्तावेज तैयार कर के जालसाजी, धोखाधड़ी आदि धाराओं में तीनों केस दर्ज कर के पवन गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया.
लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) की स्थापना 1972 में हुई थी, डेवलपमेंटएड. यह उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन और विकास अधिनियम, 1973 के तहत स्थापित किया गया था. एलडीए का मुख्य कार्य लखनऊ के शहरी क्षेत्रों की योजना बनाना और उन का विकास करना है. लखनऊ विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष यानी एलडीए के वीसी का पद आईएएस अफसर के पास रहता है. अब 4 आईएएस इस की निगरानी करते हैं इस के बाद भी हालात बुरे हैं.
ऊपर जिन मामलों को लिखा गया है वह एलडीए में भ्रष्टाचार के यह केस केवल बानगी मात्र है. वैसे यह लिस्ट लंबी है. एलडीए न तो जनता के सपने पूरे कर पा रहा न ही रिश्वतखोरी से विभाग को बचा पा रही है.
लखनऊ विकास प्राधिकरण का मुख्य कार्य जनता के लिए सस्ते आवास के लिए प्लाट या अपार्टमेंट देना है. एक छोटे से कार्यालय से एलडीए ने अपना कार्य शुरू किया था. आज उस का अपना एक भव्य औफिस है. जनता के लिए अब वह जो प्लाट या अपार्टमेंट दे रहे वह पूरी तरह से निजी बिल्डर की तरह से व्यवहार कर रहे हैं.
लखनऊ में अनंत नगर मोहान रोड आवसीय योजना इस का सब से बड़ा प्रमाण है. इस में एलडीए ने सब से मंहगे प्लाट लांच किए हैं. जिन की कीमत 45 लाख से ले कर 1.85 करोड़ रुपए के बीच तय की गई है. इतनी अधिक कीमत के प्लाट कभी लखनऊ विकास प्राधिकरण ने नहीं निकाले थे.
लखनऊ विकास प्राधिकरण ने दिखावे के लिए कुछ मकान ईडब्ल्यूएस व एलआईजी श्रेणी रखे गए हैं. इन की कीमत भी इस वर्ग के लोगों की पहुंच से दूर है. इस में प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत भी भवनों का निर्माण किया जाएगा. योजना में भूखंडों के लिए पंजीकरण का शुभारंभ होते ही बड़ी संख्या में लोग वेबसाइट पर लौगइन बना कर फार्म भर रहे हैं. फार्म भरने के लिए 11 सौ रूपए रजिस्ट्रेशन के लिए देने पड़ रहे हैं.
1100 रुपए का औनलाइन भुगतान कर के रजिस्ट्रेशन पुस्तिका खरीदी जाती है. भूखंड की अनुमानित धनराशि का 5 फीसदी धनराशि जमा करा के सफलतापूर्वक रजिस्ट्रेशन कराया जाता है. अगर किसी को 2 हजार स्क्वायर फीट का प्लाट चाहिए जिस की अनुमानित कीमत करीब 80 लाख रुपए होगी. उस का 5 फीसदी करीब 4 लाख पहले जमा करना होगा. अगर लौटरी में नाम निकल आता है तो 8 किश्तों में पूरा भुगतान करना होता है.
अगर आप के नाम प्लाट नहीं निकला तो लखनऊ विकास प्राधिकरण पहले जमा किए 5 फीसदी पैसे को वापस कर देगा. इस के वापस करने की समय सीमा 3 माह है. लेकिन यह बढ़ भी सकती है. यानी जब लखनऊ विकास प्राधिकरण का मन होगा तब वह पैसा वापस देगा. एक खास बात की इस पर कोई ब्याज देने का वादा भी नहीं है.
यानी सैकड़ों लोगों का लाखों रुपया लखनऊ विकास प्राधिकरण के पास जमा रहता है. यह मुनाफाखोरी किसी साहूकार जैसी ही है.
80 लाख का मकान खरीदने के लिए 65 से 70 लाख तक का ही लोन मिल सकता है. अगर 15 साल का लोग लेते हैं तो एक लाख के लोन पर औसतन 1 हजार प्रति माह की किश्त बनेगी. 70 लाख के लोन पर यह रकम 70 हजार हो जाएगी. लखनऊ में जो गरीबी रेखा के नीचे नहीं है उस का मासिक वेतन औसतन 15 से 20 हजार रुपए है.
सवाल उठता है कि 15-20 हजार मासिक वेतन पाने वाला क्या एलडीए की किसी योजना में प्लाट खरीद सकता है? सवाल है यह योजना किस के लिए है?
निजी बिल्डर्स के लिए जो आज इस में पैसा लगाएंगे और जब 5 साल के बाद प्लाट पर मकान बनने शुरू होंगे तो दोगुनी कीमत पर प्लाट बिकेंगे. इस को खरीदने वाले मुनाफाखोर बिजनेसमैन, रिश्वतखोर सरकारी कर्मचारी, दलाल और नेता होंगे. लखनऊ की वृदांवन कालोनी इस का उदाहरण है. जहां 8 से 12 हजार रुपए स्क्वायर फिट के हिसाब से आवासीय प्लौट रीसेल में बिक रहे हैं.
लखनऊ में अपने घर का सपना देखने वालों के लिए लखनऊ विकास प्राधिकरण के पास कोई कारगर योजना नहीं है. 4 हजार रुपए स्क्वायर फिट का पैसा देने के कितने साल के बाद कब्जा मिलेगा यह पता नहीं? 5 साल का वादा लखनऊ विकास प्राधिकरण कर रहा है. लखनऊ विकास प्राधिकरण से निराश लोगों इसी विभाग के भ्रष्टाचार का शिकार हो जाते हैं.
लखनऊ विकास प्राधिकरण के रिश्वतखोर कर्मचारियों की एक अपनी अलग लौबी है. जो रिश्वत ले कर आप के नाम प्लौट निकालने का जिम्मा लेते हैं. 80 लाख वाला प्लाट लेने के लिए 8 लाख की घूस देनी पड़ती है. दूसरा रास्ता यह है कि मकान खरीदने वाला प्राइवेट बिल्डर्स के हाथ चढ़ जाता है जहां अलगअलग तरह का फ्रौड होता है. लखनऊ पुलिस के पास तमाम ऐसे मामले पहुंचते हैं जिन में मकान लेने के नाम पर फ्रौड किया जाता है.
लखनऊ में अनंत नगर मोहान रोड आवसीय योजना में 785 एकड़ के विशाल क्षेत्रफल में टाउनशिप विकसित की जा रही है. जिस में लगभग डेढ़ लाख लोगों के आशियाने का सपना साकार किए जाने का दावा किया गया है. इस में लगभग 2100 आवासीय भूखंड व 120 व्यावसायिक भूखंड होंगे.
इस के अलावा ग्रुप हाउसिंग के 60 भूखंडों में 10,000 से अधिक फ्लैट्स निर्मित किए जाएंगे. योजना में लगभग 100 एकड़ क्षेत्रफल में एडुटेक सिटी विकसित की जाएंगी. जहां लगभग 10,000 छात्रछात्राओं, शिक्षकों एवं फैकल्टी के सदस्यों के लिए हास्टल व आवासीय भवन बनाए जाएंगे. इस योजना को तैयार होने में 12-13 साल का समय लग गया है.
कितना बदल गया है लखनऊ विकास प्राधिकरण
एक छोटे औफिस और एक आईएएस से शुरू हुआ लखनऊ विकास प्राधिकरण 50 साल के सफर में आलीशान औफिस और 4 आईएएस अधिकारियों तक पहुंच गया है. पहले एलडीए वीसी ही अकेला आईएएस होता था. अब एलडीए वीसी से साथ ही साथ सचिव और ओएसडी के पदों पर भी आईएएस अफसर हैं.
इस के अलावा कमीश्नर लखनऊ के ऊपर भी एलडीए की जिम्मेदारी होती है. कुल 4 आईएएस अफसर इस की निगरानी करते हैं. दूसरी ओर, शहर में अवैध निर्माण से ले कर आवासीय योजनाओं तक हालात ठीक नहीं हैं. हर महीने जनता अदालत, जन सुनवाई और दिव्यांग दिवस जैसे आयोजन बस दिखावा बने हुए हैं.
लखनऊ विकास प्राधिकरण की स्थिति सुधरती हुई नजर नहीं आ रही है. जहां उस का काम जनता के अपने घर के सपने को पूरा करने का था वहां अब वह प्राइवेट बिल्डर से भी बड़ी सूदखोर संस्था बन गई है. पिछले 15-20 सालों में देखे तो एलडीए की नाकामी के चलते लखनऊ में बड़ेबड़े प्राइवेट बिल्डर्स आ गए हैं.
लखनऊ विकास प्राधिकरण और आवास विकास परिषद जैसी दोनों सस्थाएं जनता के सपनों को पूरा करने में सफल नहीं हो रही है. प्लाट या अपार्टमेंट एलौट करने के बाद नक्षा बनवाने, अवैध निमाण के नाम पर लंबीचौड़ी रिश्वतखोरी होती है. घरों का व्यवसायिक उपयोग करने नाम पर रिश्वतखोरी होती है. एलौट की गई संपत्ति की सालोंसाल रजिस्ट्री नहीं होती है. जिस ने भी एलडीए से प्लाट या मकान लिया है उस के पास एलडीए के भ्रष्टाचार की एक कहानी मिल जाती है. सब से अधिक भ्रष्ट औफिसों में एलडीए का नाम आता है. अवैध निर्माण में अगर कोई बिल्डिंग सील कर भी दी जाती है, तो उस के बाद भी फिर से करप्शन मीटर चलने लगता है.
रिश्वतखोरी का अड्डा
बिल्डिंग की कंपाउंडिंग के नाम फिर से लाखों का खेल शुरू होता है. रिश्वत के बल पर ढाई मंजिल निर्माण की वैधता वाली बिल्डिंग में 3 से 7 मंजिल तक का निर्माण हो जाता है. पहले यह रिश्वत ले कर अवैध निर्माण कराते हैं. इस के बाद बिल्डिंग अगर सील करते हैं. फिर उस को खुलवाने के लिए दो लाख रुपए प्रति मंजिल का खर्च दोबारा करना पड़ता है.
प्राधिकरण में जो कागज रखे जाते हैं, उन में कहा जाता है कि, जितनी बिल्डिंग अधिकतम वैध संभव है उस की कंपाउंडिंग जमा की जा रही है. जब कि बकाया जितना गलत है उस को ध्वस्त करने का शपथपत्र लगाया जाता है.
बैंक गारंटी भी जमा की जाती है. इस के बाद सील खोल दी जाती है. मगर तोड़ा कुछ नहीं जाता है. मिलीभगत कर के बैंक गारंटी भी वापस ले ली जाती है. एक सील बिल्डिंग को खोलने के लिए कम से कम 6 लाख का खर्च प्राधिकरण में जेई से ले कर उच्च अभियंताओं तक जाता है. प्राधिकरण में इस तरह के करीब 100 बिल्डिंगों में खेल चल रहा है. रोजाना अनेक सील बिल्डिंगों की पत्रावलियां अधिकारियों के समक्ष रखी जाती हैं इस खेल में करोड़ों की हेराफेरी होती है.
पहले वह जो 2 लाख रुपए फ्लोर और 50 हजार रुपए महीने दे रहा था, वह अब एक लाख रुपए महीना और 3 लाख रुपए फ्लोर हो जाता है. बिल्डिंग की सील खुलवाने का खर्च अलग से देना पड़ता है. जितनी अधिक फ्लोर हैं, प्रत्येक फ्लोर का दो लाख रुपए का खर्च होता है. इस के बाद में सारी प्रक्रिया धीरेधीरे एलडीए से पूरी करा ली जाती है. इस दौरान इंजीनियरों की मौके की रिपोर्ट और फोटोग्राफ तक कुछ इस अंदाज में खींचे जाते हैं कि, वे बिल्डर के प्रत्यावेदन के अनुरूप रहें ताकि सील खुलने में कोई परेशानी न हो.
अवैध बिल्डिंग में 45 से 70 लाख रुपए कीमत के फ्लैट बेचे जा रहे हैं. औसतन, 5 मंजिल की एक बिल्डिंग जो कि 4000 वर्ग फीट उस में 20 फ्लैट बनाए जाते हैं. लगभग 25 करोड़ रुपए में ये फ्लैट बिकते हैं. जब कि बिल्डिंग निर्माण व भूमि का खर्च मिला कर 3 करोड़ रुपए से अधिक का नहीं आता है. इस का सीधा अर्थ है अवैध बिल्डिंग के निर्माण में तिगुना फायदा होता है. इस लाभ का एक हिस्सा बतौर घूस एलडीए को जाता है. एलडीए का काम लखनऊ के विकास और यहां रहने वालों को किफायती दामों पर घर दिलाना है. एलडीए अपने दोनों ही पैमानों पर खरी नहीं उतर रही है.