College Ragging Cases : केरल के कालेज औफ नर्सिंग में जिस क्रूर ढंग से सीनियर लड़कों ने नए लड़कों से रैगिंग की, वह यह बताता है कि परपीड़न, सैडिज्म किस तरह हम भारतीयों के रगरग में भरा हुआ है. अपने को शांतिप्रिय विश्वगुरु मानने वाले, लाखों देवीदेवताओं में अगाध श्रद्धा रखने वालों के बच्चे खुलेआम सैडिस्टिक बिहेवियर का प्रदर्शन करते हैं और उस समय इकट्ठा हुई उन्हीं की उम्र के दूसरे लड़कों की भीड़ खुशी से तालियां बजाती है, हंसती है, ठहाके लगाती है.

रैगिंग बुलिंग के मामले सारी दुनिया में होते रहते हैं पर सारी दुनिया के लोग अपने को विश्वगुरु नहीं मानते. यह तमगा तो हम ने ही खुद को दे रखा है. हम ही विश्वशांति का ढोल पीटते हैं जबकि अपनी कायरता, कमजोरी और बंटवारे को धर्म की कांटेदार चादरों से ढकते रहते हैं.

केरल से हाल ही में कई मामले आए. श्रीनारायण इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस, श्रीनारायण कालेज, सीएसआई इंस्टिट्यूट औफ लीगल स्टडीज और गवर्नमैंट कालेज औफ नर्सिंग आदि सभी में आए नए छात्रों के साथ सीनियर छात्रों द्वारा बेहद क्रूर व वीभत्स रैगिंग की गई.

किन्नौर में तो एक मांबाप ने शिकायत की कि उन के 9वीं कक्षा के बेटे ने 12वीं कक्षा के छात्र द्वारा की गई उस की रैगिंग से अपमानित होने पर आत्महत्या कर डाली. गनीमत यह है कि रैगिंग में लड़के अभी तक लड़कों की ही रैगिंग करते हैं पर भयंकर बात यह है कि इस रैगिंग में आमतौर पर प्राइवेट पार्ट्स को छेड़ा जाता है. जो समाज दिनरात नैतिकता का गुणगान करता है, जहां सैक्स इश्यू है वहां लड़के माथे पर तिलक लगाए कमजोर छात्रों के प्राइवेट पार्ट्स को सब के सामने दिखाने और उन से छेड़छाड़ करने में जरा भी नहीं हिचकिचाते.

यह सम झ नहीं आता कि जिस समाज को पाप धोने के लिए गंगा में डुबकी लगाने के लिए लगी रहती है या जो जमीन पर लोटलोट कर मीलों मंदिरों तक पहुंचने को पाप धोना कहता है वह इस तरह के पापों को सहज क्यों लेता है. दरअसल, यह हमारे दोगलेपन की निशानी है. यह हमारे अंदर बैठे जानवर से भी ज्यादा क्रूर जीव के होने की भी निशानी है.

असल में रैगिंग दुनियाभर में गरीबों के बच्चों की ज्यादा होती है. हमारे यहां जब भी ऊंची जातियों के स्कूलकालेजों में पिछड़ी या निचली जातियों के इक्केदुक्के छात्र आ जाते हैं तो उन्हें बुरी तरह प्रताडि़त किया जाता है. वैसे, छात्रों ने आम जीवन में अपने परिवारों के आसपास की पिछड़ी व निचली जातियों के लोगों के साथ अकसर होता क्रूर व्यवहार देखा होता है.

ड्रग्स ने इस समस्या को और गहरा किया है क्योंकि बहुत बार रैगिंग करने वाले शराब और ड्रग में आधे मदहोश होते हैं और उन्हें, सही का तो मालूम ही नहीं, गलत क्याक्या करना है, इस की पूरी ट्रेनिंग मिली होती है.

हमारे नेता, पुलिस, अदालतें उपदेश दे कर बच निकलते हैं. धर्मगुरु पिछले जन्मों के पापों का फल कह कर बच निकलते हैं. जो पीडि़त हुए वे अगले साल नए छात्रों को उस से ज्यादा पीड़ा देने की ठान लेते हैं. रैगिंग एक बार का मामला नहीं है. यह हर संस्थान का ट्रेडमार्क ट्रैंड जैसा है.

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