Blinkit : भारत में एक अलग ही ट्रैंड देखने को मिल रहा है मिनटों में डिलीवरी का, जो एक गेमचेंजर माना जा रहा है. युवा दस मिनट की डिलीवरी के आदी हो रहे हैं. ये डिलीवरी ऐप्स उन की साइकोलौजी के साथ खेलती हैं, जिस से जरूरत न होने पर भी वे सामान खरीद रहे हैं. जानें क्या है उन की मार्केटिंग स्ट्रेटजी और कैसे लोग उन के जाल में फंसते जा रहे हैं.

संदीप अपने बौस का सब से फेवरेट एंप्लौई है. एक दिन उस ने अपने बौस को घर पर डिनर के लिए इनवाइट किया, क्योंकि कुछ ही दिनों में बेस्ट एंप्लौई का इन्क्रीमैंट होने वाला था. संदीप ने बौस को पटाने के लिए यह डिनर और्गेनाइज किया था. तय डेट पर बौस डिनर करने पहुंचे. संदीप की पत्नी ने काफी पकवान बनाऐ थे. लेकिन हड़बड़ी में बौस का फेवरेट डेजर्ट जलेबी लाना भूल गए. जब बौस ने फरमाइश की तो दोनों एकदूसरे को घूरने लगे. तभी संदीप की पत्नी ने जेप्टो कैफे, जो मात्र 10 मिनट में खाने की डिलीवरी कर देता है, से जलेबी मंगवा ली. जैसा कि ऐप का दावा है 10 मिनट में डिलीवरी, मात्र 10-11 मिनट में ही जलेबी घर पहुंच गई और संदीप की लाज रह गई.

इसी तरह घर में किसी सामान की जरूरत पड़ती है तो हम झट से ऐप खोल कर और्डर कर देते हैं और कुछ ही मिनटों में फल, सब्जियां, घर का कोई सामान या दवाएं सबकुछ हमारे दरवाजे तक पहुंच भी जाती हैं. कुछ कंपनियां तो 8-10 मिनट के भीतर डिलीवरी का दावा करती हैं, जो सच में एक रिकौर्ड बन गया है. सामान खोजने और और्डर करने में ज्यादा समय लगता है, डिलीवरी तो बस चुटकियों में हो जाती है. सामान घर पहुंचने पर हमें यह अच्छा लगता है कि बिना कहीं जाए घर बैठेबैठे हमारी जरूरत पूरी हो गई और ऊपर से कुछ छूट भी मिल गई. आखिर कौन नहीं चाहता कि घर बैठेबैठे उसे उस की जरूरत का सामान मिलता रहे वह भी मिनटों में.

बीते कुछ सालों में इंडिया में क्विक डिलीवरी का क्रेज तेजी से बढ़ता जा रहा है. क्विक कौमर्स की मदद से डिलीवरी करने का क्रेज इसलिए तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि कंज्यूमर्स जितनी जल्दी हो सके, अपने लिए डिलीवरी चाहते हैं.

लेकिन क्या आप ने कभी अपने पड़ोस के किराना स्टोर वाले अंकल के बारे में सोचा है? क्या आप को नहीं लगता कि औनलाइन शौपिंग कैसे हमारी आदतों को खराब कर रही हैं? सच यह है कि अब गलीमहल्ले के किराना स्टोर का काम प्रभावित होने लगा है.

क्विक कौमर्स को सफल बनाने में बहुत बड़ा रोल जेनजी और मिलेनियल्स का है. युवा पीढ़ी के लोग इस का खूब इस्तेमाल कर रहे हैं. इस का कारण यह है कि युवा पीढ़ी को किसी भी चीज के लिए बहुत ज्यादा इंतजार करना पसंद नहीं है. ऐसे में वह कई बार कुछ एक्स्ट्रा पैसे दे कर भी सामान को जल्दी मंगाने को प्रायोरिटी देते हैं. वहीं लोग इस तरह भी देख रहे हैं कि कोई सामान लेने के लिए मार्केट जाना पड़ेगा, जिस में वक्त लगेगा और अगर गाड़ी से जाते हैं तो उस का पैट्रोल का खर्चा भी होगा. ऐसे में 10 मिनट में सामान घर पहुंच जाए तो इस से अच्छा क्या होगा.

इन ऐप्स की स्ट्रेटजीज मानसिकता को प्रभावित करने, खरीदारी के निर्णय को तेजी से लेने और कस्टमर्स को लगातार जुड़ा रखने के लिए डिजाइन की जाती हैं. ये ऐप्स अलगअलग साइकोलौजिकल टैक्टिस का इस्तेमाल करती हैं, जो ग्राहकों को ऐप्स से मैंटली जोड़ने के साथसाथ उन्हें बिजी रखती हैं. कुछ दिनों में होने वाली डिलीवरी अब ट्रेडिशनल हो चुकी है. भारत में अब फास्ट डिलीवरी का क्रेज बढ़ रहा है.

ये कंपनियां लोगों को प्रोमो कोड्स, एक्स्ट्रा डिस्काउंट, फ्री डिलीवरी, फ्री कैश जैसे ट्रैप में फंसाती हैं. जिस से कस्टमर्स को लगता है की जो सामान वे खरीद रहे हैं वह मार्केट से सस्ता भी है और घर तक डिलीवरी भी हो रही है तो क्यों न मंगवाया जाए. कंपनियों के ये औफर कुछ दिन तक ही सीमित होते हैं. तब तक ये लोगों को अपनी आदत डलवा देते हैं. अब कस्टमर छोटी चीज की जरूरत होने पर भी उस ऐप का इस्तेमाल करेगा ताकि कोई औफर मिल सके.

कंपनियों के डिस्काउंट और प्रोमो कोड्स लोगों में फोमो पैदा करते हैं. कंपनियां अपने औफर्स लिमिटेड समय तक रखती हैं. ऐसे में लोग बारबार ऐप चेक करते रहते हैं ताकि वे औफर मिस न कर दें और औफर मिलते ही जरूरत न होने पर भी और्डर कर देते हैं.

ऐसा ही हुआ रेखा के साथ. रेखा 12वीं क्लास में पढ़ती है. एग्जाम ख़तम हो गए थे तो उस ने अपने घर में स्कूल के दोस्तों का गेटटुगेदर रखा. सभी लोग आए. कुछ देर बात करने के बाद सब ने कार्ड्स खेलने का डिसाइड किया. लेकिन रेखा के पास कार्ड्स नहीं थे. ‘तो क्या हुआ! अभी ब्लिंकिट से मंगवा लेते हैं.’ रेखा के एक दोस्त ने कहा. ब्लिंकिट से कार्डस और्डर किए तो ऐप में नोटिफिकेशन आया कि 199 रुपए तक की शौपिंग करने पर फ्री डिलीवरी होगी. रेखा ने कुछ चिप्स और और्डर कर लिए ताकि डिलीवरी फ्री हो जाए और स्नैकिंग भी हो जाएगी. सबकुछ कार्ट में ऐड करने के बाद एक नोटिफिकेशन फिर से आता है कि 499 रुपए तक की शौपिंग करने पर 10 फीसदी की छूट मिलेगी. डिस्काउंट के लालच में रेखा काफी देर तक 500 रुपए तक का सामान खरीदने में जुट गई. रेखा ने कार्ड्स के साथ सारा गैरजरूरत का सामान खरीद लिया. इन सब में उसे 40 मिनट लग गए.

खुद सोचिए, यह कैसी फास्ट डिलीवरी हुई? एक 50-60 रुपए के सामान की जरूरत होने पर बैठेबैठे 500 रुपए तो ठंडे हुए ही, साथ में, समय की बरबादी भी हुई. यही इन कंपनियों की टैक्टिस है जो कस्टमर्स को अपने जाल में फंसाती जा रही है.

मौजूदा वक्त में भारत में क्विक कौमर्स सेगमैंट में 4 बड़े खिलाड़ी हैं- ब्लिंकइट, जेप्टो, बिग बास्केट और स्विगी का इंस्टामार्ट. इन की ग्रोथ काफी तेज हो रही है. ब्लिंकइट, जेप्टो और स्विगी का इंस्टामार्ट एकदूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं. इसी के चलते वे औफर से ले कर कैशबैक तक दे रहे हैं और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचना चाह रहे हैं. बात अगर इन के मार्केट शेयर की करें तो अभी सब से ज्यादा करीब 40 फीसदी मार्केट शेयर ब्लिंकइट के पास है. वहीं इंस्टामार्ट के पास 25 फीसदी और जेप्टो के पास करीब 29 फीसदी मार्केट है. इन के अलावा बिग बास्केट के पास करीब 10 फीसदी मार्केट है.

ब्लिंकइट के पास सब से ज्यादा मार्केट शेयर है, जिस की एक बड़ी वजह यह भी है कि वह सिर्फ ग्रोसरी या सब्जी तक सीमित नहीं है, बल्कि आईफोन, प्लेस्टेशन, फैन, प्यूरिफायर जैसे तमाम चीजों की डिलीवरी भी 10 मिनट में कर रहा है. लेकिन इस मामले में अब बाकी ऐप्स भी पीछे नहीं. कई मोबाइल फोन ब्रैंड्स ने जेप्टो, स्विगी समेत कई फास्ट डिलीवरी ऐप्स के साथ पार्टनरशिप की है. अब मात्र 10 मिनट में मोबाइल फोन भी आप के दरवाजे पहुंच जाएगा.

लोगों तक पहुंचने की होड़ में कंपनियां यहां तक ही सीमित नहीं रहीं बल्कि अब 15 मिनट में खाना भी और्डर कर सकते हैं. ब्लिंकिट, इंस्टामार्ट और जेप्टो की सफलता ने बाकी ईकौमर्स प्लेयर्स को क्विक कौमर्स स्पेस में एंट्री करने के लिए मजबूर किया है. फ्लिपकार्ट ने ‘मिनट्स’ लौंच किया, मिंत्रा ने ‘एमनाउ’ पेश किया, अमेजन ने ‘तेज’ की टेस्टिंग शुरू कर दी है. अब ये ऐप्स भी फास्ट डिलीवरी रेस में शामिल हो चुकी हैं.

बता दें कि कुछ समय पहले तक जेप्टो कुछ ही इलाकों में अपनी सर्विस देता था. कुछ महीने पहले उस ने लगभग हर इलाके में अपनी सर्विस देना शुरू कर दिया. लोगों तक अपनी रीच बढ़ाने के लिए जेप्टो ने आधे दामों पर सामान बेचना शुरू कर दिया. यही नहीं, अपने कस्टमर्स के लिए 125 रुपए तक की छूट भी दी. लोगों ने इस स्कीम का जम कर फायदा उठाया. इस तरह की स्कीम्स का लौलीपौप दे कर जेप्टो ने कई कस्टमर्स को अपनी ओर खींचा.

इन ऐप्स की मदद से लोगों को घरबैठे सुविधा मिल रही है. मिनटों में आप की जरूरत के हिसाब से आप के दरवाजे तक डिलीवरी हो रही है. धनिया से ले कर घर का हर सामान और यहां तक कि आईफोन भी मिल सकता है. इन सर्विसेज ने न सिर्फ लोगों के समय की बचत की है बल्कि उन के काम को आसान बनाया है. लेकिन ये लोगों के दिमाग के साथ अच्छी तरह खेलना जानते हैं. चंद फीसदी डिस्काउंट का झांसा दे कर ये अपने कस्टमर्स से हिडन फीस वसूलते हैं, जिसे पैकेजिंग फीस, सर्ज फीस, प्लेटफौर्म फीस आदि का नाम दिया जाता है. मैंबरशिप का लौलीपौप दिया जाता है कि इस से आप को फ्री डिलीवरी व अन्य फायदे होंगे. जबकि, असल में ऐसा कुछ नहीं होता.

यह जाल इतना बड़ा है कि कम्युनिकेशन गैप भी आज एक बड़ी समस्या बन चुका है. गलीमहल्ले के किराना स्टोर को किसी समय दोस्तों, पड़ोसियों के गपशप का केंद्र माना जाता था. रोजाना सिर्फ दूध या ब्रेड के लिए ही नहीं, बल्कि दोस्ताना चेहरों और पड़ोसियों की बातचीत के लिए भी लोग रुकते थे. मुश्किल समय में ये किराना वाले उधार भी कर देते थे. घर से बाहर निकल कर जब हम चार लोगों से बातचीत करते हैं तो मन का तनाव भी कम होता है. लेकिन इन प्लेटफौर्म्स के आने के बाद से लोग एंटीह्यूमन सा बन गए हैं.

ये कंपनियां अब डाटा माइनिंग भी करने लगी हैं. इस का मतलब यह होता है कि जब आप गूगल पर किसी आइटम के बारे में सर्च करते हैं, कौल या मैसेज में अपने किसी दोस्त से किसी प्रोडक्ट के बारे में डिस्कस करते हैं तो ये कंपनियां हमारी एक्टिविटीज पर नजर रखती हैं और फिर उन्हीं चीजों का विज्ञापन हमें दिखाती है. ये लोगों को उसे खरीदने के लिए उत्सुक करती हैं. और लोग उसे खरीद भी लेते हैं. यह सभी इन फास्ट डिलीवरी एप्स की मार्केटिंग स्ट्रेटजी है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...