New Webseries : ‘उप्पस ! अब क्या ?’

रेटिंगः दो स्टार

2002 में अमेरिका व स्पेन में एक शो ‘जेन द वर्जिन’ (स्पेनिश शीर्षक- जुआना ला विर्जेन) प्रसारित हुआ था, इसे 2002 का वेनेजुएला टेलीनोवेला भी कहा जाता है, जिसे पेरला फरियास ने लिखा और आरसीटीवी ने इस का निर्माण किया था. इसे आरसीटीवी इंटरनेशनल द्वारा दुनियाभर में वितरित किया गया था. इसी पर भारत में 2005 से 2007 तक एक टीवी सीरियल ‘एक लड़की अनजानी’ सी बनी थी. फिर वेनेजुएला टेलीनोवेला का अमरीका में रीमेक कर 2014 से 2019 के बीच ‘जेन एंड वर्जिन’ के नाम से प्रसारित हुआ था.

इसी का हिंदी रीमेक वेब सीरीज ‘उप्स! अब क्या’ ले कर निर्देशक प्रेम मिस्त्री और देबात्मा मंडल आए हैं, जो कि 20 फरवरी से ‘जियो स्टार’ पर स्ट्रीम हो रही है. मूल वेनेजुएला शो और इस का अमेरिकी रीमेक उन संस्कृतियों पर आधारित थे, जिन में गर्भपात और गर्भनिरोधक विवादास्पद मामले थे.

कहानी

इस सीरीज की कहानी रूही जानी (श्वेता बसु प्रसाद) से शुरू होती है. 27 साल की रूही जानी एक पांच सितारा होटल में ड्यूटी मैनेजर है और अपनी नानी सुभद्रा (अपरा मेहता) से किए वादे के कारण अभी भी कुंवारी है, अभी तक सैक्स नही किया है. जबकि वह पिछले तीन साल से पुलिस अफसर ओमकार के साथ प्रेम संबंध में है. रूही का प्रेमी ओमकार (अभय महाजन) रूही के प्रति गहराई से प्रतिबद्ध है और आधिकारिक तौर पर शादी होने तक इंतजार करने के लिए सहमत है.
सुभद्रा ने रुही से यह आश्वासन इसलिए लिया था, क्योंकि उन की बेटी और रूही की मां, पाखी (सोनाली कुलकर्णी) किशोरावस्था में गर्भवती हुई थी और उस के प्रेमी ने गर्भपात न कराने पर पाखी से हमेशा के लिए संबंध खत्म कर दिए थे और यह तथ्य एक रूढ़िवादी समाज में सामाजिक शर्मिंदगी का कारण बना था. लेकिन अब रूही, पाखी और सुभद्रा तीनों एक घनिष्ठ परिवार की तरह रहते हैं, और हर शाम एक साथ अपने पसंदीदा टेलीविजन धारावाहिक देखते हैं.

लेकिन कभी सैक्स न करने वाली रूही डाक्टर रोशनी की गलती के चलते गर्भवती हो जाती है. डाक्टर रोशनी अपने सौतेले भाई और रूही के बौस होटल के मालिक समर (आशिम गुलाटी) के शुक्राणु को गलती से रूही के गर्भाशय में इंजैक्ट कर देती है. समर प्रताप उस का सात साल पुराना पूर्व क्रश भी है. उस के बाद रूही (श्वेता बसु प्रसाद) जबरन मातृत्व के साथसाथ अपने परिवार, प्रेमी और उस जोड़े की प्रतिक्रियाओं से निबटती है जिन के लिए उस का कोई इरादा नहीं था.

इस के बाद रूही की व्यक्तिगत नैतिकता, आधुनिक प्रेम, धैर्यवान प्रेमी, परंपरा और पसंद की जटिल परस्पर क्रिया के बीच एक रस्साकशी शुरू हो जाती है. सच जानने के बाद रूही गर्भपात कराना चाहती है, पर फिर वह उस बच्चे को समर व उस की पत्नी अलीशा को दे देने के लिए जन्म देने का फैसला करती है. अलीशा के इस बच्चे की मां बनना स्वीकार करने के पीछे उस की धन पिपासा की कुत्सित चाल है.

समर और उस की पत्नी अलीशा (एमी ऐला) को अपने बच्चे के लिए उपयुक्त मातापिता के रूप में आंकने की रूही की कोशिश कहानी में हास्य और मार्मिकता दोनों जोड़ती है, जबकि उस के लंबे समय से खोए हुए पिता से जुड़ा एक समानांतर उपकथा पीढ़ीगत विमर्श में एक और परत जोड़ता है. कहानी में ड्रग्स तस्कर से ले कर प्लास्टिक सर्जरी भी है.

समीक्षा

कहानी में भावनात्मक उतारचढ़ाव, नाटकीयता और कौमेडी का मिश्रण होते हुए भी बोर करती है. सैक्स न करने और नानी की सलाह पर अमल करने के बावजूद रूही के गलत ढंग से गर्भवती हो जाने पर उस की मानसिक हालत व उस की मन की व्यथा को ठीक से चित्रित नही किया गया. सब कुछ मजाक बना दिया गया.

इस के अलावा कथावाचक यानी कि सूत्रधार द्वारा की गई अतिव्याख्या सीरीज के आकर्षण पर कुठाराघाट करती है. चुटकुले महज हवा में ही रह जाते हैं. लेकिन यह सीरीज अपने विचित्र, अराजक माहौल पर कायम रहते हुए सामाजिक मानदंडों और पाखंडों पर प्रहार भी करती है. फिल्म में रूही के प्रेमी ओमकार को रूही के सामने जितना लाचार और उस की हर सही या गलत बात को मानते हुए दिखाया गया है, वह बहुत अजीब सा लगता है. प्रत्येक एपिसोड के 40 मिनट में भी कई दृश्य जबरन ठूंसे गए हैं.

गति अत्यंत धीमी है, जो पतली कथा को खींचती है. लेखक और निर्देशक कहानी को खींचते व फैलाते चले गए, पर उसे कैसे समेटा जाए, यह समझ में नही आया, तो आठवें एपिसोड में बेतरतीब तरीके से लपेट दिया. छठवें एपिसोड में तो कुछ सीन एकता कपूर के लगभग पंद्रह साल पुराने पौपुलर सीरियल ‘‘क्योंकि सास भी कभी बहू थी’ से चुराए गए हैं. पर निर्देशक ने इस बात की ओर सफलतापूर्वक इशारा किया है कि परिवार और जीवन में आने वाले अप्रत्याशित मोड़ों की कल्पना कोई नहीं कर सकता. कई दृश्य ऐसे हैं जिन्हें देख कर लगता है कि आखिर यह हो क्या रहा है?

अभिनय

भ्रमित नानी की इच्छा के चलते कौमार्य को भंग होने से बचाने वाली जटिल लड़की रूही के किरदार में श्वेता बसु प्रसाद ने जान डाल दी है, मगर उन्हें पटकथा से अपेक्षित सहयोग नहीं मिला. सुभद्रा के किरदार में अपरा मेहता के हिस्से कुछ खास दृश्य नही आए. पाखी के किरदार में सोनाली कुलकर्णी का अभिनय शानदार है. वराज के किरदार में जावेद जाफरी निराश करते हैं, वैसे लेखकों ने उन के किरदार को सही ढंग से लिखा भी नहीं है. ओमकार ने अपने किरदार को बहुत संजीदा ढंग से निभाया है. पटकथा का सहयोग न मिलने पर भी उन की मेहनत नजर आती है. समर के किरदार में आशिम गुलाटी निराश करते हैं.

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