Box Office : सिनेमा हौल में पीरियड फिल्म ‘छावा’ खूब चल रही है. फिल्म में दर्शाए दृश्य दर्शकों को उकसा और भ्रमित कर रहे हैं.
फरवरी माह का दूसरा सप्ताह बौलीवुड के लिए खुशियां ही खुशियां ले कर आया. फरवरी माह के दूसरे सप्ताह यानी 14 फरवरी को दिनेश विजन निर्मित और लक्ष्मण उतेकर निर्देशित फिल्म ‘छावा’ रिलीज हुई. जिसे बौक्स औफिस पर ठीकठाक सफलता मिली. फिल्म ‘छावा’ छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी महाराज की बायोपिक फिल्म है. जिन्हें मराठा साम्राज्य का दूसरा छत्रपति माना जाता है.
पूरे महाराष्ट्र और मराठा समुदाय में तो संभाजी की भगवान की तरह पूजा की जाती है. अब तक छत्रपति शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज पर मराठी भाषा में कुछ फिल्में व कुछ टीवी सीरियल प्रसारित हो चुके हैं. लेकिन मराठी भाषियों के लिए यह गर्व की बात रही कि उन के भगवान की कहानी को बौलीवुड ने हिंदी में फिल्म बना कर पूरे देश तक पहुंचा दिया. इस फिल्म को प्रचारित करने में महाराष्ट्र राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस, एम पी अमाले कोल्हे, मनसे नेता राज ठाकरे सहित कई नेताओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. जो इतिहास के पुनर्लेखन के सिलसिले का हिस्सा है.
लक्ष्मण उतेकर ने ‘छावा’ में कई गलतियां की, आधाअधूरा इतिहास परोसा, मगर मुगल शासक औरंगजेब ने छल से संभाजी को गिरफ्तार कर 40 दिन तक जिस तरह से दुखदाई यातनाएं दी थीं, फिल्म के निर्देशक ने सिर्फ इसी हिस्से को बहुत विभत्स तरीके से 40 मिनट तक फिल्माकर लोगों के अंदर इस भावना को जगाने में कामयाब रहे कि मुगलों ने किस तरह उन के राजा, उन के भगवान को यातना दी थी लेकिन कोई आठ सौ सालों बाद सच और झूठ को भी पूरे दावे से प्रदर्शित नहीं किया जा सकता.
इसी वजह से इस फिल्म ने निर्माताओं के अनुसार 7 दिन में 242 करोड़ रूपए बौक्स आफिस पर एकत्र कर लिए हैं. 19 फरवरी को छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती के निमित्त पूरे महाराष्ट्र में सार्वजनिक छुट्टी के साथ ही शिवाजी जयंती पर कई कार्यक्रम आयोजित किए गए. जिस के चलते केवल 19 फरवरी को ‘छावा’ ने बौक्स औफिस पर 36 करोड़ रूपए एकत्र किए, ऐसा दावा निर्माता की तरफ से किया गया.
उधर देवेंद्र फड़नवीस ने विक्कीपीडिया को नोटिस भेज कर संभाजी पर दी गई गलत जानकारी को हटाने के लिए कहा है. वहीं मध्य प्रदेश सरकार ने ‘छावा ’को टैक्स फ्री कर दिया है.
जिन फिल्म आलोचकों ने ‘छावा’ की समीक्षा करते हुए सही तथ्य देते हुए फिल्म को घटिया बताया था, उन्हें ट्रोल आर्मी ने कई तरह की धमकियां दी. उन्हें औरंगजेब की छठी या सातवीं औलाद की भी संज्ञा दी. संभाजी पर किताबें व उपन्यास लिख चुके इतिहासकार इस फिल्म को ले कर प्रतिक्रिया देने की बजाय मौन साधे हुए हैं. उन की खामोशी एक तरह से सामने आक्रामक तेवर लिए खड़ी भगवा गैंग के सामने एक मजबूरी सी लगती है.
संभाजी वीर थे. इस में कोई शक नहीं. उन्हें मुगल शासक औरंगजेब ने कठिन यातना दी और उन पर धर्म बदलने का भी दबाव बनाया, मुमकन है ऐसा न भी हो क्योंकि इस के कोई उपलब्ध एतिहासिक प्रमाण नहीं लेकिन कल्पनाओं को प्रमाणों की तरह परोसना भी एक फिल्मकार की खूबी होती है जिस से वे सच लगने लगती हैं. ठीक वैसे ही जैसे इन दिनों हर पौराणिक किस्सा पूरे अधिकार और आत्मविश्वास से सच और वास्तविक कहकर प्रकाशित प्रसारित किया जा रहा है.
फिल्मकार लक्ष्मण उतेकर ने जिस तरह से ‘छावा’ में कथा बयां की है, उस पर यदि हर दर्शक बिना इमोशनल हुए सोचेगा तो शायद उसे एहसास हो कि लक्ष्मण उतेकर ने संभाजी महाराज का कितना सम्मान या कितना अपमान किया है. हम उम्मीद करते हैं कि संभाजी की वीरता के कथित इतिहास को सामने लाने का प्रयास दूसरे फिल्मकार भी करेंगे. लेकिन उपलब्ध सभी एतिहासिक तथ्यों और प्रमाणों का उपयोग करेंगे.