Women Safety : संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट यह स्पष्ट रूप से बताती है कि महिलाओं के लिए घर ही सब से असुरक्षित स्थान बन चुका है. इस असुरक्षा का समाधान समाज और सरकार की ओर से समग्र दृष्टिकोण अपनाने से ही संभव हो सकता है.

6 अगस्त, 2024 को नोएडा के सैक्टर 39 की पुलिस ने 16 वर्ष की एक किशोरी से बलात्कार कर उसे गर्भवती बनाने वाले उस के मामा को गिरफ्तार कर जेल भेजा. मामा ने अपनी ही भांजी का अपहरण कर उस के साथ बलात्कार किया था. पुलिस ने लड़की को बरामद कर जब उस का मैडिकल कराया तो पता चला कि वह गर्भवती है. लड़की 30 जून से लापता थी जिस की गुमशुदगी की एफआईआर उस के मातापिता ने थाने में दर्ज करवाई थी.

28 अगस्त, 2024 की खबर है कि सहारनपुर में मामा अपनी भांजी को नौकरी दिलाने के नाम पर अपने साथ ले गया. इस के बाद युवती से दुष्कर्म करता रहा. इस बात का पता युवती के गर्भवती होने पर चला. अदालत के आदेश पर पुलिस ने मामला दर्ज कर आरोपी को गिरफ्तार किया. एफटीसी कोर्ट ने कसबा नानौता क्षेत्र के गांव छछरौली निवासी इंतजार उर्फ बाबू को 10 साल की सजा सुनाई है. सजा सुनाते हुए अदालत ने 50 हजार रुपए का अर्थदंड भी लगाया है.

11 नवंबर, 2024 को मध्य प्रदेश के जबलपुर में एक नाबालिग भाई ने अपनी छोटी बहन की इसलिए हत्या कर डाली क्योंकि उस ने बहन को पड़ोसी लड़के के साथ बात करते हुए देख लिया था. आरोपी अपनी 14 वर्षीया बहन से इस कदर नाराज हुआ कि उस ने पास में ही पड़े त्रिशूल से अपनी बहन पर कई बार हमला कर डाला. उसे बुरी तरह से घायल कर खून से लथपथ हालत में छोड़ कर वह जंगल की ओर फरार हो गया. पड़ोस में रहने वाले लोग लड़की को ठेले में लिटा कर अस्पताल पहुंचे, जहां से उसे मैडिकल कालेज रेफर कर दिया गया. लेकिन इलाज के दौरान ही लड़की ने दम तोड़ दिया.

18 नवंबर, 2022 को दिल्ली से आगरा जाने वाले यमुना एक्सप्रैस वे पर सड़क के किनारे एक लाल रंग का ट्रौली बैग पड़ा था. पुलिस ने आ कर जब बैग खोला तो अंदर एक युवती की लाश थी. युवती की उम्र 21 साल थी. बाद में पता चला कि उस का नाम आयुषी था. छानबीन में केस औनर किलिंग का निकला. आयुषी की हत्या उस के ही पिता ने की थी क्योंकि आयुषी ने अपनी मरजी से शादी कर ली थी, जो घर वालों को मंजूर न थी.

ये महज कुछ बानगियां हैं. इस तरह की खबरों से अखबारों के पन्ने हर दिन रंगे रहते हैं. घर की चारदीवारी में अपने ही लोगों के हाथों मौत, बलात्कार, हिंसा, प्रताड़ना का दंश औरत को सदियों से दिया जा रहा है. औरत को अपने घर में अपने करीबी लोगों से जान और इज्जत का जितना खतरा है, उतना घर से बाहर नहीं है. देवियों का देश कहलाने वाले भारत में देवियां सदियों से मां, बाप और करीबी रिश्तेदारों के हाथों कहीं मौत के मुंह में धकेली जा रही हैं तो कहीं उन की इज्जत लूटी जा रही है.

सदियों से होता आया है अत्याचार

औरत के साथ जानवरों जैसा व्यवहार कोई आज का नहीं है, यह अत्याचार सदियों पुराना है. पहले 7-8 साल की अल्पायु में उस का जबरन विवाह कर उसे बलात्कार की आग में झोंक दिया जाता था. किशोरावस्था तक आतेआते वह एकदो बच्चों की मां बन जाती थी. फिर लगातार बच्चे पैदा होते थे और उस की सेहत तेजी से गिरती जाती थी. वह अपनी पूरी जवानी भी नहीं देख पाती थी और अनेक रोगों से ग्रस्त हो प्राण त्याग देती थी.

सतीप्रथा के जरिए औरत को जबरन मौत के घाट उतार दिया जाता था. पति की मौत के बाद उस के ससुराल वाले जबरन उस का शृंगार कर के, भांग या मदिरा के नशे में मदहोश कर के और हाथपैर बांध कर उस को पति की जलती चिता में झोंक देते थे और उस के बाद सती के नाम से उस हृदयविदारक अपराध का महिमामंडन किया जाता था.

आज हर रोज भारत में 17 से 20 औरतें दहेज के कारण मौत के घाट उतार दी जाती हैं. कितने ही मामले रजिस्टर्ड भी नहीं होते, औरतें घर के भीतर ही दफना दी जाती हैं.

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार हर साल दुनिया में 5 हजार लड़कियां औनर किलिंग का शिकार होती हैं और इन 5 हजार में से एक हजार लड़कियां भारतीय होती हैं. यानी औनर किलिंग का शिकार होने वाली हर 5 में से 1 लड़की भारत की होती है.

आंकड़े कभी झूठ नहीं कहते. वे तो हमें आईना दिखाते हैं. देशदुनिया में जो घट रहा है उस की वे बानगी बयां करते हैं. हाल ही में संयुक्त राष्ट्र की 2 एजेंसियों यूएन वूमन और यूएन औफिस औफ ड्रग्स एंड क्राइम द्वारा जारी रिपोर्ट कहती है कि महिलाओं के लिए उन का घर सब से घातक स्थान है, वह चाहे उन का मायका हो या ससुराल. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष प्रतिदिन औसतन 140 महिलाओं एवं लड़कियों की हत्या उन के घरों में ही उन के पति, अंतरंग साथी या परिवार के सदस्यों द्वारा की गई.

यह रिपोर्ट कहती है कि वैश्विक स्तर पर वर्ष 2023 के दौरान लगभग 51,100 महिलाओं और लड़कियों की मौत के लिए उन के अंतरंग साथी या परिवार के सदस्य जिम्मेदार रहे.

2022 में यह आंकड़ा अनुमानित तौर पर 48,800 था. महिलाओं के विरुद्ध हिंसा उन्मूलन के अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यह वृद्धि हत्याओं में बढ़ोतरी के कारण नहीं बल्कि मुख्य रूप से विभिन्न देशों से अधिक आंकड़े उपलब्ध होने के कारण है. दोनों एजेंसियों ने इस बात पर जोर दिया कि हर जगह महिलाएं और लड़कियां लिंग आधारित हिंसा के इस चरम रूप से प्रभावित हो रही हैं और कोई भी क्षेत्र इस से अछूता नहीं है. घर महिलाओं और लड़कियों के लिए सब से खतरनाक जगह है.

बढ़ता आंकड़ा

रिपोर्ट के अनुसार अंतरंग साथी और परिवार के सदस्यों द्वारा की गई हत्याओं के सब से अधिक मामले अफ्रीका में थे, जहां 2023 में लगभग 21,700 महिलाएं मारी गईं. अपनी आबादी के लिहाज से भी पीडि़तों की संख्या में अफ्रीका सब से आगे रहा. यहां प्रति एक लाख लोगों पर 2.9 पीडि़त थीं. रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले वर्ष अमेरिका में यह दर काफी अधिक थी, जहां प्रति एक लाख में 1.6 महिलाएं पीडि़त थीं जबकि ओशिनिया में यह दर प्रति एक लाख पर 1.5 थी. एशिया में यह दर काफी कम थी. यहां प्रति एक लाख पर 0.8 पीडि़त थीं जबकि यूरोप में यह दर प्रति एक लाख में 0.6 रही.

रिपोर्ट के अनुसार यूरोप और अमेरिका में महिलाओं की हत्या मुख्यतया उन के अंतरंग साथियों (पति, बौयफ्रैंड या लिवइन पार्टनर) द्वारा की जाती है. इस के विपरीत पुरुषों की हत्या की अधिकांश घटनाएं घरपरिवार से बाहर होती हैं.

भारत में महिलाओं को हिंसा और मौत से बचाने के लिए कई बार कानूनों में फेरबदल हुए मगर हालात आज भी जस के तस हैं. आज भी हर दिन करीब 86 रेप की घटनाएं रिपोर्ट होती हैं. इस से दोगुनी घटनाएं रिपोर्ट तक नहीं होतीं. भारत में हर घंटे 3 महिलाएं रेप का शिकार होती हैं, यानी हर 20 मिनट में एक.

रेप के मामलों में 96 फीसदी से ज्यादा आरोपी महिला को जानने वाले होते हैं. रेप के मामलों में 100 में से 27 आरोपियों को ही सजा मिल पाती है, बाकी बरी हो जाते हैं.

केंद्र सरकार की एजेंसी नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि भारत में सालभर में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4 लाख से ज्यादा अपराध दर्ज किए जाते हैं. इन अपराधों में सिर्फ रेप ही नहीं, बल्कि छेड़छाड़, दहेज हत्या, किडनैपिंग, ट्रैफिकिंग, एसिड अटैक जैसे अपराध भी शामिल हैं.

एनसीआरबी की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में हर रोज 345 लड़कियां गायब हो जाती हैं. इन में 170 लड़कियां किडनैप की जाती हैं, 172 लड़कियां लापता होती हैं और लगभग 3 लड़कियों की तस्करी कर दी जाती है. इन में से कुछ लड़कियां तो मिल जाती हैं लेकिन बड़ी संख्या में लापता, किडनैप और तस्करी की गई लड़कियों का पता नहीं चलता.

जुलाई 2023 में भारतीय गृह मंत्रालय की ओर से संसद में पेश की गई रिपोर्ट में लापता लड़कियों और महिलाओं का जो आंकड़ा दिया गया उस ने पूरे देश को चौंका दिया. रिपोर्ट में कहा गया कि देश में 2019 से 2021 के बीच 13.13 लाख से ज्यादा लड़कियां और महिलाएं लापता हो गईं. सरकार ने ये आंकड़े राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो द्वारा प्राप्त किए. इस रिपोर्ट के अनुसार, गायब हुई महिलाओं और लड़कियों में 18 साल से अधिक उम्र की 10,61,648 महिलाएं और 18 साल से कम उम्र की 2,51,430 लड़कियां शामिल हैं.

राज्यों के अनुसार बात करें तो गायब होने वाली सब से ज्यादा महिलाएं और लड़कियां मध्य प्रदेश की हैं. यहां 2019 से 2021 के बीच 1,60,180 महिलाएं और 38,234 लड़कियां लापता हो गईं. वहीं दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल है. वहां 1,56,905 महिलाएं और 36,606 लड़कियां गायब हो गईं. जबकि, तीसरे नंबर पर महाराष्ट्र है. वहां 2019 से 2021 के बीच 1,78,400 महिलाएं और 13,033 लड़कियां लापता हो गईं. इन तमाम लड़कियों को देह के धंधे में बेच दिया जाता है.

इस साल 62,946 लड़कियों के लापता होने के मामले दर्ज किए गए हैं. इन लड़कियों में से कई को बचा लिया गया. हालांकि बड़ी संख्या ऐसी लड़कियों की है जिन के बारे में आज तक पता नहीं चला.

भारत सहित दुनियाभर में औरतें जुल्म का शिकार इसलिए होती हैं क्योंकि धर्म की आड़ ले कर पुरुष ने उन्हें सदियों से घर की चारदीवारी में कैद रखा हुआ है.

शारीरिक रूप से मजबूत बनाएं

जन्म लेने के बाद से ही लड़कियों को उन के कोमल होने का एहसास घुट्टी की तरह पिलाया जाता है. वह नाजुक है, कोमल है, सुंदर है, खुद को दुनिया की नजरों से छिपा कर रखना चाहिए, धीमेधीमे बात करनी चाहिए, तेज आवाज में हंसना नहीं चाहिए, धीमेधीमे सधे हुए कदमों से चलना चाहिए, मृदु स्वभाव रखना चाहिए, ऊंची आवाज में बात नहीं करनी चाहिए, हमेशा दूसरों की सेवा करनी चाहिए आदिआदि बातें बचपन से ही इस तरह बताईसिखाई जाती हैं कि वे मानसिक रूप से खुद को बहुत कमजोर और बेबस मानने लगती हैं.

अपने घर में वे पुरुष यानी बाप, भाई, दादा और अन्य पुरुष सदस्यों के ऊपर हर प्रकार से निर्भर हो जाती हैं और यही लोग उन के दिमाग को अपने काबू में कर के उन का शोषण करते हैं, अपने इशारे पर चलाते हैं, उन के साथ हिंसा और बलात्कार करते हैं और उन की मरजी को जाने बिना उन्हें किसी अन्य मर्द की चाकरी करने के लिए ब्याह देते हैं.

यदि जन्म लेने के बाद लड़कियों को उसी तरह मजबूत बनाने का प्रयास होता जैसे कि लड़कों के लिए होता है तो आज वे पुरुष के हाथों हिंसा और मौत का शिकार न होतीं. अगर लड़की बचपन से तेज आवाज में बात करती, अपनी इच्छा जाहिर करती, तेज कदमों से चलती, घर से बाहर निकल कर उसी तरह सारे काम करती जैसे कोई लड़का करता है, अपने शरीर को बलिष्ठ बनाने के लिए अच्छा भोजन और व्यायाम करती तो उस की तरफ आंख उठा कर देखने की हिम्मत किसी की न होती.

मगर एक साजिश के जरिए धर्म को हथियार बना कर पुरुष ने औरत को अपना गुलाम बनाए रखने के लिए औरत के जरिए औरत का विनाश किया है. आज भी यदि मांएं चेत जाएं और बेटों से ज्यादा बेटियों के शारीरिक, मानसिक व आर्थिक सुदृढ़ता की ओर ध्यान देने लगें, उन में बचपन से ही गलत के खिलाफ विद्रोह करने की ताकत भरें, उन्हें आर्थिक रूप से अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रेरित करें तो कोई लड़की हिंसा, बलात्कार या मौत का शिकार न होगी.

मजबूत बनने की जरूरत

लड़कियों को सिखाना होगा कि उन्हें सुंदर नहीं, शक्तिशाली होना है. उन्हें पैसे के लिए बाप, भाई या पति के आगे हाथ नहीं फैलाना बल्कि खुद कमाना है, अपनी पसंद की वस्तुओं को पाने के लिए खुद प्रयास करने हैं, अपनी इच्छा से विवाह का फैसला लेना है और अपनी इच्छा से बच्चे पैदा करने हैं.

जिस प्रकार से दुनियाभर में औरतों के प्रति अपराध का ग्राफ बढ़ रहा है, लड़कियों का घर से बाहर निकलना अब अतिआवश्यक है. वे घर से बाहर निकल कर ही सुरक्षित होंगी, आर्थिक रूप से मजबूत होंगी, मुखर होंगी, साहसी व दबंग बनेंगी. दुनिया में ऐसा कोई भी काम नहीं है जो औरत न कर सके. औरत मानसिक रूप से पुरुषों के मुकाबले ज्यादा मजबूत होती है. उस की सहनशक्ति भी पुरुषों के मुकाबले दोगुनी होती है. यदि वह शारीरिक रूप से भी मजबूत हो जाए तो उस के खिलाफ अपराध के ग्राफ में कमी आएगी.

यदि हम भारतीय समाज पर नजर डालें तो यहां निम्नवर्ग की महिलाएं, जो पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर खेतखलिहानों में हाड़तोड़ मेहनत करती है, हिंसा, बलात्कार या हत्या का शिकार बहुत कम होती हैं. इस की वजह यही है कि वे घर से बाहर निकल कर मर्द के समान मेहनत करती हैं, मर्द के समान पैसा कमाती हैं, शारीरिक रूप से मजबूत होती हैं, मर्द अगर लड़ पड़े तो बराबर की टक्कर देती हैं.

मर्दों से मुकाबले के मामले में निम्नवर्ग में औरतों की हालत मध्य या उच्च वर्ग की औरतों से कहीं ज्यादा बेहतर है. मध्य या उच्च वर्ग की औरतें जो आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर हैं, जेवरों, कपड़ों में ढकी घर की चारदीवारी में कैद रहती हैं और वे ही हिंसा, बलात्कार, दहेज हत्या, औनर किलिंग या हत्या की शिकार ज्यादा होती हैं.

वजह यह कि उन्हें कोमलांगी कह कर मानसिक रूप से ऐसा दिव्यांग बना दिया जाता है कि अपने खिलाफ होने वाली हिंसक गतिविधियों को वे औरत का धर्म सम झ कर सहती रहती हैं. वे उस का विरोध नहीं कर पातीं. किसी से अपनी व्यथा भी वे शेयर नहीं कर पातीं और एक दिन मौत की नींद सुला दी जाती हैं.

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