Government Jobs : भजभज मंडली सरकार छात्रों से चाहती है कि वे नौकरी की चिंता किए बिना तपस्या किए जाएं. पुराणों में इस तरह के तमाम उदाहरण हैं जिन में सैकड़ों साल बाद भी तपस्या का फल नहीं मिलता है.
आज देश में सरकारी नौकरी पाने के लिए छात्रों को आवेदनपत्र भरने से ले कर परीक्षा देने, रिजल्ट आने और नौकरी पाने तक 6 माह से 6 साल तक का समय लग जाता है. इस तरह सरकारी व्यवस्था छात्रों की जिंदगी के 6 साल बरबाद कर देती है. मौजूदा सरकार दरअसल युवाओं को नौकरी देने में पौराणिक व्यवस्था की याद दिला रही है. पौराणिक युग में तपस्या का फल सैकड़ोंहजारों साल बाद भी नहीं मिलता था. पुराणों में इस तरह के उदाहरण मौजूद हैं. पार्वती ने शिव को पाने के लिए 12 हजार साल तक तपस्या की. पुराणों में पार्वती की तपस्या को सब से कठिन बताया गया है.
‘अस तपु काहुं न कीन्ह भवानी, भए अनेक धीर मुनि ग्यानी’. तुलसीदास की रामचरितमानस की एक चौपाई की इन पंक्तियों का मतलब यह है कि पार्वती ने दूसरे तपस्वियों से कठिन तपस्या की थी. शिव व पार्वती की कहानी इस पूरे संसार की सब से कठिन तपस्या का रूप पेश करती है.
पार्वती ने शिव को पति के रूप में पाने के लिए बहुत मेहनत की. कई कथावाचक इस कहानी के जरिए युवाओं और महिलाओं को सम?ाते हैं कि आज के समय में लोग एक महीने तक भी इंतजार नहीं करते. पार्वती की तपस्या में कोई ज्ञान पाना नहीं था, पढ़ना नहीं था, कोई परीक्षा नहीं देनी थी, कोई हुनर नहीं पाना था लेकिन हमारा आज का समाज पार्वती के गुणगान गाता है और युवाओं को परीक्षाओं में झोंकता है.
भगवान को पाने से कम नहीं सरकारी नौकरी
पौराणिक कथाओं के अनुसार पार्वती ने 1000 वर्ष तक कंद और मूल का सेवन किया. इस के बाद 100 वर्ष केवल शाक का आहार किया. कुछ दिनों तक पानी और हवा का आहार किया. कुछ दिन इन सब को भी त्याग कर कठिन उपवास किया. इस के बाद वृक्ष से गिरी हुई बेल की सूखी पत्तियां खा कर 3000 वर्ष बिताए. जब पार्वती ने सूखी पत्तियों का सेवन बंद कर दिया तो उन का नाम अपर्णा पड़ गया और तब कहीं जा कर तपस्या का फल मिला.
पार्वती की तपस्या का फल मिलने में 12 हजार साल का समय लगा. आज के शासकों को लगता है कि छात्रों को आवेदन से रिजल्ट तक 6 साल का समय लगता है तो कौन सा पहाड़ टूट रहा है.
गीता में कहा गया है- ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’. इस का अर्थ है कि इंसान को कर्म करना चाहिए, लेकिन फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए. कर्म के फल को अपना उद्देश्य मत बनाओ, न ही अकर्म में तुम्हारी आसक्ति हो.
गीता में कर्म के 2 प्रकार बताए गए हैं- साकाम कर्म और निष्काम कर्म. फल की इच्छा से किए गए कर्म को साकाम कर्म कहा जाता है. बिना फल की इच्छा से किए गए कर्म को निष्काम कर्म कहा जाता है.
कर्मफल की इच्छा से मुक्त हो कर कर्म करने से मनुष्य का काम सफल होता है. मनुष्य जैसा कर्म करता है, उसे फल उसी के मुताबिक मिलता है. व्यक्ति को अच्छे कर्म करने चाहिए. बद्रीनाथ में एक दिन की तपस्या का फल 1,000 साल की तपस्या के समान माना जाता है. यहां विष्णु ने नर और नारायण रूप में तपस्या की थी. दुर्द्धम्भ राक्षस के वध के लिए विष्णु ने यहां 100 दिन तक तपस्या की थी.
सालों बाद सफल होती तपस्या
उत्तर प्रदेश के परिषदीय स्कूलों में 72,825 शिक्षकों की भरती प्रक्रिया नवंबर 2011 में शुरू हुई थी. 11 साल के बाद 2021 तक अभ्यर्थियों को नौकरी नहीं मिल पाई थी. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही नौकरी मिल सकी. यानी 12 साल से अधिक का समय नौकरी मिलने में लग गया. इस तरह से छात्रों को भी उन की तपस्या का फल मिलने में लंबा समय लग जाता है.
इस तरह का दूसरा मसला 69 हजार शिक्षकों की भरती से जुड़ा हुआ है. यूपी सरकार ने अक्तूबर 2017 में 69 हजार शिक्षकों की भरती के लिए आवेदन मांगे थे. दिसंबर 2018 में भरती प्रक्रिया शुरू की. जनवरी 2019 में परीक्षा कराई गई थी. इस में 4.10 लाख अभ्यर्थियों ने हिस्सा लिया था. करीब 1.40 लाख अभ्यर्थी सफल हुए और मैरिट लिस्ट जारी कर दी गई. मैरिट लिस्ट आते ही विवाद सामने आ गया, क्योंकि आरक्षण के चलते जिन अभ्यर्थियों का चयन तय माना जा रहा था, उन के नाम लिस्ट में नहीं थे. लिहाजा, कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया.
69 हजार शिक्षकों की भरती में आरक्षण अनियमितता का मामला हाईकोर्ट में लंबित था. शिक्षक भरती में 19 हजार सीटों के आरक्षण को ले कर अनियमितता के आरोप लगे थे. इस में विसंगतियों का आरोप लगाते हुए कई लोग कोर्ट गए थे. हाईकोर्ट ने 69 हजार सहायक शिक्षकों की मौजूदा सूची को गलत मानते हुए मैरिट सूची को रद कर दिया. कोर्ट ने प्रदेश सरकार को 3 महीने के अंदर नई मैरिट लिस्ट तैयार करने का आदेश दिया. इस के लिए आरक्षण के नियमों और बेसिक शिक्षा नियमावली के तहत लिस्ट बनाने का आदेश दिया गया है.
अब बेसिक शिक्षा विभाग को 3 महीने में नई चयन सूची जारी करनी होगी. इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश से यूपी सरकार को बड़ा झटका लगा है. नई चयन सूची तैयार होने से पिछले 4 सालों से नौकरी कर रहे हजारों शिक्षकों की नौकरी खत्म हो जाएगी. अभ्यर्थियों ने पूरी भरती प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठाए थे. इस में 19 हजार पदों को ले कर आरक्षण में गड़बड़ी के आरोप लगाए गए थे. अब यह मसला सुप्रीम कोर्ट में है. छात्र 2017 से नौकरी का इंतजार कर रहे हैं.
चपरासी की नौकरी के लिए पीएचडीधारक
कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश में सरकार ने चपरासी की नौकरी के लिए जगह निकाली थी. कुल 368 पदों के लिए 23 लाख से अधिक छात्रों ने आवेदन किया. इन में ग्रेजुएट से ले कर बीटैक और पीएचडी डिग्रीधारकों ने भी फौर्म भरा था. इस के अलावा एमएससी, एमकौम, बीएससी, बीकौम और एमए पास लोगों ने भी इस के लिए अप्लाई किया था. नौकरी के लिए सीधे इंटरव्यू होना था.
इतने लोगों का इंटरव्यू होने में ही 4 साल का समय लग जाना था. छात्रों का कहना है कि बेरोजगारी बढ़ने की वजह से अधिक पढ़ेलिखे लोग भी कमतर योग्यता वाली नौकरी करने को तैयार हैं. जब नौकरी ही नहीं मिल रही है तो चपरासी की नौकरी ही सही. चपरासी की नौकरी के लिए 5वीं पास और साइकिल चलाने की योग्यता ही थी. आवेदन करने वालों में सिर्फ 53 हजार लोग ही 5वीं पास थे. 20 लाख अभ्यर्थी 6ठी से 12वीं पास थे.
इस का आवेदन औनलाइन मांगा गया था. 23 लाख से अधिक लोगों ने कम से कम कंप्यूटर केंद्र को 50 रुपए दे कर आवेदन किया होगा. ऐसे में 11 करोड़ 50 लाख रुपए छात्रों की जेब से निकल गए जबकि भरती प्रक्रिया निरस्त कर दी गई. लोगों ने चपरासी की नौकरी इसलिए लेनी चाही होगी कि चपरासी को भी पक्की नौकरी में खासी सैलरी मिल जाती है और रिश्वत के अपार अवसर रहते हैं.
भ्रष्टाचार की भेंट भरती परीक्षा
मध्य प्रदेश के पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रदीप जैन कहते हैं, ‘बेरोजगारी का आलम यह है कि चपरासी की पोस्ट के लिए पीएचडी और एमबीए पास युवा आवेदन कर रहे हैं. मध्य प्रदेश में 40 लाख से अधिक बेरोजगार रजिस्टर्ड हैं. एक करोड़ से अधिक युवा बेरोजगार हैं. गरीब परिवार अपने बेटों को फौर्म भरने के लिए पैसे देते हैं. लेकिन भरती प्रक्र्रिया भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है. नोट अफसरों और नेताओं की जेबों में जाते हैं. मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाले से ले कर पटवारी तक के घोटाले हुए. युवाओं का भविष्य चक्रव्यूह की तरह उलझ गया.
‘दतिया, निवाड़ी, टीकमगढ़ के युवा पीएचडी, एमबीए करने के बाद भी दुकानों पर काम कर रहे हैं. 17 हजार से अधिक युवाओं ने मध्य प्रदेश में नौकरी नहीं मिलने की वजह से आत्महत्या कर ली. 18 साल से सरकार ने नियुक्ति नहीं की. गृह विभाग से ले कर सभी विभागों में पद खाली हैं.’
परीक्षा से कठिन फौर्म भरना
परीक्षा की तपस्या से कठिन है परीक्षा का फौर्म भरना. अगर इस फौर्म को भरने में एक छोटी सी भी चूक होती है तो पूरी परीक्षा निष्काम साबित हो सकती है. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि परीक्षा फौर्म को भरते समय अगर छोटी सी भी गलती हो जाए तो उस में सुधार के अवसर सीमित होते हैं.
परीक्षा फौर्म को भरना काफी कठिन कर दिया गया है. ऐसे में नौकरी के लैवल तक पहुंचने में सालों लग जाते हैं. अच्छेखासे पढ़ेलिखे छात्र भी परीक्षा फौर्म भरने में दूसरे जानकार लोगों की मदद लेने को मजबूर होते हैं. कई बार हिंदी के ऐसे शब्द लिखे होते हैं जिन को सम?ाने के लिए इंग्लिश में ट्रांसलेशन करना पड़ता है.
परीक्षा फौर्म भरने के लिए अब कंप्यूटर और हाईपावर इंटरनैट का होना भी जरूरी होता है. मोबाइल से फौर्म नहीं भरा जा सकता. ऐेसे में पहली जरूरत लैपटौप या कंप्यूटर हो गई है. दूसरी जरूरत, जानकार व्यक्ति, जो सही तरह से फौर्म भरवा सके.
इन दोनों के लिए भी छात्रों को पैसा खर्च करना पड़ता है. परीक्षा फौर्म भरवाने के लिए कंप्यूटर सैंटर खुल गए हैं. कई बार परीक्षा फौर्म भरने में गलती कंप्यूटर सैंटर वाले करते हैं और उस का खमियाजा छात्रों को भुगतना पड़ता है.
आज भी बहुत सारे ऐसे छात्र हैं जिन के पास लैपटौप या कंप्यूटर नहीं है. ये बिना किसी मदद के औनलाइन फौर्म नहीं भर सकते. सरकार का कहना है कि यह सब छात्रों के भले के लिए किया गया है, जिस से परीक्षा में गड़बड़ी न हो, परीक्षा का परिणाम समय पर आए और छात्रों को जल्द नौकरी मिल सके. सचाई सरकारी कथन के पूरी तरह उलट है. आज परीक्षाओं में गड़बड़ी बड़े स्तर पर हो रही है. नकल और परचा आउट होना आम बात है. परीक्षा के परिणाम सालोंसाल लेट हो रहे हैं. सरकारी नौकरी के इंतजार में आधी उम्र निकल जा रही है.
109 पेज के निर्देशों वाला फौर्म कैसे भरें 12वीं पास छात्र
संघ लोक सेवा आयोग यानी यूपीएससी ने एनडीए (नैशनल डिफैंस एकैडेमी) और नेवल एकैडेमी एग्जाम 2024 के लिए नोटिस जारी की. एग्जाम नोटिस नबर 3 /2025-एनडीए-1 में परीक्षा के बारे में 109 पेज में निर्देश थे.
इस में परीक्षा कैसे दें, कितने नंबर के सवाल हैं जैसी तमाम चर्चाएं की गई थीं. 109 पेज पढ़ कर उस को परीक्षा का फौर्म भरना था. 12वीं पास छात्र इतना बड़ा फौर्म देख कर ही चकरा जाता है.
फौर्म भरना कठिन कार्य है. यह बात एनटीए यानी नैशनल टैस्टिंग एजेंसी जानती है, जो इस परीक्षा को आयोजित करती है. एनटीए की स्थापना 2017 में हुई थी. यह मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन आती है. एनटीए का मुख्य काम उच्च शिक्षा और विभिन्न सरकारी संस्थानों में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कुशल, पारदर्शी और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप परीक्षाएं आयोजित करना है. कहने के लिए यह स्वायत्त संस्था है पर असल में केंद्र सरकार का विभाग है.
एनटीए अपनी परीक्षा में फेल
नीट 2024 की परीक्षा में एनटीए की आलोचना पूरे देश में हो चुकी है. नीट में धांधली का मुद्दा पिछले साल संसद से ले कर सड़क तक छाया रहा. इस के बाद भी नीट बेशर्मों की तरह काम कर रही है. उस ने पिछली गलती से कोई सबक नहीं लिया है. जीतेंद्र कुमार मंडल, अंडर सैक्रेटरी, यूपीएससी की तरफ से जारी निर्देशों में पहले 9 पेज तक निर्देश देने के बाद पेज नंबर 10 पर लिखा है कि ‘अप्लाई कैसे करें?’
यह परीक्षा 12वीं पास छात्र देते हैं. ऐसे में उन की समझ कम होती है. उन के अनुकूल किसी भी तरह से यह फौर्म नहीं बना है. पेज नंबर 20 से छात्रों को समझाने के लिए परीक्षा का प्रश्नपत्र दिया गया है.
पेज नंबर 32 पर मैडिकल के बारे में बताया गया है कि किस तरह से छात्रों का मैडिकल परीक्षण किया जाएगा. पूरे फौर्म को देखने से पता चलता है कि जैसे यह परीक्षा फौर्म नहीं, मानो परीक्षा पास कर के नौकरी जौइन करने का फौर्म है. परीक्षा फौर्म भरने से ले कर सवालों के जवाब भरने तक एक लंबी प्रक्रिया होती है. इस में तमाम ऐसी जानकारियां मांगने के कौलम हैं जो गैरजरूरी हैं और इन को नौकरी देते समय मांगा जा सकता है. कठिन होते फौर्म के चलते गड़बड़ी होने की संभावना बढ़ जाती है. इस में सुधार के अवसर भी सीमित होते हैं. उस का भी निर्धारत समय होता है.
नहीं होती सुधार की गुंजाइश
काउंसिल औफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च यानी सीएसआईआर यूजीसी नैट दिसंबर 2024 परीक्षा का आयोजन 16 से 28 फरवरी, 2025 तक आयोजित होगी. यह परीक्षा देशभर के विभिन्न परीक्षा केंद्रों पर होगी. यह एग्जाम 180 मिनट का होगा. परीक्षा का माध्यम हिंदी और इंग्लिश दोनों होगा. परीक्षा का फौर्म आधिकारिक वैबसाइट पर भरा जाएगा. 2 जनवरी तक परीक्षा के लिए आवेदन फौर्म भरे गए थे. 3 जनवरी तक परीक्षा के लिए निर्धारित फीस भरी गई थी. 4 जनवरी से परीक्षा के लिए करैक्शन विंडो ओपन हो गई.
परीक्षा के लिए रजिस्ट्रेशन करने वाले कैंडिडेट्स 4 जनवरी से अपने एप्लीकेशन फौर्म में हुई गलती को सुधार सकते थे. इस के लिए अभ्यर्थियों को औफिशियल वैबसाइट पर जा कर लौगइन करना था. परीक्षा फौर्म में करैक्शन करने के लिए अभ्यर्थियों को 5 जनवरी तक ही समय दिया गया था. कैंडिडेट्स को केवल एक दिन के भीतर ही अपने आवेदनपत्र में सुधार करना था. इस के बाद कोई भी सुधार स्वीकार नहीं किया जाना था.
सुधार में भी शर्तें लागू थीं. परीक्षा फौर्म में सुधार के इच्छुक ऐसे कैंडिडेट्स जिन्होंने करैक्शन करने के लिए आधारकार्ड यूज नहीं किया है, वे डेट औफ बर्थ, जैंडर, पिता का नाम, माता का नाम सैक्शन में बदलाव कर सकते थे. आधारकार्ड यूज करने वाले कैंडिडेट्स को भी इसी सैक्शन में बदलाव की अनुमति दी गई थी. अभ्यर्थियों को उम्मीदवार का नाम, लिंग, फोटो, हस्ताक्षर, मोबाइल नंबर, ईमेल पता, एड्रैस एवं पत्राचार पता, परीक्षा शहर को बदलने की अनुमति नहीं थी.
परीक्षा फौर्म में करैक्शन करने के लिए सब से पहले उम्मीदवारों को आधिकारिक वैबसाइट पर जाना था. होमपेज पर सीएसआईआर नैट दिसंबर 2024 आवेदन सुधार लिंक पर क्लिक करना था. यहां लौगइन कर के बदलाव करना था. इस के बाद किसी भी तरह के बदलाव को मान्य नहीं किया जाना था.
इस का मतलब यह है कि पूरे परीक्षा फौर्म में की गई गलती स्वीकार नहीं थी. केवल चुनी गई जानकारी में ही बदलाव किया जा सकता था. सवाल उठता है कि गलती सुधारने के लिए छात्रों को सीमित वक्त क्यों दिया गया? अगर पूरे फौर्म में किसी गलती को सुधारना हो तो उसे मान्य क्यों नहीं किया गया? फौर्म भरने, परीक्षा आयोजित करने, उस के बाद नौकरी देने में सालोंसाल का समय सरकार लगा देती है, इस का कोई तय समय क्यों नहीं है? जब उस का तय समय नहीं है तो छात्रों को फौर्म में सुधार करने के लिए सीमित समय क्यों दिया जाता है?
परीक्षा केंद्र दूर व अव्यवस्थित
तकरीबन हर परीक्षा में लाखोंलाख छात्र बैठते हैं. ऐसे में परीक्षा आयोजन के लिए बने केंद्र काफी दूरदूर होते हैं. परीक्षा का फौर्म भरते समय छात्र से पूछा जाता है कि वे अपनी पसंद के शहर का नाम बताएं. उसे क्रमवार 3 से 5 शहरों के नाम बताने होते हैं.
परीक्षा आयोजन करने वाले संस्थान कोशिश करते हैं कि छात्र की पसंद का शहर मिल जाए. आमतौर पर पसंद का शहर मिल जाता है. हर शहर में कई सैंटर ऐसे होते हैं जो काफी दूर होते हैं. ऐसे में सुबह 8 बजे परीक्षा सैंटर पर पहुंचना कठिन होता है. छात्र रात में ही रेलवे स्टेशन या बस स्टौप या फिर किसी पार्क में रात गुजारते हैं. इन में लड़केलड़कियां सभी होते हैं. परीक्षा केंद्र पहुंच कर परीक्षा देने में 3 से 5 हजार रुपए छात्र के खर्च हो जाते हैं.
कई परीक्षा केंद्र ऐसे स्थानों पर होते हैं जहां संकरी गलियां होती हैं. उन में 1 से 2 हजार छात्र पहुंच जाते हैं तो अव्यवस्था हो जाती है. 22 दिसंबर, 2024 को एआईबीसी यानी औल इंडिया बार काउंसिल की परीक्षा थी. लखनऊ के ब्राइट कौन्वैंट कालेज और गर्ल्स कालेज में सैंटर थे. ये दोनों कालेज ठाकुरगंज में संकरी सड़कों पर बने थे. ऐसे में कुछ छात्र अपने वाहनों से आए थे. सड़क जाम हो गई. छात्रों का सैंटर तक पहुंचना मुश्किल हो गया. कालेज के सामने वाली रोड मुश्किल से 12 फुट चौड़ी थी, जिस में छात्र और उन के पेरैंट्स का चलना मुश्किल था. ऐसे में अगर कोई हादसा हो जाता तो लेने के देने पड़ जाते.
परीक्षा में शामिल होने के लिए छात्रों से फीस के तौर पर खासी रकम वसूल की जाती है. इस के बाद भी उन को पर्याप्त सुविधाएं नहीं दी जातीं. इस से छात्रों में नाराजगी रहती है. कई बार यह नाराजगी बड़ी परेशानी बन जाती है. कुछ दिनों पहले नीट परीक्षा में धांधली का मुद्दा लोकसभा और सुप्रीम कोर्ट तक गया. इस के बाद भी छात्र संतुष्ट नहीं हैं. उन को लगता है कि उन के साथ चीटिंग हुई है.
शरारतन एडमिट कार्ड पर ऐक्ट्रैस कैटरीना की फोटो
बिहार के दरभंगा स्थित ललित नारायण मिथिला यूनिवर्सिटी (एलएनएमयू) के कर्मचारियों ने छात्रछात्राओं के एडमिट कार्ड पर नरेंद्र मोदी, क्रिकेटर महेंद्र सिंह धौनी, ऐक्ट्रैस कैटरीना कैफ जैसी हस्तियों के फोटो छाप दिए. छात्र संगठन इसे यूनिवर्सिटी की गलती बता कर धरनाप्रदर्शन और आंदोलन करने लगे. एडमिट कार्ड के लिए छात्रों को अपनी फोटो और जरूरी डिटेल्स दर्ज करानी होती है. इस के बाद एडमिट कार्ड बनाया जाता है. एडमिट कार्ड औनलाइन जारी किए जाते हैं. शरारतन कुछ एडमिट कार्ड पर फोटो गलत छप गईं.
इस से पहले भी बिहार में एडमिट कार्ड पर ऐक्टर इमरान हाशमी और पोर्न स्टार सनी लियोनी के नाम छपने का मामला सामने आया था. मुजफ्फरपुर में छात्रों के मातापिता के नाम के सामने इन दोनों फिल्म स्टार के नाम लिखे थे. औनलाइन फौर्म भरते समय मांगी गई सभी डिटेल्स पर ध्यान दिया जाना चाहिए. किसी साइबर कैफे के भरोसे फौर्म भरने से बचना चाहिए. दलाल के चक्कर में पड़ कर फंसना नहीं चाहिए क्योंकि ऐसी गलती यहीं से फौर्म भरने के दौरान ही होती है. जब परीक्षा का फौर्म भरना सरल नहीं होगा तो छात्रों को साइबर कैफे की मदद लेनी ही पड़ेगी, सो, इस तरह की परेशानी संभव है.
इस तरह की परेशानियों से बचने का एक ही उपाय है कि फौर्म भरना सरल किया जाए. छात्र खुद से भर सकें. उन के पास अगर कंप्यूटर और लैपटौप न भी हो तो भी वे अपने मोबाइल से फौर्म भर सकें. परीक्षाफौर्म में सीमित जानकारी ही भरने को कहा जाए. जब छात्र परीक्षा पास कर ले और नौकरी देने का समय आए तो उस से सारा विवरण लिया जाए. ऐसे में छात्र परेशानी से बच सकेंगे.
एक गलती से फौर्म रिजैक्ट
हर परीक्षा के अपनेअपने नियम होते हैं. ये इतने कठिन और समय लेने वाले होते हैं कि इन को समझना आसान नहीं होता. फौर्म भरने की प्रक्रिया औनलाइन होने की वजह से यह और कठिन हो जाती है. कई छात्र ग्रामीण इलाके से आते हैं. उन के लिए यह और कठिन हो जाता है. इस कारण ही सैकड़ों छात्रों के फौर्म रिजैक्ट हो जाते हैं और उन की जमा कराई गई फीस बेकार चली जाती है.
परीक्षा फौर्म के जटिल होने से कोचिंग संस्थाओं, फौर्म भरवाने वाले कंप्यूटर सैंटर्स की चांदी हो जाती है. वे इस के बदले अपना चार्ज वसूलते हैं. सो, पूरी व्यवस्था ऐसे हाथों में चली जाती है जो इंटरनैट ऐप्स के जानकार होते हैं. सरकार इन ऐप्स को सुविधा के नाम पर प्रयोग करती है. सचाई यह होती है कि परीक्षा फौर्मों को औनलाइन भरना मुसीबत हो गया है. यह परीक्षा देने से भी कठिन हो गया है.
प्रमाणपत्रों की आड़ में गोरखधंधा
अलगअलग नौकरियों में कई तरह के प्रमाणपत्र मांगे जाते हैं जबकि फौर्म में पहले से वोटर आईडी या आधारकार्ड का नंबर मांगा जाता है. इस के बाद भी कुछ नौकरियों में डोमिसाइल प्रमाणपत्र मांगा जाता है, जो यह बताता है कि आप किस प्रदेश के रहने वाले हैं.
इस के बाद आय प्रमाणपत्र सवर्ण वर्ग के उन छात्रों को लगाना पड़ता है जो 10 फीसदी पिछड़े सवर्णों के आरक्षण का लाभ लेना चाहते हैं. यह आरक्षण उन छात्रों को ही मिलेगा जिन की वार्षिक आय 8 लाख रुपए से कम होगी. इस के लाभ को लेने के लिए आय प्रमाण बनवाना होता है.
अकसर आय के साथ ही साथ निवास और जाति प्रमाणपत्र भी मांगा जाता है. ये सभी प्रमाणपत्र पाने के लिए औनलाइन आवेदन किए जाते हैं. इन को तहसील स्तर पर बनाया जाता है. डीएम और एसडीएम जैसे पदों के अधिकारी इन को जारी करते हैं.
इन में रिपोर्ट लगाने का काम लेखपाल और कानूनगो जैसे राजस्व विभाग के इंस्पैक्टर करते हैं. इन की रिपोर्ट के बाद भी प्रमाणपत्र बनते हैं. यहां भी धांधली खूब चलती है. आवेदन भरना छात्र के बस का नहीं होता है. उसे तहसील में मौजूद कंप्यूटर केंद्रों पर भरवाना पड़ता है.
कई वकील भी इस काम को करते हैं. इस तरह से प्रमाणपत्र बनवाने में 500 से एक हजार रुपए लग जाते हैं. जब तक लेखपाल पैसा नहीं ले लेता तब तक वह अपनी रिपोर्ट नहीं लगाता. जब तक लेखपाल रिपोर्ट नहीं लगाएगा, ये प्रमाणपत्र नहीं बनेंगे.
आय प्रमाणपत्र हर साल नया बनवाना पड़ता है. ओबीसी जाति प्रमाणपत्र 3 साल में दोबारा बनवाना पड़ता है.
एससी प्रमाणपत्र हर नौकरी में आवेदन करते समय नया बनवाना पड़ता है. औनलाइन परीक्षा फौर्म भरने में प्रमाणपत्र का नंबर लिखने से काम चल जाता है. औफलाइन फौर्म भरने में इस की मूल कौपी लगानी पड़ती है.
जो लोग विकलांग कोटे का लाभ लेना चाहते हैं उन को विकलांग प्रमाणपत्र भी देना पड़ता है. इन को समाज कल्याण विभाग और स्वास्थ्य विभाग में संपर्क करना पड़ता है. स्वास्थ्य विभाग में सीएमओ यानी मुख्य चिकित्सा अधिकारी विकलांग प्रमाणपत्र देता है.
इन प्रमाणपत्रों में किस तरह से धांधली होती है, इस का एक उदाहरण पूजा खेडकर का है. पूजा 2023 बैच की आईएएस थीं. उन को यूपीएससी 2022 में 841वीं रैंक मिली थी. जून 2024 से ट्रेनिंग कर रही थीं. ट्रेनिंग के दौरान गलत व्यवहार के कारण वे चर्चा में आईं.
पूजा खेडकर से खुली पोल
इस के पहले यूपीएससी पता नहीं कर पाई कि पूजा खेडकर ने आरक्षण का लाभ लेने के लिए गलत जानकारी दी थी. इस कारण ही उन को न केवल चुना गया बल्कि नौकरी पर भी भेज कर ट्रेनिंग दी जाने लगी.
विवादों में घिरने के बाद यूपीएससी ने जांच में पूजा खेडकर को गलत पाया तो नौकरी से निकाल दिया. पूजा खेडकर पर उम्र, मातापिता की गलत जानकारी, पहचान बदल कर तय सीमा से ज्यादा बार सिविल सर्विसेज का एग्जाम देने के आरोप थे.
पूजा ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा था कि यूपीएससी के पास उन के खिलाफ कार्रवाई करने का कोई अधिकार नहीं है. मेरे सारे डौक्यूमैंट्स को 26 मई, 2022 को पर्सनैलिटी टैस्ट में आयोग ने वैरिफाई किया था. यूपीएससी ने पूजा द्वारा जमा कराए गए 2 डिसेबिलिटी सर्टिफिकेट में से एक के फर्जी होने की बात कही है. पूजा ने कहा कि पहले यूपीएससी ने मेरे ऊपर अपना नाम बदल कर एग्जाम देने का आरोप लगाया था, अब वे कह रहे हैं कि मेरी विकलांगता पर भी संदेह है.
मजेदार बात यह है कि यूपीएससी ने एक बार नहीं, 3 बार पूजा का पर्सनैलिटी टैस्ट 2019, 2021 और 2022 में लिया था. पर्सनैलिटी टैस्ट के दौरान कलैक्ट किए बायोमीट्रिक डेटा (सिर और उंगलियों के निशान) के जरिए उस की पहचान वैरिफाई की थी. सवाल उठता है कि 3 बार यूपीएससी ने कैसे जांच की थी? हो सकता है इस तरह के प्रमाणपत्र वाले और भी लोग हों जिन की जांच नहीं हो पा रही हो.
एनटीए में नहीं हो रहा सुधार
जिस तरह से पूजा खेडकर मसले में यूपीएससी अपनी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है उसी तरह से एनटीए भी परीक्षाओं में गड़बड़ी की बात को स्वीकार नहीं करती है. नीट में अपनी भद्द पिटवा चुकी एनटीए ने अपने काम करने का तरीका नहीं बदला. जिस कारण ही बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन में 1,957 पदों के लिए हुई परीक्षा में बवाल मचा है. इस परीक्षा में भी नौर्मलाइजेशन को ले कर छात्रों ने धरना शुरू कर दिया. छात्रों का कहना है कि सरकार नौकरी देने में अभ्यर्थियों का समय बर्बाद करती है. इस के लिए ही परीक्षा फौर्म इतना जटिल बनाया जा रहा कि कुछकुछ गड़बड़ी हो जाए जिस से परीक्षा रद कर दी जाए.
नौकरी न देने के लिए परीक्षाओं का ऐसा जाल बुना जा रहा कि छात्र नौकरी तक पंहुच ही न पाएं. नौकरी के नियम वैसे बदले जा रहे हैं जैसे कुंडली में ग्रह बदलते हैं. नियम बदलने से भी छात्र नौकरी पाने से वंचित रह जाते हैं.
बीपीएससी छात्रों का आंदोलन
बिहार में 70वीं संयुक्त प्रारंभिक परीक्षा का आयोजन बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन (बीपीएससी) ने किया. इस के तहत 1,957 पदों को भरा जाना था. इस के लिए 5 लाख से अधिक छात्रों ने अप्लाई किया. पहले आवेदन की लास्ट डेट 18 अक्तूबर थी.
परीक्षा से पहले ही नौर्मलाइजेशन को ले कर फैली अफवाह, छात्रों के प्रदर्शन और आवेदन में सामने आई कुछ तकनीकी समस्याओं के कारण आखिरी डेट बढ़ा कर 4 नवंबर कर दी गई. 5 लाख आवेदनों में से 4 लाख 80 हजार छात्रों ने परीक्षा दे दी.
इस परीक्षा के तहत डिप्टी एसपी, डिप्टी कलैक्टर, सीनियर डिप्टी कलैक्टर और राजस्व अधिकारी जैसे कई पद भरे जाने थे. कैंडीडेट का सैलैक्शन प्रीलिम्स, मेंस और पर्सनैल्टी टैस्ट के आधार पर किया जाता है. परीक्षा के लिए नोटिफिकेशन जारी होने के बाद नौर्मलाइजेशन को ले कर सब से पहला विवाद सामने आया. इस को ले कर छात्र प्रदर्शन करने लगे.
इस के बाद बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन को सफाई देनी पड़ी कि इस परीक्षा में नौर्मलाइजेशन लागू नहीं किया गया है. छात्रों ने प्रदेश की राजधानी पटना शहर में स्थित बिहार पब्लिक सर्विस कमीशन के औफिस के बाहर धरना देना शुरू किया.
धरने में मशहूर कोचिंग टीचर खान सर भी शामिल हुए. प्रशासन और पुलिस ने कोचिंग संस्थानों पर छात्रों को भड़काने का आरोप लगाया. 13 दिसंबर को एग्जाम हो जाने के बाद पेपर आउट होने का आरोप भी लगा.
छात्रों ने परीक्षा में गड़बड़ी, प्रश्नपत्र में असमानता का आरोप लगाते हुए पूरी परीक्षा रद्द करने की मांग की. पेपर लीक के आरोप पर हंगामा बढ़ने पर आयोग ने बापू परीक्षा केंद्र की परीक्षा रद्द कर उसे 4 जनवरी, 2025 को उसी सैंटर पर फिर से आयोजित कराया. छात्र नौर्मलाइजेशन से नाराज थे.
क्या होता है नौर्मलाइजेशन
अगर कोई परीक्षा एक ही शिफ्ट में होती है तो एक ही प्रश्नपत्र सभी छात्रों के लिए होता है. इस को ही नौर्मलाइजेशन कहते हैं. मगर कोई परीक्षा एक से ज्यादा शिफ्ट में होती है तो विभिन्न शिफ्टों में परीक्षा देने वाले छात्रों को अलगअलग प्रश्नपत्र दिए जाते हैं.
नौर्मलाइजेशन सिस्टम द्वारा यह अनुमान लगाया जाता है कि कोई पेपर कितना आसान और कितना मुश्किल होता है. इस के अनुसार ही मार्क्स तय किए जाते हैं. अगर एक शिफ्ट में छात्रों का औसतन स्कोर 100 में से 95 है और दूसरी शिफ्ट में 85 है और पाया जाता है कि दूसरी शिफ्ट का पेपर कुछ मुश्किल था तो नौर्मलाइजेशन स्कोर फार्मूला में दोनों ग्रुपों के छात्रों को बराबर 90-90 स्कोर दिया जा सकता है. इस को ले कर छात्र विरोध कर रहे थे.
परीक्षा दर परीक्षा गड़बडि़यां सामने आ रही हैं. केंद्र सरकार किस को बचाने के लिए एनटीए के खिलाफ कड़े कदम नहीं उठा पा रही है? मोदी सरकार न तो साफसुथरी परीक्षा करा पा रही है और न ही छात्रों के सरलता से परीक्षा फौर्म भरने की व्यवस्था कर पा रही है. बहुत सारे प्रमाणपत्र लगाने के बाद भी पूजा खेडकर गलत प्रमाणपत्र लगा कर नौकरी पा जा रही है.
नीट जैसा आंदोलन बिहार के छात्र बीपीएससी परीक्षा को ले कर कर रहे हैं. इस के बाद भी केंद्र सरकार यूपीएससी और एनटीए को जिम्मेदार नहीं मान रही. परीक्षाओं में सुधार का कोई कदम नहीं उठाया जा रहा. परीक्षा फौर्म भरने से ले कर नौकरी पाने तक छात्र बूढ़े हो जा रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रेडियो पर ‘मन की बात’ में परीक्षा विषय पर मोटिवेशनल बातें करते हैं. उन की सरकार की नाक के नीचे परीक्षाओं में हो रही धांधली पर वे मौन धारण किए रहते हैं.
असल में भाजपा की यह सरकार पौराणिक कथाओं पर भरोसा करती है. ऐसे में वह परीक्षा फौर्म भरने से परीक्षा और नौकरी तक के क्रम में सालोंसाल लगा देती है जिस से कि सरकारी एग्जाम निष्काम तपस्या जैसे बना रहे.
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….
फौर्म भरना कठिन प्रक्रिया
एनडीए का फौर्म भरना एक कठिन प्रक्रिया है. इस को समझने में 109 पेज की बुकलेट जारी की जाती है. इस के बाद भी फौर्म भरना बेहद कठिन होता है. कुछ पौइंट देखिए तो बात समझ आ जाएगी. जरूरत है कि परीक्षा के फौर्म आसान हों जिन्हें छात्र आसानी से भर सकें. उन को कंप्यूटर सेवा केंद्रों या कोचिंग संस्थानों की मदद न लेनी पड़े.
योग्यता क्या है?
यदि आप 12वीं कक्षा में हैं या 12वीं कक्षा उत्तीर्ण हैं और आप की जन्मतिथि तय तिथि के बीच है.
कितनी आयु हो?
अधिकतम आयुसीमा 19.5 वर्ष है और यह जौइनिंग के समय की अधिकतम आयुसीमा है न कि फौर्म भरने की आयुसीमा.
फौर्म कैसे भरें?
भरने के लिए संबंधित साइट पर जाना होगा.
क्या भरना है?
व्यक्तिगत विवरण, जाति प्रमाणपत्र, शैक्षिक योग्यता, पता संबंधी विवरण, फोटो.
कौन सी जाति चुनें?
यदि आप सामान्य जाति से हैं तो एनडीए फौर्म में कोई छूट लागू नहीं होगी. यदि आप ओबीसी से हैं तो वे आप से पूछेंगे कि आप क्रीमी लेयर से हैं या नहीं और बाद में वे आप से प्रमाणपत्र संख्या, प्रमाणपत्र जारी करने की तिथि और प्रमाणपत्र जारी करने वाले प्राधिकारी के बारे में पूछेंगे. एनडीए फौर्म में एससी और एसटी जाति श्रेणी के लिए समान विवरण पूछेंगे. फीस माफी पाने के लिए उचित जाति का चयन करना पड़ता है.
कौन सी योग्यता चुनें?
यदि आप ने कौमर्स या आर्ट्स से 12वीं कक्षा पास की है तो विकल्प 1 चुनें. यदि साइंस से है तो विकल्प 2 चुनें. यदि आप कौमर्स या आर्ट्स से 12वीं कक्षा दे रहे हैं तो विकल्प 3 चुनें. यदि आप साइंस से 12वीं कक्षा दे रहे हैं तो विकल्प 4 चुनें.
एनडीए फौर्म में आर्मी, नेवी, एयरफोर्स और नेवल अकादमी के लिए क्या प्राथमिकता चुनें?
जिस प्रविष्टि के लिए आवेदन करना चाहते हैं उस के आधार पर आप आर्मी, नेवी, एयरफोर्स और नेवल अकादमी को प्रविष्टि के फौन्ट में बौक्स में 1, 2, 3 या 4 के रूप में वरीयता दे सकते हैं और जिस प्रविष्टि को आप वरीयता नहीं देना चाहते हैं उस के सामने अपने एनडीए फौर्म में 0 (शून्य) के रूप में चिह्नित करें.
भारतीय नौसेना अकादमी और नौसेना अकादमी के बीच अंतर?
आप भारतीय नौसेना अकादमी चुनते हैं तो आप 3 साल के लिए पुणे में प्रशिक्षण लेंगे और फिर आप भारतीय नौसेना अकादमी में अंतिम वर्ष के प्रशिक्षण के लिए जाएंगे. यदि आप नौसेना अकादमी चुनते हैं तो आप सीधे 4 साल के प्रशिक्षण के लिए भारतीय नौसेना अकादमी जाते हैं.
कौन सा केंद्र चुनें?
अपने निकटतम परीक्षा केंद्र का चयन करें. अपने निवास स्थान के नजदीक परीक्षा केंद्र पाने के लिए जल्द से जल्द फौर्म भरना जरूरी है खासकर बड़े शहरों के लिए. पहले फौर्म न भरने से परीक्षा केंद्र दूर और खराब जगहों पर मिलता है.
फोटो और हस्ताक्षर अपलोड कैसे करें?
सौफ्टवेयर का उपयोग कर के छवियों का आकार बदलना चाहिए. यह काफी कठिन कार्य होता है. छवि पर राइट क्लिक करें और पेंट के साथ खोलें, फिर छवि के आवश्यक भाग को क्रौप करें और फिर आकार बदलने पर क्लिक करें और पिक्सेल विकल्प चुनें, फिर नीचे दिए गए आयामों का उपयोग करें और उस के अनुसार आकार बदलें.
……………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….