Delhi Elections : दिल्ली में आम आदमी पार्टी की हार पर यह दुख तो है कि देश में ईमानदारी, बिना जातिधर्म का बक्सा लिए सिर्फ प्रशासनिक सुधारों की बात करने वाली एक पार्टी का खात्मा सा हो गया है पर यह भी साफ है कि आम आदमी पार्टी अपने घोषित उद्द्येश्य से कब की बाहर निकल चुकी थी और जनता से अपना प्यार खो बैठी थी.
2019 और 2025 के बीच आम आदमी पार्टी जनता के लिए नहीं, अपने फैलाव की ज्यादा सोच रही थी और तभी भारतीय जनता पार्टी के उपराज्यपाल एक के बाद एक तीर व गोलियां उस पर चला रहे थे और कोई उन्हें रोक नहीं रहा था. केंद्र सरकार ने एकएक कर के आप के मंत्रियों को गिरफ्तार किया और आम आदमी को उस से फर्क नहीं पड़ा. ‘आप’ अपने को बचाने में लगी रही पर जनता केंद्र सरकार की मनमानी के खिलाफ खड़ी नहीं हुई. आम आदमी पार्टी के नेताओं ने कभी बेईमानी की थी या नहीं, यह तो कभी पता नहीं चलेगा पर आम जनता को कभी इन गिरफ्तारियों पर दुख नहीं हुआ वरना तो अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर पूरी दिल्ली हिल जानी चाहिए थी.
भारतीय जनता पार्टी अरविंद केजरीवाल की विधानसभा को जीत लेने के बावजूद लोकसभा की सारी सीटें जीत रही थी. 2019 में जीती और 2024 में भी. केजरीवाल को अपनी राजनीति में जो बदलाव करना चाहिए था वह न ला कर वे अपनी पार्टी के पैर उन राज्यों में फैलाने लगे जहां मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस का सीधे था. नतीजा यह हुआ कि कांग्रेस के क्लब में होते हुए भी वे कांग्रेस के दोस्त न बन सके और दिल्ली में अपनी मौजदूगी के कारण मोदी की आंखों की किरकिरी बने रहे.
पार्टी को मजबूत करने की जगह वे पूजापाठी कार्यक्रम अपनाने लगे. लोगों को हरिद्वार, अयोध्या, इलाहाबाद की तीर्थयात्राएं कराने लगे. पार्टी को जो पैसा दिल्ली में मिलता था उस का उपयोग दूसरे राज्यों के चुनावों में खर्च करने लगे. उन्हें पंजाब में सफलता मिल गई तो वे फूल कर कुप्पा हो गए पर अपनी गिरफ्तारी पर जनता की चुप्पी का कोई इशारा उन्होंने नहीं समझा.
आम आदमी पार्टी का प्रयोग अभी असफल नहीं हुआ क्योंकि इस चुनाव में भी उसे 43 फीसदी वोट मिले हैं. 22 सीटें जीत कर व दमखम वाली पार्टी है पर पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल की खुद की नई दिल्ली की सीट की हार उन्हें और उन की पार्टी का भविष्य संदेह में डाल रही है. भारतीय जनता पार्टी का दिल्ली में राज कोई नया सवेरा लाएगा, ऐसी उम्मीद न करें. राज तो वैसा ही चलेगा जैसा दूसरे भाजपाशासित राज्यों में चल रहा है. बस, इतना फर्क होगा कि अब उपराज्यपाल आराम फरमाएंगे और भाजपा के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री के आदेशों को अक्षरश: मानेंगे.