Faith vs Business : धर्म का धंधा सिर्फ पंडेपुजारियों की वजह से ही नहीं फलफूल रहा, इस धंधे से दूसरे बहुत से भी लाभ उठाते हैं. धर्म के धंधे के बने रहने से वर्णव्यवस्था बनी रहती है और गरीब, परेशान, बीमार, कर्ज में डूबा, मुनाफाखोरों से पीडि़त बजाय विरोध करने के, इसे अपने जन्म का दोष मानता है, पिछले जन्मों के कर्मों का फल मानता है, भगवान के दरबार में सही ढंग से भक्ति की भेंट पूजा न कर पाने की अपनी कमी को मानता है.
धर्म के धंधे में पंडेपुजारियों के साथसाथ हजारों मंदिर और लोग भी लगे हैं (ये भारतीय जनता पार्टी के अवैतनिक कार्यकर्ता भी हैं). इन लोगों में दुकानदार, टैक्सी वाले, घोड़े वाले, पहाडि़यों पर बने तीर्थस्थलों में डांडी ले जाने वाले भी शामिल हैं. जम्मू में वैष्णो देवी के तीर्थ पर दुकानदारों ने हड़ताल का तरीका अपनाया क्योंकि वहां का बोर्ड कटरा के पास एक जगह से रोपवे बनाना चाह रहा है ताकि वैष्णो देवी गुफा तक बिना चढ़ाई पर चढ़े पहुंचा जा सके.
अब इस पैदल रास्ते पर बहुत सी दुकानें बनी हैं. इन दुकानों से हजारों भक्त हर रोज भरपूर सामान खरीदते हैं. ये दुकानदार चाहते हैं कि उन का धंधा बरकरार रहे क्योंकि धर्मस्थल पर दुकानदार कैसा ही सामान कितने भी दामों पर बेच सकता है. ब्रेनवाश किया हुआ भक्त ज्यादा भावताव नहीं करता. उन्हें 250 करोड़ रुपए के रोपवे से ईर्ष्या होनी स्वाभाविक है क्योंकि तब उन का सारा पैसा रोपवे के मालिक की जेब में जाएगा. रोपवे वालों को भी कुछ दुकानें खोलने की इजाजत दी जाती है. उन दुकानों का किराया भी रोपवे मालिकों की जेबों में जाएगा.
मजेदार बात यह है कि दुकानदारों के मुखिया रोपवे को हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला काम बता रहे हैं. रोपवे तो धर्मांधों को जल्दी अपने लक्ष्य पर पहुंचा कर उन्हें पुण्य दिलाने का काम करेगा, इसे भी अगर धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना कहा जाएगा तो मतलब साफ है कि ये भावनाएं धार्मिक नहीं होतीं, दरअसल ये आर्थिक होती हैं.
वास्तव में दुनियाभर के सभी धर्म आमभक्तों और अनुयायियों की जेबों को खाली कराने में लगे रहते हैं. वैष्णो देवी के मार्ग पर बैठे दुकानदार भी यही कर रहे हैं.