Game Changer : रेटिंग : 1 स्टार
निर्माता : दिल राजू और शिरीष
लेखक : कार्तिक सुब्बाराज, विवेक वेलमुरुगन, साईं माधव बुर्रा और शंकर
निर्देशक : एस. शंकर
कलाकार : रामचरण, कियारा आडवाणी, एसजे सूर्या, अंजलि, श्रीकांत, सुनील और ब्रह्मानंदन आदि।
अवधि : 2 घंटे 44 मिनट
हिंदीभाषी क्षेत्रों में तेलुगु फिल्मों के निर्देषक शंकर और अभिनेता रामचरण की अपनी एक पहचान और एक ब्रैंड वैल्यू है, मगर ‘इंडियन’, ‘अन्नियन’ और ‘ऐंधिरन’ जैसी अति सफलतम फिल्मों के निर्देशक एस शंकर की कुछ माह पहले प्रदर्षित फिल्म ‘इंडियन 2’ बुरी तरह से असफल हो चुकी है. 10 जनवरी, 2025 को रिलीज हुई उन की दूसरी फिल्म ‘गेम चेंजर’ के भी बौक्स औफिस पर आसार अच्छे नजर नहीं आ रहे हैं.
यों तो फिल्म निर्देशक एस शंकर हमेशा एक समय में एक ही फिल्म निर्देशित करते रहे हैं, मगर फिल्म ‘इंडियन 2’ की शूटिंग के दौरान एक हादसा हो गया था, जिस के बाद एस शंकर ने ‘इंडियन 2’ की शूटिंग रोक कर रामचरण के साथ फिल्म ‘गेम चेंजर’ की शूटिंग शुरू कर दी थी. पर फिल्म ‘इंडियन 2’ की निर्माण कंपनी ‘लाइका प्रोडक्शन’ अदालत पहुंच गई थी। ऐसे में, एस शंकर ने ‘इंडियन 2’ और ‘गेम चेंजर’ दोेनों की शूटिंग एकसाथ की थी और एस शंकर भटक गए. वे दोनों फिल्मों पर से अपनी पकड़ खो बैठे.
‘इंडियन 2’ की बौक्स औफिस पर बड़ी बुरी दुर्गति हुई थी, जबकि ‘गेम चेंजर’ देख कर एहसास हुआ कि यह फिल्म भी अच्छी नहीं बनी है. यहां पर एस शंकर के लिए लोग कह रहे हैं,”दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम…’’
10 जनवरी,2025 को प्रदर्षित हुई फिल्म ‘गेम चेंजर’ भी मूलतया तेलुगु फिल्म है, जिसे हिंदी व तमिल में डब कर के प्रदर्षित किया गया है. फिल्म ‘गेम चेंजर’ में अप्पा अन्ना और उन के बेटे व आईएएस औफिसर राम नंदन के दोहरे किरदार को निभाने वाले अभिनेता रामचरण ने कुछ दिन पहले मुंबई आगमन पर कहा था कि इस फिल्म से निर्देशक एस शंकर के साथ काम करने का उन का एक सपना पूरा हो गया, जबकि यह सौभाग्य अब तक उन के पिता व अभिनेता चिरंजीवी को नहीं मिल पाया है.
कहानी : यह कहानी विषाखापट्टनम, आंध्र प्रदेश के नवनियुक्त आईएएस अधिकारी राम नंदन और भ्रष्ट राजनीतिक वर्ग मोपादेवी (एसजे सूर्या) और माणिक्यम (जयराम) से टकराव की है. मगर फिल्म शुरू होती है उत्तर प्रदेश के गुटखा माफिया को तबाह करने वाले आईपीएस राम नंदन के आईएएस बन कर नई नियुक्ति पर विशाखापट्टनम जाते हुए जब गुटखा माफिया के गुंडे उन्हें रास्ते में ट्रेन रोक कर उन से मारामारी करते हैं, पर सब जेल पहुंच जाते हैं.
राम नंदन अपनी ईमानदारी और अपने काम के प्रति समर्पण के लिए प्रसिद्ध हैं. उन का विरोध करने वाली प्रमुख ताकत मुख्यमंत्री सत्यमूर्ति (श्रीकांत) के बेटे बोब्बिली मोपादेवी (एसजे सूर्या) हैं, जो अवैध गतिविधियों में शामिल हैं. जैसाकि अपेक्षित था, बोब्बिली मोपादेवी झूठे आरोपों के साथ राम नंदन को कमजोर करने की योजना बनाते हैं. तो वहीं मोपीदेवी अस्पताल में अपने पिता को मार कर मुख्यमंत्री पद हथियाते लेते हैं, पर पता चलता है कि मुख्यमंत्री सत्यमूर्ति राम नंदन को अपना वारिस घोषित कर गए हैं.
इंटरवल के बाद जब कहानी में फ्लैशबैक आता है। तब राम नंदन के पिता अप्पा अन्ना जोकि हकलाते हैं, खदान मालिकों के खिलाफ आंदोलन करते हैं. नेतागिरी चमक जाती है तो ‘अभ्यूदय’ नाम राजनीतिक पार्टी बनाते हैं. फिर अपने हकलाने की वजह से सार्वजनिक मंच पर पार्टी के एक आम कार्यकर्ता को भाषण देने के लिए आगे बढ़ाते हैं. वह उद्योगपतियों से चंदा न लेने की कसम खाते हैं. पार्टी के पोस्टर, बैनर और कटआउट के खिलाफ हैं. लेकिन, पार्टी के सत्ता तक पहुंचने के रास्ते में पार्टी कार्यकर्ता यानी कि मोपादेवी के पिता सत्यमूर्ति द्वारा उद्योगपतियों के हाथों बिक कर उस पार्टी को हथियाने व अपर्णा की हत्या करने तक की कहानी सामने आती है.
फिर राम नंदन और मोपादेवी द्वारा एकदूसरे को मात देने का खेल शुरू होता है. फिल्म का अंत राम नंदन के मुख्यमंत्री बनने और लोकलुभावन भाषण के साथ होता है.
समीक्षा : फिल्म ‘गेम चेंजर’ की शुरुआत बहुत ही ज्यादा कन्फ्यूजन पैदा करने वाली व कमजोर है. कहानी के स्तर पर कुछ भी नयापन नहीं है. वह राजनीतिक भ्रष्टाचार व अन्य भ्रष्टाचार के ही इर्दगिर्द अपनी फिल्मों की कहानियां बुनते आए हैं. ‘इंडियन’, ‘इंडियन 2’ के बाद अब ‘गेम चेंजर’ की भी कहानी कमोवेश वही है. ‘गेम चेंजर’ में संविधान व वर्तमान में चर्चित चुनाव आयोग को भी कहानी में पिरो दिया गया है. फिर फर्जी मतदान से ले कर मतपेटियों की तोड़फोड़ सबकुछ है. लेकिन इंटरवल से पहले कहानी बहुत ही ज्यादा कमजोर और बोरियत पैदा करने वाली है. फिल्म में आईएएस अफसर बन कर राम नंदन अपनी कुर्सी पर बैठने के पहले ही दिन जिस तरह से कदम उठाते हैं। उस से फिल्म ‘नायक’ के अनिल कपूर की याद आ जाती है और यह बहुत ही ज्यादा बचकाना भी लगता है.
एक ही दिन में भ्रष्ट अधिकारी को उस के पद से हटाने, पूरे शौपिंग मौल को जमींदोस्त करने से ले कर राशन की दुकानों के आसपास के भ्रष्टाचार को खत्म कर देते हैं.
यों भी एस शंकर की हर फिल्म में हीरो कभी भी किसी रौबिनहुड से कमतर नहीं रहा. अब वह राम चरण अभिनीत फिल्म ‘गेम चेंजर’ में भी राजनीतिक भ्रष्टाचार और मुख्यमंत्री की कुर्सी को ले कर हो रही खींचतान के साथ नायक को रौबिनहुड की तरह पेश करने में पीछे नहीं रहे. लेकिन इस फिल्म में अविश्वसनीय घटनाक्रमों की भरमार है, तो वहीं फिल्म देखते समय दर्शकों को अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार के खिलाफ छेड़ा गया आंदोलन से ले कर अरविंद केजरीवाल के दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने तक की सारी कहानी भी याद आ जाए, तो कुछ भी आश्चर्य की बात नहीं होगी.
फिल्म का क्लाइमैक्स भी घटिया है. वास्तव में ‘इंडियन 2’ और ‘गेम चेंजर’ को निर्देशक एस शंकर ने एकसाथ फिल्माया है और दोनों फिल्मों का सब्जैक्ट भी लगभग एक जैसा ही है, इसलिए ‘गेम चेंजर’ के अंतिम 1 घंटे में वह पूरी तरह से भटके हुए नजर आते हैं. ऐसा लगता है जैसे कि वह अपनी फिल्म पर से नियंत्रण खो चुके हैं.
‘गेम चेंजर’ में मतदान करना अनिवार्य किए जाने की बात करते हुए मतदान करने के महत्त्व पर भी रोशनी डाली गई है.
इंटरवल के बाद घटनाक्रम तेजी से बदलने शुरू होते हैं. पर ज्यादातर दृश्य कपोलकल्पित ही हैं, जिन का वास्तविकता या लौजिक से कोई लेनादेना नहीं. कई बार ऐसा लगता है कि निर्देशक ने कुछ मुद्दों पर कुछ दृश्य फिल्मा लिए, फिर उन्हें ऐडिटिंग टेबल पर जुड़वा कर एक फिल्म की शक्ल दे डाली. बीचबीच में अनावश्यक रूप से गाने ठूंस दिए गए हैं जो कहानी को आगे बढ़ाने की बजाय व्यवधान पैदा करते हैं. राम नंदन और डाक्टर दीपिका की प्रेमकहानी भी ठीक से विकसित नहीं की गई. इतना ही नहीं, एक आईएसएस औफिसर व मुख्यमंत्री के बीच टकराव भ्रष्टाचारमुक्त समाज के लिए जरूरी है, मगर इस फिल्म में निर्देशक की अपनी कमजोरी के चलते यह टकराव निजी दुश्मनी जैसी प्रतीत होती है. कुछ एक्शन सीन दमदार हैं पर इस में कौमेडी वही पुराने अंदाज वाली है.
अभिनय : 2022 में प्रदर्शित मल्टीस्टारर फिल्म ‘आरआरआर’ में अभिनय कर रामचरण ने हिंदीभाषी दर्शकों के बीच अच्छी पैठ बनाई थी. अब वह ‘गेम चेंजर’ में सोलो हीरो बन कर हिंदीभाषी दर्शकों के बीच अपनी ‘पैन इंडिया’ स्टार की छवि को पुख्ता करना चाहते हैं, पर ऐसा होता नजर नहीं आ रहा है. रामचरण में अभिनय को ले कर सीमित प्रतिभा है. दूसरी बात, उन्हें पटकथा से भी कोई मदद नहीं मिली. अधिकतर दृश्यों में उन के भाव एकसमान ही रहते हैं. डाक्टर दीपिका के किरदार में किआरा अडवाणी सिर्फ सुंदर नजर आई हैं. उन के हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं. निर्देशक शंकर का सारा फोकस तो रामचरण पर ही रहा. मोपा देवी के किरदार में अभिनेता एसजे सूर्या तारीफ बटोर ले जाते हैं. अंजलि ने अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभाई है.