Students Movement : आजादी से पहले और बाद में भारत में जितने भी सोशल मूवमेंट हुए, उन में स्टूडैंट्स की भूमिका बहुत अहम रही है फिर चाहे वह नव निर्माण मूवमेंट हो, बिहार स्टूडैंट मूवमेंट हो, असम मूवमेंट हो या फिर रोहित वेमुला की मौत पर विरोध प्रदर्शन. लेकिन अब ये स्टूडैंट मूवमेंट गायब होने लगे हैं, क्यों?
एक समय था जब स्टूडैंट मूवमेंट अच्छीखासी संख्या में हुआ करते थे. इमरजेंसी के विरोध में बाद जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में स्टूडैंट्स ने इमरजेंसी के खिलाफ मूवमेंट किया. इस मूवमेंट ने इतना बड़ा रूप ले लिया था कि इंदिरा गांधी तक को स्टूडैंट्स के प्रेसिडेंट तक से मिलना पड़ गया था. क्यूंकि उस समय स्टूडैंट प्रेजिडेंट की एक वैल्यू होती थी.
दरअसल, स्टूडैंट सिर्फ एक स्टूडैंट नहीं है वो एक नागरिक भी है. अगर उसे अपनी यूनिवर्सिटी में या शिक्षा के क्षेत्र में या फिर देश में कुछ भी गड़बड़ होते दिख रहा है. या उसे लगता है कि ये गलत हो रहा है इसे बदला जाना चाहिए, तो इस पर स्टूडैंट्स को सवाल उठाने का पूरा अधिकार होता है. स्टूडैंट अगर किसी यूनिवर्सिटी कैंपस में पढ़ाई कर रहा है, तो इसका मतलब ये नहीं है कि वो वहां सिर्फ पढ़ाई ही करेगा. अगर उन्हें लग रहा है कि इस यूनिवर्सिटी में किसी स्टूडैंट के साथ कुछ गलत हो रहा है या वहां कुछ ऐसा हो रहा है जो स्टूडैंट्स के फेवर में नहीं है, तो उन्हें आवाज उठाने का पूरा हक़ है. अपने इसी हक़ का इस्तेमाल करते हुए पहले खूब स्टूडैंट मूवमेंट हुआ करते थे.
2012 में निर्भया केस हुआ. उस निर्भया केस को पुरे भारत में इतना स्पार्क मिला उसका एक बड़ा कारण ये था कि दिल्ली के अलग अलग यूनिवर्सिटी के जो स्टूडैंट थे वे बाहर निकले और उन्होंने मूवमेंट किया आवाज उठाई. उसमे जामिया, अंबेडकर यूनिवर्सिटी, आईपी यूनिवर्सिटी के स्टूडैंट भी शामिल थे. वे सभी सड़कों पर आएं और उन्होंने अपनी आवाज उठाई. इस तरह स्टूडैंट एक नागरिक भी है और वह अपना इस तरह फर्ज भी अदा करता है.
बहुत पुराना है Students Movement का इतिहास
जब भी स्टूडैंट शक्ति ने किसी बड़े मूवमेंट को जन्म दिया या किसी घटना विशेष पर तीखा रुख इख्तियार किया तो देश और समाज में सकारात्मक परिवर्तन हुए. देश ही नहीं दुनिया में भी स्टूडैंट राजनीति का आयाम यही रहा. भारत में स्टूडैंट राजनीति का इतिहास करीब 170 साल पुराना है. 1848 में दादा भाई नौरोजी ने ‘द स्टूडेंट साइंटिफिक एंड हिस्टोरिक सोसाइटी’ की स्थापना की.
इस मंच को भारत में स्टूडैंट मूवमेंट का सूत्र-धार माना जाता है. आजादी से पहले के राजनेताओं की बात करें तो युवा शक्ति को पहचानते हुए लाला लाजपत राय, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस, जवाहर लाल नेहरू ने भी स्टूडैंट राजनीति को काफी तवज्जो दी थी
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी.का भी स्टूडैंट आंदोलनों को एक मुकाम तक ले जाने में खासा योगदान रहा. 1919 का सत्याग्रह, 1931 में सविनय अवज्ञा और 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो मूवमेंट की शुरुआत जब हुई तो युवाओं और खासकर स्टूडैंट्स को इससे जोड़ा गया. गुजरात विद्यापीठ, काशी विद्यापीठ, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, विश्वभारती, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वद्यिालय और जामिया मिलिया इस्लामिया जैसे शिक्षा केंद्र विद्यार्थी आंदोलनों का गढ़ बन गए थे. वहां खूब आंदोलनों का दौर चला.
1974 का जयप्रकाश नारायण का मूवमेंट एक मिसाल है
स्टूडैंट मूवमेंट से जुड़ा एक ऐसे ही किस्सा है 18 मार्च 1974 का. अगर उस दिन की बात करें तो 18 मार्च के दिन विधान मंडल के सत्र की शुरुआत होने वाली थी. राज्यपाल दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को सम्बोधित करने वाले थे. लेकिन ऐसा करना उनके लिए आसान नहीं था क्यूंकि दूसरी तरफ स्टूडैंट मूवमेंटकारी डटे हुए थे और उनकी कोशिश इस बैठक को नाकाम करने की थी. उनकी योजना था कि राज्यपाल को विधान मंडल भवन में जाने से रोकेंगे. उन्होंने राज्यपाल की गाड़ी को रस्ते में ही रोक लिया.
पुलिस प्रशासन ने उन्हें रोकने की कोशिश की और पुलिस ने स्टूडैंट्स-युवकों पर निर्ममतापूर्वक लाठियां चलाईं. तब स्टूडैंट्स और युवकों का नेतृत्व करने वालों में पटना विश्वविद्यालय स्टूडैंट संघ के तत्कालीन अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव सहित कई लोग जुटे थे. इसमें कई लोगों को चोटें आईं. वहीं, पुलिस के लाठी चार्ज से लोगों में गुस्सा फैल गया. बेकाबू भीड़ को काबू करना मुश्किल हो गया था. आंसू गैस के गोले चलाए गए जिससे हर तरफ धुंए का माहौल हो गया. इसके बाद अनियत्रित भीड़ और अराजक तत्व मूवमेंट में घुस गए, स्टूडैंट नेता कहीं दिखाई नहीं पड़ रहे थे. हर तरफ लूटपाट और आगजनी होने लगी. बताते हैं कि इस घटना में कई स्टूडैंट मारे गए और फिर इस मूवमेंट की कमान जे पी ने संभाली.
उस समय इस मूवमेंट को रोकने में कांग्रेस सरकार पूरी तरह नाकाम रही तभी तात्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल कि घोषणा की थी . लेकिन साल भर बाद ही हुए चुनाव में कांग्रेस सरकार सत्ता से हाथ धो बैठी . इस तरह उस समय के स्टूडैंट्स युवकों ने राजनीति में बढ़ते भ्रष्टाचार पर लगाम कसी थी.
इस तरह देश में आजादी से पहले गांधी, सुभाष चंद्र बोस और फिर बाद में जय प्रकाश नारायण के आह्वान पर स्टूडैंट-शक्ति ने जो तेवर दिखाए, उसने देश की दशा-दिशा बदल दी. 1960 से 1980 के बीच देश में विभिन्न मुद्दों पर सत्ता को चुनौती देने वाले ज्यादातर युवा आंदोलनों की अगुआई स्टूडैंटसंघों ने ही की. सात के दशक में (1974) में जेपी मूवमेंट और फिर असम स्टूडैंट्स का मूवमेंट इसके उदाहरण हैं, जिनके फलस्वरूप स्टूडैंट शक्ति सत्ता में भागीदार बनी. इस मूवमेंट ने देश को कई बड़े नेता दिए जैसे नीतीश कुमार, बिहार के पूर्व सीएम लालू प्रसाद, यूपी के पूर्व सीएम मुलायम सिंह यादव आदि. 1919 में, असहयोग मूवमेंट के दौरान स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार कर भारतीय स्टूडैंट्स ने इस आन्दोलन में तीव्रता प्रदान की थी.
असहयोग मूवमेंट के बाद, भारत छोड़ो मूवमेंट को भारतीय स्टूडैंट्स का समर्थन मिला. मूवमेंट के दौरान, स्टूडैंट्स ने ज्यादातर कॉलेजों को बंद करने और नेतृत्व की अधिकांश जिम्मेदारियों को शामिल करने का प्रबंधन किया और भूमिगत नेताओं और मूवमेंट के बीच लिंक प्रदान किया.
आपातकाल में स्टूडैंट मूवमेंट 1975
ऐसे और भी कई किस्से हैं जब स्टूडैंट मूवमेंट हुए. जैसे कि 25 जून, 1975 को देशभर में आपातकाल घोषित कर दिया गया. भारत भर के कई विश्वविद्यालयों और शैक्षणिक संस्थानों में, स्टूडैंट्स और संकाय सदस्यों ने आपातकाल लागू करने के जमकर विरोध किया. इस मूवमेंट की सफलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खुद इंदिरा गांधी स्टूडैंट संघ के प्रेसिडेंट से मिलने आई थी. इस मूवमेंट में दिल्ली विशवविद्यालय स्टूडैंट संघ के अध्यक्ष अरुण जेटली समेत 300 से अधिक स्टूडैंट संघ नेताओं को जेल भेज दिया गया था.
मंडल विरोधी मूवमेंट, 1990
अगस्त 1990 को, भारत भर के स्टूडैंट्स ने अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में 27% आरक्षण की शुरुआत के खिलाफ विरोध किया. यह विरोध दिल्ली विश्विधालय से शुरू हुआ और पुरे देश में फ़ैल गया. स्टूडैंट्स ने परीक्षाओं का बहिष्कार किया. इसके बाद ही वीपी सिंह ने 7 नवंबर, 1990 को इस्तीफा दिया, तो ये मूवमेंट समाप्त हो गया.
आरक्षण विरोधी मूवमेंट 2006
यह स्टूडैंट्स के द्वारा किया गया दूसरा सबसे बड़ा मूवमेंट था जोकि आरक्षण व्यवस्था के खिलाफ किया गया था.
2015 का एफटीआईआई मूवमेंट
8. जुलाई 2015 में, भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान, पुणे के स्टूडैंट्स ने प्रतिष्ठित संस्थान के अध्यक्ष के रूप में अभिनेता गजेंद् चौहान के खिलाफ मूवमेंट किया था. उन्होंने इनकी योग्यता पर सवाल उठाते हुए इनके विरोध में ना सिर्फ अपनी क्लास अटेंड करने से मन किया बल्कि पेपर भी नहीं दिए.
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रोहित वेमुला की मौत पर स्टूडैंट्स का विरोध प्रदर्शन, 2016
26 साल के रोहित वेमुला ने 17 जनवरी 2016 को हैदराबाद यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में खुदकुशी की थी. आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के मेंबर रहे रोहित स्टूडैंट राजनीति में काफी सक्रिय थे. उनके संगठन ने याकून मेमन को फांसी का विरोध किया था. 2015 में रोहित समेत पांच स्टूडैंट्स पर एबीवीपी के सदस्य पर हमला करने का आरोप लगे थे.
उन्हें हॉस्टल से निकाल दिया गया था. इसके बाद रोहित वेमुला की आत्महत्या की खबर आई. रोहित की मौत के बाद कुलपति अप्पा राव, महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी, सांसद बंगारू दत्तात्रेय समेत एबीवीपी के कई नेताओं पर खुदकुशी के लिए उकसाने के आरोप लगे. फिर जेएनयू समेत पूरे देश के यूनिवर्सिटीज में विरोध प्रदर्शन हुए थे. सैकड़ों स्टूडैंट्स ने विरोध रैलियों में भाग लिया था. रोहित वेमुला को न्याय दिलाने की मांग कर रहे कांग्रेस और वामपंथी स्टूडैंट संगठनों ने ‘राष्ट्रवादी दहशत’ को आत्महत्या का कारण बताया. रोहित के समर्थन और हैदराबाद यूनिवर्सिटी की कार्यशैली के विरोध में दर्जनों लेख लिखे गए. सीएम केसीआर ने इस केस की जांच हैदराबाद पुलिस को सौंप दी.
जेएनयू फीस वृद्धि, 2019 और सीएए-एनआरसी
जेएनयू में फीस वृद्धि को लेकर चल रहे स्टूडैंट्स के प्रदर्शन ने खूब जोर पकड़ा. इस मूवमेंट में उनकी उनकी पुलिस के साथ झड़प भी हुई. इसके बाद कई छात्राओं ने कहा कि अगर फीस वृद्धि हुई तो वे अपने घर वापस लौट जाएंगी.विरोध इतना हुआ और स्थ्ति इतनी बिगड़ गए कि 500 पुलिसकर्मी को स्थिति सँभालने में लगाया गया.
ऐसे ही सीएए-एनआरसी के खिलाफ स्टूडैंट्स ने जमकर विरोध प्रदर्शन किया था. इसमें जामिया मिलिया इस्लामिया से लेकर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के स्टूडैंट शामिल हुए.
स्टूडैंट नेताओं ने कुछ ऐसे रखा राजनीति में कदम
यही वह समय था जब भारत में स्टूडैंट मूवमेंट ढेरों की संख्या में होते थे और वही से नेता बनते थे. स्टूडैंट राजनीति से निकल कर राष्ट्रीय राजनीति मे महत्वपूर्ण योगदान देने वाले नेताओं में पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन, पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह और चंद्रशेखर जैसे दिग्गजों के नाम भी हैं. वहीं, हेमवती नंदन बहुगुणा, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, अशोक गहलोत, प्रफुल्ल कुमार महंत सहित शरद यादव, सुशील मोदी, अमित शाह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, रविशंकर प्रसाद, सीताराम येचुरी, प्रकाश करात, डी. राजा, सतपाल मलिक, सीपी जोशी, मनोज सिन्हा, विजय गोयल, विजेंद्र गुप्ता, अनुराग ठाकुर, देवेंद्र फडनवीस, सर्वानंद सोनोवाल जैसे नाम हैं. इनकी शुरआत राजनीति में स्टूडैंट मूमेंट से ही निकली थी. उनमे से कुछ नेता है-
सुषमा स्वराज
1970 के दशक में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के साथ हरियाणा में राजनीतिक करियर की शुरुआत की.पेशे से व़कील, 25 वर्ष की उम्र में हरियाणा में मंत्री बनी.1990 में वे पहली बार राज्य सभा सदस्य बनीं. उन्होंने 1996 में दक्षिण दिल्ली से लोक सभा सीट जीती.उसके बाद दिल्ली की मुख्यमंत्री, केंद्र में सूचना-प्रसारण मंत्री, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री, लोक सभा में विपक्ष की नेता और सरकार में विदेश मंत्री भी रहीं.
लालू प्रसाद यादव
पटना यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई करते हुए पटना यूनिवर्सिटी स्टुडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष बने. 1973 में फिर स्टूडैंट संघ चुनाव लड़ने के लिए पटना लॉ कॉलेज में दाखिला लिया और जीते. जेपी मूवमेंट से जुड़े और स्टूडैंट संघर्ष समिति के अध्यक्ष बनाए गए. 1977 में जनता पार्टी के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीते. 29 साल के लालू यादव सबसे युवा सांसदों में से एक थे. 1990-97 के बीच लालू बिहार के मुख्यमंत्री रहे. यूपीए-1 सरकार में रेल मंत्री भी रहे.
सीपी जोशी
1973 में राजस्थान के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के स्टूडैंट संघ के अध्यक्ष बने. इसके बाद विधायक का चुनाव जीता. चार बार विधायक बने और राज्य सरकार में कई मंत्रालय संभाले. 2008 के चुनाव में नाथद्वारा से एक वोट से हारे. 2009 में भीलवाड़ा लोकसभा सीट से जीतकर पहली बार सांसद बने. तत्कालीन संप्रग सरकार में ग्रामीण विकास और पंचायती राज मंत्री बने.
ममता बनर्जी
1970 में कोलकाता में कांग्रेस के स्टूडैंट संगठन, ‘स्टूडैंट परिषद’, के साथ जुड़ीं और तेज़-तर्रार महिला नेता के तौर पर उभरीं.उन्होंने लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव लड़ा और दिग्गज वाम नेता सोमनाथ चटर्जी को हराया.पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में ‘पश्चिम बंगाल यूथ कांग्रेस’ की अध्यक्ष और फिर नरसिंह राव की सरकार में मानव-संसाधन मंत्री बनीं.1997 में कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी, ‘ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस’ बनाई और 14 साल बाद, 2011 में पश्चिम बंगाल का चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बनीं.
अरुण जेटली
1974 में दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन के अध्यक्ष बने. उसी दौर में जेपी मूवमेंट में स्टूडैंट और स्टूडैंट संगठनों की राष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष बने.सिर्फ यही नहीं बल्कि क्या आप जानते हैं वे वकील कैसे बने. आपातकाल में डेढ़ साल जेल में रहना पड़ा. जिसके बाद वकालत की पढ़ाई पूरी कर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील बने. एनडीए सरकार में क़ानून मंत्री बने, पांच साल तक भारतीय जनता पार्टी के महासचिव रहे और उसके बाद राज्य सभा में विपक्ष के नेता बने. युथ लीडर ही युवाओं की आवाज बन सकते हैं
इस तरह भारत में जितने भी बड़े बड़े नेता बने हैं ये स्टूडैंट मूवमेंट से निकले हैं. लेकिन आज के टाइम में कोई स्टूडैंट मूवमेंट नहीं हो रहा है यानी कि स्टूडैंट मूवमेंट से कोई नेता पैदा नहीं हो रहा है. तो अब जो नेता बन रहें हैं वो पैराशूट नेता है. जो अपने पिता के दम पर है. इस तरह के नेता पॉलिटिक्स नहीं समझते, ग्राउंड नहीं समझते. पहले स्टूडैंट मूवमेंट का फायदा यही भी होता था कि इससे नेता डेवलप होते थे और देश को ऐसे नेताओं की जरुरत भी है.
लेकिन अब युथ लीडर नहीं पैदा हो रहें. युथ लीडर होगा तो वह युवाओं को समझेगा. उनकी समस्याओं से रिलेट कर पायेगा. आज बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है. लेकिन बेरोजगारी पर क्यूँ बात नहीं हो रही है क्यूंकि कोई युवा नेता नहीं है. युथ लीडर होता तो वो युवाओं की आवाज बनता.
सरकार अपना शिकंजा यूनिवर्सिटी पर कसे हुए है
लेकिन आपने कभी सोचा है कि युवाओं कि यह आवाज आखिर कहां चली गई? अब क्यूँ कोई मूवमेंट नहीं हो रहा ? जबकि पहले मूवमेंट होते थे लेकिन अब धीरे धीरे करके ख़तम होते जा रहे हैं पिछले 5 सालों में कोई भी मूवमेंट नहीं हुआ है. छोटे छोटे मूवमेंट होते रहे हैं लेकिन उन्हें दबाया जाता रहा है. सच तो यह है कि अब स्टूडैंट मूवमेंट गायब हो चुके हैं.
इसका एक कारण कॉलेज का माहौल भी है जो पहले से बहुत अधिक बदल गया है. साल 2011 के आसपास कॉलेज के बाहर पुलिस नहीं होती थी. पेट्रोलिंग नहीं होती थी. यूनिवर्सिटी के अंदर पुलिस की कोई जगह नहीं होती थी. गार्ड भी इतने नहीं होते थे. आज के टाइम पर अगर आप यूनिवर्सिटी में जाओगे और कॉलेज घूमोगे तो वहां बहुत ज्यादा पुलिस की रेकी चलती रहती है. अब वो उसका कारण कुछ भी बताये कि कहीं कुछ गड़बड़ न हो जाये हम इसलिए यहां पर हैं या फिर सुरक्षा व्यवस्था बनी रहें इसलिए यहां पर हैं.
उनका अपना रीजन हो सकता है लेकिन पहले पुलिस का इतना इंवोल्मेंट यूनिवर्सिटी में नहीं होता था. लेकिन अब पुलिस की गाड़ी वहां हर वक्त खड़ी रहती है. पुलिस के वहां होने का दूसरा कारण यह भी होता है कि पुलिस इन आंदोलकर्मियों पर नज़र भी रखती है. सिक्योरिटी को टाइट करना स्टूडैंट पोलटिक्स को कम करना, ज्यादा आई डी चेक करना, ये सब प्रेशर बनाने के तरीके होते हैं.
इसका कारण ये है कि गवर्नमेंट अपना शिकंजा यूनिवर्सिटी पर कस रही है. 2019 के टाइम पर स्टूडैंट मूवमेंट हुए थे जब सी आर सी का मुद्दा हुआ है. उसके बाद अब 5 साल हो गए हैं. इन दौरान कोई स्टूडैंट मूवमेंट डेवलप नहीं हो पाया. एक समय पर हर साल इस तरह के मूवमेंट हुआ करते थे. लेकिन अब एक पूरी सरकार निकल गई और कोई स्टूडैंट मूवमेंट नहीं हुआ.
कहीं ना कहीं सरकार ने भी यूनिवर्सिटी में अपनी पकड़ बनाने की पूरी कोशिश की है. सरकार चाहती ही नहीं है कोई उनके कामकाज पर नज़र रखें और उसके खिलाफ आवाज उठाये. इसलिए यूनिवर्सिटी के बाहर इतनी पुलिस होती है और जरा भी कुछ होता है तो उसे वहीँ दबा दिया जाता है.
पुलिस सुरक्षा के लिए होती है लेकिन लेकिन पुलिस अगर यूनिवर्सिटी के कायदे कानूनों में इंटरफेयर करने लग जाएँ, तो ये डेमोक्रेसी के लिए खतरनाक है. उनको किसी भी चीज को करने से रोके तो फिर वो कही न कही स्टूडैंट्स की आवाजों को दबाता है.
Abvp में स्टेट वर्किंग कमेटी मेंबर और लॉ स्टूडेंट अंकित भारद्वाज
स्टूडैंट मूवमेंट तो अभी भी होते हैं लेकिन मीडिया उसे पूरा कवर नहीं करती है. मीडिया का ज्यादा झुकाव इस तरफ रहता है कि प्रधानमंत्री आज किस विदेश यात्रा पर हैं? आज प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात में क्या कहा? वे लोग इसकी कवरेज ज्यादा करते हैं. वहीँ पहले अगर डुसुके चुनाव होने वाले होते थे तो कई दिन पोएहले से इस पर न्यूज़ में चर्चा होने शुरू हो जाती थी लेकिन अभी हाल ही में डूसू चुनाव का रिजल्ट आया, तो न्यूज़ में इस खबर को सिर्फ 5 मिनट की कवरेज मिली.
कॉलेज में जो नई जनरेशन आई है वो इलेक्शन में बिलकुल भी इंट्रेस्ट नहीं ले रही है. अभी du में जो इलेक्शन हुआ उसमे सर्वे हुआ था जिसमे 25 परसेंट स्टूडेंट ऐसे थे जिन्हें ये तक नहीं पता था कि हमारे प्रेजिडेंट कैंडिडेंट कौन कौन से है? आज के टाइम में स्टूडेंट सिर्फ डिग्री के लिए कॉलेज की पढ़ाई कर रहे हैं और साइड में वह UPSC या फिर CA की पढ़ाई कर रहें होते हैं इसलिए वे इलेक्शन में इंट्रेस्ट नहीं लेते हैं.