जो टीनएजर्स अपनी मां का पल्लू सही समय पर नहीं छोड़ते उन में डिपेंडेंसी की आदत पड़ जाती है, यह आदत आगे जा कर उन के जीवन पर बुरा असर डालती है. कैसे, जानिए आप भी.

वाइफ कहती है तुम तो ममाज बौय हो, कोई काम खुद से नहीं कर सकते. हर काम उन से परमीशन ले कर करते हो. शादी हो गई फिर भी मां के पल्लू से बंधे हो.
उधर मां कहती है, शादी के बाद तू बदल गया है. अपनी बीवी की ही सुनता है. उस के पल्लू से बंधा घूमता है.
यानी मां, बेटा और बीवी तीनों परेशान हैं.
श्रुति जिस की शादी को 14 साल हो गए हैं. उस की शिकायत है कि आज भी छोटीछोटी बातों पर उस का पति अपनी मां के साथ उस की तुलना करता है, जैसे कि परांठे मेरी मौम से बेहतर कोई नहीं बना सकता.
इसी तरह आरती जिस की शादी को अभी सिर्फ 2 ही साल हुए हैं, कहती है, ‘शादी के बाद भी मेरे पति पूरी तरह से अपनी मां पर ही डिपेंडेंट हैं. वे हर छोटीबड़ी बात पर अपनी मां की राय लेते हैं, जैसे लंच या डिनर में क्या बनेगा, हम दोनों घूमने कहां जाएं, अपने कमरे के लिए किस कलर के कर्टेन खरीदें. बहुत इरिटेट करता है मुझे यह सब. कभीकभी तो मुझे लगता है कि ऐसा ही था तो शादी ही क्यों की. मेरे पति हमेशा अपनी मां के पल्लू से बंधे रहते हैं, उन की नजर में मेरी कोई वैल्यू ही नहीं है. मेरे पति की हर बात में अपनी मां को शामिल करने वाले नेचर ने हम दोनों के बीच दूरियां पैदा कर दी हैं.
रोहित की शादी को 6 महीने ही हुए हैं. उस की मौम उस से कहती हैं, ‘शादी के बाद तू बदल गया है. तुझे मेरी तो कोई परवा ही नहीं रही. अब तो तू अपनी बीवी का हो गया है.’ जबकि, रोहित का मानना है कि शादी के बाद मुझ में कोई बदलाव नहीं आया है. हां, पर अब जो लड़की मेरे लिए अपना घर, अपना परिवार छोड़ कर आई है उस का ध्यान भी तो मुझे ही रखना पड़ेगा. ऐसे में शादी के बाद ‘तू बदल गया है’ सुनना बहुत बुरा लगता है.

इस समस्या का आखिर हल क्या है?

ये तो आप सभी जानते हैं कि अंबिलिकल कार्ड यानी गर्भनाल वह होता है जिस से कोई भी बच्चा जन्म से पहले मां से जुड़ा होता है और जब एक मां बच्चे को इस दुनिया में लाती है तब यह कार्ड पहली बार काटी जाती है. लेकिन दूसरी बार जब बेटा 10 -11 साल का हो जाए तब उसे खुद मां से यह कार्ड या कनैक्शन काट लेना चाहिए. खुद को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में अपनी फ्यूचर लाइफ को हैप्पी बनाने के लिए उसे हर बात के लिए मां का मुंह ताकना बंद कर देना चाहिए.
ऐसा करना मां, बेटे, बीवी तीनों के लिए सही है क्योंकि तब न मां को शिकायत होगी कि उस का बेटा अब उस का नहीं रहा बीवी का हो गया. मां भी खुद पर ध्यान दे पाएगी.
बीवी को शिकायत नहीं होगी कि वह ममाज बौय है. बेटा भी दो रिश्तों मां और बीवी के बीच सैंडविच नहीं बनेगा. बैलेंस बना कर चल पाएगा. उस की भी अपनी लाइफ होगी, इंडिपेंडैंट होगा.

आइए जानते हैं यह कब और कैसे होगा

बेटा 10 -11 साल का होते ही मां के पल्लू से निकल जाए.
खुद किचन के काम करने लगे
लड़का 10 -11 साल का होते ही किचन में सब्ज़ी काटना, धुले बरतन पोंछ कर जमाना, शाम की चाय बनाना शुरु कर दे, जिस से उसे समझ आ जाए कि खाना बनाना उतना आसान नहीं है जितना उसे लगता है. इस से उसे खाना और खाना बनाने वाले की मेहनत की कद्र भी होगी और झूठा खाना छोड़ कर वह कभी खाना बरबाद भी नहीं करेगा.
लड़का बेसिक खाना बनाना 10 -11 साल की उम्र से सीखना शुरू कर दे जिस से जब वह बड़ा होगा, जौब, पढ़ाई के सिलसिले में अलग रहेगा या शादी के बाद अपनी गृहस्थी बसाएगा तो खुद बना कर खाने के अलावा अपने पार्टनर की भी कुकिंग में मदद कर पाएगा.

अपना बैग ख़ुद पैक करे
सुबहसुबह अपना स्कूलबैग तैयार करने के लिए डिपेंड होने के बजाय जितनी कम उम्र से हो सके अपना स्कूलबैग खुद तैयार करना सीखे. कहीं घूमने भी जाना हो तो अपना बैग ख़ुद तैयार करे. कपड़े फोल्ड करने के साथ टौयलेटरीज़ (ब्रश, साबुन, शैंपू आदि) भी ख़ुद रखना सीख ले.

साफसफाई की आदत
10 -11 साल की उम्र के बाद बच्चा अपने खुद के पर्सनल कपड़े धोना सीखे क्योंकि यह हाइजीन के हिसाब से भी जरूरी है और आगे जा कर उसे होस्टल, पीजी और शादी के बाद मां या वाइफ पर डिपेंड नहीं होना पड़ेगा और मां व बीवी के बीच उसे सैंडविच भी नहीं बनना पड़ेगा.
कुल मिला कर शादी से पहले हर लड़के को इंडिपेंडेंट और बेसिक लाइफ स्किल्स में ट्रेंड हो जाना चाहिए जिस से होने वाली वाइफ को हसबैंड को बेसिक ट्रेनिंग देने में अपनी एनर्जी और टाइम वेस्ट न करना पड़े.

इंडिपेंडैंट बनने में ही भलाई
घर के काम सीख कर जब कोई भी लड़का बचपन से ही जिम्मेदार बनता है, मेहनत करता है तो उन में कौन्फिडैंस आता है और वह रिस्पौन्सिबल बनता है. वैसे भी, जीवन में सफल होने के लिए इंडिपेंडैंट होने की बेहद ज़रूरत होती है. याद रखिए, किसी पर भी डिपेंड लोगों को कोई पसंद नहीं करता, खासकर आजकल की वाइफ तो बिलकुल भी नहीं.

अपनी लाइफ के डिसिजन खुद ले
10 -11 साल का होते ही ‘मम्मा, मैं स्कूल कैंप में चला जाऊं, मैं क्रिकेट एकेडेमी में एडमिशन ले लूं, फ्रैंड्स के साथ मूवी देखने जाऊं, आज कौन सी शर्ट पहनूं’ जैसे छोटेछोटे निर्णय खुद लें, मां से न पूछें क्योंकि ऐसे बेटे ही आगे चल कर पक्का ममाज बौयज बनते हैं और शादी के बाद बेचारी वाइफ की लाइफ बरबाद कर देते हैं व पूरी तरह उस के नहीं हो पाते.

 

अपने ही घर में खुद के काम करना सीखना कहां से गलत?
ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार भारत में जहां 5 -14 साल के 35 मिलियन से भी ज्यादा बच्चे छोटू बन कर कारखानों में बाल मज़दूरी, होटलों, ढाबों, घरों में काम करने को मजबूर हैं वहां 10 -11 साल में अपने ही घर में खुद के काम करना या सीखना आप को आगे के लिए मजबूत बनाएगा.

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