राष्ट्रपति और कांग्रेस के दोनों सदनों (सीनेट एवं हाउस औफ रिप्रेजेन्टेटिव्स) में मिले बहुमत- ने उन्हें एक खतरनाक डिक्टेटर बनने का मौका दे दिया है. अमेरिका ग्रेट अगेन और बाहरी लोगों के रोजगार के मौकों की तलाश में गैरकानूनी तौर पर अमेरिका में घुसने जैसे सतही मुद्दों पर डोनाल्ड ट्रंप को मिली जीत असल में कैथोलिक व इवेंजेलिस्ट चर्चों की जीत है जिन पर गोरे अमीरों का कब्जा है.
200 सालों से दुनियाभर में लोकतंत्र व व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं के लिए लड़ रहे अमेरिका ने दुनिया का नेतृत्व छोड़ कर अपने गोरे संपन्न नागरिकों के लिए एक स्वर्ग सा बनाने का फैसला लिया है जिसे दुनिया के दूसरे कोनों में क्या हो रहा है, इस से तब ही सरोकार होगा जब उस में उस का मुनाफा होता दिखेगा.
एक नेता की जगह एक लंपट, सैक्स आरोपों से घिरे, फितूरों में भरोसा करने वाले, लोकतंत्र के बहाने पैसा कमाने वाले नेता को चुन कर अमेरिकावासियों ने दुनिया के देशों के नेताओं को यह सिखा सा दिया है कि जनहित की नहीं, स्वहित की बात ही लोकतंत्र का असल मूल मंत्र है. लोकतंत्र पर पड़ने वाली काली स्याही अमेरिका की जनता ने खुद लगाई है और दुनियाभर के लोकतांत्रिक देश अब भयभीत हैं जबकि कट्टरपंथी नेता/शासक मन ही मन खुश हैं. अब अमेरिका की लोकतांत्रिक मूल्यों पर उठने वाली आवाज 4 सालों के लिए तो धीमी हो ही गई है, हो सकता है यह हमेशा के लिए बंद भी हो जाए.
इतिहास गवाह है कि कितनी ही बार बड़े समाज एक गलत शासक के कारण संकट में पड़े. हमारे अपने ज्ञात-लिखित इतिहास के अनुसार, मुगल शासक औरंगजेब की कट्टरता ने मुगल वंश को ही समाप्त नहीं कर दिया बल्कि पूरे देश को अराजकता में ?ांक भी दिया जिस का लाभ विदेशियों ने जम कर उठाया.
उस के बाद मराठाओं ने शिवाजी के नेतृत्व में कुछ सही राज की स्थापना की लेकिन पेशवाओं के आते ही मराठा राज सामाजिक कहर बन गया और जो थोड़ीबहुत न्याय व व्यवस्था बननी शुरू हुई थी, खत्म हो गई. मुट्ठीभर विदेशियों ने बचेखुचे मुगल साम्राज्य और मराठा साम्राज्य को आसानी से हरा कर देश पर पूरा कब्जा कर लिया.
यह अमेरिका में हो सकता है क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप का खब्तीपन अमेरिकियों की रगरग में घुस चुका है. डोनाल्ड ट्रंप ने फौक्स टीवी और एक्स (पहले ट्विटर) जैसे प्रचार साधनों का भरपूर इस्तेमाल किया जिन के मालिक, मैनेजर, शेयरहोल्डर मुख्यतया चर्च जाने वाले गोरे हैं और वे गोरे हैं जो कट्टरपंथियों का राज नई उभरती टैक्नोलौजी के सहारे चलाना जानते हैं और चाहते भी हैं.
अमेरिकी टैक्नोलौजी डोनाल्ड ट्रंप के राज में फलेगीफूलेगी क्योंकि अब वह हर बात की पूरी, हो सका तो ज्यादा भी, कीमत वसूलेगी. जैसे गूगल ने पहले मुफ्त का लौलीपौप दे कर भारत के पोस्टऔफिसों को खत्म सा कर दिया और अब अपने दाम आसमान छूने जैसे बढ़ा दिए हैं वैसा ही अब अमेरिका में होगा.
कालों, लेटिनों, भारतीय मूल के वोटरों ने खासी संख्या में डोनाल्ड ट्रंप को वोट दिया है क्योंकि गरीब, कमजोर हमेशा ही हाकिमों के मानसिक व शारीरिक दोनों तरह के गुलाम रहे हैं. अपनेआप में ये धार्मिक कट्टर लोग अमेरिका के विशेष गुण, उस के खुलेपन, के कारण अमेरिका में आ कर बसे थे, अब वह खत्म होने लगे तो आश्चर्य नहीं.
डोनाल्ड ट्रंप, जो व्यक्तिगत तौर पर औरतों को खिलौना व सैक्स औब्जैक्ट समझते हैं, अपना यह विशेष अवगुण वे पूरे अमेरिका में फैला देंगे और अमेरिकी औरतें कहीं चर्च के बहाने, कहीं पैसे की खातिर, कहीं डर की वजह से ट्रंप समर्थक की बिनखरीदी गुलाम बन कर रह जाएंगी. हो सकता है कि डोनाल्ड ट्रंप की दूसरी जीत के बाद अमेरिका की सेना और ताकतवर हो जाए क्योंकि अमेरिकी मूलतया कर्मठ व लड़ाकू हैं. वहां आम लोगों में हरेक के पास एक से ज्यादा बंदूकें हैं और डोनाल्ड ट्रंप के मुख्य समर्थकों में पावरफुल अमेरिकी राइफल एसोसिएशन भी है.
वे बड़े हथियार बनाएंगे पर दुनिया पर धौंस जमाने के लिए, लोकतंत्रों की रक्षा के लिए नहीं. दुनिया की गरीबी, भेदभाव, सरकारों के अपनी जनता पर अत्याचारों के खिलाफ अमेरिका सेना अब आगे नहीं आएगी, वह अमेरिकियों के हितों, अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए आगे आएगी.
डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने अमेरिकी जनता पर पड़ी वैचारिक उदारता की परत को फाड़ दिया है. ‘टर्मिनेटर’ की ह्यूमन स्किन के नीचे बेजान मशीन है जिस में भावनाएं नहीं और जो सिर्फ अपनी खातिर काम करती है. अमेरिकी जनता ने ग्रेट अमेरिका को विदा कर ‘ग्रेट अमेरिकी रुलर’ को स्थापित किया है.