झांसी के अस्पताल में हुए हादसे ने उत्तर प्रदेश में सरकारी चिकित्सा व्यवस्था की पोल खोल दी है. नेता व अफसर दीये जला कर रिकौर्ड बना रहे तो वहीं रिश्वतखोर परिवारों के चिराग बुझाने का खेल खेलने में लगे हैं.

झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई मैडिकल कालेज के बाहर 55 साल की महिला सितारा देवी जो महोबा से अपने पोते को ले कर आई थी, रोते हुए बोली, ‘परसों रात हम अपने बच्चे को ले कर आए थे. डाक्टरों ने ‘बडी मशीन’ में बच्चे को रखा था. आज यहां आग लग गई. मेरे बच्चे के माथे पर काला टीका लगा था. वह नहीं मिल रहा. जो एक बच्चा मिला वह किसी दूसरे की लड़की थी. उसे दे दी. मेरा बच्चा नहीं मिल रहा मुझे.’ सितारा की बहू महोबा अस्पताल में भरती है. वह अपने बेटे के साथ पोते को ले कर झांसी आई थी.
संजना नाम की महिला ने कहा कि कुलदीप नीलू का बच्चा ले कर वह आई थी. मंगलवार को उन्होंने बच्चा भरती कराया. वहां आग लग गई तो बच्चों को लेने के लिए भागे. वहां दूसरों के जले बच्चे लाए गए. उन का बच्चा नहीं मिल रहा.
अस्पताल के बाहर कई लोग अपने हाथ में जले बच्चे लिए भाग रहे थे. बच्चे जल कर काले हो गए गए थे. ये मांस के लोथड़े जैसे दिख रहे थे. झांसी के अस्पताल में भरती बच्चों और मांबाप के लिए कार्तिक पूर्णिमा का यह दिन अशुभ साबित हुआ.

कहीं दीये जले तो कहीं चिराग बुझे

सनातन धर्म में कार्तिक पूर्णिमा पर होने वाले गंगा स्नान को बेहद शुभ माना जाता है. कार्तिक मास की पूर्णिमा पर लाखों लोग गंगा के तट पर स्नान करने जाते हैं. माना जाता है कि इस दिन पर जो लोग गंगा स्नान करते हैं, उन्हें पापों से मुक्ति मिल जाती है और जीवन के उपरांत वे मोक्ष को प्राप्त करते हैं. इस दिन विष्णु, लक्ष्मी और चंद्र देव की पूजा की जाती है. इस साल कार्तिक पूर्णिमा 15 नवंबर को थी. कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा स्नान के बाद दान देने का चलन होता है.
कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही देव दीपावली भी मनाई जाती है. आमतौर पर वाराणसी में ही देव दीवाली मनाई जाती थी. अब इस का चलन करीबकरीब हर बड़े शहर में नदी में होता है. इस की शुरुआत अयोध्या से होती है, जहां पिछले 8 वर्षों से दीये जलाने का रिवाज है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 5 लाख दीये जलाने से यह सफर तय किया. इस साल 22 लाख से अधिक दीये जलाने का विश्व रिकौर्ड बना. अब देव दीवाली भी वाराणसी से बाहर निकल कर हर शहर तक पहुंच गई है.
15 नवंबर के इस दिन को शुभ मान कर बहुत सारे लोगों ने गंगा स्नान कर दान दिया होगा. तमाम लोगों ने अपने घरों में दीये जलाए होंगे. वाराणसी में 21 लाख दीये जलाए गए थे. इसी दिन रात 10 बज कर 30 मिनट से 45 मिनट के बीच उत्तर प्रदेश के झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई मैडिकल कालेज के नवजात शिशु गहन चिकित्सा कक्ष (एनआईसीयू) में आग लग गई. डीएम, झांसी, अविनाश कुमार के अनुसार, इस घटना में 10 नवजात शिशुओं की मौत हो गई. इन घरों के दीये हमेशा के लिए बुझ गए.
झांसी के चीफ मैडिकल सुपरिंटेंडैंट सचिन महोर ने बताया कि यह घटना औक्सीजन कंसंट्रेटर में आग लगने से हुई थी. एनआईसीयू वार्ड में 54 बच्चे भरती थे और अचानक औक्सीजन कंसंट्रेटर में आग लग गई जिस को बुझाने की कोशिशें की गईं. लेकिन कमरा हाइली औक्सिजिनेटेड रहता है तो आग तुरंत फैल गई. बाकी बच्चों को बचा लिया गया.
वहीं यूपी की मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने इस घटना पर दुख जताते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की निंदा की है. उन्होंने कहा है कि मुख्यमंत्री को चुनावप्रचार छोड़ कर चिकित्सा व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने एक्स पर एक पोस्ट लिख कर राज्य सरकार को मृत नवजातों के परिजनों को एक करोड़ रुपए की सहायता राशि देने की मांग की है.
उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने कहा, ‘आग कैसे लगी है, इस की जांच होगी. डाक्टरों, नर्सों और पैरामैडिकल स्टाफ ने बहुत बहादुरी के साथ बच्चों को बचाया है. बड़ी संख्या में बच्चों को रेस्क्यू किया गया है. जो महिलाएं भरती थीं उन को भी रेस्क्यू किया गया है. फरवरी में अस्पताल का फायर सेफ्टी औडिट हुआ था. जून में मौक ड्रिल भी किया गया था. लेकिन यह घटना क्यों और कैसे हुई, यह जांच रिपोर्ट आने के बाद ही पता चलेगा.’
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिशुओं के मातापिता को 5-5 लाख रुपए और घायलों के परिजनों को 50-50 हजार रुपए की सहायता मुख्यमंत्री राहत कोष से उपलब्ध कराने की घोषणा की है.

क्या होता है ‘एनआईसीयू’ ?

अगर बच्चा समय से पहले पैदा हो जाता है या नवजात शिशु जन्म के बाद किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित होते हैं तो उन बच्चों को नियोनेटल इंटैंसिव केयर यूनिट यानी एनआईसीयू में भरती किया जाता है. इस को नवजात गहन चिकित्सा इकाई भी कहा जाता है. यहां 24 घंटे नवजात शिशुओं की देखभाल के लिए विशेषज्ञ की टीम मौजूद रहती है. यहां बच्चे तब तक रहते हैं जब तक वे पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो जाते.
इन बच्चों की मुख्य परेशानी सही तरह से सांस का न लेना होता है. इस के लिए ‘औक्सीजन कंसंट्रेटर’ का प्रयोग किया जाता है. यहां बच्चों के लिए छोटेछोटे पालनेनुमा बेड होते हैं. इन में हर तरह की मैडिकल सुविधा बच्चे को मिलती है.
‘औक्सीजन कंसंट्रेटर’ एक मैडिकल डिवाइस होता है, जो हवा में से औक्सीजन को अलग करता है. वातावरण में मौजूद हवा में कई तरह की गैस मौजूद होती हैं और यह कंसंट्रेटर उसी हवा को अपने अंदर लेता है और उस में से दूसरी गैसों को अलग कर के शुद्ध औक्सीजन सप्लाई करता है. औक्सीजन लैवल 90-94 प्रतिशत होने पर औक्सीजन कंसंट्रेटर की मदद से सांस ली जा सकती है. एनआईसीयू में वैंटिलेटर भी होता है. यह भी एक तरह का मैडिकल उपकरण होता है. यह बच्चों के फेफड़ों में औक्सीजन या हवा भेजने का काम करता है.
एनआईसीयू में बच्चों को अकेले रखा जाता है. बच्चों की देखभाल करने की जिम्मेदारी डाक्टर और पैरामैडिकल स्टाफ की होती है. मातापिता या उन के करीबी रिश्तेदार समयसमय पर अपने बच्चे को देख लेते हैं. झांसी में महारानी लक्ष्मीबाई मैडिकल कालेज के एनआईसीयू वार्ड में 54 बच्चों के एक साथ इलाज की व्यवस्था है. इस वार्ड के 2 हिस्से हैं. अंदर वाले हिस्से में ज्यादा गंभीर बच्चे रखे जाते हैं. बाहर वाले वार्ड में जो बच्चे ठीक हो जाते हैं उन को रखा जाता है. जिस समय दुर्घटना हुई वहां 47 बच्चे थे. जिन में से 37 को बचा लिया गया, 10 को नहीं बचाया जा सका.

 

पुरानी घटना से नहीं लेते सीख

2017 में गोरखपुर के बीआरडी मैडिकल कालेज में एनआईसीयू वार्ड में आग लगने की घटना घटित हुई थी जिस में 63 बच्चों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था. उस समय योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन चुके थे. बात केवल घटनाओं की नहीं है. उत्तर प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है. कोविड काल में अस्पतालों ने जिस तरह के हालात पैदा किए वे बेहद शर्मनाक थे. जिस तरह से अस्पतालों का निजीकरण हुआ है उस ने सरकारी अस्पतालों को और भी खस्ताहाल कर दिया है. सरकारी अस्पतालों में दवा की खरीदारी से ले कर मशीनों की खरीद तक में तमाम तरह की गड़बड़ियां की जाती हैं.
अस्पतालों में जांच के काम में आने वाली मशीनें खराब हैं. इस में सामान्य जांच से ले कर अल्ट्रासाउंड, एक्सरे, सीटी स्कैन तक की मशीनें काम नहीं करती हैं. इन को जल्दी ठीक नहीं कराया जाता है जिस से कि महंगी फीस दे कर प्राइवेट पैथोलौजी में जांच कराई जा सके.
सरकारी अस्पताल में मशीनें खराब रहती हैं तो 2 रास्ते होते हैं- या तो प्राइवेट में जांच हो या फिर अस्पताल की मशीन ठीक होने का इंतजार. इस में कई बार मरीज के लिए खतरा हो जाता है.

खस्ताहाल व्यवस्था

सरकार ने गरीबों को खुश करने के लिए 5 लाख रुपए वाला आयुष्मान भारत कार्ड बना दिया है. गरीबीरेखा के नीचे के लोगों का इस कार्ड के जरिए प्राइवेट में मुफ्त इलाज होने लगा है. तमाम अस्पतालों में लिखा होता है कि यहां आयुष्मान भारत कार्ड धारकों का इलाज होता है. इस इलाज का खर्च सरकारी खाते से जाता है. निजी अस्पतालों के लिए यह कमाई का बड़ा जरिया हो गया है. इस में मनमानी महंगी दवा के सेवन की सलाह दी जाती है जिस से सरकारी पैसे को निकाला जा सके.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 12 करोड़ कार्ड धारक हैं. 55 करोड़ लोग इस से लाभ पा रहे हैं. अगर इस की गहन जांच हो तो निजी अस्पतालों के लिए यह कमाई का बड़ा जरिया साबित होगा. इतने लोगों का कार्ड बनने के बाद भी निजी अस्पताल में भीड़ कम नहीं हो रही है. न ही सरकारी अस्पतालों में भीड़ कम हो रही है. लखनऊ के राम मनोहर लोहिया अस्पताल मैडिकल कालेज के ओपीडी में परचा बनवाने के लिए 8 बजे खिड़की खुलती है. इस में परचा बनवाने की लाइन सुबह 5 बजे से लगनी शुरू हो जाती है. एकएक डाक्टर 150 से 200 मरीजों को देखता है. इस के बाद भी कुछ मरीज बिना देखे ही रह जाते हैं.
सरकारी अस्पतालों की खस्ताहाल व्यवस्था ही है जिस की वजह से जांच की मशीनें खराब हैं. निजी पैथोलौजी की संख्या और फीस बढ़ती जा रही है. निजी अस्पताल और पैथोलौजी में गरीब लोगों को इलाज कराना मुश्किल होता है. जान बचाने के लिए वह जमीन बेच कर इलाज कराता है. अगर वह सरकारी अस्पताल जाता है तो झांसी जैसे कांड का सामना करना पड़ जाता है. बीमारी के शिकार लोगों के पास कोई रास्ता नहीं है. या तो निजी अस्पताल में इलाज करा कर बिक जाए या फिर सरकारी अस्पताल में इलाज करा कर मर जाए. वह जाए जो जाए कहां?

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