(एक स्टार)

27 फरवरी, 2002 को गोधरा स्टेशन के आउटर सिग्नल पर  अयोध्या से साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के दो कोच में आग लगी थी,जिस मेें 59 निर्दाेष लोगों की दुखद मौत हो गई थी. यह ट्रेन अयोध्या से अहमदाबाद जा रही थी, जिस में अयोध्या में ‘विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) के तत्वावधान में आयोजित ‘संपूर्णाहुति यज्ञ’ का हिस्सा बनने के बाद ‘कार सेवक’ लौट रहे थे. इसी सत्य घटना पर आधारित क्राइम थ्रिलर  फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ ले कर एकता कपूर, अमूल मोहन व अंषुल मोहन आए हैं, जिस का लेखन विपिन अग्निहोत्री और अविनाश ने किया है. पहले इस का निर्देशन रंजन चंदेल ने किया था लेकिन ‘विक्कीपीडिया’ की माने तो सेंसर बोर्ड ने जब 8 अप्रैल 2024 में फिल्म में बदलाव के लिए कहा, तब निर्माताओं ने 9 जुलाई 2024 को, रंजन चंदेल को फिल्म से बाहर कर दिया और अगस्त 2024 में रंजन चंदेल की जगह टैलीविजन लेखक और अभिनेता धीरज सरना ने निर्देशन की जिम्मेदारी लेेते हुए कथानक में कुछ बदलाव कर कुछ दृश्य पुनः फिल्माए. उस के बाद 15 नवंबर, 2024 को यह फिल्म सिनेमाघरों में पहुंची.

फिल्म देखते वक्त हमें इस बात का अहसास हो रहा था कि सेंसर बोर्ड ने क्या बदलाव कराए होंगे. फिल्म के क्लाइमैक्स में पत्रकार समर कुमार ‘भारत न्यूज’ चैनल में बडे़ पद पर पहुंच कर देश की जनता के सामने 2002 में ट्रेन में आग लगने से मृत 59 लोगों की नामावली के साथ ही बताते हैं कि उस के बाद गुजरात व देया का किस तरह विकास हुआ और कैसे अयेाध्या का राम मंदिर 22 जनवरी 2024 को लोगों के दर्शन के लिए खुला. समझ में नहीं आता कि फिल्मकार फिल्म में गोधरा कांड के सच को बताते हुए अयोध्या के राम मंदिर कैसे पहुंच गए.

सच यह है कि ‘गोधरा कांड’ पर आज तक कोई अंतिम निर्णय नहीं आया है. मगर फिल्मकार लगातार ‘नानावटी कमीशन’ के आधार पर गोधरा कांड पर अधपकी प्रोपगंडा फिल्में बनाते जा रहे हैं.

‘साबरमती ट्रेन’ के दो कोचों में आग लगने की भयावह घटना के बाद गुजरात में 3 दिनों तक दंगे हुए. इन 3 दिन के दंगो में मृतकों की संख्या 2000 से अधिक थी. सैकड़ों लड़कियों की इज्जत लूटी गई थी. इन 3 दिवसीय दंगो में एक धर्म विशेष के लोग ही हताहत व पीड़ित हुए थे, जबकि दूसरे धर्म के कुछ छुटभैया नेता आज की तारीख में बड़े राष्ट्रीय नेता बने हुए हैं. मगर इन तीन दिनों के दंगों को ले कर यह फिल्म खामोश रहती है. राज्य सरकार द्वारा नियुक्त नानावती-मेहता आयोग ने निष्कर्ष निकाला कि ट्रेन में लगी आग पूर्व नियोजित थी, जिसे एक बड़ी मुसलिम भीड़ द्वारा योजनाबद्ध आगजनी कर अंजाम दिया गया था.

2004 में केंद्र सरकार द्वारा गठित एक सदस्यीय बनर्जी आयोग ने इसे एक दुर्घटना की संज्ञा दी थी. इन दो निष्कर्षों के बीच एक बड़ी खाई है. अब यह तो हर आम इंसान पर निर्भर करता है कि कौन किसे कितना सच मानता है. कोई कुछ भी माने लेकिन कटु सत्य यह है कि ‘गोधरा कांड’ के बाद हुआ यह तीन दिवसीय दंगा, देश में हुए सब से बुरे दंगों में से एक ऐसा दंगा रहा, जिस ने भारत के सामाजिक और राजनीतिक तानेबाने में विनाशकारी बदलाव लाने में अहम भूमिका निभाई.

कहानी में 27 फरवरी, 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन के नजदीक साबरमती एक्सप्रेस के दो कोच में आग लग गई थी, जिस में 59 निर्दाेष लोगों की दुखद मौत हो गई थी. उस के बाद जांच शुरू होती है कि  क्या यह एक दुखद दुर्घटना थी अथवा कोई एक भयावह साजिश. रेलवे की रिर्पोट और सरकार की रिर्पोट में अंतर रहा. फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ शुरू होती है अदालत से,जहां ईबीटी चैनल ने पत्रकार समर कुमार (विक्रांत मैसी)  के खिलाफ मुकदमा दायर किया है कि उस ने उन के चैनल की मानहानि की है. समर कुमार से सार्वजकिन माफी के साथ ही दो करोड़ रुपए की मांग की गई है. अदालत में समर कुमार सच उगलना शुरू करते हैं फिर फिल्म उन की यात्रा के साथ आगे बढ़ती है. तो यह फिल्म उन की बतौर पत्रकार एक यात्रा है. समर कुमार कैमरामैन कम पत्रकार के रूप में फिल्म बीट संभालते हैं, अचानक गोधरा कांड हो जाता है तो ईबीटी की मशहूर पत्रकार मणिका राजपुरोहित (रिद्धि डोगरा ) के साथ समर कुमार को कैमरामैन के रूप में गोधरा जाने का अवसर मिलता है.

रिपोर्टिंग के दौरान एक राजनेता द्वारा राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा करने की बात की जाती है और मणिका के पास एक फोन आता है. मणिका, समर को फटेज ले कर औफिस में पहुंचाने का आदेश दे कर चली जाती है. कुछ देर बाद समर कुछ और फुटेज व सच ले कर दफ्तर पहुंच कर टेप संपादक को दे देता है. समर के अनुसार आग लगवाई गई है. संपादक के आश्वासन के बावजूद चैनल पर मणिका की स्टोरी चलाई जाती है कि साबरमती ट्रेन में लगी आग एक दुर्घटना है. समर इस का विरोध करता है तो उसे नौकरी से निकाल कर उस पर चोरी का इल्जाम लगाया जाता है.

समर की प्रेमिका (  बरखा सिंह ) उस की जमानत कराने के बाद उस का साथ छोड़ देती है. अब समर शराबी हो गया है. 5 साल बाद चैनल में नई पत्रकार अमृता गिल (राशी खन्ना) आती है,उसे गोधराकांड की पांचवीं बरसी पर काम करने के लिए कहा जाता है तो उस के हाथ समर की फुटेज लग जाती है. फिर वह समर के साथ मिल कर सच जानने का प्रयास करते हुए 59 मृत लोगों के नाम भी उजागर होते हैं. समर को एक नए चैनल ‘भारत न्यूज’ में नौकरी मिलती है,जहां समर इस सच को सभी के सामने लाते है.

‘गोधरा कांड’ पर अब तक काफी कुछ कहा जा चुका है. कई फिल्में आ चुकी हैं. सभी नानावटी कमीशन की रिपोर्ट ही घुमाफिरा कर पेश कर रहे हैं. इस फिल्म में भी कोई नया तथ्य नहीं है. केवल कहानी के प्रस्तुतिकरण में अंतर है. इस बार निर्माताओ ने पत्रकारों, खासकर अंगरेजी भाषी पत्रकारों को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास करते हुए यह कहने का प्रयास किया है कि अंगरेजी पत्रकारों के सामने हिंदी के पत्रकारों को इज्जत नहीं दी जाती. लेकिन यह बात केवल जुमलेबाजी बन कर रह जाती है.

अदालत के अंदर समर कुमार के कुछ संवाद मात्र से हिंदी के महत्व को सिद्ध करने का प्रयास सफल नहीं रहा. माना कि समर की यात्रा के माध्यम से फिल्मकार ने मीडिया का एक अलग चेहरा दिखाया है, पर इस से हर आम इंसान परिचित है. मीडिया व सत्ता के बीच के सांठगांठ की तरफ इशारा जरुर किया गया. बताया गया है कि एक कमरे में जिस चैनल का औफिस था, जैसे ही वह  सत्तापक्ष का साथ देने लगता है, वैसे ही वह चैनल बहुमंजली इमारत का स्वामित्व पा जाता है. पर मीडिया व राजनीति की सांठगांठ की परतों को उजागर नहीं किया गया. हां फिल्म यह जरूर कहती है कि सरकार के इशारे पर झूठी खबरें बेच कर सत्ताधारी सरकार को खुश रखते हुए महल खड़े किए जा सकते हैं.

फिल्म में गाना, मनोरंजक पलों का भी घोर अभाव है, यही वजह है कि यह फिल्म कलाकारों के सशक्त अभिनय के बावजूद फिल्म दर्शकों को बांध कर नहीं रख पाती. समर कुमार व श्वेता की प्रेम कहानी तो ‘मलमल में जूट का पैबंद’ सी लगती है. घटनाओं की तीव्रता को पकड़ने वाला निर्देशन सराहनीय है. इंटरवल के बाद फिल्म भटकी हुई है. इंटरवल के बाद गति धीमी हो जाती है, इंटरवल के बाद फिल्म फीचर फिल्म की बजाय डाक्यूमेंट्री का रूप ले लेती है. फिल्म का क्लाइमैक्स काफी कमजोर है.

विक्रांत मैसी के चरित्र में भी कमियां हैं. विक्रात मैसी के किरदार समर कुमार के चरित्र की कई परतों पर रोशनी नहीं डाली गई. नौकरी चले जाने के बाद एक हिंदी भाषी पत्रकार का शराब में डूब जाना भी अजीब सा लगता है, वह भी उस राज्य में जहां शराब बंदी है.

फिल्म का प्रचार काफी कमजोर रहा, इसलिए भी यह फिल्म दर्षकों तक नही पहुंच पाई. वैसे निर्माताओं का दावा है कि यह फिल्म ‘माउथ टू माउथ पब्लिसिटी’ से सफलता के रिकौर्ड बनाएगी.

फिल्मकार ने इस बात को रेखांकित ही नहीं किया कि ‘साबरमती ट्रेन’ के कोचों में आग लगने के जब अंग्रेजीदां मणिका राजपुरोहित, हिंदी भाषी कैमरामैन कम पत्रकार समर कुमार के साथ गोधरा ‘ग्राउंड जीरो’ पर जाती है, तो दोनों बिना किसी पारदर्शी जांच के दोनों यह निष्कर्ष कैसे निकालते हैं कि यह कोई दुर्घटना नहीं थी, आग लगी नहीं, लगवाई गई थी.जबकि निर्देशक ने इस निर्णय से मणिका के पलट जाने की वजह की तरफ इशारा जरुर किया है.

नानावटी आयोग की रिपोर्ट, गुजरात हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उद्धरण देती यह फिल्म दर्शकों को यही याद दिलाने की कोशिश है कि अयोध्या से लौट रहे 59 रामभक्तों को गोधरा में जिंदा जला दिया गया था.

‘भारत न्यूज’ पर उन के नाम भी फिल्म बताने की समर कुमार कोशिश करते हैं, लेकिन 10-12 नाम परदे पर आने के बाद यह सिलसिला भी टूट जाता है. गोधरा कांड की बात करतेकरते अंत में राम मंदिर के बनने व उद्घाटन के दृष्यों को दिखाने के मायने भी समझ से परे हैं.

कथानक में संतुलन बनाने या ‘नए राष्ट्रवाद’ के नाम पर अहमदाबाद के एक मुसलिम इलाके में भारतपाक क्रिकेट मैच में भारत की जीत पर मुसलिम बच्चों को खुशी मनाते हुए यह कहा गया यह है नए भारत का भविष्य.

गत वर्ष प्रदर्शित छोटे बजट की फिल्म ‘12वीं फेल’ में अपने शानदार अभिनय से लोगों को अपना दीवाना बना चुके विक्रांत मैसी ने ईमानदार हिंदी भाषी खोजी पत्रकार समर कुमार की भूमिका में जानदार अभिनय किया है.नमगर इस तरह का ‘ओटीटी’ प्लेटफौर्म में शोहरत पाने वाला अभिनय व इस तरह की फिल्में करते हुए विक्रांत मैसी ज्यादा दिन तक सफलता की डगर पर अपने पैर जमाए नहीं रख पाएंगे. मीडिया के अंदरूनी सूत्रों के लिए भरोसेमंद अनुभवी पत्रकार मणिका राजपुरोहित के किरदार में रिद्धि डोगरा एक बार फिर सशक्त अदाकारा के रूप में उभरती है. वही प्रशिक्षु पत्रकार अमृता गिल के किरदार में राशि खन्ना का अभिनय ठीकठाक है. अन्य कलाकार अपनीअपनी जगह ठीक हैं.

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