महाराष्ट्र में साल 2024 के विधानसभा चुनाव का घमासान शुरू हो चुका है. 5 साल सरकार चलाने के बाद भी भाजपा संकट में फंसी है. सब से बड़ी मशक्कत सीटों के बंटवारे को ले कर थी. भाजपा अपने सहयोगी शिव सेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के साथ चुनाव लड़ रही है. शिव सेना और रांकापा दोनों ही विभाजित पार्टियां हैं. शिव सेना के उद्धव ठाकरे और राकांपा शरद पवार अलगअलग चुनाव मैदान में हैं. ऐसे में वोटरों के सामने असली और नकली का सवाल भी है. भाजपा के सहयोगी दलों में शिव सेना की तरफ से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और राकांपा की तरफ से उपमुख्यमंत्री अजित पवार हैं.
लोकसभा चुनाव 2024 में खराब प्रदर्शन के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के लिए महाराष्ट्र चुनाव नाक की लड़ाई बनी हुई है. महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव 20 नवंबर, 2024 को होगे और 23 नवंबर, 2024 को चुनाव नतीजे आएंगे. महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सीटें हैं. बहुमत से सरकार बनाने के लिए 145 सीटें चाहिए. साल 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिव सेना के गठजोड़ ने बहुमत हासिल किया था. पर सरकार बनाने को ले कर मतभेदों के बाद गठबंधन भंग हो गया था.
किसी भी पार्टी के सरकार बनाने में कामयाब न होने के चलते मंत्रिपरिषद का गठन नहीं हो पाया था, इसलिए राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था. 23 नवंबर, 2019 को देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और अजित पवार ने उपमुख्यमंत्री पद की शपथ ली. बहुमत साबित करने से पहले 26 नवंबर, 2019 को दोनों ने इस्तीफा दे दिया. 28 नवंबर, 2019 को शिव सेना, राकांपा और कांग्रेस ने एक नए गठबंधन महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के तहत सरकार बनाई, जिस में उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने.
29 जून, 2022 को एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में विधायकों के एक गुट के शिव सेना से अलग हो कर भाजपा के साथ गठबंधन करने के बाद उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. इस के बाद एकनाथ शिंदे ने मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली.
अब साल 2024 के विधानसभा चुनाव में एक तरफ कांग्रेस है तो दूसरी तरफ भाजपा है. इन के सहयोगी के रूप में 2 शिव सेना और 2 राकांपा हैं. भाजपा के ऊपर शिव सेना और राकांपा को तोड़ने का आरोप है. सवाल उठता है क्या इन आरोपो के बीच भाजपा अपनी सरकार बचाने में कामयाब रहेगी?
तोड़फोड़ के चलते भाजपा का विरोध
साल 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा और उस के सहयोगी दलों को झटका लगा था, लेकिन हरियाणा विधानसभा चुनाव में जीत के बाद से भाजपा के हौसले बढ़े हुए हैं.
हरियाणा और महाराष्ट्र में अंतर है. महाराष्ट्र में भाजपा के साथ टूटने के बाद बनी शिव सेना और राकांपा हैं. इस के अलावा शरद पवार और उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति की लहर है. जनता समझ रही है कि भाजपा ने कुरसी हासिल करने के लिए शिव सेना और राकांपा को तोड़ा है. मराठा आरक्षण के साथ ही साथ बेरोजगारी, महंगाई, किसानों की समस्याएं भाजपा के लिए परेशानी का सबब हैं.
कभी महाराष्ट्र कांग्रेस का गढ़ था, लेकिन अब कांग्रेस यहां पर उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ है, उन्हीं पर आश्रित है. आपसी कलह कांग्रेस के लिए चुनौती रही है. इस के बाद भी कांग्रेस से जनता को बहुत उम्मीद है.
महाराष्ट्र में एक समय कांग्रेस का मुकाबला शिव सेना और भाजपा के बीच होता था. शिव सेना और भाजपा ने साल 1984 में पहली बार गैरकांग्रेसवाद के नाम पर हाथ थामा था. साल 1987 में जब शरद पवार वापस कांग्रेस में शामिल हुए, ‘मराठी मानुस’ की बात करने वाली शिव सेना कांग्रेस विरोध का स्तंभ बनी और उस के बढ़ने की शुरुआत हुई. समय के साथ ‘मराठी मानुस’ की बात हिंदुत्व में तबदील हो गई. इस वजह से गठबंधन में भाजपा का पलड़ा भारी होता गया.
साल 2019 के चुनाव के बाद आपसी रिश्ते खराब हुए. भाजपा को लगा सभी ठाकरे समर्थक शिंदे की तरफ हो जाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. भाजपा को एहसास हुआ कि अजीत पवार का असर पुणे जिले तक सीमित है. इस से भाजपा संकट में फंस गई है. जिन्हें भाजपा भ्रष्ट कहती थी आज वे पार्टी के साथ खड़े हैं. लोग भाजपा से ज्यादा एकनाथ शिंदे और अजीत पवार से नाराज हैं.
महाराष्ट्र में तकरीबन 28 फीसदी मराठा वोट हैं. इस वजह से मराठा आरक्षण एक प्रमुख चुनावी मुद्दा बन गया है. मराठाओं की हालत पहले जैसी नहीं रही, जब उन के पास ढेर सारी जमीनें हुआ करती थीं. अब महंगाई बहुत बढ़ गई है. खेती भी अच्छी नहीं होती है. बच्चों के भविष्य को ले कर चिंता होती है.
बुनियादी ढांचा तैयार करने में फेल भाजपा
भाजपा साल 2014 से केंद्र में सरकार चला रही है. इस के बाद भी देश में विकास के नाम पर उस की उपलब्धियां बहुत सीमित रही हैं. विकास के नाम पर उस ने सड़कें बनाई हैं. दिक्कत इस बात की है कि भाजपा ने जो हाईवे बनाए हैं, उन पर चलने वाली गाड़ियां विदेशी हैं. हाईवे पर चलने के लिए टोल टैक्स देना पड़ता है, जो आम जनता जनता की औकात से बाहर है.
देश का जो पैसा निर्माण में खर्च होना चाहिए, भाजपा उसे मूर्तियां बनाने में खर्च करती है. सरदार पटेल की मूर्ति ‘स्टैच्यू औफ यूनिटी’ को बनाने में 45 महीने, 24,000 टन लोहा और 2,989 करोड़ रुपए खर्च हुए. 20,000 वर्गफुट में इस को बनाने में 2,500 मजदूरों ने काम किया.
इसी तरह से राम मंदिर बनाने में 1,800 करोड़ रुपए खर्च हुए. सरकार आम लोगों के चलने लायक रेलगाड़ी चलाने की जगह पर वंदे भारत जैसी महंगे किराए वाली रेलगाड़ी चला रही है. भाजपा की मुसलिम विरोधी नीतियों के चलते समाज में आपसी दूरी बढ़ रही है, जिस से झगड़े और दंगे बढ़ रहे हैं. साल 1947 में भारत और पाकिस्तान बंटवारे के दंगों को जिस तरह से कांग्रेस ने सुलझा कर देश को आगे बढ़ाने का काम किया था वह भाजपा की नीतियों के चलते वापस उसी दशा में पहुंच गया है.
सामान बनाने का काम भारत में बंद हो गया है. केवल मशीनों के निर्माण में ही नहीं अनाज पैदा करने में भी भारत पीछे है. खानेपीने की चीजों में विदेशी सामान देश में बिकने लगे हैं. भारत के लोग मजदूरी करने विदेश जा रहे हैं. एक तरह से देखें तो जैसे पहले गिरमिटिया मजदूर बाहर जाते थे, अब भारत के लोग इजराइल जैसे देशों में मजदूरी करने जा रहे हैं, जहां युद्ध के हालात में जान जाने का खतरा रहता है.
देश के नौजवान अच्छी नौकरी की जगह पर ओला, ऊबर, जोमैटो जैसी सेवाएं कर रहे हैं. 12,000 से 15,000 रुपए महीने की तनख्वाह की चाहत में बहुत से नौजवान 10 से 15 घंटे केवल मोटर और बाइक की सवारी कर रहे हैं, जिस से कम उम्र में ही वे तमाम तरह की बीमारियों के शिकार हो जा रहे हैं.
ऐसे में 10 साल से सरकार चला रही भाजपा के सामने हर प्रदेश में नईनई चुनौतियां हैं. ऐेसे में महाराष्ट्र चुनाव भाजपा के लिए समस्या है. तोड़फोड़ के सहारे भाजपा ने साल 2019 से साल 2024 तक सरकार तो चला ली है, पर अब संकट बड़ा है. इस से पार पाना आसान नहीं दिख रहा है.
भाजपा नौजवानों को धार्मिक यात्राओं में लगा कर उन की ऊर्जा को खत्म कर रही है. देश का 16 साल से 26 साल का नौजवान धर्मिक नारेबाजी और कट्टरता में फंस कर अपनी जिंदगी बरबाद कर रहा है.
उत्तर प्रदेश के बहराइच में 26 साल के रामगोपाल मिश्रा ने अब्दुल हमीद के घर पर चढ़ कर भगवा झंडा लहराया तो उस घर के नौजवानों ने रामगोपाल को गोली मार दी. इस के बाद भड़के दंगे में लाखोंकरोड़ों रुपए का नुकसान हुआ. पुलिस ने 60 से ज्यादा नौजवानों के नाम मुकदमा लिख कर तमाम को पकड़ का जेल भेज दिया है. अब बहराइच के इन नौजवानों का भविष्य अंधकारमय हो गया है.
धर्म के कट्टरपन से किसी को फायदा नहीं होता है. दरअसल, धर्म जनता को लड़ाने के काम आ रहा है. धर्म की राजनीति बेकारी बढ़ाने का काम करती है. भाजपा धर्म के नाम पर चुनाव भले जीत जाए, लेकिन वह देश को आगे बढ़ाने वाले काम करने में पीछे रहती है.