शादी के बाद वाला वो पहलापहला प्यार भला कौन भूल सकता है. भले ही आप का वो प्या र अब आप के साथ न हो, रूठ कर मायके चला गया हो, लेकिन उस की वो हंसी जिस के दम पर आप जिंदगी काटने के बारे में सोचते थे, वो प्याेर के दो बोल, जिस की एक हां पर आप दुनिया को ठोकर मारने को तैयार हो जाते थे और न जाने क्यााक्याल अकसर यादों के झरोखे से झांकने लगते हैं. दिल बारबार उन्हींे की तरफ खींचा चला जाता है.
आप भी शायद यही महसूस कर रहे होंगे कि जब वही जिंदगी से चली गई, तो फिर जिंदगी में बचा ही क्या. शायद आपने कभी उन से दूर होने के बारे में सोचा भी नहीं होगा और आप दोनों ही चाहते होंगे कि साथी वापस आ जाए पर पहल कौन करे. ये ईगो बात को आगे ही नहीं बढ़ने दे रहा.
प्यार की तड़प जब परवान चढ़ रही होती है
लड़का हो या लड़की दोनों का ही खुमार सगाई से शुरू होता है. शादी के पहले और बाद में दोनों को ही एक जैसे ही एक्साइटमेंट, होती है, उन की तड़प भी एकदूजे के लिए बराबर ही होती है. एक कमरे में नया साथी, नए कपडे, सैक्स, दोस्तों रिश्तेदारों के यहां आनाजाना, सब एक सा ही होता है, नयानया सब अच्छा ही लगता है. लेकिन अचानक से एक दिन दोनों में किसी बात पर बहस हुई और पत्नी रूठ कर मायके चली गई.
फिर वही दिनरात जो वे एकदूसरे की बांहों में बिता रहे थे. अचानक से विरह, एकदूसरे की याद और तड़प में बदल जाता है. दोनों आहें भरते हैं, अपनेअपने बिस्तर पर करवटें बदलते हैं. साथ बिताया एकएक पल, अच्छे दिन भी याद करते हैं पर अपने प्रियतम को एक कौल करने का सफर सदियों सा जान पड़ता है. दिल चाहता है कि हम ऐसा करें पर दिमाग नामक शैतान अपनीअपनी ईगो को बीच में ले आता है और फिर हम मन मसोस कर तड़प कर रह जाते हैं कि मैं ही क्यों करूं? क्या वह नहीं कर सकता? ये कुछ दिन की दूरी सालों से लगती है.
मन साथी के पास जाने को बेचैन है पर कुछ है जो रोक देता है और फिर हम तकिये में मुंह छिपा कर उस वक्त को बिताने और साथी से न मिलने के विरह को दिल में दबाए घर में एक नौर्मल लाइफ जीने की नाकाम कोशिश में लग जाते हैं. जबकि सच है कि कुछ अच्छा नहीं लगता, मन है कि पिया के दीदार को तड़प रहा होता है. लेकिन अपने मन की तड़प किसे कहें.
घरवालों के सवालों का दौर भी शुरू हो जाता है
अभी ये सब चल ही रहा होता है कि घरवालों के सवाल जवाब भी शुरू हो जाते हैं. कितने दिन के लिए बोल कर आए हो बेटा ? नईनई शादी में इतने दिन मायके रहना अच्छा नहीं लगता? दामादजी से तो बात होती है न?
इन सब बातों पर लगी हुई चुप्पी एक दिन ज्वालामुखी की तरह फटती है और मन की सारी तड़प, शिकवे शिकायतों के रूप में आसुंओं के संग मौमडैड के आगे निकल पड़ती है, बस फिर क्या था. अब तो एक नई ही जंग शुरू हो जाती है.
उन लोगों की हिम्मत कैसे हुई हमारी बेटी को कुछ कहने की? हम खुद दामादजी से बात करेंगे? और फिर बात नहीं सवालजवाब का ऐसा दौर शुरू होता है जिस में विरह कब नफरत में बदल जाता है पता ही नहीं चलता. प्यार की लड़ाई कब तेरेमेरे में बदल जाती है दोनों समझ ही नहीं पाते हैं.
तूने मेरे पेरैंट्स के लिए ऐसा बोला भी कैसे? फोन तो पहले तुम्हारे पापा ने किया न? तुम ने ढंग से बात तक नहीं की? तुम्हारी मम्मी ने मेरे मम्मी को 4 बातें, सुना कैसे दी?
ईगो में कुछ पता नहीं चलता
इस तरह की हजार बातें होने लगती है. जो बात पहले नए जोड़े के बीच प्यार की लड़ाई थी वह अब ईगो और तेरेमेरे की लड़ाई में बदल जाती है. शायद ही लड़कालड़की अपनी पेरैंट्स को ले कर इतने सेंसिटिव कभी हुए हों जितना अब हो जाते हैं बात मरनेमारने पर आ जाती है.
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उसे हवा अपने ही मौमडैड के द्वारा दी जा रही होती है. कल तक जो परिवार और दामाद उन की बेहतरीन पसंद था आज वो सब से बुरा हो गया क्योंकि उन की वजह से लाड़ली की आंखें जो कुछ पलों के लिए भीग गई. उस पल दो पल की आंसुओं का बदला वे खुद ही अपने बच्चों से पूरी जिंदगी के आंसू और दुःख उन की आंखों में भर कर देते हैं.
कुछ ही दिनों में मौमडैड यह फैसला कर बैठते हैं कि अब हम तुझे ससुराल नहीं भेजेंगे. वहीँ दूसरी तरफ ससुराल वाले भी बेटे को समझाने में लग जाते हैं कि हम तेरे लिए एक से एक लड़की की लाइन लगा देंगे इसे छोड़ तू. ऐसा करते वक्त वे ये बात भूल जाते हैं कि उसी लाइन में से तो वे अपनी इस बहु को चुन कर लाए थे, जो आज इतने बुरी हो गई क़ि उस से पीछा छुड़ाने के लिए वे किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं.
मौमडैड की दखलंदाजी बच्चों के लिए सजा
लेकिन सवाल है कि क्या यह सही है पतिपत्नी दोनों परिपक्व हैं? सोचसमझ कर ही उन्होंने शादी की है, अगर किसी बात को ले कर उन का मनमुटाव हो भी गया है तो पूरे खानदान को उस में घुसपैठ कर अपने अकल के घोड़े दौड़ाने की जरुरत नहीं है.
ये नए जोड़े का एकदूसरे को समझने और आपसी अंडरस्टैंडिंग डेवलप करने का टाइम पीरियड चल रहा है. जिस में 10 बार प्यार होगा तो 15 बार लड़ाई भी होगी क्योंकि दोनों एकदूसरे को अभी समझ ही रहे हैं, एकदूसरे की अच्छी बुरी बातों को एक्सैप्ट करने में उन्हें टाइम लग रहा है और उसी का नतीजा ये लड़ाई है.
लेकिन पेरैंट्स जो कल तक अपने बच्चों का घर बसाने के लिए मरे जा रहे थे आज वही उस से तुड़वाने के लिए वकीलों के चक्कर लगा रहे हैं. वह भी बिना ये जाने की क्या इस में उन के बच्चों की ख़ुशी है भी या नहीं ?
जीवन भर का गम क्यों
हो सकता है वे दोबारा शादी ही न करें या फिर करना भी चाहें तो क्या गारंटी है इस बार उन में लड़ाई नहीं होगी या जीवनसाथी बहुत ही अच्छा मिल जाएगा?
ऐसा भी तो हो सकता है सालोंसाल निकल जाए और बच्चों को कोई पसंद ही न आए? इसलिए आप को बीच में पड़ने की इजाजत भला किस ने दी?
आप का काम बच्चों की शादी करा कर ख़त्म हो गया है अब उन की जिंदगी है, उन की गृहस्थी है, उन्हें अपने ढंग से हैंडल करने दें.
उन्हें खुद की गलतियों से सीखने दें
जब तक वे आप की राय न मांगे तब तक न दें, जब तक कोई बड़ी बात न हो उन्हें रिश्ता तोड़ने के बजाए निभाने की सलाह दें.
हां आप इतना अवश्य करें की बेटी की शादी के बाद उस का कमरा कुछ समय के लिए वैसा ही रहने दें. ताकि उसे यह भरोसा रहे कि मेरा अपना कुछ है और अगर मैं वापस आ गई हूं तो किसी को मेरे आने से परेशानी नहीं है. मैं अपने खुद के कमरे में हूं और आराम से अपने और अपने रिश्ते के बारे में सोच सकती हूं.
शुरूआती दिन कठिन
शादी के पहले कुछ हफ्तों तक कपल्स अपने हनीमून पीरियड्स में होते हैं. इस दौरान दोनों एकदूसरे को अच्छा और कंफर्ट महसूस कराने के लिए हर बात में सहमति जताते हैं. लेकिन इस के बाद चीजें बदलने लगती हैं. पति और पत्नी के पहले 365 दिन अकसर सब से कठिन होते हैं. क्योंकि इस दौरान आप चीजों को अपने अनुसार ढालने की कोशिश करते हैं, जिस के वजह से कभीकभी पार्टनर के साथ लड़ाई भी हो जाती है.
लेकिन इस प्यार की लड़ाई को बड़ा बनते भी देर नहीं लगेगी. अपनी लड़ाई को इतना भी न खींचें कि चाहेअनचाहे बाकि लोगों को इन्वोल्व होने का मौका मिल जाएं. अगर बात बड़ी है तो सोचने का टाइम अवश्य लें. लेकिन अगर बात बहुत बड़ी नहीं है तो उसे इग्नोर करें. वैसे भी अभी आप एकदूसरे को जानते ही कितना हैं. इसलिए छोटीछोटी बातों पर एकदूसरे को जज न करें बल्कि एकदूसरे को समझने का मौका दें.
अब थोड़ा समय दूर रह कर एकदूजे की कमी, अहमियत समझ आ गए होगी. इसलिए अपने रिश्ते के बारे में सोचें, एकदूसरे को समझने के इस टाइम पीरियड में रिश्ता तोड़ने की नहीं बल्कि निभाने की सोचें.
जिस तरह की तड़प आप के अंदर है वैसी ही तड़प साथी में भी होगी इसलिए दोनों एकदूसरे को मना लीजिए और याद रखिए पहल करने वाला छोटा नहीं होता बल्कि सामने वाले की नजरों में उस की इज्जत ओर भी बढ़ जाती है.