साल 2022 में मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी की नेता वृंदा करात ने जहांगीरपुरी में बुलडोजर से की गई तोड़फोड़ को चुनौती देने वाली एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी. इस याचिका में बुलडोजर से की जानी वाली तोड़फोड़ को रोकने की मांग की गई थी. इस के साथ ही जमीयत उलेमा ए हिंद ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में आएदिन होने वाली बुलडोजर द्वारा की जा रही तोड़फोड़ पर रोक लगाने की मांग की.
सरकार का कहना है कि किसी के अपराधी होने से नहीं उस के गैरकानूनी तरीके से बनने के चलते यह काम किया गया है. इस को रूल औफ लौ कहा गया. क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बुलडोजर से किया जाने वाला तथाकथित ‘जस्टिस’ रुक सकेगा?
सवाल उठता है कि अगर कोई मकान 50-60 साल पहले 4 लोगों के हिसाब से बना था. उस की एक मंजिल का नक्शा पास था और अब अगर मकान मालिक अपने रहने के लिए वहां नया कुछ बना ले, तो वह गैरकानूनी कैसे हो गया? 50-60 साल पहले म्यूनिसिपल कौरपोरेशन ने जो शहर बसाया था, क्या आज वह वैसा ही है? नहीं. शहर बदल चुके हैं. फुटपाथ गायब हो गए हैं. पेड़ कट चुके हैं.
जब जरूरत के हिसाब से शहर में बदलाव गलत नहीं है, तो घर में बदलाव गैरकानूनी कैसे हो गया? गैरकानूनी है तो बुलडोजर नीतियों के हिसाब से चलेगा या जिस ने अपराध किया उस के ऊपर ही चलेगा?
बुलडोजर ऐक्शन को ले कर विपक्षी दलों के नेताओं ने भाजपा को निशाने पर ले लिया. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने कहा, “2027 में जब सपा की सरकार बनेगी तो सारे बुलडोजर गोरखपुर की ओर भेज दिए जाएंगे.”
बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने कहा, “बुलडोजर का इस्तेमाल रूल औफ लौ के मुताबिक होना चाहिए.”
कांग्रेस नेता और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने कहा, “भाजपा की असंवैधानिक और अन्यायपूर्ण बुलडोजर नीति पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी स्वागत योग्य है. बुलडोजर के नीचे इनसानियत और इंसाफ को कुचलने वाली भाजपा का संविधान विरोधी चेहरा अब देश के सामने बेनकाब हो चुका है. बेलगाम सत्ता का प्रतीक बन चुके बुलडोजर ने नागरिक अधिकारों को कुचल कर कानून को निरंतर अंहकार भरी चुनौती दी है. ‘त्वरित न्याय’ की आड़ में ‘भय का राज्य’ स्थापित करने की मंशा से चलाए जा रहे बुलडोजर के पहिए के नीचे अकसर बहुजन और गरीबों की ही घरगृहस्थी आती है. सुप्रीम कोर्ट इस अति संवेदनशील विषय पर दिशानिर्देश दे कर भाजपा सरकारों के इस लोकतंत्र विरोधी अभियान से नागरिकों की रक्षा करेगा.”
‘बुलडोजर जस्टिस’ का विरोध
जमीयत उलेमा ए हिंद की तरफ से सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ से कहा कि 2022 में जहांगीरपुरी में हिंसा भड़की थी. हिंसा के बाद कई लोगों के घरों पर बुलडोजर चलाया गया. इन लोगों पर यह आरोप था कि उन्होंने हिंसा भड़काई थी.
याचिका में कहा गया कि अल्पसंख्यक समुदाय को निशाना बनाए जाने का आरोप लगाया गया है. याचिका में ‘बुलडोजर जस्टिस’ की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अपील की गई थी.
जहांगीरपुरी मामले में वकील फरूख रशीद द्वारा दाखिल की गई थी. याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकारें हाशिए पर मौजूद लोगों खासकर अल्पसंख्यकों के खिलाफ दमनचक्र चला कर उन के घरों और संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने को बढ़ावा दे रही हैं, जिस से पीड़ितों को कानूनी उपाय करने का मौका नहीं मिलता.
24 अगस्त को मध्य प्रदेश के छतरपुर में पुलिस पर पथराव मामले में आरोपी हाजी शहजाद अली के बंगले को बुलडोजर से तोड़ दिया गया था. एमेनेस्टी इंटरनैशनल की फरवरी, 2024 की रिपोर्ट के मुताबिक, अप्रैल, 2022 से जून, 2023 के बीच दिल्ली, असम, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक हिंसा के बाद 128 संपत्तियों को बुलडोजर से ढहा दिया गया. मध्य प्रदेश में एक आरोपी के पिता की संपत्ति पर बुलडोजर चलवा दिया गया और मुरादाबाद और बरेली में भी बुलडोजर से संपत्तियां ढहाई गईं. राजस्थान के उदयपुर जिले में राशिद खान का घर भी बुलडोजर से गिरा दिया गया, जिस में उन के 15 साल के बेटे पर स्कूल में अपने सहपाठी को चाकू से गोदने का आरोप था.
क्या ठहर जाएगा बुलडोजर
सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर पर गंभीर सवाल उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘अगर कोई सिर्फ आरोपी है तो प्रौपर्टी गिराने का ऐक्शन कैसे लिया जा सकता है?’
जस्टिस विश्वनाथन और जस्टिस बीआर गवई की बैंच ने कहा, ‘अगर कोई दोषी भी हो, तब भी ऐसा ऐक्शन नहीं लिया जा सकता है. सिर्फ आरोपी होने के आधार पर किसी के घर को गिराना उचित नहीं है. किसी का बेटा आरोपी हो सकता है, लेकिन इस आधार पर पिता का घर गिरा देना, ऐक्शन का सही तरीका नहीं है.
‘हम यहां अवैध अतिक्रमण के बारे में बात नहीं कर रहे हैं. इस मामले से जुड़ी पार्टियां सुझाव दें. हम पूरे देश के लिए गाइडलाइन जारी कर सकते हैं.’
सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस बात को स्वीकार किया और कहा कि अपराध में दोषी साबित होने पर भी घर नहीं गिराया जा सकता. उन्होंने साफ किया कि जिन के खिलाफ ऐक्शन हुआ है, वे अवैध कब्जे या निर्माण के कारण निशाने पर हैं न कि अपराध के आरोप की वजह से ऐक्शन हुआ है. किसी भी आरोपी की प्रौपर्टी इसलिए नहीं गिराई गई, क्योंकि उस ने अपराध किया. आरोपी के अवैध कब्जों पर म्यूनिसिपल ऐक्ट के तहत ऐक्शन लिया है.
म्यूनिसिपल ऐक्ट कब बना
सोलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अवैध कब्जों पर म्यूनिसिपल ऐक्ट के तहत ऐक्शन की बात कही. अब सवाल उठता है कि म्यूनिसिपल ऐक्ट कब बना आज के समय में वह कितना उपयोगी है? भारत में नगर प्रशासन साल 1687 के बाद कानून बना. सब से पहले साल 1687 में मद्रास नगरनिगम का गठन हुआ. इस के बाद साल 1726 में कलकत्ता (अब कोलकाता) और बौम्बे नगरनिगम का गठन हुआ. साल 1916 में देश के तकरीबन सभी शहरों में नगरनिगम प्रशासन की मौजूदगी हो गई थी. तब भारत के वाइसराय लार्ड रिप्प ने नगरपालिका शासन की नींव रखी थी.
साल 1919 में भारत सरकार ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई नगरपालिका सरकार की शक्तियां तैयार कीं. साल 1935 में भारत सरकार ने राज्य सरकार और प्रांतीय सरकार के अधिकार के तहत नगरपालिका सरकार लाई. उस को अपने कानून बनाने का हक दिया गया.
साल 1991 की जनगणना के मुताबिक, देश में 3,255 शहरी स्थानीय निकाय बने. इन को 4 प्रमुख श्रेणियों में रखा गया. नगरनिगम, नगरपालिका (नगरपालिका परिषद, नगरपालिका बोर्ड, नगरपालिका समिति) (नगर परिषद), टाउन एरिया कमेटी और अधिसूचित क्षेत्र समिति को बनाया. नगरनिगम और नगरपालिका पूरी तरह से प्रतिनिधि निकाय हैं. यहां चुने गए प्रतिनिधि होते हैं. अधिसूचित क्षेत्र समितियां और शहर क्षेत्र समितियां या तो पूरी तरह या आंशिक रूप से निकाय हैं.
भारत के संविधान के मुताबिक, साल 1992 में 74वां संशोधन अधिनियम लागू कर के इन को और हक दिए गए. साल 1994 में यह लागू हुआ. 74वें संशोधन के बाद शहरी स्थानीय निकायों को महानगरनिगम, नगरपालिका और नगरपंचायत में बांट दिया गया. इन को शहरी विकास के हिसाब से कानून बनाने का हक था. कई ऐसे कानून थे, जिन में समय, शहरी जरूरतों और टैक्नोलौजी का ध्यान नहीं रखा गया. जब भी कोई जमीन खरीदता है, तो उस पर मकान बनाने के लिए नक्शा पास कराना होता है. जब साल 1916 में जब म्यूनिसिपल कानून बना था, तब जिस तरह की पाबंदियां थीं, वही अब भी हैं.
आज शहरी जरूरतें बदल गई हैं. अब छोटेछोटे जमीन के हिस्सों पर रहने के लिए मकान बनने लगे हैं. पहले मकान एक मंजिल के बनते थे, आज की टैक्नोलौजी के हिसाब से 4-5 मंजिल के मकान साधारण रूप में बनते हैं. मकान बनाने के लिए नक्शा पास कराने के लिए प्राधिकरण के पास जाना पड़ता है. वह पुराने कानून के हिसाब से ही नक्शा पास करता है, जिस का नतीजा यह होता है कि लोग अपनी बढ़ती जरूरत के हिसाब से मकान में फेरबदल कर लेते हैं. यह मकान मालिक की सुविधा के लिए ठीक है. लेकिन नक्शे के हिसाब से गलत है. यह म्यूनिसिपल कानून के तहत गिराया जा सकता है.
नक्शे के अलावा जरूरत के हिसाब से बनाया गया मकान म्यूनिसिपल कानून की नजर में अवैध निर्माण कहा जाता है. आज बहुत सारे घरों में दुकानें बनने लगी हैं. उन का व्यावसायिक उपयोग होने लगा है. म्यूनिसिपल कानून की नजर में यह गलत है. रिहाइशी इलाकों में व्यावसायिक गतिविधियां नहीं की जा सकतीं. इस पर म्यूनिसिपल कानून के तहत जुर्माना लगता है. कई बार मकान सील भी कर दिया जाता है. अगर किसी को अपने मकान में इस तरह के काम करने हैं तो इस को गलत क्यों माना जाता है?
उत्तर प्रदेश से शुरू हुआ बुलडोजर रोग
जिन प्रमुख राज्यों में बुलडोजर ऐक्शन हुआ, उन में सब से ज्यादा चर्चा में उत्तर प्रदेश था. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने पहले कार्यकाल में उत्तर प्रदेश गैंगस्टर ऐक्ट और एंटी सोशल ऐक्टिविटीज (प्रीवैंशन) ऐक्ट के तहत 15,000 लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किए गए. कई मामलों में आरोपियों के खिलाफ अवैध निर्माणों पर बुलडोजर चला कर इन को गिरा दिया गया था.
गैंगस्टर अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी और विकास दुबे की करोड़ों रुपए की संपत्ति गिरा दी गई. योगी सरकार -1 में बुलडोजर ऐक्शन शुरू हो गया था. इस से बलात्कार और हत्या में शामिल बदमाशों में कानून का खौफ बैठने लगा था. वे खुद थानों में सरैंडर करने लगे थे.
17 जुलाई, 2021 को 87 अवैध निर्माण गिरा दिए गए. 15 एकड़ से अधिक की सरकारी भूमि खाली कराई गई. 5 सितंबर, 2021 को 176 अवैध निर्माण तोड़े गए. ये सड़कों और सरकारी जमीन पर अवैध निर्माण थे. 22 नवंबर, 2021 को एक सप्ताह चले अभियान में 312 अवैध निर्माण तोड़े गए. 15 जनवरी, 2022 को 59 अवैध बस्तियों को तोड़ कर 25 एकड़ भूमि को खाली कराया गया.
इस के बाद सोशल मीडिया पर योगी आदित्यनाथ को ‘बुलडोजर बाबा’ के नाम से जाना जाने लगा. बुलडोजर का यह सिलसिला उत्तर प्रदेश के बाहर तक भी पहुंचने लगा. मध्य प्रदेश के उस समय के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अप्रैल, 2022 में खरगोन में हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद 16 घरों और 23 ढांचों पर बुलडोजर चलवा दिया. इस के बाद उन का नाम ‘बुलडोजर मामा’ पड़ गया. एक तरह के बुलडोजर को ‘इंसाफ’ का प्रतीक बना कर पेश किया जाने लगा. इस के बाद हरियाणा में कई घर गिराए गए. दिल्ली में मसजिद की दीवार गिराई गई. राजस्थान में चाकू से हमला करने वाले के घर पर ऐक्शन लिया गया. बिहार में बच्ची के हमलावर का घर गिरवा दिया. इस के अलावा असम और उत्तराखंड में भी ऐसे मामले सामने आए हैं.
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद क्या बुलडोजर की रफ्तार पर रोक लगेगी? यह सवाल आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा. पूरे देश को ले कर सुप्रीम कोर्ट क्या कहने वाली है, यह भी 17 सितंबर के बाद पता चल सकेगा. फिलहाल बुलडोजर से पीड़ित पक्षों को राहत मिलती दिख रही है. रूल औफ लौ से ही न्याय त्वरित मिले जिस से लोगों को अदालतों में भरोसा हो सके. इस से ही जनता में बुलडोजर न्याय की अपेक्षा खत्म हो सकेगी.