4 जून 2024 के बाद जिस तरह के भारतीय जनता पार्टी को झटका लगा है, उसे वह मानने को तैयार नहीं है. 2014 और 2019 की सरकार और 2024 वाली सरकार में बहुत अंतर है. पहली दो सरकारों में जिस तरह से भाजपा ने न जनता की सुनी न सहयोगी दलों की सुनी. उस तरह के फैसले 2024 वाली सरकार के लिए संभव नहीं हैं. यह बात भाजपा समझ ही नहीं रही है. यही वजह है कि वह मनमाने कानून बनाने से बाज नहीं आ रही है. वक्फ कानून, ब्रौडकास्ट बिल, पेंशन प्लान और लैटरल एंट्री ऐसे तमाम मामले पिछले दिनों देखने को मिले जिन में केंद्र सरकार ने अपने कदम वापस खीचें.

इस की वजह केवल विपक्ष ही नहीं है केंद्र सरकार के सहयोगी दल भी इन फैसलों से खुश नहीं थे. उन के विरोध के चलते सरकार को कदम वापस खींचने पड़े. चिराग पासवान, नीतीश कुमार और चन्द्रबाबू नायडू हर फैसले में केंद्र सरकार के साथ नहीं हैं. अब केंद्र सरकार को कोई फैसला करने से पहले अपने इन सहयोगी दलों से बात करनी चाहिए. असल में सहयोगी दलों से बातचीत करने की आदत केंद्र सरकार खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वभाव का हिस्सा नहीं रही. वह भूल जाते हैं कि अब उन की पहले जैसी तानाशाही नहीं चलने वाली.

मोदी 3.0 के सामने सहयोगी दलों के साथ ही साथ विपक्ष भी मजबूती से खड़ा है. भाजपा के कमजोर होने के 2 प्रभाव और देखे जा सकते हैं. छोटेबड़े सहयोगी दल सरकार के फैसलों की खुल कर आलोचना करने लगे हैं. केंद्र से ले कर राज्यों तक में ऐसे हालात बन गए हैं. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के नजूल कानून, बुलडोजर नीति और ओबीसी आरक्षण को ले कर अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल मुखर आलोचक के रूप में सामने आई. निषाद पार्टी के डाक्टर संजय निषाद ने योगी के बुलडोजर की आलोचना की. सहयोगी दल ही नहीं भाजपा में पार्टी के अंदर से ही विरोध के स्वर फूटने लगे हैं.

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