ममता नींद में थी. उस का जीवनसाथी बृज अब उस का नहीं रहा, इस का इल्म उसे नहीं था. आजाद जीवन प्यारा था उसे. अब भी पूरी आजादी चाहिए थी. नहीं रहना चाहती थी किसी के संग वह.

‘‘फोन की घंटी बज रही है, उठो.’’ सुबह का समय है, सर्दी के दिन हैं. इस समय गरमगरम रजाई से निकल कर फोन उठाना एक आफत का काम है. मोबाइल में सिग्नल नदारद रहते हैं, तब पुराना लैंडलाइन फोन ही काम आता है. पति को सोता देख कर ? झल्लाती हुई ममता को ही उठ कर फोन उठाना पड़ा. हालांकि ममता को मालूम था, आज रविवार की सुबह बच्चों का ही फोन होगा, लेकिन किस का होगा, यह तो फोन उठाने पर ही मालूम होगा.

ममता ने फोन उठाया और बातों में मशगूल हो गई. पुत्री सुकन्या का फोन था. बृजमोहन भी उठ कर आ गए, फिर पुत्री और दामाद से उन की भी बातें हुईं. आखिर घूमफिर कर वही बातें होती हैं, क्या हाल है? बच्चे कैसे हैं? छुट्टी में इंडिया आओगे? आज कौन सी दालसब्जी बनी है या बनेगी? मौसम का क्या हाल है? पड़ोसियों की शिकायत, सब यहीकुछ.

सुकन्या को भी पड़ोसियों की बातें सुनने में मजा आता था. ममता भी वही बातें दोहराती, सारी पड़ोसनें जलती हैं. पूरा एक घंटा ममता और बृजमोहन का व्यतीत हो गया. सुबह 6 से 7 बज गए.

ममता और बृजमोहन के 3 बच्चे, सब से बड़ी बेटी सुकन्या, फिर दो छोटे बेटे गौरव और सौरभ. सभी अमेरिका में सैटल हैं. सभी शादीशुदा अपने बच्चों के साथ अमेरिका के विभिन्न शहरों में बसे हुए हैं.

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