Hindi Kahani : जीवन से बहुत अधिक अपेक्षा न रख कर हमेशा अगर हम यह मान कर चलें कि जो भी होगा वह मुझ से है और सबकुछ नवीन और सहज होगा तो हमारी पूरी सोच और दृष्टिकोण रूपांतरित हो जाते हैं. जीवन को अपने हाथ में रख कर यदि आप सोचते हैं कि आप चमत्कारिक रूप से सब अपने हिसाब से कर लेंगे तो आप के हाथ केवल निराशा आएगी. जिंदगी को बिना किसी पूर्वाग्रह के स्वीकार करें, वरना गांभीर्य और बोझिलता बहुत बढ़ जाएगी और यह घाटे का सौदा है.

अपनी डायरी में ये सब लिख कर अनामिका उठीं और खिड़की पर आ गईं. मैक्लोडगंज अभी जाग रहा था. दूर धौलाधार की चोटियां आकाश को गहराई तक भेद रही थीं. उगता हुआ सूरज अपनी उच्चतम प्रकाष्ठा में, अपनी नरम किरणें पहाड़ों पर बिखेर रहा था. ठंडी और स्फूर्तिदायक हवा एकदम साफ थी. सड़कों पर लामा मठों की तरफ आजा रहे थे. ये वही लोग थे जो बर्बर और असभ्य चीनियों से बचते हुए इस क्षेत्र में आ कर बस गए थे लेकिन ऐसा नहीं है कि ये सब भाग कर आए थे, बल्कि इन के प्रशिक्षण और आस्थाएं ऐसी थीं कि यदि जरूरत पड़े तो ये बर्बर यातनाएं भी सह सकते थे पर कभीकभी पवित्र वस्तुएं, अभिलेख, गोपनीय लेखन और परंपरा को बचाने के लिए भाग कर आने के अलावा कोई चारा नहीं बचता. उन को ध्यान से देखती हुई अनामिका अपने जीवन की घटनाओं को याद कर रही थीं. आखिर वे भी तो सब छोड़ कर आई थी.

सुबह के 8 बज चुके थे. वे दिन की शुरुआत चाय से करती हैं. उन को नौर्लिंग रैस्तरां की चाय ही पसंद है, इसलिए वे अपने होम स्टे से निकल कर दस कदम दूर बने इस छोटे से रैस्तरां में आ गईं. अनामिका को देख कर वहां के स्टाफ ने ‘ताशी डेलेक’ बोल कर उन का अभिवादन किया और चाय बनवाने चला गया. आजकल अनामिका बहुत से प्रयोग कर रही थीं. परंपरागत भारतीय चाय को छोड़ कर वे मक्खन वाली नमकीन तिब्बती चाय पीती हैं.

अपने जीवन के साथ भी उन्होंने ऐसा ही कुछ प्रयोग किया है. वे 55 साल की महिला हैं और तलाकशुदा हैं. अद्वितीय तेज और शीतलता की मूर्ति, जैसे सूरज और चंद्रमा एक हो गए हों. 5 वर्षों पहले उन्होंने तलाक ले लिया था, जबकि घर, परिवार और रिश्तेदार यह बात हजम नहीं कर पा रहे थे कि जब उस घर में सारी जिंदगी गुजार दी तो अब इस उम्र में तलाक लेने का क्या औचित्य था?

लेकिन अनामिका एक प्रेम और सम्मानरहित रिश्ते को ढोती रही थीं. उस हद से ज्यादा अमीर व्यक्ति को, जिसे समाज उन का पति कहता था, उसे अनामिका की मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक जरूरतों का एहसास तक नहीं था और स्वभाव में क्रूरता व गुस्सा अलग से था. अपने बेटे को पढ़ालिखा कर अनामिका ने बड़ा किया और जब वह विदेश चला गया तो अनामिका ने खुद को उस सोने के पिंजरे से आजादी दिलाई, जिस में उन का साथ सिर्फ उन के बेटे ने दिया था.

तब से अनामिका ‘सोलो ट्रैवलर’ बन कर अकेली भारत दर्शन कर रही हैं और पिछले कुछ महीनों से यहां मैक्लोडगंज में ‘कुंगा होम स्टे’ में रुकी हुई हैं. एक नया शौक उन में जागा है और वह है फोटोग्राफी का. उन के बेटे ने अमेरिका से ही निकोन का कैमरा भेजा है, जिसे अनामिका खूब इस्तेमाल करती हैं. इतनी देर में चाय आ गई और अनामिका भी अपने खयालों की दुनिया से बाहर आ गईं.

उन के पास वाली कुरसी पर मयंक गुप्ता बैठे उन की तरफ देख कर मुसकरा रहे थे. अनामिका कुछ झिझक गईं क्योंकि उन को नहीं पता चला कि मयंक गुप्ता कब से उन के पास बैठे थे. मयंक गुप्ता दिल्ली यूनिवर्सिटी से रिटायर्ड प्रोफैसर हैं. उन की पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी. सब बच्चे शादीशुदा थे. अब जीवन के इस पड़ाव पर अपने अन्य दोस्तों की तरह उन्होंने घर में बैठने की अपेक्षा ‘यायावरी’ को चुना. वे पिछले कुछ महीनों से यहां मैक्लोडगंज में एक किराए के घर में रह रहे हैं. दोनों रोज इस वक्त चाय पीते हैं. इन की मुलाकात इसी नौर्लिंग रैस्तरां में हुई थी.

मयंक गुप्ता अनामिकाजी को ‘बंडल औफ कौन्ट्राडिक्शन’ कहते थे. उन के हिसाब से मृदु स्वभाव वाली अनामिका के अंदर एक विद्रोही स्त्री भी रहती है.

मयंक गुप्ता ने अनामिका के मौन को देखते हुए चुप रहना ही बेहतर समझ और चुपचाप कौफी पीने लगे.

फिर मनचाहा विश्राम ले कर अनामिका ने उन की ओर देखा.

‘‘आप की नक्काशी सीखने की क्लास कैसी चल रही है?’’ वे बोलीं.

‘‘अच्छी चल रही है. यह ऐसा विषय है जिसे मैं पसंद करता हूं. तिब्बती लोगों में खास बात यह है कि ये लकड़ी को बरबाद नहीं करते. धारदार चाकू से लकड़ी काट कर सुंदर कलाकृति बना देते हैं.’’

‘‘जीवन भी तो ऐसा ही है प्रोफैसर गुप्ता, एक औब्जेक्ट पर दृश्य तत्त्वों की नियुक्ति और एक अप्रत्यक्ष वस्तु को खोजने के लिए उपक्रम करना,’’ अनामिका कुछ गंभीर हो कर बोलीं.

‘‘जीवन का इस तरह अन्वेषण करना एक महत्त्वपूर्ण आध्यात्मिक यात्रा है, अनामिका. बाकी सबकुछ निरर्थक ही नहीं बल्कि खंडित भी है.

वास्तव में, जीवन जिया कैसे जाता है, बेहतर दशाएं क्या हो सकती हैं, ये सब हमारे समाज ने हमें कभी सिखाया ही नहीं है. नक्काशी करना और जीवन को जीना एकसमान है. बस, दोनों को पूरी मर्यादा और गरिमा के साथ किया जाए तो अच्छा पैटर्न बन कर सामने आता है.

अनामिका को मयंक गुप्ता ज्यादा ही प्रबुद्ध और विनम्र लगते थे. 6 फुट से भी लंबे मयंक गुप्ता पर्वत समान अडिग, गहन रूप से शांत और सहज प्रकृति के व्यक्ति थे. उन के स्वभाव में एक नरमी थी जो मिस अनामिका को अपनी शादीशुदा जिंदगी में कभी नहीं मिली थी.

‘‘और आज का ‘थौट औफ द डे’ क्या है?’’ अनामिका ने बात बदलते हुए मज़ाकिया लहजे में पूछा.

‘‘आज लामा सोग्याल नक्काशी सिखाते हुए बता रहे थे कि एक महत्त्वपूर्ण सूत्र यह भी है कि अपने पूरे अस्तित्व के साथ संपूर्णता पाने का प्रयत्न करें, मतलब जीवन की अनंत व स्वाभाविक भव्यता के बीच जीने के प्रयत्न करना.’’

‘‘हां, क्योंकि सबकुछ अस्थायी है, प्रोफैसर गुप्ता,’’ अनामिका बोलीं.

बाहर सैलानियों की चहलकदमी बढ़ गई थी. कुछ विदेशी पर्यटक नौर्लिंग में इकट्ठा होना शुरू हो गए थे. इस वक्त रैस्तरां में जो इजराइली संगीत बज रहा था उस की धुन अनामिका को विशेष प्रिय थी. जब हम फुरसत में होते हैं तो संगीत अपनी उपस्थिति बहुत अलौकिक तरीके से दर्ज करवाता है.

दोनों संगीत सुनते रहे और कुछ देर बाद विदा ली.

मयंक गुप्ता अनामिका की आंखों की तरलता देखते रहते थे और मन में सोचते रहते थे कि अनामिकाजी जैसे सरल लोग बाहर से भी और भीतर से भी इतने सुंदर क्यों होते हैं. अनामिका इतनी अद्भुत थीं कि पिछले 2 महीनों से हर पल उन को उन्हीं का खयाल बना रहता था. अब तो नौर्लिंग में सुबह की कौफी पीने के लिए आना और अनामिकाजी से बातें करना, जीवन का एक जरूरी हिस्सा बन रहा था.

अनामिका एक घंटे की ध्यान की क्लास के लिए वहां से 2 किलोमीटर दूर धर्मकोट के तुषिता सैंटर जाती थीं.

आज भी वे उस तरफ सड़क पर पैदल चलती जा रही थीं. यह इलाका भारत का हिस्सा तो बिलकुल भी नहीं लगता था और यही बात इस को विशिष्ट बनाती थी. बीचबीच में मठों से घंटों की आवाज और हवाओं में लाल चंदन की धूप की खुशबू दिव्यता का एहसास करवाती.

कुछ तिब्बती महिलाएं वहां से गुजर रही थीं, जो अब अनामिका को पहचानने लग गई थीं. सब उन को ‘ताशीडेलेक’ बोल कर अभिवादन करती हुई आगे गुजर रही थीं. तिब्बती महिलाएं भड़कीले लाल, नीले, पीले वस्त्र पहनती हैं लाल मूंगा और हरे फिरोजा पत्थर की मालाओं के साथ, जो अनामिका को बहुत पसंद थे.

अब अनामिका तुषिता सैंटर के सामने थीं. बांसुरी, तुरही, घडि़याल की आवाजें आ रही थीं. इस का मतलब कि सुबह का ध्यान सत्र शुरू होने वाला था. आकाश नीला, विस्तृत और सुंदर दिख रहा था. बादल के छोटेछोटे टुकड़े तैर रहे थे

जैसे किसी पेंटर ने एक बड़े कैनवास पर सफेद रंग का ब्रश फेर दिया हो. अंदर धातु के अगरदान रखे हुए थे जिन से तेज खुशबूदार धुआं ऊपर की ओर उठ रहा था. कुछ लोग प्रार्थनाचक्र घुमा रहे थे. अनामिका ने भी चक्र घुमाया और अंदर चली गईं.

अगले दिन मयंक गुप्ता नौर्लिंग नहीं आए, न ही उन्होंने फोन किया. अनामिका उन का इंतजार करती रहीं और फिर सुबह के सत्र के लिए तुषिता की तरफ चली गईं. वापस आते वक्त वे मयंक गुप्ता को फोन मिलाने का सोचने लगीं लेकिन बाद में फोन वापस बैग में डाल कर उन के घर की तरफ मुड़ गईं. अनामिका को फोन का उपयोग असहज कर देता था, इस का कारण उन को भी नहीं पता था. फोन उन्होंने सिर्फ अपने बेटे से बात करने के लिए ही रखा था.

अंत में वे मयंक गुप्ता के घर के सामने खड़ी थीं. दरवाजा उन के तिब्बती सहायक जामयांग ने खोला और मिस अनामिका सीधे मयंक गुप्ता के कमरे की तरफ चली गईं. कमरे के अंदर चीजें व्यवस्थित थीं. फर्श और दीवारों पर लकड़ी का काम था और अनेक मक्खन के दीये जल रहे थे. सबकुछ साफ, सुंदर और रोशन.

मयंक गुप्ता कोई किताब पढ़ रहे थे और वह भी इतने ध्यान से कि उन को अनामिका के वहां होने तक का एहसास न हुआ. वहां तरहतरह की किताबें थीं, ‘दि सर्मन औन दि माउंट’, ‘राबिया-बसरी के गीत’, ‘मैडम ब्लीवट्स्कीन की सेवन पोर्टलस एफ समाधि’ इत्यादि. दूसरी तरफ टेबल पर नक्काशी का सामान- छेनी, गोज और कुछ अलगअलग आकार के लकड़ी के टुकड़े पड़े थे. बहुत ही कलात्मक और बौद्धिक शौक थे मयंक गुप्ता के.

‘प्रोफैसर गुप्ता,’ अनामिकाजी धीमे से बोलीं.

मयंक गुप्ता एकदम से चौंक गए. उन को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि अनामिका उन के कमरे में, उन के सामने खड़ी थीं.

अनामिका को सही से पता था कि मयंक गुप्ता उन को किस रूप में देखते हैं, लेकिन फिर भी मयंक गुप्ता के सान्निध्य में जो नरमी और आत्मीयता उन को मिलती थी वह बहुत अमूल्य और अनोखी थी. चट्टान जैसे मजबूत लेकिन जल की तरह तरल मयंक गुप्ता के मन में कई बार अनामिका का हाथ पकड़ कर बैठने की इच्छा उठती थी लेकिन उन्होंने कभी कोशिश नहीं की. वैसे भी, प्रेम कोई निश्चित प्रयास नहीं है, इस में सहज भाव से डूबना होता है, समाहित होना होता है.

‘‘आप आज आए नहीं, मैं इंतजार कर रही थी.’’

‘‘ओह, मेरा इंतजार. दरअसल मैं आज नक्काशी की क्लास भी नहीं गया. कोई खास वजह नहीं है. बस, मन ही नहीं था.’’

‘‘क्या पढ़ रहे थे आप?’’

‘‘आजकल विश्व साहित्य पढ़ रहा हूं. सुबह से निजार कब्बानी की कविताओं में डूबा हुआ था.’’

‘‘अच्छा. लेकिन मैं ने कभी उन के बारे में नहीं सुना. आप उन की कोई पंक्ति सुनाइए जो आप को सब से ज्यादा पसंद हो.’’

‘‘हां जरूर, अनामिका.’’

इतनी देर में जामयांग चाय ले कर आ गया और वे दोनों वहीं डाइनिंग टेबल पर बैठ गए. मयंक गुप्ता ने चाय का एक घूंट पिया और कविता कहनी शुरू की.

‘‘मैं कोई शिक्षक नहीं हूं, जो तुम्हें सिखा सकूं कि कैसे किया जाता है प्रेम. मछलियों को नहीं होती शिक्षक की जरूरत, जो उन्हें सिखाता हो
तैरने की तरकीब और पक्षियों को भी नहीं, जिस से कि वे सीख सकें उड़ान के गुर. तैरो खुद अपनी तरह से, उड़ो खुद अपनी तरह से, प्रेम की कोई पाठ्यपुस्तक नहीं होती.’’ अनामिकाजी कहीं खो गई थीं और मयंक गुप्ता एकदम चुप हो गए.

‘‘बहुत ही सुंदर है. कविताओं के सम्मोहन उन के काम आते हैं जिन को इन की जरूरत है. लेकिन ज्यादातर लोग तो अंधी दौड़ में शामिल हैं,’’ अनामिकाजी कुछ सोचते हुए बोलीं.

‘‘जरूरत से ज्यादा बौद्धिकता और आधुनिकता ने हमारे स्वाभाविक मृदु भाव छीन लिए हैं, अनामिका.’’

‘‘जी, समाज हर बात को ‘इंटैलेक्चुअल लैंस’ से ही देखता है और भाव जगत को देखनेसमझने की कोशिश कोई नहीं करता.’’

मयंक गुप्ता अनामिका को ध्यान से देख रहे थे और उन की आंखों में जो गूढ़ सांकेतिक भाषा थी, मिस अनामिका समझ पा रही थीं.

‘‘भाव जगत एक विस्तृत विषय है- एक आदिम अवस्था, सामाजिक तो बिलकुल भी नहीं.’’ मयंक गुप्ता चाय पीते हुए बोले.

‘‘और, शब्द केवल संकेत दे सकते हैं. प्रेम जैसे विस्तृत विषय को केवल जिया जा सकता है, जाना नहीं जा सकता,’’ अनामिका बोलीं.

मयंक जैसे किसी नए लोक में थे- यथार्थ और स्वप्न के पार की कोई दुनिया. दोनों एकदूसरे को देख रहे थे और जामयांग उन दोनों को. वह खाने में त्सम्पा बना कर लाया था.

मयंक कुछ सहज हुए और मजाक में बोले कि तिब्बती लोग जीवन के पहले खाने से अंतिम खाने तक त्सम्पा और चाय पर ही निर्भर रहते हैं. उस के बाद दोनों घंटों बैठे बातें करते रहे और फिर अनामिका वापस होम स्टे आ गईं.

मयंक गुप्ता को ले कर अनामिका के विचार उदार थे और वे यह भी जानती थीं कि प्रोफैसर का उन के प्रति आकर्षण स्वाभाविक और विशुद्ध है. प्रेम सामाजिक नहीं, अस्तित्वगत है. इतना व्यापक कि हर रूप में बांटा जा सकता है. जीवन और प्रेम भी कभी तार्किक हुए हैं भला?

उन दोनों का ऐसे ही मिलना चलता रहा और हिमपात के दिन आ गए. पूरी धौलाधार हिमपात के दिनों में बर्फ की चमकती पोशाक पहन लेती थी. जीवन में पहली बार रुई जैसी नर्म ताजा बर्फ के फूल आसमान से झरते हुए अनामिकाजी देख रही थीं और खुद को अकल्पनीय दुनिया में पा रही थीं. उस दिन अनामिका कुदरत के इस तिलिस्म को देखने दूर तक चली गईं और धर्मकोट के ऊपरी शिखर पर जा कर अचंभित हो गईं. बर्फबारी रुकी हुई थी और बहती हुई ठंडी हवा के शोर में एक नई आवाज भी सुनाई दे रही थी, मठों से संगीत की आवाज. ध्वज जोरजोर से लहरा रहे थे. दूर की पहाडि़यों में जो दरारें थीं, उन में बर्फ ऐसे भर गई थी जैसे घाव भरते हैं.

अनामिका ने खूब तसवीरें लीं और मयंक गुप्ता के घर की तरफ चल पड़ीं. मयंक स्वास्थ्य कारणों से बर्फबारी के कारण बाहर नहीं आ रहे थे.

पिछले तीनचार दिनों से वे घर में ही थे. उन के पास जाते ही अनामिका पहाड़ों और बर्फ की सुंदरता का बखान करने लगीं और गरमजोशी से मयंक को तसवीरें दिखाने लगीं. वे 55 साल की महिला नहीं, बिलकुल बच्चे जैसी लग रही थीं और मयंक गुप्ता उन को अनवरत देखते, सुनते जा रहे थे, जबकि खोए वे अपने खयालों में थे.

प्रेम में दूसरा ही सबकुछ हो जाता है, खुद से भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण. ‘मैं’ का विसर्जन हो जाता है, बचता है सिर्फ ‘होना’, मयंक गुप्ता यह महसूस कर पा रहे थे. उन की आंखें अप्रत्याशित कारणों से नम हो उठीं और उन्होंने मिस अनामिका के कंधे पर हाथ रख दिया. यह पहली बार हुआ था. इस छुअन से अनामिका अपनी तिलिस्मी दुनिया से बाहर यथार्थ में आ गईं और उन की सिसकी निकल गई. यह वह आत्मीय स्पर्श था जो उन्हें आजीवन नहीं मिला था.

वे दोनों देर तक चुपचाप बैठे रहे. अनामिका जान चुकी थीं कि जीने के लिए नियम या सामाजिक बंधन नहीं बल्कि अनाम प्रेम चाहिए.
मयंक गुप्ता के हाथ उन के सिर और कंधे को सहलाते रहे और अनामिका देर तक रोती रहीं. 30 साल की चट्टान जैसी कठोर शादीशुदा जिंदगी की दुखद, निरर्थक और भयावह यादें आज खुद को प्रत्यक्ष रूप से उद्घाटित कर रही थीं.

‘‘यदि मेरे साथ चलने पर तुम्हारी जिंदगी में कोई खुशी आ सकती है तो मैं तुम्हारे साथ चलने को तैयार हूं, अनामिका. हम अगला आने वाला जीवन एकसाथ गुजार सकते हैं.’’

अनामिका कुछ संभली और उन्होंने अपने आंसू पोंछे.

वे मुसकराती हुई बोलीं, ‘‘प्रोफैसर गुप्ता, मैं सारा जीवन खंडित वार्त्तालाप करती आई हूं लेकिन अब इतने सालों बाद मुझे मेरे अंदर के स्वर स्पष्ट भाषा में निर्देश दे रहे हैं कि अब मुझे किसी भी तरह के बंधन की नहीं, बल्कि स्वतंत्रता की जरूरत है. मैं आप के प्यार के साथ मुक्त हो कर जीना चाहती हूं जैसे एक दिन आप ने कविता में बोला था कि तैरो खुद अपनी तरह से, उड़ो खुद अपनी तरह से.’’

मयंक चुप रहे. कुछ पलों के बाद गरिमा के साथ उन्होंने अनामिका की बात को मुसकराते हुए मौन समर्थन दिया. जीवन की वास्तविकता एक हद पर जा कर हम से शब्द छीन लेती है. विशुद्ध प्रेम के उज्ज्वल प्रकाश में निराशा का एक कतरा भी नहीं रहता और एक गहरी समझ का उदय होता है.

उस दिन अनामिका ने अपने अगले ट्रैवल डैस्टिनेशन के बारे में भी बात की. हिमाचल के पहाड़ों पर लंबा समय गुजार देने के बाद अब वे जंगलों की तरफ जाना चाहती थीं और आखिरकार एक महीने बाद वे चली भी गईं.

इस बात को एक साल बीत चुका था और अनामिका इन दिनों सुंदरवन के जंगलों में फोटोग्राफी कर रही थीं.

मयंक और वे लगातार फोन और चिट्ठियों के माध्यम से संपर्क में बने रहते थे और एक बार दोनों की मुलाकात जिम कार्बेट में हुई थी जब अनामिका ने मयंक को जंगल सफारी के लिए बुलाया था. पत्रों में वे मयंक को अपने नएनए अनुभव बतातीं और मयंक उन को ‘थौट औफ द डे’.

आज मयंक अपनी किताबों में डूबे हुए थे कि जामयांग उन के पास एक कोरियर ले कर आया. मयंक खुशी से उछल पड़े, यह अनामिका ने भेजा था. जल्दीजल्दी उन्होंने खोला तो उस में मयंक की जिम कार्बेट वाली एक फ्रेम्ड तसवीर निकली, जो मयंक को भी याद नहीं था कि अनामिका ने कब खींची थी और साथ में एक पत्र तथा सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से एक एंट्री पास था. बिना वक्त गंवाए मयंक ने चिट्ठी पढ़नी शुरू की तो पता चला कि इस साल का ‘एमेच्योर फोटोग्राफर औफ द ईयर’ का पुरस्कार मिस अनामिका को मिलने जा रहा था और अनामिका ने उन को उस कार्यक्रम के लिए अगले हफ्ते दिल्ली बुलाया था.

मयंक की आंखों में चमक आ गई. वे सोचने लगे कि अनामिका ने स्वतंत्र जीवन की अमर और अंतहीन प्रकृति को पा लिया था. सालों की गहन विनयशीलता, कष्ट, सादगी और संयम मनुष्य की मनोवृत्ति की नक्काशी कर के कैसे बदल देते हैं, अनामिका को देख कर समझ आ रहा था.

लेखक – अनुजीत

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