आखिर क्या कारण है कि सोशल मीडिया नफरत फैलाने का अड्डा बनता जा रहा है? क्यों सरकार इन लोगों पर लगाम नहीं लगा पा रही? धीरेंद्र राघव जैसे सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स को धार्मिक भावनाएं भड़काने की हिम्मत कहां से मिल रही है? और सब से ज्यादा जरूरी बात यह कि इन जैसे इन्फ्लुएंसर्स से युवा छुटकारा कैसे पाएं? ये वे सवाल हैं जिन्हें आज सोशल मीडिया यूज करने वाले हर यूजर को जानने की जरूरत है.
हाल के समय में सोशल मीडिया पर धार्मिक भावनाएं भड़काने वाली रील्स और पोस्ट खूब वायरल होने लगी हैं. मेटा का व्हाट्सऐप इस तरह के कंटैंट फैलाने वाला घोषित प्लेटफौर्म तो था ही, अब इंस्टाग्राम भी उसी राह चलने लगा है. जाहिर है, कुबुद्धि के शिकार जो लोग व्हाट्सऐप पर नफरत फैला रहे हैं उन्होंने रील्स को भी अपना हथियार बनाना शुरू कर दिया है.
इन नफरती इन्फ्लुएंसर्स के लिए सोशल मीडिया सब से सहूलियत भरी जगह बन कर उभरी है. यहां न तो कोई देखरेख है न संपादन करने वाला डेस्क, न ही रोकटोक. कहने को मेटा के अपने कानून तो हैं पर नाम के. इन्फ्लुएंसर्स के मन में जो भी अनापशनाप है, बेझिझक कह देता है चाहे फेक न्यूज के जरिए या गालियों के जरिए.
वायरल होना पड़ गया भारी
ऐसी ही झूठ की दुकान चलाने वाला सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर धीरेंद्र राघव है, जो फिलहाल पुलिस की कस्टडी में है. मामला यों है कि लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को बहुमत नहीं मिला और वह 240 पर ही सिमट गई. 400 पार नारा देने वालों के लिए एक तरह से यह नैतिक हार थी, क्योंकि राम मंदिर के नाम पर लड़ने वाले फैजाबाद लोकसभा सीट से चुनाव हार गए जहां अयोध्या पड़ता है.
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