शादाब शम्स एक बेहद वफादार भाजपाई नेता और विकट के मोदीभक्त हैं. उत्तराखंड भाजपा के प्रवक्ता रहे शादाब को 2 साल पहले उत्तराखंड वक्फ बोर्ड का चेयरमैन बनाया गया है. 15 मई को वे रुड़की स्थित पिरान कलियर दरगाह साबिर पाक में खासतौर से गए थे जहां उन्होंने चादरपोशी के बाद लंगर भी खिलाया और अपने अल्लाहतआला से दुआ मांगी कि नरेंद्र मोदी ही तीसरी बार प्रधानमंत्री बनें क्योंकि न केवल देश को, बल्कि दुनिया को भी उन की जरूरत है जो हर लिहाज से बुरे दौर, जंग और अस्थिरता से गुजर रही है.

इस मौके पर नरेंद्र मोदी की तारीफों में कसीदे गढ़ती जम कर कव्वालियां भी हुईं. शादाब उन इनेगिने मुसलिम नेताओं में से एक हैं जो नरेंद्र मोदी को मुसलमानों का सच्चा हमदर्द मानते हैं. वे मानते हैं कि मोदी के राज में मुसलमान खतरे में नहीं हैं.

लेकिन उन्हीं के राज्य उत्तराखंड में हिंदू खतरे में हैं, यह बात उन्होंने ठीक 2 साल पहले खुल कर इन शब्दों में बयां की थी- देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी के आव्हान पर चारधाम यात्रा में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ रही है. जिन लोगों की यात्रामार्ग में मौत हो जाती है तो, उन के मुताबिक, उन्हें मोक्ष मिलेगा. लोगों की चारधाम के प्रति सच्ची आस्था है.

इस पर कांग्रेस क्यों खामोश रहती, लिहाजा, पलटवार में उस की प्रवक्ता प्रतिमा सिंह ने कहा, ‘चारधाम यात्रा में मोक्ष का मतलब मृत्यु नहीं है बल्कि श्रद्धालु धाम में पहुंच कर अपनी गलतियों का प्रायश्चित्त कर सुखद जीवन की कामना करता है.’

2022 और 2023 में भी सैकड़ों श्रद्धालु चारधाम यात्रा के दौरान मारे गए थे. इस साल 14 मई को ही यह आंकड़ा दहाई अंक में पहुंच गया है. 10 मई को यह यात्रा शुरू हुई थी और 4 दिनों में ही 11 श्रद्धालु मोक्ष या मृत्यु कुछ भी कह लें को प्राप्त हो चुके थे. अगर हालत यही रही, जिस की उम्मीद ज्यादा है, तो मरने वालों की तादाद कितने सौ पार करेगी, गारंटी से इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यहां मामला राजनीति का नहीं, बल्कि धर्म का है.

15 मई तक ही 27 लाख से भी ज्यादा श्रद्धालु चारधाम यात्रा का रजिस्ट्रेशन करा चुके थे. इस संख्या के इस साल 80 लाख तक पहुंचने की संभावना है. यह अपनेआप में एक रिकौर्ड होगा. 15 मई तक ही कोई 2 लाख 76 हजार श्रद्धालु धामों के दर्शन भी कर चुके थे. रोज हजारों नए भक्त पहाड़ों पर पहुंच रहे हैं, वहां गंद और प्रदूषण फैला रहे हैं. इन्हें संभाल पाना किसी सरकार तो दूर की बात है अब भगवान के बस की भी बात नहीं. 11 श्रद्धालु मर चुके थे तो सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि कितने इन पहाड़ों और उन की दुर्गम यात्रा में बेहाल होंगे.

15 मई को उमड़ी भीड़ से यमुनोत्री धाम के रास्ते पर 4 किलोमीटर लंबा जाम लगा था जिस के चलते श्रद्धालु खानेपीने और मलमूत्र त्यागने तक को तरस गए थे. जैसे ही यमुनोत्री धाम के कपाट खुले, आदत के मुताबिक, लोग मंदिर की तरफ दौड़ पड़े मानो ट्रेन छूटी जा रही हो या हाट लुटी जा रही हो. जगहजगह जाम और बदइंतजामी के चलते प्रशासन ने औफलाइन रजिस्ट्रेशन पर रोक लगा दी जो हरिद्वार और ऋषिकेश में हो रहे थे. लेकिन इस से रास्ते में फंसे यात्रियों को कोई राहत नहीं मिली जिन्हें पैदल चलने भी जगह नहीं मिल रही थी. यह स्थिति अभी भी सुधरी नहीं है. अफरातफरी और भगदड़ न मचे, इस बाबत श्रद्धालुओं को जगहजगह रोक दिया गया. इस वक्त तक अकेले यमुनोत्री के रास्ते पर 6 भक्त मर चुके थे.

पिछले साल, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, चारधाम यात्रा में 200 श्रद्धालुओं की मौत हुई थी जिन में सब से ज्यादा 96 केदारनाथ में मरे थे. यमुनोत्री धाम में 34 , गंगोत्री धाम में 29 और बद्रीनाथ धाम में 33 श्रद्धालु मारे गए थे जबकि हेमकुंड साहिब में 7 और गोमुख ट्रैक पर एक मौत हुई थी. इस के पहले 2022 में 232 श्रद्धालुओं की मौत हुई थी जबकि 2021 में 300 लोग मरे थे. यानी, हर साल सैकड़ों लोग, बकौल शादाब शम्स, मोक्ष को प्राप्त होते हैं और सरकार खामोशी से इस मुक्ति को देखती रहती है.
मीडिया के जरिए वह दावा जरूर करती है कि सबकुछ चाक चौबंद है लेकिन हकीकत इस से कोसों दूर होती है. 14-15 मई को हजारों यात्रियों ने अपने व्हीकल्स में रात गुजारी. पार्किंग इंतजाम के क्या ही कहने. खानेपीने का कोई ठौरठिकाना नहीं था लेकिन इस का जिम्मेदार अकेले सरकार को नहीं ठहराया जा सकता. उस से ज्यादा तो वे भक्त दोषी हैं जो पाप, मुक्ति और मोक्ष की चाहत में मुंह उठा कर चारधाम यात्रा पर निकल पड़ते हैं, जो कईयों के लिए आखिरी यात्रा साबित होती है.

पहाड़ों पर मौसम का बदलना बहुत आम है. कभी भी तेज बारिश होने लगती है, लैंड स्लाइडिंग के नजारे भी आम हैं. बर्फबारी होने से पूरा ट्रैफिक जाम हो जाता है. 2013 में आफत बाढ़ की शक्ल में आई थी और चारों धामों में बैठा भगवान भी कुछ नहीं कर पाया था. तब मोक्ष फुटकर में नहीं, बल्कि थोक में मिला था. ऐसे हादसों से धर्म के अंधे कुछ सीखते होते तो आज जान जोखिम में डाल कर यह आत्मघाती यात्रा न करते.

गंगोत्री मार्ग पर 6 दिनों से फंसे कोई 7 हजार भक्त खून के आंसू रो दिए थे. जिन्हें पानी की बोतल 50 रुपए में खरीदना पड़ा था और एक बार शौच जाने के सौ रुपए अदा करने पड़े थे. टैक्सीवाले इन दिनों और इन हालात में मनमाना किराया वसूलते हैं, जिन पर किसी का कोई जोर नहीं चलता. लेकिन उन की कोई खास गलती नहीं जब लोग अपनी मरजी से लुटने आते हैं तो वे क्यों कोई रहम करेंगे, वे तो पैसे ले कर मदद ही करते हैं.

ये तमाम परेशानियां अभी शुरुआती दौर में हैं जिन्हें भांपते कुछ ही समझदार श्रद्धालु वापस लौट रहे हैं. मीडिया भी गा-गा कर यह बता रहा है कि चारधाम यात्रा के वक्त क्याक्या सावधानियां रखें, मसलन बीमार लोग दवाइयां साथ रखें, हार्ट, शुगर और बीपी के मरीज ये और वे एहतियात रखें वगैरहवगैरह ताकि परेशानी न हो. यह कोई नहीं कह रहा कि पाप, मुक्ति और मोक्ष तो काल्पनिक बातें हैं, धर्म के दुकानदारों के गढ़े हुए कहानीकिस्से हैं ये. मौत एक वास्तविकता ही सही लेकिन जान जोखिम में डालना खुदकुशी करने जैसा ही काम है, जिस से एक ही सूरत में बचा जा सकता है कि आप वहां न जाएं.

जड़ में मोक्ष और पापमुक्ति

खतरों से वाकिफ होने के बाद भी लोग क्यों मौत के मुंह में जाते हैं, यह सच खुलेतौर पर दरगाह पर चादर चढ़ा कर नरेंद्र मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की मन्नत मांगने वाले धर्मभीरु शादाब शम्स बता चुके हैं. लेकिन हिंदू धर्मग्रंथ, धार्मिक मान्यताएं और गढ़े गए पौराणिक किस्सेकहानियों में मोक्ष और पापमुक्ति के लिए चारधाम यात्रा करने के लिए इफरात से उकसाया गया है.

यह आम मान्यता है कि चारधाम की यात्रा करने से मोक्ष मिलता है और पापों से मुक्ति भी मिलती है. शिवपुराण के मुताबिक, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शन और पूजन के बाद जो भी व्यक्ति जल ग्रहण करता है उस का पृथ्वी पर दोबारा जन्म नहीं होता. लोग कहीं केदारनाथ के ही दर्शन-पूजन कर न खिसक लें, इसलिए यह गप भी जोड़ दी गई है कि केदारनाथ के बाद अगर बद्रीनाथ के दर्शन-पूजन नहीं किए तो फल नहीं मिलता. इसलिए जो लोग केदारनाथ जाते हैं वे आठवां वैकुण्ठ कहे जाने वाले बद्रीनाथ की यात्रा भी करते हैं. यानी वहां के पंडेपुजारियों को भी दानदक्षिणा देते हैं. रोजीरोटी के मुफ्त के इंतजाम की यह एक और बेहतर मिसाल है.

इन मंदिरों में मुख्य शिवलिंग है लेकिन वैष्णवों को लुभाने के भी किस्से हैं. मसलन, भगवान विष्णु बद्रीनाथ धाम में विश्राम करते हैं. इस की स्थापना उन्होंने सतयुग में ही कर दी थी. यहां वे नरनारायण रूप में हैं. सारे पापों के नष्ट हो जाने और मोक्ष की गारंटी का शिवपुराण के कोटि रूद्र संहिता में भी जिक्र है.

एक और किस्से के मुताबिक पांडवों ने इन्हीं पहाड़ों में शिव की आराधना की थी क्योंकि उन्हें अपने ही भाइयों यानी कौरवों को मारने का गिल्ट मन में था. यह कहानी पुराने जासूसी उपन्यासों सरीखी रोमांचक है कि शिव पांडवों को आता देख छिप गए लेकिन पांडवों ने उन्हें देख लिया और उन के पीछेपीछे चलने लगे. यह देख शिव ने भैंसे का रूप रख लिया. भीम ने उन्हें अपनी एक खास ट्रिक से पहचान लिया. आखिर में शिव पांडवों की भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें पापमुक्ति का वरदान दे दिया. दूसरी कहानियों की तरह यह कहानी भी कम दिलचस्प नहीं जिस के तहत भैंसा बने शिव का मुंह नेपाल में निकला जिसे पशुपति नाथ मंदिर कहा जाता है.

और एक कहानी के मुताबिक, आदि शंकराचार्य यहीं कहीं धरती में समाए थे लेकिन समातेसमाते अपने भक्तों के लिए गरम पानी का एक कुंड बना गए थे.
अब भला ऐसे दर्जनों किस्सेकहानियों को सुन कर किस भक्त का जी पापमुक्ति के लिए नहीं मचलेगा कि पहले तो भाइयों की हत्या करने जैसा जघन्य अपराध करो और फिर केदारनाथ जा कर पापमुक्त हो जाओ. यहां यह तर्क कोई नहीं करता कि विष्णु के अवतार कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान ही अर्जुन को गीता का उपदेश देते कहा था कि दुश्मन अगर भाई हो तो उसे टपका देने से पाप नहीं लगेगा बल्कि यश मिलेगा.

मजेदार बात तो यह भी है कि हरेक तीर्थस्थल पर मोक्ष और पापमुक्ति का विधान है. काशी में तो जगहजगह लिखा है कि यहां जो मरता है उसे मोक्ष मिलता ही मिलता है. जब यह सहूलियत हर जगह है तो चारधाम ही क्यों, इस सवाल का जवाब बेहद साफ है कि खुद श्रद्धालुओं के दिलोदिमाग में इन कहानियों को सुन शंका रहती है कि वाकई में असल मोक्ष कहां मिलेगा, इसलिए मोक्ष के मारे वे यहां से वहां भटकते व दानदक्षिणा देते रहते हैं.

ये भक्त इतने अंधविश्वासी होते हैं कि मुमकिन है कि मन में यह मन्नत ले कर जाते हों कि हे प्रभु, चारधाम की यात्रा में ही कहीं हमें उठा लेना जिस से जन्ममरण के चक्र से मुक्ति मिले. ऊपरवाला अभी तक 11 की सुन चुका है, पिछले सालों में कितनों की सुनी थी, यह ऊपर बताया ही जा चुका है.

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