Loksabha Election 2024:रायबरेली लोकसभा सीट को उत्तर प्रदेश ही नहीं, देशभर में कांग्रेस का सब से मजबूत गढ़ माना जाता रहा है. इंदिरा गांधी और सोनिया गांधी जैसे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को संसद में पहुंचाने वाली इस सीट से कांग्रेस ने 16 बार जीत हासिल की है. रायबरेली की सीट भाजपा के लिए हमेशा से चुनौती रही है. रायबरेली में 2 बार 1996 और 1998 भाजपा को जीत मिली है.

रायबरेली को गांधी परिवार का हिस्सा बनाने का काम सब से पहले इंदिरा गांधी के पति फिरोज गांधी ने किया. इस के बाद इंदिरा और सोनिया गांधी भी यहां से सांसद बनीं. कांग्रेस यहां इस कदर मजबूत हुई कि 1957 से अब तक मात्र 3 बार लोकसभा चुनावों में उसे हार का सामना करना पड़ा है. सब से चर्चित चुनाव 1977 का रहा, जब भारतीय लोकदल के टिकट पर चुनाव लड़े समाजवादी धड़े के नेता राज नारायण ने इंदिरा गांधी को हरा दिया था. सोनिया गांधी पहली बार रायबरेली से 2004 में चुनाव लड़ीं और तब से अब तक वे यहां की सांसद हैं.

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रायबरेली में ब्राह्मणों की आबादी 11 फीसदी, ठाकुरों की 9 फीसदी, यादव 7 फीसदी, एससी 34 फीसदी, मुसलिम 6 फीसदी, लोध 6 फीसदी, कुर्मी 4 फीसदी और अन्य आबादी 23 फीसदी है. यहां कुल मतदाताओं की संख्या 7,79,813 है. रायबरेली सीट पर पासी जाति का प्रभाव माना जाता है. इस के अलावा ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रिय जातियों के लोकल नेता निकाय चुनाव व विधानसभा से ले कर लोकसभा चुनावों तक प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं.

गांधी परिवार के नाम पर यहां सारी गुटबाजी खत्म हो जाती है. 2024 के लोकसभा चुनाव में सब से अधिक चर्चा इस बात को ले कर हो रही है कि रायबरेली से गांधी परिवार चुनाव लड़ेगा या नहीं? पूरे देश की निगाहें इसी पर है. अगर प्रियंका गांधी यहां से चुनाव मैदान में उतरती हैं तो उन की जीत में कोई शकशुबहा नहीं है. सोनिया गांधी पूरे कार्यकाल बीमार रही हैं. अब वे राज्यसभा से सांसद हैं. ऐसे में रायबरेली में उन के खिलाफ कोई माहौल नहीं है जिस का खराब प्रभाव पड़े.

प्रिंयका गांधी ने पिछले चुनाव में और पहले से भी यहां सोनिया गांधी का चुनाव संचालन करती रही हैं. ऐसे में वे क्षेत्र की जनता के लिए अनजान नहीं हैं. रायबरेली की जनता के बीच लोकप्रिय हैं. रायबरेली ही नहीं, अमेठी में भी प्रियंका चुनाव संचालन करती रही हैं. दोनों ही लोकसभा सीटों पर वे प्रभावी हैं. अगर प्रियंका गांधी चुनाव नहीं लड़तीं तब कांग्रेस के लिए मुश्किल हो सकती है. प्रियंका गांधी अभी तक चुनावी राजनीति का हिस्सा नहीं हैं. वे राहुल गांधी और सोनिया गांधी का चुनाव प्रबंध संभालती रही हैं.

प्रियंका ने 2019 के लोकसभा चुनाव में आधे उत्तर प्रदेश को संभाला और 2022 के विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में पार्टी महासचिव का काम देखा. प्रियंका गांधी कांग्रेस में क्राइसेस मैनेजमैंट का काम देखती हैं. चाहे संकट मध्य प्रदेश, राजस्थान, हिमांचल प्रदेश कहीं का हो, बिगड़े काम और संबंध बनाने का काम प्रिंयका ही करती हैं. कांग्रेस के बड़े फैसले परिवार के 3 लोग मिल कर ही लेते हैं. घर के बाहर किसी तरह का आपसी विवाद नहीं दिखता. राहुल की सब से बड़ी ताकत वे हैं. ऐसे में वे चुनावी राजनीति की जगह पर पार्टी संगठन में ही काम करना पसंद करती हैं.

प्रियंका गांधी के लोकसभा चुनाव लड़ने के बाद अगर वे जीत गईं तो संसद में एक ही परिवार के 3 सदस्य हो जाएंगे जो आलोचना को हवा देने का काम करेगा. दूसरे, पार्टी के अंदर ही एक अलग पावर सैंटर बनने लगेगा. इन से बचने के लिए प्रियंका गांधी लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए तैयार नहीं हैं. पार्टी अगर फैसला करती है तो प्रिंयका गांधी उस फैसले का सम्मान करेंगी. ऐसा भी नहीं है कि रायबरेली की जीत का प्रभाव पूरे उत्तर प्रदेश की सीटों पर पड़ेगा कि जिस से कांग्रेस 17 में से 10 सीटें जीत जाएगी. अगर प्रियंका हार गईं तो आलोचना करने वालों को मौका मिल जाएगा.

अमेठी को ले कर राहुल की दुविधा:

अमेठी निर्वाचन क्षेत्र 1967 में बनाया गया था. इस के पहले सांसद कांग्रेस के विद्या धर बाजपेयी थे, जो 1967 में चुने गए थे. 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के रवींद्र प्रताप सिंह सांसद बने. 1980 में कांग्रेस के संजय गांधी ने रवींद्र प्रताप सिंह को हराया था. उसी साल संयज गांधी की एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई. इस के कारण 1981 में उपचुनाव कराना पड़ा जिसे उन के भाई राजीव गांधी ने जीता. राजीव गांधी 1991 तक इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते रहे. लिबरेशन टाइगर्स औफ तमिल ईलम (एलटीटीई) द्वारा राजीव गांधी की हत्या किए जाने के के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस के सतीश शर्मा ने जीत हासिल की.

1996 में सतीश शर्मा फिर से निर्वाचित हुए. 1998 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के संजय सिंह ने सतीश शर्मा को हराया. राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी ने 1999 से 2004 तक इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. उन के बेटे राहुल गांधी 2004 में चुने गए. वे 1980 के बाद से इस सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले नेहरूगांधी परिवार के चौथे सांसद थे. 2019 में भाजपा की स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को चुनाव हरा दिया. भाजपा ने यह मान लिया कि कांग्रेस का किला ध्वस्त कर दिया.

अमेठी लोकसभा में भी गांधीनेहरू परिवार हर चुनावी समीकरण से ऊपर है. दरअसल अमेठी और रायबरेली का मतदाता पूरे प्रदेश के मतदाता से अलग सोचता है. उसे लगता है कि वह प्रधानमंत्री या उस स्तर के नेता को वोट दे रहा है. इन दोनों क्षेत्रों के मतदाताओं में एक अलग भाव दिखता है. 2019 में स्मृति ईरानी के जीतने के बाद यह भाव जनता में नहीं बन पा रहा है. ऐसे में उस की पहली पसंद राहुल गांधी ही हैं.

भाजपा ने राहुल गांधी और कांग्रेस के खिलाफ स्मृति ईरानी का प्रयोग तो किया लेकिन उन को कोई अलग अधिकार नहीं दिया. वे संसद में या संसद परिसर में ही बोलती दिखती हैं. ऐसे में अमेठी की जनता बदलाव चाहती है. उसे अपना वीवीआईपी स्तर वापस चाहिए. इस कारण राहुल गांधी की मांग वहां है वे चुनाव जीत सकते हैं.

राहुल गांधी सपाट तरह से सोचते हैं. उन को लगता है कि वे वायनाड और अमेठी दोनों चुनाव जीत गए तो कहां से इस्तीफा देंगे, यह सरल काम नहीं होगा. अमेठी उन का पुराना क्षेत्र है. उस से लगाव है. वायनाड ने राहुल गांधी को उस समय चुनाव जितवाया जब अमेठी से चुनाव हार गए. राहुल गांधी के लिए वायनाड और अमेठी से चुनाव जितना सरल है लेकिन किसी एक चुनाव क्षेत्र को छोड़ना मुश्किल होगा. यही दुविधा उन को फैसले लेने से रोक रही है. कांग्रेस को दक्षिण भारत में अधिक स्कोप दिख रहा है. ऐसे में वायनाड राहुल गांधी के लिए खास है.

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